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भारत को धर्मनिरपेक्षता की जरूरत नहीं : गोविंदाचार्य

पूर्व भाजपा नेता के.एन. गोविंदाचार्य ने एक साक्षात्कार में कहा कि भारत को धर्मनिरपेक्षता जैसी 'पश्चिमी' अवधारणाओं की आवश्यकता नहीं है. गोविंदाचार्य 1990 के दशक में भाजपा की राम मंदिर रणनीति के केंद्र में थे. हालांकि बाद में उन्होंने भगवा पार्टी के साथ नाता तोड़ लिया है.

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Published : Aug 2, 2020, 2:26 PM IST

ram mandir
गोविंदाचार्य

नई दिल्ली : पूर्व भाजपा नेता के.एन. गोविंदाचार्य ने एक साक्षात्कार में कहा कि भारत को धर्मनिरपेक्षता जैसी 'पश्चिमी' अवधारणाओं की आवश्यकता नहीं है. गोविंदाचार्य 1990 के दशक में भाजपा की राम मंदिर रणनीति के केंद्र में थे. हालांकि बाद में उन्होंने भगवा पार्टी के साथ नाता तोड़ लिया है.

संघ के विचारक और भाजपा के पूर्व महासचिव गोविंदाचार्य ने राम जन्मभूमि आंदोलन और राम मंदिर 'भूमि पूजन' पर कहा, 'यह 500 वर्षों का संघर्ष है. यह 500 वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू सभ्यता का दावा है जिसकी सुखद परिणति हम इस 'भूमि पूजन' के माध्यम से देखेंगे. यह सभ्यतागत पहलू बहुत अहम है क्योंकि लगभग 500 साल पहले उपनिवेशवाद या प्रोटेस्टेंटवाद शुरू हुआ था। इसके कारण हम खून में सने एक यूरोप केंद्रित समृद्धि के साक्षी बने हैं. तो इसलिए, यह 'भूमि पूजन' हमारे अपने सभ्यता की प्रगति में एक महत्वपूर्ण तारीख है.'

यह पूछे जाने पर कि 'रामराज्य' क्या है? 1990 के दशक के दौरान इस शब्द का प्रयोग बार-बार किया गया था. आज इसका क्या महत्व है? तो गोविंदाचार्य ने कहा, 'पश्चिम में एक मानव विकास संबंधी अवधारणा है, जिसने दो विश्व युद्ध और असमानता पैदा की. जहां 500 साल का और आगे का हमारा प्रयास रामराज्य के लिए है. यह गांधीजी के हिंद स्वराज के अलावा और कुछ नहीं है, जो पारिस्थितिकी विकास है. यह आत्मनिर्भर होने की अवधारणा है, समानता आधारित समृद्धि जो महंगाई पर नहीं बल्कि संतोष पर आधारित है. रामराज्य में उत्पादों के लिए मूल्य नहीं होगा, लेकिन उस उत्पाद को बनाने के लिए कौशल की सराहना की जाएगी। यह विचार पश्चिमी स्कूल से बहुत अलग है.'

'हिंदुत्व' शब्द के इस्तेमाल पर उन्होंने कहा, 'इतने लंबे समय के बाद, हिंदुत्व को प्रमुख स्थान मिल रहा है. स्वाभाविक रूप से, इसे स्वीकार किया जा रहा है. जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला (राम मंदिर पर) आया, तो पूरे देश ने इसे खुले दिल से स्वीकार किया. अधिकांश ने इसे स्वीकार कर लिया.'

धर्मनिरपेक्षता के बारे में उन्होंने कहा, 'भारत के लिए धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता नहीं है। भारत की उपासना की सभी पद्धतियों के प्रति सम्मान की अपनी अवधारणा है. इसके बजाय, धर्मनिरपेक्षता का विचार पश्चिम से उधार लिया गया है. पश्चिम का अपना सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष था जिसके बीच धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को लाया गया था. इसका भारत के इतिहास या भूगोल से कोई लेना-देना नहीं है.'

राम मंदिर तीर्थक्षेत्र को लेकर उन्होंने कहा कि इस बात का बहुत ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह लोगों के हाथों में रहे और यह सरकारी विभाग न बने.

नई दिल्ली : पूर्व भाजपा नेता के.एन. गोविंदाचार्य ने एक साक्षात्कार में कहा कि भारत को धर्मनिरपेक्षता जैसी 'पश्चिमी' अवधारणाओं की आवश्यकता नहीं है. गोविंदाचार्य 1990 के दशक में भाजपा की राम मंदिर रणनीति के केंद्र में थे. हालांकि बाद में उन्होंने भगवा पार्टी के साथ नाता तोड़ लिया है.

संघ के विचारक और भाजपा के पूर्व महासचिव गोविंदाचार्य ने राम जन्मभूमि आंदोलन और राम मंदिर 'भूमि पूजन' पर कहा, 'यह 500 वर्षों का संघर्ष है. यह 500 वर्षों के संघर्ष के बाद हिंदू सभ्यता का दावा है जिसकी सुखद परिणति हम इस 'भूमि पूजन' के माध्यम से देखेंगे. यह सभ्यतागत पहलू बहुत अहम है क्योंकि लगभग 500 साल पहले उपनिवेशवाद या प्रोटेस्टेंटवाद शुरू हुआ था। इसके कारण हम खून में सने एक यूरोप केंद्रित समृद्धि के साक्षी बने हैं. तो इसलिए, यह 'भूमि पूजन' हमारे अपने सभ्यता की प्रगति में एक महत्वपूर्ण तारीख है.'

यह पूछे जाने पर कि 'रामराज्य' क्या है? 1990 के दशक के दौरान इस शब्द का प्रयोग बार-बार किया गया था. आज इसका क्या महत्व है? तो गोविंदाचार्य ने कहा, 'पश्चिम में एक मानव विकास संबंधी अवधारणा है, जिसने दो विश्व युद्ध और असमानता पैदा की. जहां 500 साल का और आगे का हमारा प्रयास रामराज्य के लिए है. यह गांधीजी के हिंद स्वराज के अलावा और कुछ नहीं है, जो पारिस्थितिकी विकास है. यह आत्मनिर्भर होने की अवधारणा है, समानता आधारित समृद्धि जो महंगाई पर नहीं बल्कि संतोष पर आधारित है. रामराज्य में उत्पादों के लिए मूल्य नहीं होगा, लेकिन उस उत्पाद को बनाने के लिए कौशल की सराहना की जाएगी। यह विचार पश्चिमी स्कूल से बहुत अलग है.'

'हिंदुत्व' शब्द के इस्तेमाल पर उन्होंने कहा, 'इतने लंबे समय के बाद, हिंदुत्व को प्रमुख स्थान मिल रहा है. स्वाभाविक रूप से, इसे स्वीकार किया जा रहा है. जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला (राम मंदिर पर) आया, तो पूरे देश ने इसे खुले दिल से स्वीकार किया. अधिकांश ने इसे स्वीकार कर लिया.'

धर्मनिरपेक्षता के बारे में उन्होंने कहा, 'भारत के लिए धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता नहीं है। भारत की उपासना की सभी पद्धतियों के प्रति सम्मान की अपनी अवधारणा है. इसके बजाय, धर्मनिरपेक्षता का विचार पश्चिम से उधार लिया गया है. पश्चिम का अपना सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष था जिसके बीच धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को लाया गया था. इसका भारत के इतिहास या भूगोल से कोई लेना-देना नहीं है.'

राम मंदिर तीर्थक्षेत्र को लेकर उन्होंने कहा कि इस बात का बहुत ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह लोगों के हाथों में रहे और यह सरकारी विभाग न बने.

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