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1933 में यहीं से बापू ने भरी थी छुआछूत की खाई, 104 किमी पैदल चल सुनने पहुंचे थे 4000 लोग - indian independence movement

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसे ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 33वीं कड़ी.

गांधी और गन्नू भोई
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Published : Sep 18, 2019, 5:28 PM IST

Updated : Oct 1, 2019, 2:13 AM IST

मण्डला। जब देश में छुआछूत का जहर इंसानी रगों में खून की तरह दौड़ रहा था, ऊंच-नीच का बोलबाला था, दबे कुचलों की आवाज दम तोड़ती जा रही थी, तब एक महात्मा ने उनकी आवाज को अपनी जुबान दी. जिसकी गूंज देश के ओर से छोर तक सुनाई पड़ने लगी.

उस दौर में इस महात्मा की एक झलक पाने के लिए लोग किस कदर बेचैन रहते थे, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मण्डला में जब गांधीजी पहुंचे थे, तब उन्हें सुनने के लिए 4000 लोग 104 किलोमीटर का सफर करके पहुंचे थे क्योंकि उनको इस महात्मा में अपना भविष्य दिखता था.

गांधी के मुंह से निकले एक-एक शब्द तारीख पर दर्ज हैं. जिन्हें सुनने के लिए लोग इस कदर बेचैन रहते थे कि मीलों पैदल चलने से भी गुरेज नहीं करते थे, 6 दिसंबर 1933 को जब एक आंदोलन के तहत गांधीजी मण्डला पहुंचे थे, तब गांधीजी से मिलने के लिए गन्नू भोई अपने 4000 समर्थकों के साथ 104 किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे थे.

मंडला से गांधी के रिश्ते पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ये उन दिनों की बात है जब छुआछूत रूपी जहर इंसानी रगों में रक्त की तरह दौड़ रहा था, ऊंच-नीच, छूत-अछूत, गरीब-अमीर की खाई इतनी गहरी हो चली थी, जो भरने की बजाय और गहरी होती जा रही थी. ऐसे में महात्मा गांधी ने अछूतों के लिए एक नया शब्द इजात किया और अछूतों को हरिजन बताकर समाज से भेदभाव की खाई भरने के लिए एक आंदोलन छेड़ दिया.

उस दौर में गांधीजी ने जिस जगह पर सभा की थी, उस चबूतरे के ऊपर अब नया चबूतरा तामीर कर उस पर गांधीजी की प्रतिमा स्थापित कर दी गई है, लेकिन झूला पुल के निर्माण के लिए उस बरगद के पेड़ को काट दिया गया, जिसे गांधीजी की याद में लगाया गया था, जोकि एकमात्र आखिरी गवाह था, महात्मा ने यहीं पर हरिजनों को प्रेरित किया और उन्हें कांग्रेस के साथ जोड़ा भी. फिर मण्डला से बिलासपुर के लिए उसी कार से रवाना हो गये, जिससे वे यहां आए थे.

ये भी पढ़ें: सिवान में कस्तूरबा के साथ पहुंचे थे गांधी, कई विभूतियों से हुआ था मिलन

मंडला में रंगरेज घाट नाम से दर्ज गांधी चबूतरा आज भी उन दिनों की याद दिलाता है, जब महात्मा गांधी गुलामी और छुआछूत के खिलाफ पूरे समाज को एकजुट कर रहे थे, तब देश के जर्रे-जर्रे से आजादी की मुनादी कर रहे थे. उनकी वाणी में जो ओज था, उसने पूरे समाज को एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभाई. गांधीजी ने ऊंच-नींच की खाईं भरने की जो शुरूआत की थी, आजादी के बाद इस शुरूआत को कानूनी जामा पहना दिया गया. जो काफी हद तक इस खाईं को भरने में महती भूमिका निभा रही है.

मण्डला। जब देश में छुआछूत का जहर इंसानी रगों में खून की तरह दौड़ रहा था, ऊंच-नीच का बोलबाला था, दबे कुचलों की आवाज दम तोड़ती जा रही थी, तब एक महात्मा ने उनकी आवाज को अपनी जुबान दी. जिसकी गूंज देश के ओर से छोर तक सुनाई पड़ने लगी.

उस दौर में इस महात्मा की एक झलक पाने के लिए लोग किस कदर बेचैन रहते थे, इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मण्डला में जब गांधीजी पहुंचे थे, तब उन्हें सुनने के लिए 4000 लोग 104 किलोमीटर का सफर करके पहुंचे थे क्योंकि उनको इस महात्मा में अपना भविष्य दिखता था.

गांधी के मुंह से निकले एक-एक शब्द तारीख पर दर्ज हैं. जिन्हें सुनने के लिए लोग इस कदर बेचैन रहते थे कि मीलों पैदल चलने से भी गुरेज नहीं करते थे, 6 दिसंबर 1933 को जब एक आंदोलन के तहत गांधीजी मण्डला पहुंचे थे, तब गांधीजी से मिलने के लिए गन्नू भोई अपने 4000 समर्थकों के साथ 104 किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे थे.

मंडला से गांधी के रिश्ते पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ये उन दिनों की बात है जब छुआछूत रूपी जहर इंसानी रगों में रक्त की तरह दौड़ रहा था, ऊंच-नीच, छूत-अछूत, गरीब-अमीर की खाई इतनी गहरी हो चली थी, जो भरने की बजाय और गहरी होती जा रही थी. ऐसे में महात्मा गांधी ने अछूतों के लिए एक नया शब्द इजात किया और अछूतों को हरिजन बताकर समाज से भेदभाव की खाई भरने के लिए एक आंदोलन छेड़ दिया.

उस दौर में गांधीजी ने जिस जगह पर सभा की थी, उस चबूतरे के ऊपर अब नया चबूतरा तामीर कर उस पर गांधीजी की प्रतिमा स्थापित कर दी गई है, लेकिन झूला पुल के निर्माण के लिए उस बरगद के पेड़ को काट दिया गया, जिसे गांधीजी की याद में लगाया गया था, जोकि एकमात्र आखिरी गवाह था, महात्मा ने यहीं पर हरिजनों को प्रेरित किया और उन्हें कांग्रेस के साथ जोड़ा भी. फिर मण्डला से बिलासपुर के लिए उसी कार से रवाना हो गये, जिससे वे यहां आए थे.

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मंडला में रंगरेज घाट नाम से दर्ज गांधी चबूतरा आज भी उन दिनों की याद दिलाता है, जब महात्मा गांधी गुलामी और छुआछूत के खिलाफ पूरे समाज को एकजुट कर रहे थे, तब देश के जर्रे-जर्रे से आजादी की मुनादी कर रहे थे. उनकी वाणी में जो ओज था, उसने पूरे समाज को एकजुट करने में बड़ी भूमिका निभाई. गांधीजी ने ऊंच-नींच की खाईं भरने की जो शुरूआत की थी, आजादी के बाद इस शुरूआत को कानूनी जामा पहना दिया गया. जो काफी हद तक इस खाईं को भरने में महती भूमिका निभा रही है.

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Last Updated : Oct 1, 2019, 2:13 AM IST
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