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विशेष : किसानों के लिए कब आएगा खुशियों का त्यौहार !

वर्तमान में किसानों की स्थिति को देखते हुए उनके लिए केंद्रीय और राज्य स्तर पर योजनाएं लाने की जरूरत है. डॉ स्वामीनाथन की रिपोर्ट में किसानों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक योजना होना महत्वपूर्ण बताया गया है, लेकिन इस बुनियादी तथ्य की उपेक्षा करके नेताओं ने अपनी सुविधा के अनुसार राष्ट्रीय कृषि क्षेत्र को पीछे रहने का विकल्प चुन लिया. हालांकि मोदी सरकार ने हाल ही में कृषि से संबंधित बुनियादी ढांचा विकास के लिए कुल एक लाख करोड़ रुपये की निधि जारी की है. केंद्र ने राष्ट्र के कृषि क्षेत्र को सही हालत में लाने के लिए ये कदम उठाए हैं. पढ़ें विशेष लेख...

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Published : Aug 13, 2020, 8:06 PM IST

डिजाइन फोटो
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हैदराबाद : किसानों की जीवन सुरक्षा और मानव जाति की खाद्य सुरक्षा के बीच एक अटूट रिश्ता है. डॉ. स्वामीनाथन की रिपोर्ट में आज की दुनिया में किसानों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर योजना होना महत्वपूर्ण बताया गया है. इस बुनियादी तथ्य की उपेक्षा करके नेताओं ने अपनी सुविधा के अनुसार राष्ट्रीय कृषि क्षेत्र को पीछे रहने का विकल्प चुन लिया. मोदी सरकार ने हाल ही में कृषि से संबंधित बुनियादी ढांचा विकास के लिए कुल एक लाख करोड़ रुपये के निधि की शुरुआत की है.

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि देश का सही विकास तबतक एक मृग-मरीचिका है, जब तक किसानों के हितों, कृषि क्षेत्र की उन्नत्ति और ग्रामीण विकास को एक मानते हुए उनसे जुड़ी समस्याओं से एक साथ नहीं निपटा जाता. भारत को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से शुरू की गई इस परियोजना के तहत बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा मुहैया कराया जाएगा जैसे आपूर्ति सेवाओं की चेन, आधारभूत प्रसंस्करण केंद्र, उर्वरण करने वाले गोदाम, गुणवत्ता परीक्षण इकाइयां, कोल्ड स्टोरेज की सुविधाएं, मूल्य संवर्धन इकाइयां और फ़सल की कटाई के चरण से लेकर किसान की उपज के बेचने तक की अन्य कई सुविधाएं दी जाएंगी. केंद्र सरकार की मंशा है कि किसानों और वह जिनके नियमित संपर्क में रहते हैं व जिनका वह इस्तेमाल करते हैं, जैसे अन्न उपजाने वाले किसान संघों, प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों, कृषि-उद्यमियों, स्टार्ट-अप्स और सहकारी विपणन समितियों को ब्याज मुक्त कर्ज देकर इस महत्वपूर्ण बुनियादी संरचना को विकसित की जाए.

सरकार को उम्मीद है कि किसानों के फसल को जब तक बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल जाता तब तक फसल को जमा करके रखने की लचीलेपन वाली सुविधा मिलने से और इस तरह की विभिन्न सुविधाओं की उपयोगिता बढ़ने से ही किसान निवेश करने में समर्थ हो पाएंगे. इसके अलावा यह भी आकलन किया गया है कि इससे कृषि आधारित उद्योगों में लोगों को रोजगार मिलेगा. इसके साथ ही जो खाद्यान्न बर्बाद होता है, उसे भी रोकने में सहायता मिलेगी. केंद्र सरकार ने संबंधित राज्यों को कुल कृषि मूल्य और उससे संबद्ध क्षेत्रों के आधार पर कर्ज वितरण के उनके हिस्से को अंतिम रूप दे दिया है. केंद्र ने राष्ट्र के कृषि क्षेत्र को सही हालत में लाने के लिए ये कदम उठाए हैं.

किसानों के कल्याण में यह किस हद तक योगदान करता है यह अपने आप में इस विशाल परियोजना की सफलता को मापने का पैमाना है. किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है. उसके कई कारणों में संचरनागत बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी एक खलनायक की भूमिका अदा करता है. टमाटर की कीमत इतनी अधिक कम हो जाती है कि किसान जब उसे उपजाने में खर्च की गई अपनी लागत भी नहीं निकाल पाते, तभी आक्रोश में आकर टमाटर को सड़क पर फेंकते हैं. दूसरी तरफ टमाटर खरीदने वालों का हर साल का अनुभव है कि टमाटर के भाव आकाश छूने लगते हैं. यह किसानों के लिए बुनियादी ढांचे के अभाव का सबसे बेहतरीन उदाहरण है.

इस तरह की स्थिति में हर साल 44 हजार करोड़ रुपये का राष्ट्रीय नुकसान होता है. नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन ने अप्रैल में कहा है कि मुख्य रूप से ई-मार्केट की सुविधा, गोदामों और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करके अगले पांच वर्ष में कम से कम 68 लाख करोड़ रुपये कृषि क्षेत्र में निवेश करने की जरूरत है. ऐसा तब है जब बाजार में अनाज ले जाकर रखा जाए और उसे ढंकने के लिए तिरपाल नहीं हो.

अभी यह देखा जाना शेष है कि पहले से ही भारी नुकसान कराए बैठे किसानों का इस बुनियादी संरचना विकास की राशि में किस तरह से बचाव हो पाता है. क्या वह अपने खराब अनाज को बेचकर लाभ कमा पाएंगे. राष्ट्रीय सैंपल अध्ययन ने इसकी पुष्टि की है कि जमीनी स्तर की सचाई यही है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पूरी तरह बकवास है और यह किसानों की आजीविका को तबाह करने वाला है. यह भी खुलासा किया गया है कि किसान परिवार की औसत आय प्रतिमाह छह हजार रुपये से भी कम है. डॉ. स्वामीनाथन की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि कोई किसान कितना समर्थन मूल्य पाने का हकदार है उसे यह ध्यान रखकर तय किया जाना चाहिए कि किसान का कितना खर्च हुआ, जमीन को लीज पर लेने पर कितना खर्च आया और उसके बाद कुल खर्च पर 50 प्रतिशत जोड़कर दिया जाना चाहिए.

हालांकि इस सुझाव पर विचार नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की माली हालत दिनोंदिन खराब हो रही है. बुनियादी ढांचा निधि को लागू करने की बात छोड़ भी दी जाए, तो सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कृषि क्षेत्र के बारे में सोचने वाले थिंक टैंक के नेतृत्व को हर हाल में सोच में बुनियादी बदलाव लाना होगा. सुरक्षित कृषि की रणनीति में प्राकृतिक आपदा जैसे मौसमी बाधाएं और कीटों का हमले से मजबूत ढाल के निर्माण के साथ-साथ संचालन की सफल रणनीतियों की भी जरूरत है, जिससे एक आम किसान समर्थ बन पाए और उसे लाभ मिलना सुनिश्चित हो, ताकि वह अपनी फसल को वास्तव में एक जश्न के रूप में ले सके.

हैदराबाद : किसानों की जीवन सुरक्षा और मानव जाति की खाद्य सुरक्षा के बीच एक अटूट रिश्ता है. डॉ. स्वामीनाथन की रिपोर्ट में आज की दुनिया में किसानों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर योजना होना महत्वपूर्ण बताया गया है. इस बुनियादी तथ्य की उपेक्षा करके नेताओं ने अपनी सुविधा के अनुसार राष्ट्रीय कृषि क्षेत्र को पीछे रहने का विकल्प चुन लिया. मोदी सरकार ने हाल ही में कृषि से संबंधित बुनियादी ढांचा विकास के लिए कुल एक लाख करोड़ रुपये के निधि की शुरुआत की है.

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि देश का सही विकास तबतक एक मृग-मरीचिका है, जब तक किसानों के हितों, कृषि क्षेत्र की उन्नत्ति और ग्रामीण विकास को एक मानते हुए उनसे जुड़ी समस्याओं से एक साथ नहीं निपटा जाता. भारत को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से शुरू की गई इस परियोजना के तहत बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा मुहैया कराया जाएगा जैसे आपूर्ति सेवाओं की चेन, आधारभूत प्रसंस्करण केंद्र, उर्वरण करने वाले गोदाम, गुणवत्ता परीक्षण इकाइयां, कोल्ड स्टोरेज की सुविधाएं, मूल्य संवर्धन इकाइयां और फ़सल की कटाई के चरण से लेकर किसान की उपज के बेचने तक की अन्य कई सुविधाएं दी जाएंगी. केंद्र सरकार की मंशा है कि किसानों और वह जिनके नियमित संपर्क में रहते हैं व जिनका वह इस्तेमाल करते हैं, जैसे अन्न उपजाने वाले किसान संघों, प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों, कृषि-उद्यमियों, स्टार्ट-अप्स और सहकारी विपणन समितियों को ब्याज मुक्त कर्ज देकर इस महत्वपूर्ण बुनियादी संरचना को विकसित की जाए.

सरकार को उम्मीद है कि किसानों के फसल को जब तक बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल जाता तब तक फसल को जमा करके रखने की लचीलेपन वाली सुविधा मिलने से और इस तरह की विभिन्न सुविधाओं की उपयोगिता बढ़ने से ही किसान निवेश करने में समर्थ हो पाएंगे. इसके अलावा यह भी आकलन किया गया है कि इससे कृषि आधारित उद्योगों में लोगों को रोजगार मिलेगा. इसके साथ ही जो खाद्यान्न बर्बाद होता है, उसे भी रोकने में सहायता मिलेगी. केंद्र सरकार ने संबंधित राज्यों को कुल कृषि मूल्य और उससे संबद्ध क्षेत्रों के आधार पर कर्ज वितरण के उनके हिस्से को अंतिम रूप दे दिया है. केंद्र ने राष्ट्र के कृषि क्षेत्र को सही हालत में लाने के लिए ये कदम उठाए हैं.

किसानों के कल्याण में यह किस हद तक योगदान करता है यह अपने आप में इस विशाल परियोजना की सफलता को मापने का पैमाना है. किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है. उसके कई कारणों में संचरनागत बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी एक खलनायक की भूमिका अदा करता है. टमाटर की कीमत इतनी अधिक कम हो जाती है कि किसान जब उसे उपजाने में खर्च की गई अपनी लागत भी नहीं निकाल पाते, तभी आक्रोश में आकर टमाटर को सड़क पर फेंकते हैं. दूसरी तरफ टमाटर खरीदने वालों का हर साल का अनुभव है कि टमाटर के भाव आकाश छूने लगते हैं. यह किसानों के लिए बुनियादी ढांचे के अभाव का सबसे बेहतरीन उदाहरण है.

इस तरह की स्थिति में हर साल 44 हजार करोड़ रुपये का राष्ट्रीय नुकसान होता है. नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन ने अप्रैल में कहा है कि मुख्य रूप से ई-मार्केट की सुविधा, गोदामों और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करके अगले पांच वर्ष में कम से कम 68 लाख करोड़ रुपये कृषि क्षेत्र में निवेश करने की जरूरत है. ऐसा तब है जब बाजार में अनाज ले जाकर रखा जाए और उसे ढंकने के लिए तिरपाल नहीं हो.

अभी यह देखा जाना शेष है कि पहले से ही भारी नुकसान कराए बैठे किसानों का इस बुनियादी संरचना विकास की राशि में किस तरह से बचाव हो पाता है. क्या वह अपने खराब अनाज को बेचकर लाभ कमा पाएंगे. राष्ट्रीय सैंपल अध्ययन ने इसकी पुष्टि की है कि जमीनी स्तर की सचाई यही है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पूरी तरह बकवास है और यह किसानों की आजीविका को तबाह करने वाला है. यह भी खुलासा किया गया है कि किसान परिवार की औसत आय प्रतिमाह छह हजार रुपये से भी कम है. डॉ. स्वामीनाथन की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि कोई किसान कितना समर्थन मूल्य पाने का हकदार है उसे यह ध्यान रखकर तय किया जाना चाहिए कि किसान का कितना खर्च हुआ, जमीन को लीज पर लेने पर कितना खर्च आया और उसके बाद कुल खर्च पर 50 प्रतिशत जोड़कर दिया जाना चाहिए.

हालांकि इस सुझाव पर विचार नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप किसानों की माली हालत दिनोंदिन खराब हो रही है. बुनियादी ढांचा निधि को लागू करने की बात छोड़ भी दी जाए, तो सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कृषि क्षेत्र के बारे में सोचने वाले थिंक टैंक के नेतृत्व को हर हाल में सोच में बुनियादी बदलाव लाना होगा. सुरक्षित कृषि की रणनीति में प्राकृतिक आपदा जैसे मौसमी बाधाएं और कीटों का हमले से मजबूत ढाल के निर्माण के साथ-साथ संचालन की सफल रणनीतियों की भी जरूरत है, जिससे एक आम किसान समर्थ बन पाए और उसे लाभ मिलना सुनिश्चित हो, ताकि वह अपनी फसल को वास्तव में एक जश्न के रूप में ले सके.

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