नई दिल्ली: देशभर में भारी विरोध के बीच कृषि विधेयकों को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी प्रदान कर दी है. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही अब यह कानून बन चुके हैं. हालांकि, इसके बावजूद अब भी विरोध-प्रदर्शनों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. देश के बड़े किसान संगठन इस कानून के विरोध में एकजुट होकर आंदोलन को नए सिरे से आगे बढ़ाने की तैयारी में जुट गए हैं.
मुद्दे को जोर-शोर से भुनाने में जुटा विपक्ष
वहीं, दूसरी तरफ विपक्ष भी इस मुद्दे को जोर-शोर से भुनाने में जुटा हुआ है. सभी विपक्षी दल संसद के बाद अब सड़क पर भी इसका विरोध कर रहे हैं. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सोमवार को राजघाट से लेकर इंडिया गेट तक विरोध मार्च निकाला, लेकिन उन्हें रास्ते में ही रोक दिया गया. इसके अलावा इंडिया गेट पर पंजाब यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने ट्रैक्टर जलाकर किसान कानून के विरोध में प्रदर्शन किया.
वहीं, इन कानूनों के विरोध में हरियाणा के बरोदा में राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ ने 54 गांवों की एक महापंचायत आयोजित की. इस पंचायत में प्रस्ताव पारित किया गया कि आगामी चुनाव में भाजपा और उसके साथ गठबंधन की पार्टी को वोट न दिया जाए.
गांव-गांव जाकर करेंगे किसानों को जागरूक
वहीं, दूसरी तरफ अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति भी नए कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन आगे बढ़ाने की तैयारी कर रही है. समन्वय समिति के आदित्य चौधरी ने बताया कि AIKSCC इसके बारे में बड़ा एलान करने वाली है. किसान नेता गांव-गांव जाकर किसानों से मिलेंगे और उन्हें जागरूक करेंगे. इसके साथ ही इन कानूनों के विरोध में किसान अपने घर के बाहर सरकार विरोधी पोस्टर भी लगाएंगे.
चुनावों पर पड़ सकता है असर
बिहार विधानसभा चुनाव और मध्य प्रदेश की 23 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव पर किसान आंदोलन का असर पड़ सकता है. आने वाले समय में किसान महासंघ मध्य प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में किसान सभाएं आयोजित करेगा. जिसमें किसानों को सत्तासीन पार्टी के विरोध में एकजुट किया जाएगा. ऐसे में मध्य प्रदेश में भाजपा को किसान आंदोलन की वजह से नुकसान उठाना पड़ सकता है. देश के सभी बड़े किसान संगठन मोदी सरकार के इस कानून के विरोध में लामबंद हो रहे हैं. ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव में भी कृषि कानून को बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी चल रही है.
बता दें कि किसान संगठनों के 25 सितंबर के भारत बंद को विपक्षी पार्टियों का भी पूरा समर्थन मिला था. बिहार में राजद नेता तेजस्वी और तेजप्रताप यादव ट्रैक्टर पर सवार होकर किसानों के समर्थन में उतरे थे.
नहीं होता इतना विरोध
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ ने कहा कि सरकार इन तीन कानूनों के साथ यदि एमएसपी की गारंटी का कानून भी ले आती तो इतना विरोध नहीं होता. उन्होंने कहा कि एमएसपी मिलने से किसानों को उनके फसल का उचित मूल्य मिलने का कानूनी अधिकार मिलेगा. जिसके बाद कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में प्राइवेट कंपनियां किसानों का शोषण नहीं कर पाएंगी.
एमएसपी कभी भी नहीं रहा इस बिल का हिस्सा
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लगातार यह कहते रहे हैं कि एमएसपी कभी भी इस बिल का हिस्सा नहीं था. उन्होंने कहा कि यह सरकार का प्रशासनिक निर्णय है, जो आगे भी कायम रहेगा. इसके विरोध में किसान संगठनों का कहना है कि जब सरकार बिना किसानों से चर्चा किए यह तीन बिल ला सकती है, तो किसानों की मांग पर एमएसपी गारंटी बिल क्यों नहीं ला सकती.
किसान नेताओं ने किया स्पष्ट
दरअसल, अभी तक के आंदोलन को कृषि विधेयकों का विरोध बताया जाता रहा है, लेकिन कई किसान नेताओं ने स्पष्ट किया है कि किसानों को इस बिल से कोई आपत्ति नहीं थी, यदि सरकार एमएसपी गारंटी का प्रावधान भी इसमें शामिल कर देती. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि किसानों के लिए यह कानून नुकसानदेह नहीं हैं, यदि सरकार एमएसपी की गारंटी के लिए एक और कानून बना दे. किसान शक्ति संघ ने इस शर्त के साथ ही बिल का स्वागत तक किया था.
भारतीय कृषक समाज ने पीएम मोदी से किया था आग्रह
भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष और किसान नेता कृष्णबीर चौधरी ने भी बिल का समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया था कि वह इस बिल में जरूरी संशोधन करें और विशेषकर एमएसपी से नीचे खरीदने पर व्यापारी या कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान करें. तमाम संगठनों के अनुरोध और मांग के बावजूद भी सरकार ने अपने मुताबिक ही बिल को दोनों सदनों से पारित कराया और आखिरकार अब इस पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग चुकी है.
भले ही अब यह तीनों बिल कानून का रूप ले चुके हैं, लेकिन किसान संगठन और विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को और आक्रामक रूप से उठाने में जुट गई हैं. जाहिर तौर पर आने वाले चुनावों में इसका प्रभाव देखने को मिलेगा. कुल मिलाकर किसान संगठनों का लक्ष्य सरकार पर दबाव बनाकर कानून में संशोधन या फिर एमएसपी के लिए अलग से विधेयक लाने का है, जबकि विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को आगामी चुनाव में भुनाने के प्रयास में दिख रही हैं.