नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी और एनपीआर जैसे मुद्दों पर चल रहे घमासान के बीच कहीं ना कहीं आम जनता और किसानों के मुद्दे पीछे छूट गए हैं. अगर कृषि क्षेत्र और किसानों की बात करें तो बीते कुछ महीनों में कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में किसानों से जुड़े मुद्दे सर्वोपरि थे लेकिन सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों के बीच अब विपक्ष ने भी बहरहाल इन मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है.
इसी विषय पर ईटीवी भारत ने किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह से विशेष बातचीत की है. चौधरी पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के आने से पहले गन्ना किसानों का मुद्दा प्रमुखता पर था.
लगातार 2 सालों से गन्ने की कीमत में बढ़ोतरी ना होने से निराश किसानों ने कई जगहों पर छुट-पुट प्रदर्शन भी किए थे, लेकिन जैसे ही नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी पर विवाद शुरू हुआ यह मुद्दा बैकफुट पर चला गया.
इसी तरह अगर हम महाराष्ट्र और हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव का उदाहरण लें तो इन चुनावों में भी किसान और खेती से जुड़े मुद्दे प्रमुख थे लेकिन बाहर हाल कोई भी पार्टी या सरकार इन विषयों पर बातचीत करती नहीं दिख रही है.
महाराष्ट्र में किसानों के लिए पूर्ण कर्ज माफी का वादा किया गया था लेकिन कांग्रेस और एनसीपी के साथ शिवसेना के गठबंधन वाली सरकार बनने के बाद बहरहाल इस पर कुछ काम होता हुआ नहीं दिख रहा है. किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह ने मांग की है कि सरकार बेशक इसे करने में समय ले ले लेकिन जो वायदा उन्होंने किसानों से किया था उसको पूरा जरूर करना चाहिए.
इसी प्रकार लोकसभा चुनाव के समय उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ना किसानों के विषय पर आश्वासन दिया था कि तय समय सीमा के अंदर उनके बकाया भुगतान कर दिए जाएंगे लेकिन किसान नेता चौधरी पुष्पेंद्र सिंह का कहना है की अगर मौजूदा स्थिति की बात करें तो पिछले साल का भी भुगतान अभी तक पूरा नहीं हो सका है.
लगभग पांच हजार करोड़ से ज्यादा पिछ्ली फसल का भुगतान बकाया है और मौजूदा फसल का गन्ना भी किसानों ने चीनी मिलों तक पहुंचाना शुरु कर दिया है.
मौसम की मार की वजह से पहले ही किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और किसान उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें सरकार की तरफ से कोई मुआवजा देने की घोषणा की जाएगी, लेकिन बहरहाल ये मुद्दा भी चर्चा से बाहर ही है. किसानों के साथ-साथ आम उपभोगताओं को भी इनकी वजह से खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
गौरतलब है कि प्याज की कीमतें अभी तक आसमान छू रही हैं और दूध की कीमतों में भी वृद्धि हुई है. दाल की कीमत भी देश में कम उत्पादन होने की वजह से बढीं हैं और लोग पहले से महंगे दर पर खरीद रहे हैं.
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चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने कहा है कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता के मुद्दे पर चर्चा होने से किसानों और किसान नेताओं को कोई समस्या नहीं है, लेकिन सिर्फ इन मुद्दों पर चर्चा के बीच आम लोगों से जुड़े मुद्दे गायब नहीं होने चाहिए.
मोदी सरकार को नसीहत देते हुए किसान नेता ने कहा कि अभी हाल में झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे भी यही संकेत देते हैं कि अगर सरकार मूल मुद्दों पर बात नहीं करेगी तो कहीं ना कहीं उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.