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UP : इतिहास में दर्ज होगी थ्री नॉट थ्री राइफल, गणतंत्र दिवस पर आखिरी सलामी

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 26 जनवरी की परेड के बाद थ्री नॉट थ्री राइफल का विदाई समारोह आयोजित किया जाएगा और इसे अंतिम सलामी दी जाएगी. इसके स्थान पर सभी पुलिसकर्मियों को इंसास राइफल सौंपी जाएगी. थ्री-नॉट-थ्री रायफल की विदाई पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन से ईटीवी भारत ने खास बात की. जानें विस्तार से...

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थ्री नॉट थ्री रायफल
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Published : Jan 18, 2020, 8:30 AM IST

लखनऊ : 1945 से पुलिस के हाथ की शोभा बढ़ा रही थ्री-नॉट-थ्री इस गणतंत्र दिवस पर इतिहास में दर्ज हो जाएगी. यूपी पुलिस गणतंत्र दिवस पर इसे शानदार विदाई देगी. अब उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानों के हाथों में थ्री-नॉट-थ्री की जगह इंसास और एके-47 राइफल होगी. 26 जनवरी की परेड के साथ थ्री-नॉट-थ्री हमेशा के लिए यूपी पुलिस से विदा हो जाएगी.

थ्री-नॉट-थ्री राइफल की विदाई पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन से ईटीवी भारत ने बात की और इसके शानदार इतिहास के बारे में जानकारी हासिल ली.

आखिरी बार गणतंत्र दिवस पर होगा प्रयोग
उत्तर प्रदेश पुलिस के पास पर्याप्त संख्या में इंसास राइफल मौजूद हैं, इसलिए पुरानी थ्री-नॉट-थ्री की विदाई हो रही है. यूपी पुलिस के पास 58 हजार से अधिक .303 बोर राइफल थीं. 1995 में इन राइफल के इस्तेमाल न करने का आदेश जारी किया गया था. 26 जनवरी के मौके पर पहले की तरह .303 बोर की थ्री-नॉट-थ्री राइफल का परेड में प्रयोग कर इस हथियार का इस्तेमाल बंद करने का ऐलान किया जाएगा. 26 जनवरी को परेड के दौरान सभी एसपी और एसएसपी अपने भाषण में .303 बोर की इस राइफल की खूबियों के बारे भी बताएंगे.

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन से ईटीवी भारत ने बात की

इसे भी पढ़ें- गणतंत्र दिवस पर आतंकी हमले की साजिश नाकाम, जैश के पांच आतंकी गिरफ्तार

पूर्व डीजीपी एके जैन ने गिनाई खूबियां
ईटीवी भारत से बात करते हुए प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन ने बताया कि वह जब 1979 में सर्विस में थे तो एके-47 नहीं होती थीं. मस्कट और थ्री-नॉट-थ्री राइफल्स होती थीं. समय बीतने के साथ-साथ बाद में कुछ एसएलआर आई, फिर एके-47 आई. फिर काफी बाद में इंसास राइफल्स जो आर्मी ऑडनेंस में बनती हैं वह आई. लेकिन थ्री-नॉट-थ्री का कभी कोई जवाब नहीं रहा.

बीहड़ के ऑपरेशनों में अदा किया शानदार रोल
बीहड़ के ऑपरेशनों में जो रोल इसने अदा किया है, वह सराहनीय है. एक फायर होता था और कई-कई किलोमीटर तक इसकी गोली की आवाज गूंजती थी. जिससे गैंग समझ जाते थे कि यूपी पुलिस या पीएसी बीहड़ों में है और पीछा कर रही है. इसने बहुत से पुलिसकर्मियों की जानें भी बचाई हैं. पूर्व डीजीपी एके जैन ने इसकी मारक क्षमता के बारे में भी बताया. उन्होंने बताया कि थ्री-नॉट-थ्री बड़ी ही मारक क्षमता वाली राइफल है. इसमें क्षमता है कि तीन-तीन लोगों को बेधकर गोली बाहर निकल जाए.

पूर्व डीजीपी एके जैन ने समय की मांग को स्वीकारते हुए कहा कि इस राइफल का वैसे तो कोई जवाब नहीं है पर अब मॉडर्न समय के हिसाब से इसको बदले जाने की आवश्यकता है. नई हल्की राइफल्स आ गई हैं जो कैरी करने में भी आसान है. अब तो ट्रेनों में जो एस्कॉर्ट है और सिटी में जो पेट्रोलिंग पार्टीज हैं, उनको रिवाल्वर और पिस्टल से लैस किया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें- दिल्ली में शुक्रवार से परेड रिहर्सल, इन रास्तों से जरा बचकर निकलें

कैसे बनी .303 बोर राइफल
वर्ष 1880 में ब्रिटिश सरकार अपनी आर्मी के लिए अच्छी राइफल की खोज में थी. इनफील्ड कंपनी में काम करने वाले एक कनाडियन नागरिक जेम्स पेरिस ली ने .303 बोर राइफल बनाई. जिसका नाम ली इनफील्ड मार्क थ्री रखा गया था. थ्री नॉट थ्री का सबसे पहले इस्तेमाल 1914 में पहले विश्व युद्ध में हुआ था. इसकी मारक क्षमता लगभग 2 किलोमीटर थी. भारत में इसका इस्तेमाल साल 1939 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान शुरू हुआ था.

साल 1962 में भारतीय सैनिकों ने इसी राइफल के बूते चीन की सेना का मुकाबला किया था. बाद में इसमें मैगजीन लगाकर एक साथ छह फायर करने की क्षमता विकसित की गई. यह राइफल साल 1945 में यूपी पुलिस को दी गई थी. इससे पूर्व मस्कट 410 राइफल का इस्तेमाल किया जाता था. इसके बाद 80 के दशक में एसएलआर पुलिस को मिली.

क्या खूबी है इंसास राइफल की..
इंसास राइफल का उपयोग 1999 में कारगिल के युद्ध में भी किया गया था. थ्री-नॉट-थ्री की अपेक्षा काफी कम वजन की होने के साथ यह चलाने में भी आसान है. 400 मीटर तक अचूक निशाना लगाने में सक्षम इंसास में दूरबीन और नाइट-विजन डिवाइस लगाने की भी व्यवस्था है.

लखनऊ : 1945 से पुलिस के हाथ की शोभा बढ़ा रही थ्री-नॉट-थ्री इस गणतंत्र दिवस पर इतिहास में दर्ज हो जाएगी. यूपी पुलिस गणतंत्र दिवस पर इसे शानदार विदाई देगी. अब उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानों के हाथों में थ्री-नॉट-थ्री की जगह इंसास और एके-47 राइफल होगी. 26 जनवरी की परेड के साथ थ्री-नॉट-थ्री हमेशा के लिए यूपी पुलिस से विदा हो जाएगी.

थ्री-नॉट-थ्री राइफल की विदाई पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन से ईटीवी भारत ने बात की और इसके शानदार इतिहास के बारे में जानकारी हासिल ली.

आखिरी बार गणतंत्र दिवस पर होगा प्रयोग
उत्तर प्रदेश पुलिस के पास पर्याप्त संख्या में इंसास राइफल मौजूद हैं, इसलिए पुरानी थ्री-नॉट-थ्री की विदाई हो रही है. यूपी पुलिस के पास 58 हजार से अधिक .303 बोर राइफल थीं. 1995 में इन राइफल के इस्तेमाल न करने का आदेश जारी किया गया था. 26 जनवरी के मौके पर पहले की तरह .303 बोर की थ्री-नॉट-थ्री राइफल का परेड में प्रयोग कर इस हथियार का इस्तेमाल बंद करने का ऐलान किया जाएगा. 26 जनवरी को परेड के दौरान सभी एसपी और एसएसपी अपने भाषण में .303 बोर की इस राइफल की खूबियों के बारे भी बताएंगे.

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन से ईटीवी भारत ने बात की

इसे भी पढ़ें- गणतंत्र दिवस पर आतंकी हमले की साजिश नाकाम, जैश के पांच आतंकी गिरफ्तार

पूर्व डीजीपी एके जैन ने गिनाई खूबियां
ईटीवी भारत से बात करते हुए प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन ने बताया कि वह जब 1979 में सर्विस में थे तो एके-47 नहीं होती थीं. मस्कट और थ्री-नॉट-थ्री राइफल्स होती थीं. समय बीतने के साथ-साथ बाद में कुछ एसएलआर आई, फिर एके-47 आई. फिर काफी बाद में इंसास राइफल्स जो आर्मी ऑडनेंस में बनती हैं वह आई. लेकिन थ्री-नॉट-थ्री का कभी कोई जवाब नहीं रहा.

बीहड़ के ऑपरेशनों में अदा किया शानदार रोल
बीहड़ के ऑपरेशनों में जो रोल इसने अदा किया है, वह सराहनीय है. एक फायर होता था और कई-कई किलोमीटर तक इसकी गोली की आवाज गूंजती थी. जिससे गैंग समझ जाते थे कि यूपी पुलिस या पीएसी बीहड़ों में है और पीछा कर रही है. इसने बहुत से पुलिसकर्मियों की जानें भी बचाई हैं. पूर्व डीजीपी एके जैन ने इसकी मारक क्षमता के बारे में भी बताया. उन्होंने बताया कि थ्री-नॉट-थ्री बड़ी ही मारक क्षमता वाली राइफल है. इसमें क्षमता है कि तीन-तीन लोगों को बेधकर गोली बाहर निकल जाए.

पूर्व डीजीपी एके जैन ने समय की मांग को स्वीकारते हुए कहा कि इस राइफल का वैसे तो कोई जवाब नहीं है पर अब मॉडर्न समय के हिसाब से इसको बदले जाने की आवश्यकता है. नई हल्की राइफल्स आ गई हैं जो कैरी करने में भी आसान है. अब तो ट्रेनों में जो एस्कॉर्ट है और सिटी में जो पेट्रोलिंग पार्टीज हैं, उनको रिवाल्वर और पिस्टल से लैस किया जा रहा है.

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कैसे बनी .303 बोर राइफल
वर्ष 1880 में ब्रिटिश सरकार अपनी आर्मी के लिए अच्छी राइफल की खोज में थी. इनफील्ड कंपनी में काम करने वाले एक कनाडियन नागरिक जेम्स पेरिस ली ने .303 बोर राइफल बनाई. जिसका नाम ली इनफील्ड मार्क थ्री रखा गया था. थ्री नॉट थ्री का सबसे पहले इस्तेमाल 1914 में पहले विश्व युद्ध में हुआ था. इसकी मारक क्षमता लगभग 2 किलोमीटर थी. भारत में इसका इस्तेमाल साल 1939 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान शुरू हुआ था.

साल 1962 में भारतीय सैनिकों ने इसी राइफल के बूते चीन की सेना का मुकाबला किया था. बाद में इसमें मैगजीन लगाकर एक साथ छह फायर करने की क्षमता विकसित की गई. यह राइफल साल 1945 में यूपी पुलिस को दी गई थी. इससे पूर्व मस्कट 410 राइफल का इस्तेमाल किया जाता था. इसके बाद 80 के दशक में एसएलआर पुलिस को मिली.

क्या खूबी है इंसास राइफल की..
इंसास राइफल का उपयोग 1999 में कारगिल के युद्ध में भी किया गया था. थ्री-नॉट-थ्री की अपेक्षा काफी कम वजन की होने के साथ यह चलाने में भी आसान है. 400 मीटर तक अचूक निशाना लगाने में सक्षम इंसास में दूरबीन और नाइट-विजन डिवाइस लगाने की भी व्यवस्था है.

Intro:गणतंत्र दिवस पर होगी इतिहास में दर्ज हो जाएगी थ्री- नॉट-थ्री, बचाई है पुलिसकर्मियों की भी ज़िंदगी

लखनऊ। जिस थ्री-नॉट-थ्री राइफल से जंगलों में डाकू घबराते थे। जहां पर भी थ्री नॉट थ्री की मौजूदगी होती थी वहां पर असामाजिक तत्व इसे देखकर ही घबराते थे। इस थ्री-नॉट-थ्री का अपना इतिहास रहा है। 1945 से पुलिस के हाथ की शोभा बढ़ा रही थ्री-नॉट-थ्री अब इस गणतंत्र दिवस पर इतिहास में दर्ज हो जाएगी। यूपी पुलिस की तरफ से इसे शानदार विदाई दी जाएगी। अब उत्तर प्रदेश पुलिस के पास थ्री-नॉट-थ्री की जगह इंसास और एके-47 राइफल होगी। 26 जनवरी को परेड के साथ थ्री-नॉट-थ्री हमेशा के लिए यूपी पुलिस से विदा हो जाएगी। यूपी पुलिस अब अब इंसास और एके-47 जैसी अत्याधुनिक राइफल इस्तेमाल कर रही है। थ्री-नॉट-थ्री राइफल की विदाई पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी एके जैन से 'ईटीवी भारत' ने बात की और इसके शानदार इतिहास के बारे में जानकारी हासिल की।





Body:बाइट: एके जैन, पूर्व डीजीपी, उत्तर प्रदेश

मैं जब सर्विस में 79 में था तो एके-47 वगैरह नहीं होती थीं।मस्कट और रायफल्स होती थींम बाद में कुछ एसएलआर आईं। एके-47 आईं  फिर बाद में एहसास राइफल्स जो आर्मी ऑडनेंस में बनती हैं वह आईं। इस राइफल का कभी कोई जवाब नहीं रहा। बीहड़ के ऑपरेशनों में जो रोल इसने अदा किया है वह सराहनीय है। एक फायर होता था कई-कई किलोमीटर तक इसकी गोली की आवाज गूंजती थी और गैंग समझ जाते थे कि यूपी पुलिस या पीएसी बीहड़ों में है। पीछा कर रही है। इसने बहुत सी पुलिस की जानें भी बचाई हैं।  पुलिस का बहुत साथ इसने दिया है। बड़ी ही मारक क्षमता वाली राइफल है। कई कई किलोमीटर तक इसकी मार है। इसमें क्षमता है कि दो- दो, तीन-तीन लोगों को बेधकर बाहर निकल जाए। इस राइफल का वैसे कोई जवाब नहीं है पर अब मॉडर्न टाइम्स के हिसाब से इसको बदले जाने की आवश्यकता है नई हल्की रायफल्स आ गई हैं कैरी करने में भी आसान है अब तो समय यह आ गया है कि ट्रेनों में जो एस्कॉर्ट है और सिटी में पेट्रोलिंग पार्टीज हैं उनको रिवाल्वर और पिस्टल से लैस कर रहे हैं। राइफल को सिटी में इस्तेमाल करना आसान बात नहीं है। ज्यादातर शोपीस ही रहती हैं। अगर आप सिटी में राइफल चला देंगे तो बहुत अधिक जनहानि हो जाएगी। इसका बड़ा शानदार इतिहास रहा है।अच्छी पहल है कि 26 जनवरी को एसपी और एसएसपी जनपद में जो समारोह होते हैं जिला मुख्यालय पर उसकी खूबियां गिनाएंगे, इसके बारे में बताएंगे और इनके स्थान पर मुझे बताया गया है कि पर्याप्त संख्या में इंसास, एसएलआर एके-47 आ गई हैं, वह कार्य करेंगी। 





Conclusion:बता दें कि अब उत्तर प्रदेश पुलिस के पास पर्याप्त संख्या में इंसास राइफल मौजूद है, इसलिए पुराने राइफल और 3 नोट 3 की विदाई हो रही है। यूपी पुलिस के पास 58 हजार से अधिक .303  बोर राइफलें थीं. 1995 में इन राइफलों के इस्तेमाल न करने का आदेश जारी किया गया था। .303 बोर राइफल का इस्तेमाल न करने का आदेश पहले ही जारी किया जा चुका है। लंबे समय तक यह यूपी पुलिस की शान रही है। 26 जनवरी के मौके पर पहले की तरह .303 बोर राइफल की परेड कर इस शानदार हथियार का इस्तेमाल बंद करने का ऐलान किया जाएगा। इस राइफल का इस्तेमाल पुलिस साल 1945 से कर रही थी। 26 जनवरी को परेड के दौरान सभी एसपी और एसएसपी अपने भाषण में .303 बोर राइफल की खूबियों के बारे में बताएंगे। बताया जाता है कि पहले विश्वयुद्ध में पहली बार प्रयोग में लाई गई इस राइफल को अंग्रेजों ने भी अपनाया था। इस राइफल की बुलेट में नौ इंच मोटी लोहे की चादर को भेदने तक की क्षमता रखती थी।


कैसे बनी .303 बोर राइफल


वर्ष 1880 में ब्रिटिश सरकार अपनी आर्मी के लिए अच्छी राइफल की खोज में थी। इनफील्ड कंपनी में काम करने वाले एक कनाडियन नागरिक जेम्स पेरिस ली ने .303 बोर राइफल बनाई। इसका इस्तेमाल ब्रिटिश आर्मी ने पहले विश्वयुद्ध के दौरान किया। भारत में इसका इस्तेमाल साल 1939 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान शुरू हुआ था। साल 1962 में भारतीय सैनिकों ने इसी राइफल के बूते चीन की सेना का मुकाबला किया था। बाद में इसमें मैगजीन लगाकर एक साथ छह फायर करने की क्षमता विकसित की गई। यह राइफल साल 1945 में यूपी पुलिस को दी गई थी। इससे पूर्व मस्कट 410 राइफलों का इस्तेमाल किया जाता था। रिपोर्ट के मुताबिक, इंसास राइफल का उपयोग 1999 में कारगिल के युद्ध में भी किया गया था। थ्री-नॉट-थ्री की अपेक्षा काफी कम वजन की होने के साथ यह चलाने में भी आसान है। 400 मीटर तक अचूक निशाना लगाने में सक्षम इंसास में दूरबीन व नाइट-विजन डिवाइस लगाने की भी व्यवस्था है। थ्री नॉट थ्री का सबसे पहले इस्तेमाल 1914 में पहले विश्व युद्ध में हुआ था। इसकी मारक क्षमता लगभग 2 किलोमीटर थी। यूपी पुलिस के पास यह हथियार 1945 में आया। इससे पहले मस्कट राइफल 410 का प्रयोग होता था। इसके बाद 80 के दशक में एसएलआर पुलिस को मिली। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान इंसास राइफल कारगर साबित हुई थी। अब 70 साल पुराने असलहे थ्री नॉट थ्री के प्रयोग पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है।


अखिल पांडेय, लखनऊ, 9336864096
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