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'देश जीता था लेकिन मैंने अपने पति को हारा था, सरकार शहीदों में भेदभाव करती है'

राजधानी दिल्ली के द्वारका में कारगिल में शहीद हुए सैनिकों के लिए उनके परिवार वालों ने पूजा अर्चना की और अपने प्रियजनों को याद किया. हालांकि, उनकी सरकार से शिकायत है कि सरकार शहीदों में भेदभाव करती है. पढ़ें पूरी खबर...

कारगिल में शहीद हुए सैनिकों के परिवार वालों ने पूजा-अर्चना की
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Published : Jul 27, 2019, 10:26 AM IST

Updated : Jul 27, 2019, 1:41 PM IST

नई दिल्ली: कारगिल विजय दिवस के मौके पर देशभर में वीर सैनिकों को याद किया जा रहा है. द्वारका के मशहूर कारगिल अपार्टमेंट (विजय वीर आवास) में शहीदों के परिवारों ने पूजा अर्चना की और अपने प्रियजनों को याद किया.

हालांकि, उनकी शिकायत थी कि सरकार शहीदों में भी भेदभाव करती है.

'सरकार करती है शहीदों में भेदभाव'
बिहार की रहने वाली नीलम ने 1999 में अपने पति को खोया था. वो बताती हैं कि उनके लिए तो ये जैसे कल का ही हादसा है. नीलम कहती हैं कि आज भी उनकी वो यादें ताजा हैं. वह कहती हैं कि देश ने उस समय जीत तो दर्ज की थी लेकिन उन्होंने अपने पति को हारा था.

कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिजनों से बातचीत

नीलम कहती हैं उन्हें देश की जीत पर गर्व है लेकिन ये शिकायत भी है कि सरकार शहीदों के नाम पर भी भेदभाव करती है.

बात को आगे बढ़ाते हुए रीमा कहती हैं कि ऑपेरशन विजय में शहीद हुए लोगों को आज भी हर जगह बुलाया जाता है, हर जगह सम्मान दिया जाता है, लेकिन आपरेशन रक्षक, आपरेशन मेघदूत के जवानों और उनके परिवारों को कोई नहीं पूछता. वो सवाल करती हैं कि क्या उनके प्रियजनों की शहीदी, शहीदी नहीं है?

पढ़ें- भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों ने कारगिल दिवस पर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी

कुछ लोगों को मिलता है सम्मान
वहीं मेघना बताती हैं कि 15 महीने की नौकरी के बाद ही उनके बेटे ने देश के लिए अपनी जान गंवा दी थी. साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें रहने के लिए ये घर अलॉट भी किया था. हर साल यहां शहीदों की याद में आयोजन भी होते हैं लेकिन चुनिंदा लोगों को ही शहीद के नाम पर सम्मान दिया जाता है.

नई दिल्ली: कारगिल विजय दिवस के मौके पर देशभर में वीर सैनिकों को याद किया जा रहा है. द्वारका के मशहूर कारगिल अपार्टमेंट (विजय वीर आवास) में शहीदों के परिवारों ने पूजा अर्चना की और अपने प्रियजनों को याद किया.

हालांकि, उनकी शिकायत थी कि सरकार शहीदों में भी भेदभाव करती है.

'सरकार करती है शहीदों में भेदभाव'
बिहार की रहने वाली नीलम ने 1999 में अपने पति को खोया था. वो बताती हैं कि उनके लिए तो ये जैसे कल का ही हादसा है. नीलम कहती हैं कि आज भी उनकी वो यादें ताजा हैं. वह कहती हैं कि देश ने उस समय जीत तो दर्ज की थी लेकिन उन्होंने अपने पति को हारा था.

कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिजनों से बातचीत

नीलम कहती हैं उन्हें देश की जीत पर गर्व है लेकिन ये शिकायत भी है कि सरकार शहीदों के नाम पर भी भेदभाव करती है.

बात को आगे बढ़ाते हुए रीमा कहती हैं कि ऑपेरशन विजय में शहीद हुए लोगों को आज भी हर जगह बुलाया जाता है, हर जगह सम्मान दिया जाता है, लेकिन आपरेशन रक्षक, आपरेशन मेघदूत के जवानों और उनके परिवारों को कोई नहीं पूछता. वो सवाल करती हैं कि क्या उनके प्रियजनों की शहीदी, शहीदी नहीं है?

पढ़ें- भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों ने कारगिल दिवस पर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी

कुछ लोगों को मिलता है सम्मान
वहीं मेघना बताती हैं कि 15 महीने की नौकरी के बाद ही उनके बेटे ने देश के लिए अपनी जान गंवा दी थी. साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें रहने के लिए ये घर अलॉट भी किया था. हर साल यहां शहीदों की याद में आयोजन भी होते हैं लेकिन चुनिंदा लोगों को ही शहीद के नाम पर सम्मान दिया जाता है.

Intro:नई दिल्ली: कारगिल विजय दिवस के मौके पर देशभर में आज कारगिल युद्ध में वीर सैनिकों की शौर्य गाथा गाई जा रही है. द्वारका के मशहूर कारगिल अपार्टमेंट (विजय वीर आवास) में शहीदों के परिवारों ने पूजा अर्चना की और अपने प्रियजनों को याद किया. हालांकि उनकी शिकायत की कि सरकार शहीदों में भी भेदभाव करती है.



Body:बिहार की रहने वाली नीलम ने 1999 में अपने पति को खोया था. वो बताती हैं कि दुनिया के लिए तो ये जैसे कल का ही हादसा है. नीलम कहती हैं कि आज भी उनकी वो यादें ताजा हैं. वह कहती हैं कि देश ने उस समय जीत तो दर्ज की थी लेकिन उन्होंने अपने पति को हारा था. नीलम कहती हैं कि उन्हें देश की जीत पर गर्व है लेकिन ये शिकायत भी है कि सरकार शहीदों के नाम पर भेदभाव करती है.

बात को आगे बढ़ाते हुए रीमा कहती हैं कि ऑपेरशन विजय में शहीद हुए लोगों को आज भी हर जगह बुलाया जाता है, हर जगह सम्मान दिया जाता है. हालांकि आपरेशन रक्षक, आपरेशन मेघदूत के जवानों और उनके परिवारों को कोई नहीं पूछता. वो सवाल करती है कि क्या उनके प्रियजनों की शहीदी, शहीदी नहीं है!

मेघना बताती हैं कि 15 महीने की नौकरी के बाद ही उनके बेटे ने देश के लिए अपनी जान गंवा दी थी. साल 2003 में अटल बिहारी बाजपेयी ने उन्हें रहने के लिए ये घर अलॉट किए. हर साल यहां शहीदों की याद में आयोजन भी होते हैं लेकिन चुनिंदा लोगों को शहीद के नाम पर सम्मान दिया जाता है.


Conclusion:
Last Updated : Jul 27, 2019, 1:41 PM IST
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