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मेडिटेशन और योग करें...अवसाद से जीत सकते हैं जंग

कोरोना संक्रमण के दौर ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डाला है. युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों में अवसाद देखने को मिल रहा है. इसे लेकर ईटीवी भारत ने मनोवैज्ञानिक डॉ. जेसी आजवानी से खास बातचीत की है. उन्होंने डिप्रेशन यानी अवसाद से लड़ने के तरीकों के बारे में बताया है.

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मेडिटेशन और योग से मिलेगी मदद
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Published : Jul 11, 2020, 2:29 PM IST

Updated : Jul 11, 2020, 2:35 PM IST

रायपुर : कोरोना संक्रमण ने लोगों की जिंदगी को बहुत प्रभावित किया है. बीमारी ने भले बीमार न किया हो, लेकिन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) पर जरूर असर डाला है. लॉकडाउन में किसी की नौकरी चली गई, किसी को व्यापार में नुकसान हुआ. यही वजह रही कि पर्सनल और प्रोफेशनल मोर्चे पर लड़ते-लड़ते लोग अवसाद में जाने लगे. डिप्रेशन यानी अवसाद की बढ़ती समस्या को लेकर ईटीवी भारत ने साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर जेसी आजवानी से खास बातचीत की.

डॉक्टर आजवानी बताते हैं कि डिप्रेशन एक सामान्य मानसिक प्रक्रिया है. जब हम अपने जीवन में किसी समस्या से जूझ रहे होते हैं और अपने आप को उस समस्या के लड़ने के लिए सक्षम नहीं पाते तो हमारी मन:स्थिति और बाहरी परिस्थिति के बीच जो असंतुलन और असामंजस्य बनता है, उससे तनाव पैदा होता है.

डॉक्टर जेसी आजवानी से खास बातचीत.

डॉ. आजवानी का कहना है कि बदलते दौर के साथ लोगों में कॉम्पिटिशन बढ़ रहा है. हर कोई एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है. ऐसे में जब हम बार-बार असफल होते हैं तो यह असफलता डिप्रेशन का रूप ले लेती है. डिप्रेशन की कोई समय सीमा नहीं होती. यह किसी भी उम्र में होता है, लेकिन कॉम्पिटिशन के इस दौर में डिप्रेशन का सबसे ज्यादा असर बच्चों और युवाओं पर होता है. हालांकि लॉकडाउन में बुजुर्ग भी इसका शिकार हुए.

पढ़ें : सूरजपुर : प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में हाथी ने पूर्व जिला पंचायत सदस्य की ली जान

ज्यादा सोचना, तनाव में रहना
डॉक्टर आजवानी कहते हैं कि आजकल बच्चों में फेल होने और युवाओं को नौकरी न मिलने के डर से ही डिप्रेशन आने लगता है. इसके अलावा कई बार माता-पिता में अपने बच्चों के भविष्य को लेकर भी अवसाद होने लगता है. डॉक्टर कहते हैं कि आजकल लोग छोटे परिवार में रहना पसंद करते हैं और सभी अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं. कम लोगों के बीच रहने की वजह से मन की बात साझा नहीं कर पाते, जिससे अंदर ही अंदर डिप्रेशन पनपने लगता है और यह ऐसी चीज है कि लोग भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करते हैं.

डर
आंकड़े कहते हैं कि आज दुनिया में अधिकतर लोग डिप्रेशन का शिकार हैं, जिस वजह से कुछ आत्महत्या भी कर लेते हैं. डॉक्टर बताते हैं कि आज कोरोना संक्रमण से पूरी दूनिया डरी हुई है. ज्यादातार लोगों में बीमार होने का डर बना हुआ है. वह कहते हैं कि एक दिन में दुनिया में केवल हार्टअटैक से मरने वालों की संख्या एक लाख के ऊपर है. लोग कोरोना से ज्यादा डरे हुए हैं और इसी डर से लोग डिप्रेशन में चले जा रहे हैं.

पढ़ें: SPECIAL: गोबर और बांंस से बनी राखियों से चमक उठेगा त्योहार, महिलाओं को मिला रोजगार

मोबाइल एडिक्शन एक मानसिक बीमारी है, डिप्रेशन का कारण नहीं

डॉ. आजवानी मोबाइल एडिक्शन को भी मानसिक बीमारी बताते हैं. वह बताते हैं कि लॉकडाउन के कारण परेशानी उन लोगों को ज्यादा हुई है, जिन्हें मोबाइल की आदत नहीं है. लॉकडाउन में ऐसे लोग खुद को अकेला महसूस करने लगे थे. वह बाहर जाकर अपनी उम्र के लोगों से बात नहीं कर सकते थे, जो डिप्रेशन का कारण हो सकता है.

हर गलत के लिए खुद को जिम्मेदार समझना
वह बताते हैं कि डिप्रेशन उन लोगों में ज्यादा होता है, जो हर गलत चीज की वजह अपने आप को समझते हैं. डिप्रेशन को कम करने के लिए सेल्फ मोटिवेशन बहुत जरूरी है. डिप्रेशन को कम करने के लिए मेडिटेशन और योग सबसे अच्छी टेक्निक है. डिप्रेशन के समय अगर आत्महत्या का ख्याल आता है तो अपनी बातें लोगों से जरूर शेयर करें ताकि आप अंदर ही अंदर घुटे नहीं.

डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक डिप्रेशन एक आम मानसिक बीमारी है. डिप्रेशन आमतौर पर मूड में होने वाले उतार-चढ़ाव और कम समय के लिए होने वाली भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से अलग है.

डिप्रेशन के लक्षण

  • जब कोई अकेलापन महसूस करे.
  • बहुत ज्यादा गुस्सा आना.
  • बिस्तर से उठने या नहाने जैसी डेली रूटीन की चीजें भी आपको टास्क लगती हैं.
  • आप लोगों से कटने लगते हैं.
  • गुस्सा आना.
  • आप खुद से नफरत करते हैं और अपने आप को खत्म कर लेना चाहते हैं.
  • महसूस हो कि कुछ भी ठीक नहीं हो रहा.
  • ज्यादातर समय सिरदर्द रहना.

रायपुर : कोरोना संक्रमण ने लोगों की जिंदगी को बहुत प्रभावित किया है. बीमारी ने भले बीमार न किया हो, लेकिन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) पर जरूर असर डाला है. लॉकडाउन में किसी की नौकरी चली गई, किसी को व्यापार में नुकसान हुआ. यही वजह रही कि पर्सनल और प्रोफेशनल मोर्चे पर लड़ते-लड़ते लोग अवसाद में जाने लगे. डिप्रेशन यानी अवसाद की बढ़ती समस्या को लेकर ईटीवी भारत ने साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर जेसी आजवानी से खास बातचीत की.

डॉक्टर आजवानी बताते हैं कि डिप्रेशन एक सामान्य मानसिक प्रक्रिया है. जब हम अपने जीवन में किसी समस्या से जूझ रहे होते हैं और अपने आप को उस समस्या के लड़ने के लिए सक्षम नहीं पाते तो हमारी मन:स्थिति और बाहरी परिस्थिति के बीच जो असंतुलन और असामंजस्य बनता है, उससे तनाव पैदा होता है.

डॉक्टर जेसी आजवानी से खास बातचीत.

डॉ. आजवानी का कहना है कि बदलते दौर के साथ लोगों में कॉम्पिटिशन बढ़ रहा है. हर कोई एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है. ऐसे में जब हम बार-बार असफल होते हैं तो यह असफलता डिप्रेशन का रूप ले लेती है. डिप्रेशन की कोई समय सीमा नहीं होती. यह किसी भी उम्र में होता है, लेकिन कॉम्पिटिशन के इस दौर में डिप्रेशन का सबसे ज्यादा असर बच्चों और युवाओं पर होता है. हालांकि लॉकडाउन में बुजुर्ग भी इसका शिकार हुए.

पढ़ें : सूरजपुर : प्रतापपुर वन परिक्षेत्र में हाथी ने पूर्व जिला पंचायत सदस्य की ली जान

ज्यादा सोचना, तनाव में रहना
डॉक्टर आजवानी कहते हैं कि आजकल बच्चों में फेल होने और युवाओं को नौकरी न मिलने के डर से ही डिप्रेशन आने लगता है. इसके अलावा कई बार माता-पिता में अपने बच्चों के भविष्य को लेकर भी अवसाद होने लगता है. डॉक्टर कहते हैं कि आजकल लोग छोटे परिवार में रहना पसंद करते हैं और सभी अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं. कम लोगों के बीच रहने की वजह से मन की बात साझा नहीं कर पाते, जिससे अंदर ही अंदर डिप्रेशन पनपने लगता है और यह ऐसी चीज है कि लोग भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करते हैं.

डर
आंकड़े कहते हैं कि आज दुनिया में अधिकतर लोग डिप्रेशन का शिकार हैं, जिस वजह से कुछ आत्महत्या भी कर लेते हैं. डॉक्टर बताते हैं कि आज कोरोना संक्रमण से पूरी दूनिया डरी हुई है. ज्यादातार लोगों में बीमार होने का डर बना हुआ है. वह कहते हैं कि एक दिन में दुनिया में केवल हार्टअटैक से मरने वालों की संख्या एक लाख के ऊपर है. लोग कोरोना से ज्यादा डरे हुए हैं और इसी डर से लोग डिप्रेशन में चले जा रहे हैं.

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मोबाइल एडिक्शन एक मानसिक बीमारी है, डिप्रेशन का कारण नहीं

डॉ. आजवानी मोबाइल एडिक्शन को भी मानसिक बीमारी बताते हैं. वह बताते हैं कि लॉकडाउन के कारण परेशानी उन लोगों को ज्यादा हुई है, जिन्हें मोबाइल की आदत नहीं है. लॉकडाउन में ऐसे लोग खुद को अकेला महसूस करने लगे थे. वह बाहर जाकर अपनी उम्र के लोगों से बात नहीं कर सकते थे, जो डिप्रेशन का कारण हो सकता है.

हर गलत के लिए खुद को जिम्मेदार समझना
वह बताते हैं कि डिप्रेशन उन लोगों में ज्यादा होता है, जो हर गलत चीज की वजह अपने आप को समझते हैं. डिप्रेशन को कम करने के लिए सेल्फ मोटिवेशन बहुत जरूरी है. डिप्रेशन को कम करने के लिए मेडिटेशन और योग सबसे अच्छी टेक्निक है. डिप्रेशन के समय अगर आत्महत्या का ख्याल आता है तो अपनी बातें लोगों से जरूर शेयर करें ताकि आप अंदर ही अंदर घुटे नहीं.

डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक डिप्रेशन एक आम मानसिक बीमारी है. डिप्रेशन आमतौर पर मूड में होने वाले उतार-चढ़ाव और कम समय के लिए होने वाली भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से अलग है.

डिप्रेशन के लक्षण

  • जब कोई अकेलापन महसूस करे.
  • बहुत ज्यादा गुस्सा आना.
  • बिस्तर से उठने या नहाने जैसी डेली रूटीन की चीजें भी आपको टास्क लगती हैं.
  • आप लोगों से कटने लगते हैं.
  • गुस्सा आना.
  • आप खुद से नफरत करते हैं और अपने आप को खत्म कर लेना चाहते हैं.
  • महसूस हो कि कुछ भी ठीक नहीं हो रहा.
  • ज्यादातर समय सिरदर्द रहना.
Last Updated : Jul 11, 2020, 2:35 PM IST
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