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नई शिक्षा नीति को चुनौती के रूप में लें शिक्षण संस्थान : पूर्व डीयू वीसी प्रो. दिनेश सिंह

देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी मिल गई है. स्कूली शिक्षा से ले कर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव नई नीति में शामिल हैं. देश के जाने माने शिक्षाविद, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और वर्तमान में कुमार मंगलम विश्वविद्यालय के चांसलर प्रो. दिनेश सिंह ने इसका स्वागत किया है.

प्रो. दिनेश सिंह
प्रो. दिनेश सिंह
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Published : Jul 31, 2020, 11:00 PM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में मंजूरी मिल गई और इसी के साथ 34 वर्ष बाद देश में अब नई शिक्षा नीति लागू करने का रास्ता साफ हो गया है. स्कूली शिक्षा से ले कर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव नई नीति में शामिल हैं. इन्हीं विषयों पर ईटीवी भारत ने देश के जाने माने शिक्षाविद, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और वर्तमान में कुमार मंगलम विश्वविद्यालय के चांसलर प्रो. दिनेश सिंह से विशेष बातचीत की है. उच्च शिक्षा में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव और आने वाले समय की चुनौतियों पर प्रोफेसर दिनेश सिंह ने अपनी बेबाक राय दी है.

प्रो. दिनेश सिंह ने नई शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि यह बेहतर तरीके से लागू किया जाएगा और छात्रों को इसका लाभ मिलेगा. जब प्रोफेसर दिनेश सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति थे तब वह पहली बार चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (FYUP) ले कर आए थे जिसके बाद इसका विरोध भी हुआ और विवाद भी हुए.

बाद में इसे वापस ले लिया गया लेकिन अब राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में एक बार फिर स्नातक में चार वर्षीय कार्यक्रम को लाया गया है. हालांकि इसके साथ एक नई बात यह है कि छात्र अब स्नातक में दाखिले के बाद किसी भी वर्ष में कॉलेज छोड़ सकते हैं. एक वर्ष पूरा करने पर सर्टिफिकेट, दो वर्ष पर डिप्लोमा और तीन वर्ष पर डिग्री का प्रावधान होगा.

चार वर्ष के स्नातक की पढ़ाई के बाद सीधे पीएचडी में दाखिला लेने के लिए छात्रों को अब एमफिल या मास्टर डिग्री की जरूरत नहीं होगी. ऐसे में कई मायनों में यह चार वर्षीय स्नातक कोर्स उस समय लाए गए एफवाईयूपी से भिन्न हैं. इस पर प्रोफेसर दिनेश सिंह ने कहा कि बहुत ज्यादा भिन्नता उस समय और अब जो लाया गया है उसमें नहीं है.

जहां तक विवाद और विरोध का सवाल है उस समय बहुतायत छात्र और शिक्षक इसके पक्ष में थे और इसके वापस लिए जाने के बाद उन्हें दुख था कि क्यों हटाया गया. हालांकि अब दोबारा और ज्यादा विकल्पों के साथ इसे लाया गया है, ऐसे में दिनेश सिंह ने उम्मीद जताई है कि अब इसे बेहतर तरीके से लोग इसके महत्व को समझ सकेंगे.

नई शिक्षा नीति को आने में 34 वर्षों का समय लग गया. समय-समय पर देश में शिक्षा नीति की आलोचना और इसका विश्लेषण होता रहा लेकिन नई शिक्षा नीति के लिए कमेटी के गठन के बाद भी समय समय पर इसमें अड़चने आती रही और समय सीमा को आगे बढ़ाया जाता रहा. ऐसे में क्या यह देरी नहीं होनी चाहिए थी या जो शिक्षा नीति आज आई है वह और पहले भी आ सकती थी?

इस सवाल पर प्रो. दिनेश सिंह ने कहा कि देरी के विषय में वह टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि इसके पीछे के कारणों के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है. डॉ. के कस्तूरीरंगन के कार्य की सराहना करते हुए दिनेश सिंह ने कहा कि एक अच्छी नीति उनके नेतृत्व में बनकर तैयार हुई है.

शिक्षा नीति अब सबके सामने हैं ऐसे में हमारे देश के शिक्षण संस्थान इसके लिए कितने तैयार हैं और नई नीति को लागू करने के लिए किस तरह की तैयारी उच्च शिक्षण संस्थानों को करनी पड़ेगी? इस पर प्रो. दिनेश सिंह ने मुख्य रूप से दो सुझाव सामने रखे हैं. सबसे महत्वपूर्ण उन्होंने शिक्षकों के प्रशिक्षण को बताया है. नई नीति को लागू करने के लिए और नए बदलावों को स्वीकार करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि शिक्षकों को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए.

अपने कार्यकाल के समय का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण के लिए पहले भी उन्होंने बहुत जोर दिया था और आज भी यही सलाह देते हैं. शिक्षकों के प्रशिक्षण के बाद पाठ्यक्रम के प्रारूप को भी नए तरीके से तैयार करने की बात प्रोफेसर दिनेश सिंह ने की है. उन्होंने कहा कि अब रटने की बजाय सीखने पर जोर देना होगा.

नई शिक्षा नीति में इस बात पर पूरा जोर दिया गया है कि ज्यादा से ज्यादा छात्रों को स्कूल कॉलेजों तक लाया जाए. साथ ही नए विकल्पों के साथ छात्रों की संख्या भी बढ़ने का अनुमान है. ऐसे में देश के उच्च शिक्षण संस्थानों का इंफ्रास्ट्रक्चर इसके लिए कितना तैयार है और आगे उन्हें इसे बढ़ाने की जरूरत भी पड़ने वाली है.

इंफ्रास्ट्रक्चर के सवाल पर प्रो. दिनेश सिंह ने कहा कि ज्यादातर सरकारी विश्वविधालय और कॉलेज में आज भी दोपहर के बाद कोई क्लास नहीं होती और ऐसे में यह विकल्प हमेशा है कि उसे इस्तेमाल में लाकर शिक्षण संस्थान अपनी क्षमता को बढ़ा सकते हैं. ऐसे में आने वाले समय में नई शिक्षा नीति को लागू कर क्षमता बढ़ाने के लिए दो अलग अलग शिफ़्ट में पढ़ाई को एक विकल्प के रूप में देखा जा सकता है.

यूजीसी, एनसीटीई और एआईसीटीई जैसी अलग अलग रेगुलेटरी बॉडी की जगह अब एक बॉडी ही होगी, केवल मेडिकल और लीगल शिक्षा को इससे अलग रखा गया है. इस निर्णय का स्वागत करते हुए दिनेश सिंह ने कहा कि उनके विचार से यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था क्योंकि अलग अलग रेगुलेटरी बॉडी होने का उन्हें कोई विशेष लाभ नहीं दिखा.

नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली स्तर से ही वोकेशनल ट्रेनिंग की बात कही गई है. वहीं उच्च शिक्षा में भी छात्रों को अपने रूचि के हिसाब से विषय चुनने की आजादी होगी. ऐसे में क्या उम्मीद जताई जा सकती है कि आने वाले समय में बेरोजगारी दर घटेगा और नई शिक्षा छात्रों को रोजगार देने में सहायक साबित होगी?

यह भी पढ़ेंः जल से जीवन : एक संत, जिसकी धुन से जिंदा हो गई दम तोड़ती नदी

प्रो. दिनेश सिंह ने इस पर कहा कि यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि नीतियों का क्रियान्वयन किस प्रकार किया जाता है. शिक्षण संस्थान अगर एक चुनौती के रूप में इसे लेते हुए काम करें तो निश्चित रूप से परिणाम बेहतर होंगे.

पाठ्यक्रम में भाषा के विकल्पों और पांचवी कक्षा तक क्षेत्रीय और मातृभाषा को मीडियम ऑफ इंस्ट्रक्शन का समर्थन करते हुए दिनेश सिंह ने कहा कि उनका मानना है कि समझने और सीखने के लिए मातृभाषा से बेहतर कोई भाषा नहीं हो सकती है. अन्य देशों में पहले से यह चलता रहा है और अब नई शिक्षा नीति में इसे शामिल किया जाना एक अच्छा कदम है.

नई दिल्ली : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में मंजूरी मिल गई और इसी के साथ 34 वर्ष बाद देश में अब नई शिक्षा नीति लागू करने का रास्ता साफ हो गया है. स्कूली शिक्षा से ले कर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव नई नीति में शामिल हैं. इन्हीं विषयों पर ईटीवी भारत ने देश के जाने माने शिक्षाविद, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और वर्तमान में कुमार मंगलम विश्वविद्यालय के चांसलर प्रो. दिनेश सिंह से विशेष बातचीत की है. उच्च शिक्षा में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव और आने वाले समय की चुनौतियों पर प्रोफेसर दिनेश सिंह ने अपनी बेबाक राय दी है.

प्रो. दिनेश सिंह ने नई शिक्षा नीति का स्वागत करते हुए कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि यह बेहतर तरीके से लागू किया जाएगा और छात्रों को इसका लाभ मिलेगा. जब प्रोफेसर दिनेश सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति थे तब वह पहली बार चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (FYUP) ले कर आए थे जिसके बाद इसका विरोध भी हुआ और विवाद भी हुए.

बाद में इसे वापस ले लिया गया लेकिन अब राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में एक बार फिर स्नातक में चार वर्षीय कार्यक्रम को लाया गया है. हालांकि इसके साथ एक नई बात यह है कि छात्र अब स्नातक में दाखिले के बाद किसी भी वर्ष में कॉलेज छोड़ सकते हैं. एक वर्ष पूरा करने पर सर्टिफिकेट, दो वर्ष पर डिप्लोमा और तीन वर्ष पर डिग्री का प्रावधान होगा.

चार वर्ष के स्नातक की पढ़ाई के बाद सीधे पीएचडी में दाखिला लेने के लिए छात्रों को अब एमफिल या मास्टर डिग्री की जरूरत नहीं होगी. ऐसे में कई मायनों में यह चार वर्षीय स्नातक कोर्स उस समय लाए गए एफवाईयूपी से भिन्न हैं. इस पर प्रोफेसर दिनेश सिंह ने कहा कि बहुत ज्यादा भिन्नता उस समय और अब जो लाया गया है उसमें नहीं है.

जहां तक विवाद और विरोध का सवाल है उस समय बहुतायत छात्र और शिक्षक इसके पक्ष में थे और इसके वापस लिए जाने के बाद उन्हें दुख था कि क्यों हटाया गया. हालांकि अब दोबारा और ज्यादा विकल्पों के साथ इसे लाया गया है, ऐसे में दिनेश सिंह ने उम्मीद जताई है कि अब इसे बेहतर तरीके से लोग इसके महत्व को समझ सकेंगे.

नई शिक्षा नीति को आने में 34 वर्षों का समय लग गया. समय-समय पर देश में शिक्षा नीति की आलोचना और इसका विश्लेषण होता रहा लेकिन नई शिक्षा नीति के लिए कमेटी के गठन के बाद भी समय समय पर इसमें अड़चने आती रही और समय सीमा को आगे बढ़ाया जाता रहा. ऐसे में क्या यह देरी नहीं होनी चाहिए थी या जो शिक्षा नीति आज आई है वह और पहले भी आ सकती थी?

इस सवाल पर प्रो. दिनेश सिंह ने कहा कि देरी के विषय में वह टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे, क्योंकि इसके पीछे के कारणों के बारे में उन्हें जानकारी नहीं है. डॉ. के कस्तूरीरंगन के कार्य की सराहना करते हुए दिनेश सिंह ने कहा कि एक अच्छी नीति उनके नेतृत्व में बनकर तैयार हुई है.

शिक्षा नीति अब सबके सामने हैं ऐसे में हमारे देश के शिक्षण संस्थान इसके लिए कितने तैयार हैं और नई नीति को लागू करने के लिए किस तरह की तैयारी उच्च शिक्षण संस्थानों को करनी पड़ेगी? इस पर प्रो. दिनेश सिंह ने मुख्य रूप से दो सुझाव सामने रखे हैं. सबसे महत्वपूर्ण उन्होंने शिक्षकों के प्रशिक्षण को बताया है. नई नीति को लागू करने के लिए और नए बदलावों को स्वीकार करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि शिक्षकों को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाए.

अपने कार्यकाल के समय का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण के लिए पहले भी उन्होंने बहुत जोर दिया था और आज भी यही सलाह देते हैं. शिक्षकों के प्रशिक्षण के बाद पाठ्यक्रम के प्रारूप को भी नए तरीके से तैयार करने की बात प्रोफेसर दिनेश सिंह ने की है. उन्होंने कहा कि अब रटने की बजाय सीखने पर जोर देना होगा.

नई शिक्षा नीति में इस बात पर पूरा जोर दिया गया है कि ज्यादा से ज्यादा छात्रों को स्कूल कॉलेजों तक लाया जाए. साथ ही नए विकल्पों के साथ छात्रों की संख्या भी बढ़ने का अनुमान है. ऐसे में देश के उच्च शिक्षण संस्थानों का इंफ्रास्ट्रक्चर इसके लिए कितना तैयार है और आगे उन्हें इसे बढ़ाने की जरूरत भी पड़ने वाली है.

इंफ्रास्ट्रक्चर के सवाल पर प्रो. दिनेश सिंह ने कहा कि ज्यादातर सरकारी विश्वविधालय और कॉलेज में आज भी दोपहर के बाद कोई क्लास नहीं होती और ऐसे में यह विकल्प हमेशा है कि उसे इस्तेमाल में लाकर शिक्षण संस्थान अपनी क्षमता को बढ़ा सकते हैं. ऐसे में आने वाले समय में नई शिक्षा नीति को लागू कर क्षमता बढ़ाने के लिए दो अलग अलग शिफ़्ट में पढ़ाई को एक विकल्प के रूप में देखा जा सकता है.

यूजीसी, एनसीटीई और एआईसीटीई जैसी अलग अलग रेगुलेटरी बॉडी की जगह अब एक बॉडी ही होगी, केवल मेडिकल और लीगल शिक्षा को इससे अलग रखा गया है. इस निर्णय का स्वागत करते हुए दिनेश सिंह ने कहा कि उनके विचार से यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था क्योंकि अलग अलग रेगुलेटरी बॉडी होने का उन्हें कोई विशेष लाभ नहीं दिखा.

नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली स्तर से ही वोकेशनल ट्रेनिंग की बात कही गई है. वहीं उच्च शिक्षा में भी छात्रों को अपने रूचि के हिसाब से विषय चुनने की आजादी होगी. ऐसे में क्या उम्मीद जताई जा सकती है कि आने वाले समय में बेरोजगारी दर घटेगा और नई शिक्षा छात्रों को रोजगार देने में सहायक साबित होगी?

यह भी पढ़ेंः जल से जीवन : एक संत, जिसकी धुन से जिंदा हो गई दम तोड़ती नदी

प्रो. दिनेश सिंह ने इस पर कहा कि यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि नीतियों का क्रियान्वयन किस प्रकार किया जाता है. शिक्षण संस्थान अगर एक चुनौती के रूप में इसे लेते हुए काम करें तो निश्चित रूप से परिणाम बेहतर होंगे.

पाठ्यक्रम में भाषा के विकल्पों और पांचवी कक्षा तक क्षेत्रीय और मातृभाषा को मीडियम ऑफ इंस्ट्रक्शन का समर्थन करते हुए दिनेश सिंह ने कहा कि उनका मानना है कि समझने और सीखने के लिए मातृभाषा से बेहतर कोई भाषा नहीं हो सकती है. अन्य देशों में पहले से यह चलता रहा है और अब नई शिक्षा नीति में इसे शामिल किया जाना एक अच्छा कदम है.

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