मुंबई : महाराष्ट्र के मंत्री अशोक चव्हाण ने शुक्रवार को कहा कि मराठा आरक्षण के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय पीठ को सुनवाई करनी चाहिए. आरक्षण संबंधी 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. मुद्दे से संबंधित राज्य मंत्रिमंडल की एक उपसमिति के अध्यक्ष चव्हाण ने कहा कि 1993 के इंदिरा साहनी मामले की नौ सदस्यीय पीठ ने सुनवाई की थी. उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ही ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय की थी.
मराठा आरक्षण को इंदिरा साहनी मामले से न जोड़ें
चव्हाण ने कहा कि मराठा आरक्षण के मुद्दे को इंदिरा साहनी मामले से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. जिसमें उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय की थी. इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए. कांग्रेस नेता ने संवाददाताओं से कहा कि मराठा आरक्षण से जुड़े मामले पर पांच सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही है जो नौ सदस्यीय पीठ के फैसले को नहीं पलट सकती. आरक्षण की सीमा तय करते हुए उच्चतम न्यायालय ने इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में यह भी कहा था कि केवल आर्थिक पिछड़ापन ही आरक्षण का आधार नहीं हो सकता.
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मराठा आरक्षण को मिले संवैधानिक संरक्षण
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में नौकरियों और शिक्षा में मराठाओं को 16 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने पर रोक लगा दी है. यदि आरक्षण प्रभाव में आता है तो राज्य में आरक्षण 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा को पार कर जाएगा. चव्हाण ने मांग की कि तमिलनाडु में आरक्षण (जो 50 प्रतिशत से ज्यादा है) की तरह ही केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए और मराठा आरक्षण को 'संवैधानिक संरक्षण' देना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखने के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से आग्रह करेंगे.