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क्या प्लास्टिक के खतरे से निपट रहे हैं हम?

प्लास्टिक हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है. इसके विषैले प्रभावों के बारे में विशेषज्ञों की बार-बार चेतावनी आने के बावजूद प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता ही जा रहा है. स्वच्छ भारत 2.0 के एक हिस्से के रूप में केंद्र ने प्लास्टिक कचरे के खतरे से निपटने पर विशेष जोर दिया है.

PLASTIC
प्लास्टिक का खतरा
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Published : Dec 22, 2020, 9:54 AM IST

नई दिल्ली: बाजारों में प्लास्टिक उत्पादों की तेजी से बढ़ोतरी का मूल कारण इसकी सहज उपलब्धता, कम लागत, टिकाऊ होना और रखरखाव हैं. सन 2030 तक भारत की शहरी आबादी वास्तव में 38 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो जाने का अनुमान है. ऐसी स्थिति के परिणाम स्वरूप नगर में ठोस कचरे का ढेर होगा.

माल और सेवाओं की आपूर्ति जनसंख्या की मांग के अनुसार बढ़ रही है. ऐसे समय में जब मानव के कर्मों के कारण हवा, पानी और मिट्टी प्रदूषित हो रही है, प्लास्टिक पर रोक अपरिहार्य है. प्लास्टिक के कचरे के ढेर जानवरों और पौधों की प्रजातियों के लिए भी खतरा बन रहे हैं. स्वच्छ भारत 2.0 के एक हिस्से के रूप में केंद्र ने प्लास्टिक कचरे के खतरे से निपटने पर विशेष जोर दिया है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति दिन करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है. पैकेजिंग से जुड़े 70 फीसद उत्पाद तुरंत प्लास्टिक कचरे में बदल रहे हैं. वे आसपास की मिट्टी को प्रदूषित करते हैं, भूजल में रिसते हैं और पारिस्थितिक तंत्र को तबाह करते हैं. कुल प्लास्टिक कचरे का 10 प्रतिशत से भी कम फिर से इस्तेमाल करने लायक बन रहा है.

पढ़ें: चीनी मिल और गन्ना किसान दोनों संकट में, किसान के जीवन से गायब है मिठास!

प्लास्टिक की बोतलों को मिट्टी के अंदर दबा देने पर उन्हें गलने में 450 या इससे भी अधिक साल लग सकते हैं. दुनिया भर में हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरे को जलाशयों में डाला जाता है. एक अनुमान के मुताबिक, 15 करोड़ टन प्लास्टिक समुद्र और नदियों में जमा हो गया है. 2050 तक समुद्र में मछली की तुलना में प्लास्टिक अधिक हो सकता है. कई अध्ययनों में हमारे देश में पीने के पानी में भारी मात्रा में प्लास्टिक दिखाया गया है. चौंकाने वाली बात यह है कि नवजात शिशुओं के प्लाज्मा नमूनों में भी प्लास्टिक के अवशेष पाए गए हैं. माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के कारण कैंसर, हार्मोनल असंतुलन और हृदय संबंधी बीमारियों में बढ़ोतरी हो रही है.

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 6, 8 और 25 के जरिए मिली शक्तियों का उपयोग करते हुए भारत सरकार की ओर से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन में प्लास्टिक करचा प्रबंधन नियम 2015 प्रकाशित किए गए थे. ये नियम कचरा पैदा करने वाले स्थानीय निकायों, ग्राम सभाओं, उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों पर लागू होते हैं.

संशोधित नियमों के अनुसार, पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक से बने उत्पादों का भंडारण, ले जाने या पैकेजिंग के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. नई या पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक से बने कैरी बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से कम नहीं होनी चाहिए. केंद्र सरकार ने 2022 तक एक बार उपयोग वाले प्लास्टिक पर चरणबद्ध तरीके से नियंत्रित करने को कहा है.

कई राज्यों ने पहले ही डिस्पोजेबल प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है. प्लास्टिक की थैलियों, कपों, प्लेटों, छोटी बोतलों और स्ट्रा का उत्पादन या उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. खादी और ग्रामोद्योग आयोग प्लास्टिक के गिलास को बदलने के लिए बांस और मिट्टी के ग्लास का निर्माण कर रहा है. पर्यावरण-अनुकूल इस तरह की पहल के साथ सरकार ग्रामीण रोजगार को भी बढ़ावा दे रही है.

पढ़ें: बिहार में नो मेंस लैंड पर नेपाल की तरफ से सड़क निर्माण की कोशिश, एसएसबी ने रोका

एसोचैम-ईवाई के संयुक्त अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019-20 के दौरान भारत का पैकेजिंग उद्योग प्लास्टिक का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 10 दिशानिर्देशों की रूपरेखा तैयार की है, जिसका 60 देश अनुसरण कर रहे हैं. बाद भारत सरकार को अनिवार्य रूप से शहरी और ग्रामीण कचरे के संग्रहण, परिवहन और निपटान के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करनी चाहिए.

सभी शहरों में प्लास्टिक संग्रह केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए. प्लास्टिक कचरे से नए उत्पादों को विकसित करने के लिए अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उसके लिए पैसा भी दिया जाना चाहिए. पर्यावरण संरक्षण के अलावा, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग और संबद्ध उद्योग रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं. हालांकि, भारत के प्लास्टिक से जुड़े नियम तो वर्षों से अस्तित्व में हैं, फिर भी इनका कार्यान्वयन अभी पूरी तरह से नहीं हो रहा है.

राजनेताओं और नेताओं को प्लास्टिक के खतरे को समाप्त करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ रणनीति का पालन करने की जरूरत है. इसके अलावा, जन जागरूकता और भागीदारी भी उतना ही जरूरी है.

नई दिल्ली: बाजारों में प्लास्टिक उत्पादों की तेजी से बढ़ोतरी का मूल कारण इसकी सहज उपलब्धता, कम लागत, टिकाऊ होना और रखरखाव हैं. सन 2030 तक भारत की शहरी आबादी वास्तव में 38 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो जाने का अनुमान है. ऐसी स्थिति के परिणाम स्वरूप नगर में ठोस कचरे का ढेर होगा.

माल और सेवाओं की आपूर्ति जनसंख्या की मांग के अनुसार बढ़ रही है. ऐसे समय में जब मानव के कर्मों के कारण हवा, पानी और मिट्टी प्रदूषित हो रही है, प्लास्टिक पर रोक अपरिहार्य है. प्लास्टिक के कचरे के ढेर जानवरों और पौधों की प्रजातियों के लिए भी खतरा बन रहे हैं. स्वच्छ भारत 2.0 के एक हिस्से के रूप में केंद्र ने प्लास्टिक कचरे के खतरे से निपटने पर विशेष जोर दिया है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति दिन करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है. पैकेजिंग से जुड़े 70 फीसद उत्पाद तुरंत प्लास्टिक कचरे में बदल रहे हैं. वे आसपास की मिट्टी को प्रदूषित करते हैं, भूजल में रिसते हैं और पारिस्थितिक तंत्र को तबाह करते हैं. कुल प्लास्टिक कचरे का 10 प्रतिशत से भी कम फिर से इस्तेमाल करने लायक बन रहा है.

पढ़ें: चीनी मिल और गन्ना किसान दोनों संकट में, किसान के जीवन से गायब है मिठास!

प्लास्टिक की बोतलों को मिट्टी के अंदर दबा देने पर उन्हें गलने में 450 या इससे भी अधिक साल लग सकते हैं. दुनिया भर में हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरे को जलाशयों में डाला जाता है. एक अनुमान के मुताबिक, 15 करोड़ टन प्लास्टिक समुद्र और नदियों में जमा हो गया है. 2050 तक समुद्र में मछली की तुलना में प्लास्टिक अधिक हो सकता है. कई अध्ययनों में हमारे देश में पीने के पानी में भारी मात्रा में प्लास्टिक दिखाया गया है. चौंकाने वाली बात यह है कि नवजात शिशुओं के प्लाज्मा नमूनों में भी प्लास्टिक के अवशेष पाए गए हैं. माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के कारण कैंसर, हार्मोनल असंतुलन और हृदय संबंधी बीमारियों में बढ़ोतरी हो रही है.

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 6, 8 और 25 के जरिए मिली शक्तियों का उपयोग करते हुए भारत सरकार की ओर से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन में प्लास्टिक करचा प्रबंधन नियम 2015 प्रकाशित किए गए थे. ये नियम कचरा पैदा करने वाले स्थानीय निकायों, ग्राम सभाओं, उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों पर लागू होते हैं.

संशोधित नियमों के अनुसार, पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक से बने उत्पादों का भंडारण, ले जाने या पैकेजिंग के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. नई या पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक से बने कैरी बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से कम नहीं होनी चाहिए. केंद्र सरकार ने 2022 तक एक बार उपयोग वाले प्लास्टिक पर चरणबद्ध तरीके से नियंत्रित करने को कहा है.

कई राज्यों ने पहले ही डिस्पोजेबल प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है. प्लास्टिक की थैलियों, कपों, प्लेटों, छोटी बोतलों और स्ट्रा का उत्पादन या उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. खादी और ग्रामोद्योग आयोग प्लास्टिक के गिलास को बदलने के लिए बांस और मिट्टी के ग्लास का निर्माण कर रहा है. पर्यावरण-अनुकूल इस तरह की पहल के साथ सरकार ग्रामीण रोजगार को भी बढ़ावा दे रही है.

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एसोचैम-ईवाई के संयुक्त अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019-20 के दौरान भारत का पैकेजिंग उद्योग प्लास्टिक का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने 10 दिशानिर्देशों की रूपरेखा तैयार की है, जिसका 60 देश अनुसरण कर रहे हैं. बाद भारत सरकार को अनिवार्य रूप से शहरी और ग्रामीण कचरे के संग्रहण, परिवहन और निपटान के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करनी चाहिए.

सभी शहरों में प्लास्टिक संग्रह केंद्र स्थापित किए जाने चाहिए. प्लास्टिक कचरे से नए उत्पादों को विकसित करने के लिए अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उसके लिए पैसा भी दिया जाना चाहिए. पर्यावरण संरक्षण के अलावा, प्लास्टिक रीसाइक्लिंग और संबद्ध उद्योग रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं. हालांकि, भारत के प्लास्टिक से जुड़े नियम तो वर्षों से अस्तित्व में हैं, फिर भी इनका कार्यान्वयन अभी पूरी तरह से नहीं हो रहा है.

राजनेताओं और नेताओं को प्लास्टिक के खतरे को समाप्त करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ रणनीति का पालन करने की जरूरत है. इसके अलावा, जन जागरूकता और भागीदारी भी उतना ही जरूरी है.

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