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व्यापार समझौते को टालने पर है आपसी रजामंदी-भारतीय अधिकारी

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के दौरान, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र के मुद्दे, बातचीत के केंद्र में रहेंगे, इसके लिए भारतीय नौसेना के लिए मल्टी रोल हेलीकॉप्टरों की खरीद का रास्ता साफ कर लिया गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के पहले भारत दौरे से ठीक पहले, रक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने, 2.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कीमत पर, 24 एमएच-60आर हेलीकॉप्टरों की खरीद को हरी झंडी दे दी है. पिछले दशक में, भारत ने अमेरिका से करीब 18 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रक्षा उपकरण खरीदे हैं.

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Published : Feb 21, 2020, 12:05 AM IST

Updated : Mar 2, 2020, 12:45 AM IST

trade deal between india america
फाइल फोटो

अमेरिका के साथ अपने ट्रेड सरप्लस को कम करने के लिए भारत के लिए, तेल और गैस के साथ रक्षा भी अहम क्षेत्र हो गया है. ट्रंप ने भारत पर लगातार व्यापार में बराबरी न करने का आरोप लगाया है, व्यापार में ऊंचे कर होने के भी आरोप लगाए हैं, हालांकि भारत इन आरोपों को गैरवाजिब करार देता रहा है. एक अधिकारी ने कहा कि 'हमारा मानना है कि और विकासशील देशों की तुलना में हमारे कर ज़्यादा नहीं है. हमें उन मानकों के बारे में कहा जा रहा है जो ज़्यादातर विकासशील देशों पर लागू नहीं होते हैं. कई क्षेत्रों में, कोरिया और जापान जैसे देशों में कर हमसे ज्यादा हैं.'

ऊर्जा के क्षेत्र की बात करें तो, अमेरिका भारत के लिए कच्चे तेल का छठा सबसे बड़ा निर्यातक है, इसमें से, पिछले दो साल में ही करीब 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के हाइड्रोकार्बन का आयात हुआ है. इस यात्रा से पहले भारतीय विदेश सचिव, हर्ष श्रृंगला ने कहा कि 'आज भारत अमेरिका के संबंध सबसे सार्थक संबंधों में से एक हैं. यह रिश्ता, सामरिक रिश्तों और 21वीं सदी पर टिकी नजरों पर आधारित है. चाहे वो आतंकवाद हो या इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में शांति और सौहार्द रखना हो, भारत और अमेरिका के लक्ष्य हर तरह से मेल खाते हैं.'

वहीं, आठ महीनों की कड़ी मेहनत के बावजूद, एक लघु व्यापार समझौते को होने की संभावना न के बराबर है और इसे आगे के लिए छोड़ा गया है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि इसे 'नो डील' या 'फंसी हुई डील' की तरह देखना गलत होगा, बल्कि यह एक चालू और जटिल प्रक्रिया है जिसके समाधान में समय लगेगा. सूत्रों के मुताबिक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि, रोबर्ट लाइथजर और भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की इस बात पर सहमति बनी है कि मौजूदा यात्रा के लिए किसी व्यापारिक समझौते पर जल्दबाजी में फैसला लेना सही नहीं होगा, क्योंकि इस समझौते में सही संतुलन होना बहुत जरूरी है.

इस बारे में बात करते हुए सरकारी सूत्रों ने कहा कि 'बाजार तक पहुंच के लिहाज से अमेरिका की ही तरह हम भी एक बराबरी का समझौता चाहते हैं. जीएसपी (जेनरल सिस्टम प्रिफरेंस) लागू करना हमारी प्राथमिकता है. जीएसपी एक तरफ से दी गई छूट है. यह अमेरिकी सरकार को भारत को बाजार पहुंच और छूट देने के लिए बाध्य नही करता है. यह एक तरफ से किया गया था और इसी तरह वापस ले लिया गया. हमें इसे वापस लागू करवाना है.'

सूत्र ने यह भी कहा कि जीएसपी वापस करने से भारत के एक्पोर्ट पर कुछ खास फर्क नही पड़ा है. लाइथजर इस दौरे से पहले भारतीय वाणिज्य मंत्री से मिलने नही आये थे, लेकिन अभी यह नही कहा जा सकता है कि वो राष्ट्रपति के साथ आने वाले शिष्टमंडल का हिस्सा नहीं होंगे. इस दल में, अमेरिकी वाणिज्य सचिव, विल्बर रॉस के साथ, राष्ट्रपति के सलाहकार और दामाद, जैरेड कुश्नर और ट्रशर्री सचिव, मनुचिन होंगे.

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले दो सालों से लगातार 10% सालाना की दर से बड़ रहा है. 2018 में जो द्विपक्षीय व्यापार 142 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर था उसके इस साल 150 बिलियन डॉलर पार कर जाने का अनुमान है.

ट्रंप के 36 धटों और 3 तीन शहरों वाले इस दौरे की यह कहकर भी आलोचना हो रही है कि इससे भारत को कोई खास फायदा नहीं होने वाला है. लेकिन, अधिकारी इस बात पार जोर दे रहे हैं कि इस दौरे को परिपक्वता और सामरिक साझेदारी को मजबूत करने के नजरिए से देखने की जरूरत है. ट्रंप अपनी पत्नी मलिना ट्रंप के साथ, 24 फरवरी को अहमदाबाद हवाई अड्डे से नए बने मोटेरा स्टेडियम तक, रोड शो में हिस्सा लेंगे. इस रास्ते में भारी संख्या में लोग इनके स्वागत के लिए मौजूद रहेंगे और ट्रंप दंपत्ति के साथ पीएम मोदी भी रोड शो में हिस्सा लेंगे. यही नहीं रास्ते में, 28 स्टेज बनाए गए हैं, जो देश के राज्यों का प्रतिनिधित्व करेंगे और महात्मा गांधी के जीवन का चित्रण करेंगे.

पिछले आठ महीनों में मोदी और ट्रंप के बीच होने वाली यह पांचवी मुलाकात है और जानकार इसे दोनों देशों द्वारा द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के लिए उठाए गए कदम के तौर पर देख रहे हैं. सरकार के सूत्रों का कहना है कि 'एक उभरती ताकत के रूप में भारत के लिए यह जरूरी नही है कि उसके देशों से रिश्ते, व्यापार आदि पर ही निर्भर रहे. जरूरी नहीं है कि हर दौरे में कोई बड़ी घोषणा हो. अमेरिका से रिश्ते शिखर स्तर के आदान प्रदान तक पहुंच गए हैं, और यह जरूरी नहीं है कि हर समय कोई नतीजा निकले.' विदेश सचिव ने कहा कि 'बातचीत विस्तार से होगी और रक्षा, सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी, व्यापार, ऊर्जा और लोगों के बीच आदान प्रदान को लेकर दोनों देशों की सामरिक साझेदारी को ध्यान में रख कर होगी.'

कश्मीर मामला मोदी- ट्रंप मुलाकात में मुद्दा नहीं होगा- सूत्र

ट्रंप के भारत आने में अब कुछ ही दिन बचे हैं और नई दिल्ली को भी उम्मीद है कि कश्मीर, सीएए-एनआरसी और इनसे जुड़े मसले इस यात्रा पर अपना साया नही डालेंगे. सरकारी सूत्रों का कहना है कि पिछले साल आर्टिकल 370 हटने के बाद कश्मीर में लगे प्रतिबंधों में से ज्यादातर हटा लिए गए हैं और अमेरिका के राजदूत, केनेथ डस्टर ने हाल ही में अन्य देशों के राजदूतों के साथ कश्मीर क दौरा भी किया है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट के बयानों से साफ है कि कश्मीर का मसला भारत-पाकिस्तान के बीच का है और इस यात्रा पर इस मामले का कोई असर नहीं पड़ेगा.

पढ़ें-ट्रंप का भारत दौरा : अमेरिका और भारत के बीच लंबित पड़े रक्षा सौदे होंगे पूरे

पिछले दिनों ट्रंप द्वारा कश्मीर मामले पर मध्यस्थता की पेशकश और भारत यात्रा पर उनके इस मसले पर बयान देने की संभावनाओं के बारे में बोलते हुए विदेश विभाग के अधिकारी ने कहा कि 'ट्रंप ने यह कई बार साफ किया है कि मध्यस्थता तभी हो सकती है जब दोनों देश इसके लिए तैयार हों. हमने समय-समय पर यह साफ कर दिया है कि हम इसके लिए तैयार नहीं हैं. इसलिए यह पेशकश शर्तों के साथ है और और इसे संजीदगी से नहीं लिया जा सकता. मध्यस्थता केवल कुछ लोगों के विचार में है और हमें नहीं लगता कि यह बातचीत का मुद्दा होगा.'

हाल ही में अफगानिस्तान में राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों के बाद बने राजनीतिक हालात, ट्रंप-मोदी की बातचीत का हिस्सा हो सकते हैं, क्योंकि इसके भारत और इस क्षेत्र के लिए कई मायने हैं. सूत्रों का कहना है कि दोनों देशों के बीच, आतंकवाद विरोधी और सुरक्षा संबंधी मसले साझेदारी का एक महत्वपूर्ण पहलू है और अमेरिका पाकिस्तान से पैदा होने वाले आतंकवाद को लेकर अपने पक्ष से हट नहीं रहा है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 'आतंकवाद पर अमेरिका ने हमेशा से मजबूत रुख इख्तियार किया है. पुलवामा हमले के बाद, भारतीय प्रतिक्रिया का अमेरिका ने पूरा समर्थन किया था. जब संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को 1267 के अंतर्गत लाने का मामला सामने आया था, तब भी अमेरिका इसे अमली जामा पहनाने में सबसे आगे था. आतंक विरोधी मामलों पर हमारी अमेरिका के साथ व्यापक साझेदारी है. हमारे लिहाज से दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी का यह सबसे मजबूत पहलू है.'

अमेरिका के साथ अपने ट्रेड सरप्लस को कम करने के लिए भारत के लिए, तेल और गैस के साथ रक्षा भी अहम क्षेत्र हो गया है. ट्रंप ने भारत पर लगातार व्यापार में बराबरी न करने का आरोप लगाया है, व्यापार में ऊंचे कर होने के भी आरोप लगाए हैं, हालांकि भारत इन आरोपों को गैरवाजिब करार देता रहा है. एक अधिकारी ने कहा कि 'हमारा मानना है कि और विकासशील देशों की तुलना में हमारे कर ज़्यादा नहीं है. हमें उन मानकों के बारे में कहा जा रहा है जो ज़्यादातर विकासशील देशों पर लागू नहीं होते हैं. कई क्षेत्रों में, कोरिया और जापान जैसे देशों में कर हमसे ज्यादा हैं.'

ऊर्जा के क्षेत्र की बात करें तो, अमेरिका भारत के लिए कच्चे तेल का छठा सबसे बड़ा निर्यातक है, इसमें से, पिछले दो साल में ही करीब 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के हाइड्रोकार्बन का आयात हुआ है. इस यात्रा से पहले भारतीय विदेश सचिव, हर्ष श्रृंगला ने कहा कि 'आज भारत अमेरिका के संबंध सबसे सार्थक संबंधों में से एक हैं. यह रिश्ता, सामरिक रिश्तों और 21वीं सदी पर टिकी नजरों पर आधारित है. चाहे वो आतंकवाद हो या इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में शांति और सौहार्द रखना हो, भारत और अमेरिका के लक्ष्य हर तरह से मेल खाते हैं.'

वहीं, आठ महीनों की कड़ी मेहनत के बावजूद, एक लघु व्यापार समझौते को होने की संभावना न के बराबर है और इसे आगे के लिए छोड़ा गया है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि इसे 'नो डील' या 'फंसी हुई डील' की तरह देखना गलत होगा, बल्कि यह एक चालू और जटिल प्रक्रिया है जिसके समाधान में समय लगेगा. सूत्रों के मुताबिक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि, रोबर्ट लाइथजर और भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की इस बात पर सहमति बनी है कि मौजूदा यात्रा के लिए किसी व्यापारिक समझौते पर जल्दबाजी में फैसला लेना सही नहीं होगा, क्योंकि इस समझौते में सही संतुलन होना बहुत जरूरी है.

इस बारे में बात करते हुए सरकारी सूत्रों ने कहा कि 'बाजार तक पहुंच के लिहाज से अमेरिका की ही तरह हम भी एक बराबरी का समझौता चाहते हैं. जीएसपी (जेनरल सिस्टम प्रिफरेंस) लागू करना हमारी प्राथमिकता है. जीएसपी एक तरफ से दी गई छूट है. यह अमेरिकी सरकार को भारत को बाजार पहुंच और छूट देने के लिए बाध्य नही करता है. यह एक तरफ से किया गया था और इसी तरह वापस ले लिया गया. हमें इसे वापस लागू करवाना है.'

सूत्र ने यह भी कहा कि जीएसपी वापस करने से भारत के एक्पोर्ट पर कुछ खास फर्क नही पड़ा है. लाइथजर इस दौरे से पहले भारतीय वाणिज्य मंत्री से मिलने नही आये थे, लेकिन अभी यह नही कहा जा सकता है कि वो राष्ट्रपति के साथ आने वाले शिष्टमंडल का हिस्सा नहीं होंगे. इस दल में, अमेरिकी वाणिज्य सचिव, विल्बर रॉस के साथ, राष्ट्रपति के सलाहकार और दामाद, जैरेड कुश्नर और ट्रशर्री सचिव, मनुचिन होंगे.

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले दो सालों से लगातार 10% सालाना की दर से बड़ रहा है. 2018 में जो द्विपक्षीय व्यापार 142 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर था उसके इस साल 150 बिलियन डॉलर पार कर जाने का अनुमान है.

ट्रंप के 36 धटों और 3 तीन शहरों वाले इस दौरे की यह कहकर भी आलोचना हो रही है कि इससे भारत को कोई खास फायदा नहीं होने वाला है. लेकिन, अधिकारी इस बात पार जोर दे रहे हैं कि इस दौरे को परिपक्वता और सामरिक साझेदारी को मजबूत करने के नजरिए से देखने की जरूरत है. ट्रंप अपनी पत्नी मलिना ट्रंप के साथ, 24 फरवरी को अहमदाबाद हवाई अड्डे से नए बने मोटेरा स्टेडियम तक, रोड शो में हिस्सा लेंगे. इस रास्ते में भारी संख्या में लोग इनके स्वागत के लिए मौजूद रहेंगे और ट्रंप दंपत्ति के साथ पीएम मोदी भी रोड शो में हिस्सा लेंगे. यही नहीं रास्ते में, 28 स्टेज बनाए गए हैं, जो देश के राज्यों का प्रतिनिधित्व करेंगे और महात्मा गांधी के जीवन का चित्रण करेंगे.

पिछले आठ महीनों में मोदी और ट्रंप के बीच होने वाली यह पांचवी मुलाकात है और जानकार इसे दोनों देशों द्वारा द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के लिए उठाए गए कदम के तौर पर देख रहे हैं. सरकार के सूत्रों का कहना है कि 'एक उभरती ताकत के रूप में भारत के लिए यह जरूरी नही है कि उसके देशों से रिश्ते, व्यापार आदि पर ही निर्भर रहे. जरूरी नहीं है कि हर दौरे में कोई बड़ी घोषणा हो. अमेरिका से रिश्ते शिखर स्तर के आदान प्रदान तक पहुंच गए हैं, और यह जरूरी नहीं है कि हर समय कोई नतीजा निकले.' विदेश सचिव ने कहा कि 'बातचीत विस्तार से होगी और रक्षा, सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी, व्यापार, ऊर्जा और लोगों के बीच आदान प्रदान को लेकर दोनों देशों की सामरिक साझेदारी को ध्यान में रख कर होगी.'

कश्मीर मामला मोदी- ट्रंप मुलाकात में मुद्दा नहीं होगा- सूत्र

ट्रंप के भारत आने में अब कुछ ही दिन बचे हैं और नई दिल्ली को भी उम्मीद है कि कश्मीर, सीएए-एनआरसी और इनसे जुड़े मसले इस यात्रा पर अपना साया नही डालेंगे. सरकारी सूत्रों का कहना है कि पिछले साल आर्टिकल 370 हटने के बाद कश्मीर में लगे प्रतिबंधों में से ज्यादातर हटा लिए गए हैं और अमेरिका के राजदूत, केनेथ डस्टर ने हाल ही में अन्य देशों के राजदूतों के साथ कश्मीर क दौरा भी किया है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट के बयानों से साफ है कि कश्मीर का मसला भारत-पाकिस्तान के बीच का है और इस यात्रा पर इस मामले का कोई असर नहीं पड़ेगा.

पढ़ें-ट्रंप का भारत दौरा : अमेरिका और भारत के बीच लंबित पड़े रक्षा सौदे होंगे पूरे

पिछले दिनों ट्रंप द्वारा कश्मीर मामले पर मध्यस्थता की पेशकश और भारत यात्रा पर उनके इस मसले पर बयान देने की संभावनाओं के बारे में बोलते हुए विदेश विभाग के अधिकारी ने कहा कि 'ट्रंप ने यह कई बार साफ किया है कि मध्यस्थता तभी हो सकती है जब दोनों देश इसके लिए तैयार हों. हमने समय-समय पर यह साफ कर दिया है कि हम इसके लिए तैयार नहीं हैं. इसलिए यह पेशकश शर्तों के साथ है और और इसे संजीदगी से नहीं लिया जा सकता. मध्यस्थता केवल कुछ लोगों के विचार में है और हमें नहीं लगता कि यह बातचीत का मुद्दा होगा.'

हाल ही में अफगानिस्तान में राष्ट्रपति चुनावों के नतीजों के बाद बने राजनीतिक हालात, ट्रंप-मोदी की बातचीत का हिस्सा हो सकते हैं, क्योंकि इसके भारत और इस क्षेत्र के लिए कई मायने हैं. सूत्रों का कहना है कि दोनों देशों के बीच, आतंकवाद विरोधी और सुरक्षा संबंधी मसले साझेदारी का एक महत्वपूर्ण पहलू है और अमेरिका पाकिस्तान से पैदा होने वाले आतंकवाद को लेकर अपने पक्ष से हट नहीं रहा है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 'आतंकवाद पर अमेरिका ने हमेशा से मजबूत रुख इख्तियार किया है. पुलवामा हमले के बाद, भारतीय प्रतिक्रिया का अमेरिका ने पूरा समर्थन किया था. जब संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को 1267 के अंतर्गत लाने का मामला सामने आया था, तब भी अमेरिका इसे अमली जामा पहनाने में सबसे आगे था. आतंक विरोधी मामलों पर हमारी अमेरिका के साथ व्यापक साझेदारी है. हमारे लिहाज से दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी का यह सबसे मजबूत पहलू है.'

Last Updated : Mar 2, 2020, 12:45 AM IST
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