ट्रंप इस मुद्दे को आने वाले राष्ट्रपति चुनावों में भुनाने की तैयारी मे हैं. जानकारों का कहना है कि अगर शुल्क घटाया जाता है तो भारतीय मुर्गीपालन उद्योग के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो जायेंगी. इस कारण से भारतीय मुर्गीपालन उद्योग भारत सरकार पर अमेरिका की मांगे न मानने का दबाव बना रहा है.
दुनियाभर में चिकन मीट की खपत बढ़ने के चलते भारतीय मुर्गीपालन उद्योग से जुड़े लोगों के चेहरों पर रौनकक लौटने लगी है. इस सबके बीच अमेरिका से बड़ी संख्या में चिकन मीट के आयात की खबरों से स्वदेशी मुर्गीपालकों में ऊहापोह की स्थिति है. अगर ऐसा होता है तो बाज़ार के दामों में गिरावट आ जायेगी, जिसका सीधा असर घरेलू किसानों और व्यापारियों पर पड़ेगा.
मौजूदा समय में भारत पोल्ट्री आयात पर सौ फ़ीसदी शुल्क लगाता है. अमेरिका इसे तीस फ़ीसदी करने का दबाव बना रहा है. पूर्व में पोल्ट्री के गिरते दामों के कारण इस उद्योग को परेशानी का सामना करना पड़ा था. हाल के सालों में मीट की बड़ती खपत से, इस व्यवसाय से जुड़ें किसानों को आने वाले दिनों में अपने नुक़सान की भरपाई करने का मौका मिल सकता है. जानकारों ने चेताया है कि इस समय विदेशी उत्पादों के लिये बाज़ार खोलना ख़तरनाक हो सकता है.
अमेरिका से चिकन लेग, के आयात के पीछे काफ़ी रोचक कारण हैं. अमेरिका में लोग चिकन का ब्रेस्ट खाना पसंद करते हैं, जिसमें फ़ैट की मात्रा कम होती है. चिकन के पैरों में उसके ब्रेस्ट के मुक़ाबले फ़ैट की मात्रा ज्यादा होती है. इसलिये लोगों के बीच ब्रेस्ट पसंद किया जाता है.
इसके अलावा अमेरिकी लोग खाने के लिये छुरी और कांटे का इस्तेमाल करते हैं, चिकन लेग से परहेज़ करने के पीछे इसे खाने में असहजता भी एक कारण है. इन कारणों के चलते अमेरिका में चिकन लेग की माँग कम है और इसे कोल्ड स्टोरेज में रख दिया जाता है.
अमेरिका इससे पहले यूरोपियन यूनियन, चीन और अविकसित देशों में चिकन लेग का निर्यात करता रहा है. समय के साथ यहाँ के बाज़ारों में घरेलू उत्पादों की तादाद काफ़ी हो गई है. अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापारिक मसलों के कारण अमेरिका का ध्यान अब भारतीय बाज़ारों की तरफ़ है.
135 करोड़ की जनसंख्या के साथ भारतीय बाज़ार अमेरिका के लिये काफ़ी लुभावना है. भारत में चिकन लेग की माँग ज़्यादा होने के कारण अमेरिका अपने यहाँ के ज़्यादा से ज़्यादा उत्पाद की खपत भारत में करना चाहता है. पोल्ट्री मीट अमेरिका में सबसे सस्ता है, इसलिये ये उत्पाद भारतीय बाज़ारों में काफ़ी कम दामों में उपलब्द्ध कराये जा सकते हैं.
मुर्गीपालन उद्योग, भारतीय जीडीपी में एक ट्रिलियन रुपये का योगदान करता है. देश में सालाना क़रीब नौ हज़ार अंडों का उत्पाद होता है. चीन के बाद भारत विश्व में अंडों का सबसे बड़ा उत्पादक है. देशभर में सालाना क़रीब चार सौ मिलियन ब्रॉयलर चिकन का उत्पाद होता है. मुर्गीपालन उद्योग में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है, पहले और दूसरे स्थान पर अमेरिका और चीन है.
विश्व स्वास्थ संगठन, बच्चों के लिये पौष्टिक खाने के विकल्प के तौर पर अंडे खिलाने की बात कहता है. नेशनल न्यूट्रीशन ऑर्गनाइज़ेशन के मुताबिक़ भारत में प्रति व्यक्ति अंडों के खपत 68 है जो 180 होनी चाहिये. वहीं चिकन मीट की खपत प्रति व्यक्ति 3.5 किलो है जो 11 किलो होनी चाहिये. इस फ़ासले को कम करने के लिये इस उद्योग के सामने कई विकल्प मौजूद हैं.
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घरेलू मुर्गीपालन उद्योग से 40 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है. इनमें से 20 लाख लोग केवल मक्के और सोयाबीन की खेती में ही काम कर रहे हैं. भारत में मुर्गियों की खुराक में अधिक्तर मक्का और सोयाबीन इस्तेमाल में आता है. किसान मुर्गीपालन उद्योग में काम आने वाली फसलों की खेती करते हैं. इन फसलों की आधी उपज मुर्गीपालन उद्योग में इसतेमाल हो जाती है.
अगर भारत में मुर्गीपालन उद्योग को झटका लगता है तो इसका सीधा असर इन किसानों की कमाई पर भी पड़ेगा. भारत में लोगों की खाने की आदतें लगातार बदल रही हैं. युवाओं में बर्गर, पिज्जा आदि फास्ट फूड खाने का प्रचलन बड़ रहा है. होटलों में मांसाहारी खाने का सेवन भी बड़ गया है. इसके चलते अमेरिका से आने वाले पोल्ट्री उत्पादों की मांग में तेजी आ सकती है.
हालांकि, भारतीय अधिकतर ताजा खाने का सेवन करना पसंद करते हैं. पश्चिम की तरह फ्रोजन खाने का प्रचलन बड़ रहा है, लेकिन अभी भी ज्याजातर भारतीय ताजा फल, सब्जी और मीट खाना पसंद करते हैं. इसी कारण से देश के हर शहर की कॉलिनियों में फल-सब्जी और मीट के बाजार बनाये गये थे.
उद्योग से जुड़े जानकार लगातार सरकार से इस बात को कह रहे हैं कि, अगर पोल्ट्री उत्पादों पर आयात शुल्क कम किया गया तो घरेलू उद्योगों में काम कर रहे लाखों लोगों पर इसका उल्टा असर पड़ेगा. उनका मानना है कि ऐसे हालात में पोल्ट्री फार्म और प्रसंस्करण इकाईयों के बंद होने को रोका नही जा सकेगा. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत असर पड़ेगा.
दशकों से भारतीय मुर्गीपालन उद्योग बिना किसी सरकारी मदद के चलता आ रहा है. ऐसे में अगर अमेरिका से आयात शुल्क घटाने का करार होता है तो इसका सीधा असर इस उद्योग पर देखने को मिलेगा.
(लेखक-एनवी राव)