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विशेष लेख : लोन नहीं चुकाने की वजह से मुद्रा स्कीम से बैंकों की चिताएं बढ़ीं

2015 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है, लेकिन एनपीए की बढ़ती तादाद ने बकाया लोन वापसी ना होने से बैंकिंग सेक्टर के लिए परेशानी का कारण बन गया है. एक विश्लेषण.

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Published : Dec 9, 2019, 12:18 PM IST

इसके चलते बैंकों को लोन देने के तरीकों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. क्योंकि रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर, एम के जैन भी यह बात कह चुके हैं कि 'मुद्रा' (Micro Units Development and Refinance Agency Bank) स्कीम के तहत दिए गए लोन की वापसी ना होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं.

जैन ने यह बात साफ कर दी है कि बैंक वालों को यह जांचने की आवश्यकता है कि वे लोन लौटाने की क्षमता का गहनता से जांच करे. इससे पहले भी आरबीआई के पिछले गवर्नर, लोन चुकता न होने के मामलों की बढ़ती संख्या की तरफ ध्यान दिलाते रहे हैं.

पूर्व आरबीआई गवर्नर, रघुराम राजन ने यह चेतावनी दी थी कि, माइक्रो, छोटे और मध्यम व्यापारियों को लोन देने से बैंकिंग क्षेत्र में परेशानियां खड़ी हो सकती हैं. इसके चलते सरकार और बैंकिंग क्षेत्र में बहस भी छिड़ गई थी. मुद्रा योजना, जो एमएसएमई क्षेत्र में बिना किसी बीमा के 10 लाख तक का लोन देती है, इसके तहत पिछले साढ़े चार सालों में, 10 लाख करोड़ का लोन 21 करोड़ लाभार्थियों को दिया जा चुका है.

इस कारण से, करोड़ों की तादाद में सूक्ष्म और छोटे व्यापारियों को बेहतर मौके मिले और उनकी तरक्की हुई. हांलाकि 2016-17 में वापस न हुए लोन की रकम 5,067 करोड़, 2017-18 में 7,277 करोड़, और 2018-19 में 16,481 करोड़ रही, जिसके इस साल और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है. चुकता न हुए लोन की समस्या सबसे ज्यादा पब्लिक क्षेत्र के बैंकों में है और इस लिस्ट में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सबसे आगे है. इसके बाद पंजाब नैशनल बैंक, कैनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक हैं. बकाया लोन का अनुपात, 2017-18 में 2.58% था जो 2018-19 में बढ़कर 2.68% पहुंच गया.

मुद्रा लोन की सूची

बड़े नोटों के बंद होने का बाद, छोटे व्यापारियों को एक और झटका जीएसटी से लगा. इसके चलते करोड़ों व्यापारियों के काम-धंघे बंद हुए और बकाया लोन की संख्या भी बढ़ती गई. कई छोटे व्यापारी, जिन्होने शिक्षु योजना के तहत 50,000 तक का लोन लिया था, वो कौशल की कमी के कारण बदलते बाजार में अपने को खड़ा नही रख सके.

प्रतिस्पर्द्धा का मुकाबला न कर पाने के कारण बड़ी संख्या में कपड़ों, बेकरी और टिफिन सेंटर से जुड़े व्यापारियों ने धंधे बंद कर दिए. निर्माण उद्योग में हांलाकि लोन चुकाने में व्यापारी नियमित रहे, लेकिन चीन, वियतनाम आदि से कम दामों का मुकाबला करने में वह भी नाकाम रहे. सूक्ष्म और छोटे व्यापारी अपनी उम्मीदों के मुताबिक व्यापार करने में नाकामयाब रहे. लक्ष्य पाने के लिए कुछ बैंक नियमों को ताक पर रखकर भी लोन देते आ रहे हैं, जिसके चलते भी लोन वापसी में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

क्या कदम उठाए जाएं

रिजर्व बैंक और अन्य बैंको को बकाया लोन की वापसी और आगे दिए जाने वाले लोन के तरीको पर तुरंत पुनर्रविचार करने की जरूरत है. एस के सिंहा कमेटी की सिफारिशों को मानते हुए, सूक्ष्म, छोटे और मध्यम क्षेत्र के व्यापारियों को शशि, किशोर, और तरुण योजनाओं के तहत दिए जाने वाले लोन की रकम को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख करनी चाहिए.

आरबीआई बढ़ते बकाया लोन के कारण व्यापारियों को लोन देना बंद नहीं कर सकती है. इसके लिए युद्धस्तर पर नए दिशा निर्देश और बकाया लोन वापस लेने में बैंको को छूट देने की जरूरत है. बैंकों के विलय की बड़ी योजनाओं में बकाया लोन बड़ी समस्या खड़ी कर रहे हैं. बैंकों को दिए गए लोन की वापसी पर ध्यान देना होगा, वरना एमएसएमई क्षेत्र में दिए गए लोन भी एनपीए होते जाएंगे.

मंदी के चलते बैंकों को बकाया लोन वापसी के लिए सही रणनीति बनाने की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह लोन भी जल्द एनपीए हो जाएंगे. आरबीआई द्वारा जनवरी में एमएसएमई क्षेत्र के व्यापारियों की मदद के लिए बनाई गई 'सिंगल टाइम लोन री-इस्टेबलिंशमेंट स्कीम' को, बैंकों को जल्द से जल्द अपनाने की जरूरत है. सरकार, आरबीआई और अन्य आर्थिक संस्थानों को एमएसएमई क्षेत्र को खड़ा करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है.

पढ़ें-शिक्षा को रोजगार के साथ जोड़ने की है जरूरत

बैंको को बड़े लक्ष्य देने की जगह, सरकार को उन्हें मुद्रा योजना के तहत लोन देने के लिए खुली छूट देनी चाहिए. देश की संपूर्ण आर्थिक तरक्की के लिए यह जरूरी है कि न केवल बकाया लोन वापसी की रफ्तार बढ़े, साथ ही 12 करोड़ लोगों को रोजगार देन वाले एमएसएमई क्षेत्र के 5.77 करोड़ उद्योगों को भी सहारा मिले.

पब्लिक क्षेत्र के बैंको की लापरवाही

पब्लिक क्षेत्र के बैंकों की मुद्रा लोन वापसी में बरती लापरवाही भी परेशानी का कारण है. निजी क्षेत्र के बैंकों और आर्थिक संस्थानों में लोन वापसी की रफ्तार तेज है और बकाया लोन की संख्या भी कम है. मुख्य क्षेत्रों और एमएसएमई क्षेत्र में विकास दर में गिरावट के कारण, मुद्रा लोन में भी गिरावट आई है. लोन से बचने और न चुकाने की प्रवृत्ति में भी पिछले सालों में बढ़ोतरी देखने को मिली है, जो देश की आर्थिक सेहत के लिए चिंताजनक है.

इसके चलते बैंकों को लोन देने के तरीकों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. क्योंकि रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर, एम के जैन भी यह बात कह चुके हैं कि 'मुद्रा' (Micro Units Development and Refinance Agency Bank) स्कीम के तहत दिए गए लोन की वापसी ना होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं.

जैन ने यह बात साफ कर दी है कि बैंक वालों को यह जांचने की आवश्यकता है कि वे लोन लौटाने की क्षमता का गहनता से जांच करे. इससे पहले भी आरबीआई के पिछले गवर्नर, लोन चुकता न होने के मामलों की बढ़ती संख्या की तरफ ध्यान दिलाते रहे हैं.

पूर्व आरबीआई गवर्नर, रघुराम राजन ने यह चेतावनी दी थी कि, माइक्रो, छोटे और मध्यम व्यापारियों को लोन देने से बैंकिंग क्षेत्र में परेशानियां खड़ी हो सकती हैं. इसके चलते सरकार और बैंकिंग क्षेत्र में बहस भी छिड़ गई थी. मुद्रा योजना, जो एमएसएमई क्षेत्र में बिना किसी बीमा के 10 लाख तक का लोन देती है, इसके तहत पिछले साढ़े चार सालों में, 10 लाख करोड़ का लोन 21 करोड़ लाभार्थियों को दिया जा चुका है.

इस कारण से, करोड़ों की तादाद में सूक्ष्म और छोटे व्यापारियों को बेहतर मौके मिले और उनकी तरक्की हुई. हांलाकि 2016-17 में वापस न हुए लोन की रकम 5,067 करोड़, 2017-18 में 7,277 करोड़, और 2018-19 में 16,481 करोड़ रही, जिसके इस साल और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है. चुकता न हुए लोन की समस्या सबसे ज्यादा पब्लिक क्षेत्र के बैंकों में है और इस लिस्ट में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सबसे आगे है. इसके बाद पंजाब नैशनल बैंक, कैनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक हैं. बकाया लोन का अनुपात, 2017-18 में 2.58% था जो 2018-19 में बढ़कर 2.68% पहुंच गया.

मुद्रा लोन की सूची

बड़े नोटों के बंद होने का बाद, छोटे व्यापारियों को एक और झटका जीएसटी से लगा. इसके चलते करोड़ों व्यापारियों के काम-धंघे बंद हुए और बकाया लोन की संख्या भी बढ़ती गई. कई छोटे व्यापारी, जिन्होने शिक्षु योजना के तहत 50,000 तक का लोन लिया था, वो कौशल की कमी के कारण बदलते बाजार में अपने को खड़ा नही रख सके.

प्रतिस्पर्द्धा का मुकाबला न कर पाने के कारण बड़ी संख्या में कपड़ों, बेकरी और टिफिन सेंटर से जुड़े व्यापारियों ने धंधे बंद कर दिए. निर्माण उद्योग में हांलाकि लोन चुकाने में व्यापारी नियमित रहे, लेकिन चीन, वियतनाम आदि से कम दामों का मुकाबला करने में वह भी नाकाम रहे. सूक्ष्म और छोटे व्यापारी अपनी उम्मीदों के मुताबिक व्यापार करने में नाकामयाब रहे. लक्ष्य पाने के लिए कुछ बैंक नियमों को ताक पर रखकर भी लोन देते आ रहे हैं, जिसके चलते भी लोन वापसी में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

क्या कदम उठाए जाएं

रिजर्व बैंक और अन्य बैंको को बकाया लोन की वापसी और आगे दिए जाने वाले लोन के तरीको पर तुरंत पुनर्रविचार करने की जरूरत है. एस के सिंहा कमेटी की सिफारिशों को मानते हुए, सूक्ष्म, छोटे और मध्यम क्षेत्र के व्यापारियों को शशि, किशोर, और तरुण योजनाओं के तहत दिए जाने वाले लोन की रकम को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख करनी चाहिए.

आरबीआई बढ़ते बकाया लोन के कारण व्यापारियों को लोन देना बंद नहीं कर सकती है. इसके लिए युद्धस्तर पर नए दिशा निर्देश और बकाया लोन वापस लेने में बैंको को छूट देने की जरूरत है. बैंकों के विलय की बड़ी योजनाओं में बकाया लोन बड़ी समस्या खड़ी कर रहे हैं. बैंकों को दिए गए लोन की वापसी पर ध्यान देना होगा, वरना एमएसएमई क्षेत्र में दिए गए लोन भी एनपीए होते जाएंगे.

मंदी के चलते बैंकों को बकाया लोन वापसी के लिए सही रणनीति बनाने की जरूरत है. अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह लोन भी जल्द एनपीए हो जाएंगे. आरबीआई द्वारा जनवरी में एमएसएमई क्षेत्र के व्यापारियों की मदद के लिए बनाई गई 'सिंगल टाइम लोन री-इस्टेबलिंशमेंट स्कीम' को, बैंकों को जल्द से जल्द अपनाने की जरूरत है. सरकार, आरबीआई और अन्य आर्थिक संस्थानों को एमएसएमई क्षेत्र को खड़ा करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है.

पढ़ें-शिक्षा को रोजगार के साथ जोड़ने की है जरूरत

बैंको को बड़े लक्ष्य देने की जगह, सरकार को उन्हें मुद्रा योजना के तहत लोन देने के लिए खुली छूट देनी चाहिए. देश की संपूर्ण आर्थिक तरक्की के लिए यह जरूरी है कि न केवल बकाया लोन वापसी की रफ्तार बढ़े, साथ ही 12 करोड़ लोगों को रोजगार देन वाले एमएसएमई क्षेत्र के 5.77 करोड़ उद्योगों को भी सहारा मिले.

पब्लिक क्षेत्र के बैंको की लापरवाही

पब्लिक क्षेत्र के बैंकों की मुद्रा लोन वापसी में बरती लापरवाही भी परेशानी का कारण है. निजी क्षेत्र के बैंकों और आर्थिक संस्थानों में लोन वापसी की रफ्तार तेज है और बकाया लोन की संख्या भी कम है. मुख्य क्षेत्रों और एमएसएमई क्षेत्र में विकास दर में गिरावट के कारण, मुद्रा लोन में भी गिरावट आई है. लोन से बचने और न चुकाने की प्रवृत्ति में भी पिछले सालों में बढ़ोतरी देखने को मिली है, जो देश की आर्थिक सेहत के लिए चिंताजनक है.

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घीमी रफ्तार से वापस होता लोन, मुद्रा योजना पर लोन का हो रहा है असर







हांलाकि 2015 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है, लेकिन नॉन पर्फॉर्मिग एस्सेट (एनपीए) की बढ़ती तादाद ने बकाया लोन वापसी न होने को बैंकिंग सेक्टर के लिये परेशानी का कारण बना दिया है।



इसके चलते बैंकों को लोन देने के तरीकों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। क्योंकि रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर, एम के जैन भी ये बात कह चुके हैं कि “मुद्रा” (माइक्रोसॉफ्ट फाइनेंस डेवेलेपमेंट एंड ऱी फाइनेंस एजेंसी सिमिटेड) स्कीम के तहत दिये गये लोन की वापसी न होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। जैन की ये बात साफ करती है कि बैंकरों को लोन लेने वाले व्यापाियों की लोन लौटाने की क्षमता की बारीकी से जांच करने की जरूरत है। इससे पहले भी आरबीआई के पिछले गवर्नर, भी लोन चुकता न होने के मामलों की बढ़ती संख्या की तरफ ध्यान दिलाते रहे हैं।



पूर्व आरबीआी गवर्नर, रघुराम राजन ने ये चेतावनी दी थी कि, माइक्रो, छोटे और मध्यम व्यापारियों को लोन देने से बैंकिंग क्षेत्र में परेशानियां खड़ी हो सकती है। इसके चलते सरकार और बैंकिंग क्षेत्र में बहस भी छिड़ गई थी। मुद्रा योजना, जो एमएसएमई क्षेत्र में बिना किसी बीमा के 10 लाख तक का लोन देती है, इसके तहत पिछले साढ़े चार सालों में, 10 लाख करोड़ का लोन 21 करोड़ लाभार्थियों को दिया जा चुका है। 



इस कारण से, करोड़ों की तादाद में सूक्ष्म और छोटे व्यापारियों को बेहतर मौके मिले और उनकी तरक्की हुई। हांलाकि 2016-17 में वापस न हुए लोन की रकम 5,067 करोड़, 2017-18 में 7,277 करोड़, और 2018-19 में 16,481 करोड़ रही, जिसके इस साल और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है। चुकता न हुए लोन की समस्या सबसे ज्यादा पब्लिक क्षेत्र के बैंकों मे है, और इस लिस्ट में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सबसे आगे है। इसके बाद पंजाब नैशनल बैंक, कैनरा बैंक, औऱ सिंडिकेट बैंक हैं। बकाया लोन का अनुपात, 2017-18 में 2.58% था जो 2018-19 में बढ़कर 2.68% पहुंच गया।

 



मुद्रा लोन की सूची





बड़े नोटों के बंद होने का बाद, छोटे व्यापारियों को एक और झटका जीएसटी से लगा। इसके चलते करोड़ों व्यापारियों के काम घंघे बंद हुए और बकाया लोन की संख्या भी बढ़ती गई। कई छोटे व्यापारी, जिन्होने शिक्षु योजना के तहत 50,000 तक का लोन लिया था, वो कौशल की कमी के कारण बदलते बाजार में अपने को खड़ा नही रख सके।



प्रतिस्पर्द्धा का मुकाबला न कर पाने के कारण बड़ी संख्या में कपड़ों, बेकरी और टिफिन सेंटर से जुड़े व्यापारियों ने धंधे बंद कर दिये। निर्माण उद्योग में हांलाकि लोन चुकाने में व्यापारी नियमित रहे, लेकिन चीन, वियतनाम आदि से कम दामों का मुकाबला करने में वो भी नाकाम रहे। सूक्ष्म और छोटे व्यापारी अपनी उम्मीदों के मुताबिक व्यापार करने में नाकामयाब रहे। लक्ष्य पाने के लिय कुछ बैंक नियमों को ताक पर रखकर भी लोन देते आ रहे हैं, जिसके चलते भी लोन वापसी में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

 



क्या कदम उठाये जायें





रिजर्व बैंक और अन्य बैंको को बकाया लोन की वापसी और आगे दिये जाने वाले लोन के तरीको पर तुरंत पुनर्रविचार करने की जरूरत है। एस के सिंहा कमेटी की सिफारिशों को मानते हुए, सूक्ष्म, छोटे, और मध्यम क्षेत्र के व्यापारियों को शशि, किशोर, और तरुण योजनाओं के तहत दिये जाने वाले लोन की रकम को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख करनी चाहिये।



  

आरबीआई बढ़ते बकाया लोन के कारण व्यापारियों को लोन देना बंद नही कर सकती है। इसके लिये युद्धस्तर पर नये दिशा निर्देश, और बकाया लोन वापस लेने में बैंको को छूट देने की जरूरत है। बैंकों के विलय की बड़ी योजनाओं में बकाया लोन बड़ी समस्या खड़ी कर रहे हैं। बैंकों को दिये गये लोन की वापसी पर ध्यान देना होगा, वरना एमएसएमई क्षेत्र में दिये गये लोन भी एनपीए होते जायेंगे। मंदी के चलते बैंको के लिये बकाया लोन वापसी के लिये सही रणनीति बनाने की जरूरत है। अगर ऐसा नही हुआ तो ये लोन भी जल्द एनपीए हो जायेंगे। आरबीआई द्वारा जनवरी में एमएसएमई क्षेत्र के व्यापारियों की मदद के लिये बनाई गई "सिंगल टाइम लोन री-इस्टेबलिंशमेंट स्कीम" को, बैंको को जल्द से जल्द अपनाने की जरूरत है। सरकार, आरबीआई और अन्य आर्थिक संस्थानों को एमएसएमई क्षेत्र को खड़ा करने के लिये कदम उठाने की जरूरत है।



बैंको को बड़े लक्ष्य देने की जगह, सरकार को उन्हे मुद्रा योजना के तहत लोन देने के लिये खुली छूट देनी चाहिये। देश की संपूर्ण आर्थिक तरक्की के लिये ये जरूरी है कि न केवल बकाया लोन वापसी की ऱफ्तार बड़े, साथ ही 12 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले  एमएसएमई क्षेत्र के 5.77 करोड़ उद्योगों को भी सहारा मिले।





पब्लिक क्षेत्र के बैंको की लापरवाही





पब्लिक क्षेत्र के बैंकों की मुद्रा लोन वापसी में बरती लापरवाही भी परेशानी का कारण है। निजि क्षेत्र के बैंको और आर्थिक संस्थानों में लोन वापसी की रफ्तार तेज है, और बकाया लोन की संख्या भी कम है। मु्ख्य क्षेत्रों और एमएसएमई क्षेत्र में विकास दर में गिरावट के कारण, मुद्रा लोन में भी गिरावट आई है। लोन से बचने और न चुकाने की प्रवृत्ति में भी पिछले सालों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है, जो देश की आर्थिक सेहत के लिये चिंताजनक है।






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