दिमाग शरीर के इशारों को समझता है और शरीर दिमाग की तरंगों को. और यह दोनों ही, हमारे खाने के संकेतों से चलते हैं. ये बात चौंकाने वाली हो सकती है, लेकिन सच है. हम क्या हैं और क्या बनेंगे, यह हमारे खाने पर निर्भर करता है. हम अपने दिमाग के काम करने के तरीके को, अपने खाने की आदतों को बदल कर, बदल सकते हैं. यह उन लोगों के लिये और जरूरी हो जाता है, जिनके मूड में बदलाव होता रहता है.
हमें अपने जीवन में कई तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ता है. परीक्षा के समय तनाव, परीक्षा पास करने पर खुशी, हाथ में मौजूद काम को खत्म करने का तनाव, काम सफलता पूर्वक खत्म करने की खुशी, बच्चों को लेकर परेशानियां आदि. कामयाब न होने पर दुख और परेशानी की अनुभूति और सफलता मिलने पर खुशी का अहसास होना स्वाभाविक है. जहां कुछ लोग इन स्थितियों को संभालने में अभयस्थ होते हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे माहौल में अपने को संभाल नहीं पाते और तनाव में आ जाते हैं.
लगातार होने वाले मूड स्विंग से लोगों को सावधान रहने की जरूरत है. क्योंकि इससे आपका दिन और समय खराब होता है. इस सबके चलते हम ज्यादा खर्च करने लगते हैं, दोस्तों की सलाह को दरकिनार करते हैं, शराब और सिगरेट का सहारा लेते हें, अकेले रहते हैं, काम पर ध्यान नहीं देते. इससे बचने के लिये हम अगर अपने खाने पर ध्यान दें, तो हालात बेहतर हो सकते हैं, क्योंकि खाने में कई ऐसे तत्व होते हैं जो मनोदशा को काबू करते हैं.
खाना ही दवाई है
मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों की खाने की आदतें भी बदल जाती हैं. कुछ लोग खाना बंद कर देते हैं, कुछ में भूख की कमी हो जाती है, तो कुछ लोगों में फास्ट फूड खाने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है. इसलिये इन हालातों से बचने के लिये यह जरूरी है कि हम सेहतमंद खाना खायें.
अनदेखा न करें
अगर हम अपने मूड में होने वाले बदलावों को अनदेखा करते रहेंगे, तो यह आने वाले समय में गंभीर मनसिक बीमारी का रूप ले सकती है. मूड स्विंग आगे चलकर, बाईपोलर डिसऑर्डर, डिप्रेशन जैसी बीमारियों का कारण बन सकती है. यह बीमारियां, कम उम्र की लड़कियों, युवाओं, गर्भवती महिलाओँ में ज्यादा होती हैं. इसके साथ ही सिगरेट, ड्रग्स आदि का सेवन करने वालों में इन बीमारियों का खतरा और बढ़ जाता है.
एक्रॉट्स
यह शरीर को ताकत देकर, डिप्रेशन और नाउम्मीदगी से लड़ने में मदद करते हैं. एल्फानौलिक एसिड से भरपूर, एक्रॉट्स मानसिक सेहत को बेहतर करने का काम करते हैं. यह संयम रखने और दिमाग और जुबान पर काबू रखने में मददगार साबित होते हैं.
अंडे
अंडे में मौजूद सेराटोनिन केमिकल से, सतर्कता बढ़ाने में और मूड काबू में रखने में मदद मिलती है. अंडों के सेवन से दिमाग में ट्रेप्टोफोस अमीनो ऐसिड का ज्यादा उत्पाद होता है. अंडों में प्रोटीन, विटामिन डी और कोलिन की अच्छी मात्रा होती है, जो नर्व सिस्सटम को मजबूत करने में मदद करती है.
मछली
हमारा शरीर अपने आप से ओमेगा-3 ऐसिड नहीं बना सकता है. मछली, बादाम और पिस्ता ऐसे ऐसिड के बड़े स्रोत हैं. एक शोध में यह बात सामना आई थी कि, जिन इलाकों में मछली का सेवन ज्यादा होता है, वहां डिप्रेशन के मामले काफी कम होते हैं. मछली खाने से दिमाग को ताकत मिलती हैं, क्योंकि इसमें आयरन, मैगनेशियम, आयोडीन, फासफोरस, राइबोफ्लाविन, पोटाशियम, मैंग्नीज, जिंक औक कैल्शियम की अच्छी मात्रा होती है.
जीवनशैली में बदलाव
दिमागी असंतुलन के लिये दवाएं और इलाज लेने से पहले जरूरी है कि हम अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं. अपनी दिनचर्या को तय करें. काम और उसका समय, किस समय खाना खाना है, और सोने का समय. आकलन करें कि, कमी कहां रह गई है और फिर उसे ठीक करें.
स्वस्थ और तंदरुस्त रहने के लिये रोजाना व्यायाम करना बेहद जरूरी है. व्यायाम करने से शरीर में ऐसे कैमिकलों का निर्माण होता है, जो मन और दिमाग को शांत रखने में कारगर होते हैं. इसके अलावा, मन शांत करने के लिये अपनी पसंद के काम करने की भी आवश्यकता है. योग और साधना से भी मन और शरीर को तंदरुस्त रखने में काफी मदद मिलती है.