ETV Bharat / bharat

विशेष लेख : सरकारी नौकरियों की बिक्री

अजीब बात है, कि शिक्षा के स्तर के बढ़ने से बेरोजगारी की समस्या और बढ़ गई है. आईआईटी स्नातक भी रेलवे में खलासी की नौकरी के लिए अर्जी देते पाए गए हैं. तमिलनाडु लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित एक परीक्षा के बारे में जानकारी लेंगे, तो आप हैरान हो जाएंगे. ग्रुप डी की परीक्षा के लिए आईआईटी के इंजीनियरों ने आवेदन किया. 9400 सीटों के लिए करीब 17 लाख बेरोजगारों ने आवेदन किया है. इसके बावजूद परीक्षा पारदर्शी तरीके से नहीं आयोजित की गई. सेटिंग का ऐसा खेल चला, जिसने पूरे राज्य सरकार को सवालों के घेरे में डाल दिया है.

author img

By

Published : Jan 31, 2020, 10:45 PM IST

Updated : Feb 28, 2020, 5:27 PM IST

editorial on corruption
प्रतीकात्मक फोटो

आज की आधुनिक दुनिया में हर दिन कुछ बदल रहा है और बदलाव ही सच है, कहीं कोई पीछे न रह जाए, इसके लिए किसी को किसी की जरुरत नहीं, जो लोग गला फाड़कर सरकारी दफ्तरों पर भ्रष्ट कार्यशाला बनने का आरोप लगाते हैं. वे खुद धीरे-धीरे इस कारखाने का हिस्सा बन रहे हैं.

सरकारी महकमों में भ्रष्टचार यूं ही धड़ल्ले से चलता रहेगा, जब तक ऐसे लोगों को भर्ती मिलती रहेगी, जिनका मकसद सिर्फ पैसे के लिए काम करना है. कई बार लोगों को तमिलनाडु लोक सेवा आयोग की अनियमितताओं का सामना करना पड़ता है. भारत जैसे देश में जहां बेरोजगारी का राक्षस लगातार अपना जाल फैला रहा है, लंबे समय से शिक्षा और नौकरियों में कोई मेल ही नहीं रह गया है.

अजीब बात है, कि शिक्षा के स्तर के बढ़ने से बेरोजगारी की समस्या और बढ़ गई है. चौंकाने वाली बात है कि आईआईटी स्नातक भी रेलवे में खलासी की नौकरी के लिए अर्जी देते पाए गए हैं. तमिलनाडु लोक सेवा आयोग ने जानकारी देते हुए सरकारी नौकरियों की सही परख की. पिछले साल पहली सिंतबर में तमिलनाडु लोक सेवा आयोग ने ग्रुप डी की परीक्षा आयोजित की, जिसके आंकड़ों ने हिला के रख दिया.

9400 सीटों के लिए 16.29 लाख लोगों ने आवेदन दिए. जिसका मतलब है महज एक सीट के लिए 174 लोग. इसका भरपूर फायदा बड़े ओहदों पर बैठे मुलाजिम उठा सकें, जरुरतमंद उम्मीदवारों ने ज्यादा पैसे देकर अपने पद सुरक्षित किए.

उम्मीदवार की सारी जानकारी दो तहसीलदारों में लोक निदेशक द्वारा पहुंचा दी गई. 10 लाख से 12 लाख के बीच परीक्षा पास कराने का सौदा हुआ. प्रत्याशियों को रामेश्वरम और कीलाकराई में से परीक्षा के लिए एक सेंटर चुनने के निर्देश मिले. फिर प्रत्याशियों को दो अलग पेन दिए गए. एक पेन से उन्हें रजिस्ट्रेशन नंबर और अपनी निजी जानकारी लिखनी थी, तो दूसरे से खानों में उत्तर भरने थे. खानों को भरने के बाद एक घंटे में दूसरा पेन गायब हो जाता है, और फिर मध्यस्थ आता है और सारे सही जवाब उन खानों में भर देता है. इसपर हैरान होकर एसीबी कहते हैं कि वे पहली बार इस तरह की गलती सुलझा रहे हैं. यह बात तय है कि पूरा जमावड़ा कई बार ऐसी हरकतें कर चुका है.

ऐसे में सवाल उठता है कि दूसरा पेन जो स्याही के निशान मिटा देता है, उसकी जरुरत क्या है. निरीक्षकों को निर्देश दिए जाते हैं, कि पेपर में कितने प्रश्न का जवाब दिया है, उसके हिसाब से लिया जाए. यही कारण है कि दूसरे पेन से प्रत्याशी उत्तर भर कर दे देता है जिससे निरीक्षक उसे ले सकें और फिर बाद में गलत उत्तरों को मिटाकर उन्हें सही कर देता है. यहां तहसीलदार का कपटी हुनर देखिए कि वो परीक्षा की शुरुआत में ही प्रश्न पत्र लीक कर देता है और फिर बाहरी लोगों की मदद से समय रहते वापस भी मंगवा लेता है. भ्रष्टाचार की हद है कि 99 लोगों से पैसा वसूलने के बाद, भ्रष्ट मुलाजिम 39 प्रत्याशियों से पेपर लेकर सही उत्तर लिखकर, उनका नाम टॉप 100 प्रत्याशियों की सूची मे डलवा देते हैं. बहरहाल उन्होंने बाकी लोगों की रकम लौटाने की कोशिश की, लेकिन यहीं चुक हो गई और उनके जुर्म का पर्दाफाश हो गया.

सच्चाई जानने के लिए राज्य सरकार ने अब पारदर्शी तंत्र का सहारा लिया है. जब लिस्ट जारी हुई तो छात्रों ने देखा कि ज्यादातर प्रत्याशी तो रामेश्वरम और कीलाकराई के सेंटरों से ही निकल रहे हैं. जब इस संदेह की जांच सीआईडी के हाथ लगी, तो मोटी और आसानी से कमाने वाले लोगों को धर दबोचा गया. क्या इस जुर्म को अंजाम देने की जुर्रत दो तहसीलदार, डीसीआई का कर्मचारी और कुछ बाहर के लोग कर सकते हैं. क्या यह सच नहीं है कि बड़े ओहदों पर बैठे लोगों के नाम भी जब सामने आएंगे, तब पूरी जांच सही दिशा में होगी?

कमीशन में सबकी जी हजूरी करते हुए लोक सेवाओं में लायक कर्मचारियों की कमी हो गई है. इस तरह के घोटलों के बढ़ने का मतलब है, सरकारी नौकरियां तलाश रहे लाखों प्रत्याशियों की जिंदगियों से खेलना. हैरानी की बात है जब एपीपीएससी के प्रश्न पत्र लीक होने जैसे मामलों की जड़ पर सवाल उठाए गए, तो कई लोगों ने भौहें तान दी. सफीर करीम नाम का आईपीएस अधिकारी साइबर क्राइम की प्रशिक्षण के समय, आईएएस बनने के लिए यूपीएससी की परीक्षा में बैठा.

अच्छे रैंक पाने के लिए वह नकल करते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया. सीबीआई की जानकारी के बाद 2017 में चैन्नई पुलिस ने सफीर करीम को पकड़ा. तब तक वह अपनी बहन को इसरो में नौकरी दिलवा चुका था. दिलचस्प बात है कि करीम के आज तीन से चार कोचिंग सेंटर चल रहे हैं जहां यूपीएससी की परीक्षा पास करने की तैयारी कराई जाती है. तो खुद यूपीएससी इस तरह पास करने वाला आज इसका फायदा अकेले नहीं ले रहा है. बुरे वक्त की मार और जुर्म में पकड़े जाने के बाद करीम कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की मदद ले सकता था.

एक तरफ करोड़ों गरीब छात्रों की पढ़ाई का स्तर इतना नीचे है और दूसरी ओर सरकारी नौकरियों के खुले बाजार में बिकाऊ पद हैं. 2013 में एपीपीएससी के अधिकारियों ने राज्य में सनसनी मचा दी जब पॉलिटेकनिक टीचरों के पदों में धांधलेबाजी की बात निकल कर आई. वहीं 2016 में असम लोक सेवा आयोग के 19 अधिकारी जांच के घेरे में हैं क्योंकि उत्तर पत्रिका में उनके हस्ताक्षर मेल नहीं खा रहे हैं. अहम बात है कि इसमें एक एमपी और उसकी बेटी के साथ कई और लोग शामिल हैं.

पढ़ें-विशेष लेख : राष्ट्रीय युवा दिवस–भारतीय अर्थव्यवस्था में युवा शक्ति

हाल ही में केरल पुलिस सिपाही की भर्ती और गुजरात में क्लर्क की भर्ती के दौरान कई जालसाजियां सुनने में आईं. अगर बड़े अधिकारी ऐसे ही बड़े ओहदों पर अप्रभावी लोगों को भरते रहे, तो इसका सीधा खामियाजा हमारे देश को भुगतना पड़ेगा. एक तो बड़ा नुकसान होगा कि लायक इंसान बड़े ओहदे से वंचित रह जाएगें. जो लोग भ्रष्टाचार के दम पर पद हासिल कर रहे हैं वे भी लोगों के हितों के अनदेखी कर उन्हें लूटेंगे. एक भ्रष्ट अधिकारी को अगर वाकई में सजा देनी है तो, उसकी बेहिसाब संपत्ति पर नजर रखकर उसे जब्त करना ही एक अच्छा उपाय है. क्या ख्याल है आपका ?

आज की आधुनिक दुनिया में हर दिन कुछ बदल रहा है और बदलाव ही सच है, कहीं कोई पीछे न रह जाए, इसके लिए किसी को किसी की जरुरत नहीं, जो लोग गला फाड़कर सरकारी दफ्तरों पर भ्रष्ट कार्यशाला बनने का आरोप लगाते हैं. वे खुद धीरे-धीरे इस कारखाने का हिस्सा बन रहे हैं.

सरकारी महकमों में भ्रष्टचार यूं ही धड़ल्ले से चलता रहेगा, जब तक ऐसे लोगों को भर्ती मिलती रहेगी, जिनका मकसद सिर्फ पैसे के लिए काम करना है. कई बार लोगों को तमिलनाडु लोक सेवा आयोग की अनियमितताओं का सामना करना पड़ता है. भारत जैसे देश में जहां बेरोजगारी का राक्षस लगातार अपना जाल फैला रहा है, लंबे समय से शिक्षा और नौकरियों में कोई मेल ही नहीं रह गया है.

अजीब बात है, कि शिक्षा के स्तर के बढ़ने से बेरोजगारी की समस्या और बढ़ गई है. चौंकाने वाली बात है कि आईआईटी स्नातक भी रेलवे में खलासी की नौकरी के लिए अर्जी देते पाए गए हैं. तमिलनाडु लोक सेवा आयोग ने जानकारी देते हुए सरकारी नौकरियों की सही परख की. पिछले साल पहली सिंतबर में तमिलनाडु लोक सेवा आयोग ने ग्रुप डी की परीक्षा आयोजित की, जिसके आंकड़ों ने हिला के रख दिया.

9400 सीटों के लिए 16.29 लाख लोगों ने आवेदन दिए. जिसका मतलब है महज एक सीट के लिए 174 लोग. इसका भरपूर फायदा बड़े ओहदों पर बैठे मुलाजिम उठा सकें, जरुरतमंद उम्मीदवारों ने ज्यादा पैसे देकर अपने पद सुरक्षित किए.

उम्मीदवार की सारी जानकारी दो तहसीलदारों में लोक निदेशक द्वारा पहुंचा दी गई. 10 लाख से 12 लाख के बीच परीक्षा पास कराने का सौदा हुआ. प्रत्याशियों को रामेश्वरम और कीलाकराई में से परीक्षा के लिए एक सेंटर चुनने के निर्देश मिले. फिर प्रत्याशियों को दो अलग पेन दिए गए. एक पेन से उन्हें रजिस्ट्रेशन नंबर और अपनी निजी जानकारी लिखनी थी, तो दूसरे से खानों में उत्तर भरने थे. खानों को भरने के बाद एक घंटे में दूसरा पेन गायब हो जाता है, और फिर मध्यस्थ आता है और सारे सही जवाब उन खानों में भर देता है. इसपर हैरान होकर एसीबी कहते हैं कि वे पहली बार इस तरह की गलती सुलझा रहे हैं. यह बात तय है कि पूरा जमावड़ा कई बार ऐसी हरकतें कर चुका है.

ऐसे में सवाल उठता है कि दूसरा पेन जो स्याही के निशान मिटा देता है, उसकी जरुरत क्या है. निरीक्षकों को निर्देश दिए जाते हैं, कि पेपर में कितने प्रश्न का जवाब दिया है, उसके हिसाब से लिया जाए. यही कारण है कि दूसरे पेन से प्रत्याशी उत्तर भर कर दे देता है जिससे निरीक्षक उसे ले सकें और फिर बाद में गलत उत्तरों को मिटाकर उन्हें सही कर देता है. यहां तहसीलदार का कपटी हुनर देखिए कि वो परीक्षा की शुरुआत में ही प्रश्न पत्र लीक कर देता है और फिर बाहरी लोगों की मदद से समय रहते वापस भी मंगवा लेता है. भ्रष्टाचार की हद है कि 99 लोगों से पैसा वसूलने के बाद, भ्रष्ट मुलाजिम 39 प्रत्याशियों से पेपर लेकर सही उत्तर लिखकर, उनका नाम टॉप 100 प्रत्याशियों की सूची मे डलवा देते हैं. बहरहाल उन्होंने बाकी लोगों की रकम लौटाने की कोशिश की, लेकिन यहीं चुक हो गई और उनके जुर्म का पर्दाफाश हो गया.

सच्चाई जानने के लिए राज्य सरकार ने अब पारदर्शी तंत्र का सहारा लिया है. जब लिस्ट जारी हुई तो छात्रों ने देखा कि ज्यादातर प्रत्याशी तो रामेश्वरम और कीलाकराई के सेंटरों से ही निकल रहे हैं. जब इस संदेह की जांच सीआईडी के हाथ लगी, तो मोटी और आसानी से कमाने वाले लोगों को धर दबोचा गया. क्या इस जुर्म को अंजाम देने की जुर्रत दो तहसीलदार, डीसीआई का कर्मचारी और कुछ बाहर के लोग कर सकते हैं. क्या यह सच नहीं है कि बड़े ओहदों पर बैठे लोगों के नाम भी जब सामने आएंगे, तब पूरी जांच सही दिशा में होगी?

कमीशन में सबकी जी हजूरी करते हुए लोक सेवाओं में लायक कर्मचारियों की कमी हो गई है. इस तरह के घोटलों के बढ़ने का मतलब है, सरकारी नौकरियां तलाश रहे लाखों प्रत्याशियों की जिंदगियों से खेलना. हैरानी की बात है जब एपीपीएससी के प्रश्न पत्र लीक होने जैसे मामलों की जड़ पर सवाल उठाए गए, तो कई लोगों ने भौहें तान दी. सफीर करीम नाम का आईपीएस अधिकारी साइबर क्राइम की प्रशिक्षण के समय, आईएएस बनने के लिए यूपीएससी की परीक्षा में बैठा.

अच्छे रैंक पाने के लिए वह नकल करते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया. सीबीआई की जानकारी के बाद 2017 में चैन्नई पुलिस ने सफीर करीम को पकड़ा. तब तक वह अपनी बहन को इसरो में नौकरी दिलवा चुका था. दिलचस्प बात है कि करीम के आज तीन से चार कोचिंग सेंटर चल रहे हैं जहां यूपीएससी की परीक्षा पास करने की तैयारी कराई जाती है. तो खुद यूपीएससी इस तरह पास करने वाला आज इसका फायदा अकेले नहीं ले रहा है. बुरे वक्त की मार और जुर्म में पकड़े जाने के बाद करीम कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की मदद ले सकता था.

एक तरफ करोड़ों गरीब छात्रों की पढ़ाई का स्तर इतना नीचे है और दूसरी ओर सरकारी नौकरियों के खुले बाजार में बिकाऊ पद हैं. 2013 में एपीपीएससी के अधिकारियों ने राज्य में सनसनी मचा दी जब पॉलिटेकनिक टीचरों के पदों में धांधलेबाजी की बात निकल कर आई. वहीं 2016 में असम लोक सेवा आयोग के 19 अधिकारी जांच के घेरे में हैं क्योंकि उत्तर पत्रिका में उनके हस्ताक्षर मेल नहीं खा रहे हैं. अहम बात है कि इसमें एक एमपी और उसकी बेटी के साथ कई और लोग शामिल हैं.

पढ़ें-विशेष लेख : राष्ट्रीय युवा दिवस–भारतीय अर्थव्यवस्था में युवा शक्ति

हाल ही में केरल पुलिस सिपाही की भर्ती और गुजरात में क्लर्क की भर्ती के दौरान कई जालसाजियां सुनने में आईं. अगर बड़े अधिकारी ऐसे ही बड़े ओहदों पर अप्रभावी लोगों को भरते रहे, तो इसका सीधा खामियाजा हमारे देश को भुगतना पड़ेगा. एक तो बड़ा नुकसान होगा कि लायक इंसान बड़े ओहदे से वंचित रह जाएगें. जो लोग भ्रष्टाचार के दम पर पद हासिल कर रहे हैं वे भी लोगों के हितों के अनदेखी कर उन्हें लूटेंगे. एक भ्रष्ट अधिकारी को अगर वाकई में सजा देनी है तो, उसकी बेहिसाब संपत्ति पर नजर रखकर उसे जब्त करना ही एक अच्छा उपाय है. क्या ख्याल है आपका ?

Intro:Body:

विशेष लेख : सरकारी नौकरियों की बिक्री

आज की आधुनिक दुनिया में हर दिन कुछ बदल रहा है और बदलाव ही सच है, कहीं कोई पीछे न रह जाए, इसके लिए किसी को किसी की जरुरत नहीं, जो लोग गला फाड़कर सरकारी दफ्तरों पर भ्रष्ट कार्यशाला बनने का आरोप लगाते हैं. वे खुद धीरे-धीरे इस कारखाने का हिस्सा बन रहे हैं. सरकारी महकमों में भ्रष्टचार यूं ही धड़ल्ले से चलता रहेगा, जब तक ऐसे लोगों को भर्ती मिलती रहेगी, जिनका मकसद सिर्फ पैसे के लिए काम करना है. कई बार लोगों को तमिलनाडु लोक सेवा आयोग की अनियमितताओं का सामना करना पड़ता है. भारत जैसे देश में जहां बेरोजगारी का राक्षस लगातार अपना जाल फैला रहा है, लंबे समय से शिक्षा और नौकरियों में कोई मेल ही नहीं रह गया है. अजीब बात है, कि शिक्षा के स्तर के बढ़ने से बेरोजगारी की समस्या और बढ़ गई है. चौंकाने वाली बात है कि आईआईटी स्नातक भी रेलवे में खलासी की नौकरी के लिए अर्जी देते पाए गए हैं. तमिलनाडु लोक सेवा आयोग ने जानकारी देते हुए सरकारी नौकरियों की सही परख की. पिछले साल पहली सिंतबर में तमिलनाडु लोक सेवा आयोग ने ग्रुप डी की परीक्षा आयोजित की. जिसके आंकड़ों ने हिला के रख दिया. 9400 सीटों के लिए 16.29 लाख लोगों ने आवेदन दिए. जिसका मतलब है महज एक सीट के लिए 174 लोग. जिसका भरपूर फायदा बड़े ओहदों पर बैठे मुलाजिम उठा सकें, जरुरतमंद उम्मीदवारों ने ज्यादा पैसे देकर अपने पद सुरक्षित किए.



उम्मीदवार की सारी जानकारी दो तहसीलदारों में लोक निदेशक द्वारा पहुंचा दी गई. 10 लाख से 12 लाख के बीच परीक्षा पास कराने का सौदा हुआ. प्रत्याशियों को रामेश्वरम और कीलाकराई में से परीक्षा के लिए एक सेंटर चुनने के निर्देश मिले. फिर प्रत्याशियों को दो अलग पेन दिए गए. एक पेन से उन्हें रजिस्ट्रेशन नंबर और अपनी निजी जानकारी लिखनी थी, तो दूसरे से खानों में उत्तर भरने थे. खानों को भरने के बाद एक घंटे में दूसरा पेन गायब हो जाता है, और फिर मध्यस्थ आता है और सारे सही जवाब उन खानों में भर देता है. इसपर  हैरान होकर एसीबी कहते हैं कि वे पहली बार इस तरह की गलती सुलझा रहे हैं. यह बात तय है कि पूरा जमावड़ा कई बार ऐसी हरकतें कर चुका है.

ऐसे में सवाल उठता है कि दूसरा पेन जो स्याही के निशान मिटा देता है, उसकी जरुरत क्या है. निरीक्षकों को निर्देश दिए जाते हैं, कि पेपर में कितने प्रश्न का जवाब दिया है, उसके हिसाब से लिया जाए. यही कारण है कि दूसरे पेन से प्रत्याशी उत्तर भर कर दे देता है जिससे निरीक्षक उसे ले सकें और फिर बाद में गलत उत्तरों को मिटाकर उन्हें सही कर देता है. यहां तहसीलदार का कपटी हुनर देखिए कि वो परीक्षा की शुरुआत में ही प्रश्न पत्र लीक कर देता है और फिर बाहरी लोगों की मदद से समय रहते वापस भी मंगवा लेता है. भ्रष्टाचार की हद है कि 99 लोगों से पैसा वसूलने के बाद, भ्रष्ट मुलाजिम 39 प्रत्याशियों से पेपर लेकर सही उत्तर लिखकर, उनका नाम टॉप 100 प्रत्याशियों की सूची मे डलवा देते हैं. बहरहाल उन्होंने बाकी लोगों की रकम लौटाने की कोशिश की, लेकिन यहीं चुक हो गई और उनके जुर्म का पर्दाफाश हो गया.



सच्चाई जानने के लिए राज्य सरकार ने अब पारदर्शी तंत्र का सहारा लिया है. जब लिस्ट जारी हुई तो छात्रों ने देखा कि ज्यादातर प्रत्याशी तो रामेश्वरम और कीलाकराई के सेंटरों से ही निकल रहे हैं. जब इस संदेह की जांच सीआईडी के हाथ लगी, तो मोटी और आसानी से कमाने वाले लोगों को धर दबोचा गया. क्या इस जुर्म को अंजाम देने की जुर्रत दो तहसीलदार, डीसीआई का कर्मचारी और कुछ बाहर के लोग कर सकते हैं. क्या यह सच नहीं है कि बड़े ओहदों पर बैठे लोगों के नाम भी जब सामने आएंगे, तब पूरी जांच सही दिशा में होगी? कमीशन में सबकी जी हज़ूरी करते हुए लोक सेवाओं में लायक कर्मचारियों की कमी हो गई है. इस तरह के घोटलों के बढ़ने का मतलब है, सरकारी नौकरियां तलाश रहे लाखों प्रत्याशियों की जिंदगियों से खेलना. हैरानी की बात है जब एपीपीएससी के प्रश्न पत्र लीक होने जैसे मामलों की जड़ पर सवाल उठाए गए, तो कई लोगों ने भौहें तान दी. सफीर करीम नाम का आईपीएस अधिकारी साइबर क्राइम की प्रशिक्षण के समय, आईएएस बनने के लिए यूपीएससी की परीक्षा में बैठा. अच्छे रैंक पाने के लिए वह नकल करते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया. सीबीआई की जानकारी के बाद 2017 में चैन्नई पुलिस ने सफीर करीम को पकड़ा. तब तक वह अपनी बहन को इसरो में नौकरी दिलवा चुका था. दिलचस्प बात है कि करीम के आज तीन से चार कोचिंग सेंटर चल रहे हैं जहां यूपीएससी की परीक्षा पास करने की तैयारी कराई जाती है. तो खुद यूपीएससी इस तरह पास करने वाला आज इसका फायदा अकेले नहीं ले रहा है. बुरे वक्त की मार और जुर्म में पकड़े जाने के बाद करीम कई आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की मदद ले सकता था.



एक तरफ करोड़ों गरीब छात्रों की पढ़ाई का स्तर इतना नीचे है और दूसरी ओर सरकारी नौकरियों के खुले बाजार में बिकाऊ पद हैं. 2013 में एपीपीएससी के अधिकारियों ने राज्य में सनसनी मचा दी जब पॉलिटेकनिक टीचरों के पदों में धांधलेबाज़ी की बात निकल कर आई. वहीं 2016 में असम लोक सेवा आयोग के 19 अधिकारी जांच के घेरे में हैं क्योंकि उत्तर पत्रिका में उनके हस्ताक्षर मेल नहीं खा रहे हैं. अहम बात है कि इसमें एक एमपी और उसकी बेटी के साथ कई और लोग शामिल हैं. हाल ही में केरल पुलिस सिपाही की भर्ती और गुजरात में क्लर्क की भर्ती के दौरान कई जालसाज़ियां सुनने में आई. अगर बड़े अधिकारी ऐसे ही बड़े ओहदों पर अप्रभावी लोगों को भरते रहे, तो इसका सीधा खामियाजा हमारे देश को भुगतना पड़ेगा. एक तो बड़ा नुकसान होगा कि लायक इंसान बड़े ओहदे से वंचित रह जायेगें. जो लोग भ्रष्टाचार के दम पर पद हासिल कर रहे हैं वे भी लोगों के हितों के अनदेखी कर उन्हें लूटेंगे. एक भ्रष्ट अधिकारी को अगर वाकई में सज़ा देनी है तो, उसकी बेहिसाब संपत्ति पर नज़र रखकर उसे जब्त करना ही एक अच्छा उपाय है. क्या ख्याल है आपका ?

 


Conclusion:
Last Updated : Feb 28, 2020, 5:27 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.