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विशेष लेख : रेन वॉटर हार्वेस्टिंग और अटल भू-जल योजना के सामने चुनौतियों का पहाड़

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Published : Jan 3, 2020, 1:51 PM IST

आठ फीसदी आंकड़ों के साथ रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के क्षेत्र में भारत सबसे निचले पायदान पर है. हमलोग भूजल का अंधाधुन इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन इसके लिए किसी भी मापदंड का उपयोग नहीं किया जा रहा है. जाहिर है, ऐसे में भू जल रिजर्व तेजी से कम होते जा रहे हैं. कुछ हफ्ते पहले ही केंद्र सरकार भूजल संरक्षण के लिये 'जल शक्ति अभियान' योजना लेकर आई है

atal bhujal yojna
डिजाइन फोटो

राज्य सरकार से विचार करने के बाद इस योजना को 1592 ब्लॉक और 256 जिलों में शुरू किया गया है. सरकार ने सभी जरूरतमंद इलाकों में जलसंरक्षण और जल आपूर्ति का भी वादा किया है. मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस के मौके पर अटल भूजल योजना की शुरुआत की.

महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के 78 जिलों के 8300 गांवों को 6,000 करोड़ रुपये की इस योजना के तहत फायदा मिलेगा.

इस योजना के तहत अगले पांच वर्षों में इन गांवों में भूजल की स्थिति को बेहतर बनाया जाएगा. योजना की कुल राशि में से आधी विश्व बैंक के लोन की वापसी के रूप में लगेगी और बाकी केंद्रीय सहायता के रूप में राज्यों को दी जाएगी.

केंद्र सरकार का कहना है कि योजना के लिए गांवों का चयन, राज्यों के रुझान और तैयारियों को ध्यान में रखकर किया गया है. हालांकि, इस बारे में पंजाब की तरफ से उठाई गई आपत्ति इशारा कर रही है कि केंद्र सरकार के आंकड़े सही नहीं हैं.

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने यह सवाल उठाया है कि पंजाब के मुख्तसार और पठानकोट जिलों के अलावा सभी 20 जिलों में भू जल के स्तर में कमी आई है. लेकिन इसके बावजूद पंजाब को अटल भूजल योजना में जगह नहीं मिली है.

यह भी सही है कि अगर इस योजना में और ज्यादा जिलों को जोड़ा गया तो, बिना इसका फंड बढ़ाए इसे लागू करना मुश्किल हो जाएगा. मौजूदा समय में पीएम मोदी की देश के सभी गांवों में प्राकृतिक और भूजल के संरक्षण और खेती के लिए कम से कम पानी के इस्तेमाल की अपील बिलकुल प्रासंगिक है.

वॉटर मैन ऑफ इंडिया कहे जाने वाले राजेंद्र सिंह का अनुमान है कि मौजूदा समय में देश के भूजल रिजर्व में से 72% खत्म हो चुका है. नासा ने चार साल पहले यह बात कही थी कि भारत ने अमरीका के सबसे बड़े पानी के जलाशय जितना भूजल खो दिया है. लेकिन इसके बावजूद देश में अभी तक भू जल संरक्षण को लेकर कोई भी काम नहीं किया गया है.

आजादी के बाद से देश में प्रति व्यक्ति भूजल की उपलब्धता 6,042 क्यूबिक मीटर थी. आज यह इसकी एक तिहाई से भी कम रह गई है और यह लगातार कम हो रही है. इस समस्या की जड़ और उसकी पहुंच सबको साफ-साफ पता है, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इसके समाधान को लेकर हम संजीदा हैं. देश में कई दशक पहले प्रदूषण कंट्रोल के नियम बनाए गए थे, लेकिन इनसे भी कोई खास सफलता नहीं मिली है. पानी के संरक्षण के बारे में कैग की रिपोर्ट ने भी इस तरफ इशारा किया था कि, हमारे द्वारा लिए जा रहे कदम नाकाफी हैं. बावजूद जमीन पर कुछ खास बदलाव नहीं दिखे.

पढ़ें-विशेष लेख : अब समय आ गया है पर्यावरण को बचाने का

नतीजतन देश के 160 जिलों में पानी के जलाशय खारे हो गए हैं और 230 जिलों में पानी में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ गई है. यह सच है कि राज्य स्तरों पर भी पानी के संरक्षण के लिये कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इनमें मिशन काकतिया (तेलंगाना), नीरू-चेट्टू (आंध्रप्रदेश), मुख्य मंत्री जल स्वाभिमान अभियान (राजस्थान) और सुजलम सुफलम योजना (गुजरात) प्रमुख हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर एक साझा कोशिश की कमी के कारण इन सभी योजनाओं का व्यापक असर नहीं हो पाता है. इसलिए जल और भूजल संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की बराबर और कारगर साझेदारी के बाद ही देश इस दिशा में आगे बढ़ सकेगा.

देश के नागरिकों को साफ और स्वच्छ पानी मुहैया कराना कोई आसान काम नहीं है. केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार, देश में सिंचाई के लिए पानी की मांग और पूर्ति में फर्क का आंकड़ा, बढ़कर 43% तक पहुंच जाएगा. जल जीवन मिशन के आंकड़ों के मुताबिक, देश के 14 करोड़ ग्रामीण घरों तक पानी पहुंचाने के लिए, अगले पांच वर्षों में 3,60,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे. अगर केंद्र और राज्य सरकारें अपने संसाधनों को साझा भी करें तो यह लक्ष्य पाना आसान नहीं लगता है. साढ़े तीन साल पहले, मिहिर शाह समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि सेंट्रल वॉटर बॉडी और सेंट्रल ग्राउंड वॉटर सिस्टम को मौजूदा मांगों की पूर्ति के लिए पुनर्गठित करने की जरूरत है. जहां एक तरफ प्रधानमंत्री ने भूजल की कमी से परेशान इलाकों के किसानों से, पानी को बचा कर इस्तेमाल करने की अपील की थी, वहीं यह भी जरूरी है कि सरकार किसानों को यह करने के लिए तकनीकी मदद भी मुहैया कराए.

ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन ने अपने यहां भूजल संरक्षण के लिये तेजी से कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. चीन ने अपने यहां 12 मिलियन केयरगिवर्स को यह जिम्मेदारी दी है कि, वो पानी के स्रोतों को प्रदूषित होने से बचाएं. कई देशों में सड़कों और राजमार्गों का निर्माण इस तरह हो रहा है, ताकि बारिश के पानी की बर्बादी न हो और उसे इस्तेमाल में लाया जा सके. अगर पानी की हर बूंद का पूरा इस्तेमाल करने का जज्बा देशभर में फैल जाए, तो इससे फसलों के उत्पाद में भी बढ़ोतरी होगी. केंद्र सरकार ने पांच महीने पहले, दिशानिर्देश जारी कर शहरों के निगमों को कहा था कि वो अपने यहां भूजल की खपत पर काबू और उसकी भरपाई करना सुनिश्चित करे. अगर इन दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन हो, तो यह तय है कि अटल भूजल योजना सही मायने में देश के लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगी.

राज्य सरकार से विचार करने के बाद इस योजना को 1592 ब्लॉक और 256 जिलों में शुरू किया गया है. सरकार ने सभी जरूरतमंद इलाकों में जलसंरक्षण और जल आपूर्ति का भी वादा किया है. मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस के मौके पर अटल भूजल योजना की शुरुआत की.

महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के 78 जिलों के 8300 गांवों को 6,000 करोड़ रुपये की इस योजना के तहत फायदा मिलेगा.

इस योजना के तहत अगले पांच वर्षों में इन गांवों में भूजल की स्थिति को बेहतर बनाया जाएगा. योजना की कुल राशि में से आधी विश्व बैंक के लोन की वापसी के रूप में लगेगी और बाकी केंद्रीय सहायता के रूप में राज्यों को दी जाएगी.

केंद्र सरकार का कहना है कि योजना के लिए गांवों का चयन, राज्यों के रुझान और तैयारियों को ध्यान में रखकर किया गया है. हालांकि, इस बारे में पंजाब की तरफ से उठाई गई आपत्ति इशारा कर रही है कि केंद्र सरकार के आंकड़े सही नहीं हैं.

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने यह सवाल उठाया है कि पंजाब के मुख्तसार और पठानकोट जिलों के अलावा सभी 20 जिलों में भू जल के स्तर में कमी आई है. लेकिन इसके बावजूद पंजाब को अटल भूजल योजना में जगह नहीं मिली है.

यह भी सही है कि अगर इस योजना में और ज्यादा जिलों को जोड़ा गया तो, बिना इसका फंड बढ़ाए इसे लागू करना मुश्किल हो जाएगा. मौजूदा समय में पीएम मोदी की देश के सभी गांवों में प्राकृतिक और भूजल के संरक्षण और खेती के लिए कम से कम पानी के इस्तेमाल की अपील बिलकुल प्रासंगिक है.

वॉटर मैन ऑफ इंडिया कहे जाने वाले राजेंद्र सिंह का अनुमान है कि मौजूदा समय में देश के भूजल रिजर्व में से 72% खत्म हो चुका है. नासा ने चार साल पहले यह बात कही थी कि भारत ने अमरीका के सबसे बड़े पानी के जलाशय जितना भूजल खो दिया है. लेकिन इसके बावजूद देश में अभी तक भू जल संरक्षण को लेकर कोई भी काम नहीं किया गया है.

आजादी के बाद से देश में प्रति व्यक्ति भूजल की उपलब्धता 6,042 क्यूबिक मीटर थी. आज यह इसकी एक तिहाई से भी कम रह गई है और यह लगातार कम हो रही है. इस समस्या की जड़ और उसकी पहुंच सबको साफ-साफ पता है, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इसके समाधान को लेकर हम संजीदा हैं. देश में कई दशक पहले प्रदूषण कंट्रोल के नियम बनाए गए थे, लेकिन इनसे भी कोई खास सफलता नहीं मिली है. पानी के संरक्षण के बारे में कैग की रिपोर्ट ने भी इस तरफ इशारा किया था कि, हमारे द्वारा लिए जा रहे कदम नाकाफी हैं. बावजूद जमीन पर कुछ खास बदलाव नहीं दिखे.

पढ़ें-विशेष लेख : अब समय आ गया है पर्यावरण को बचाने का

नतीजतन देश के 160 जिलों में पानी के जलाशय खारे हो गए हैं और 230 जिलों में पानी में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ गई है. यह सच है कि राज्य स्तरों पर भी पानी के संरक्षण के लिये कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इनमें मिशन काकतिया (तेलंगाना), नीरू-चेट्टू (आंध्रप्रदेश), मुख्य मंत्री जल स्वाभिमान अभियान (राजस्थान) और सुजलम सुफलम योजना (गुजरात) प्रमुख हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर एक साझा कोशिश की कमी के कारण इन सभी योजनाओं का व्यापक असर नहीं हो पाता है. इसलिए जल और भूजल संरक्षण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की बराबर और कारगर साझेदारी के बाद ही देश इस दिशा में आगे बढ़ सकेगा.

देश के नागरिकों को साफ और स्वच्छ पानी मुहैया कराना कोई आसान काम नहीं है. केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार, देश में सिंचाई के लिए पानी की मांग और पूर्ति में फर्क का आंकड़ा, बढ़कर 43% तक पहुंच जाएगा. जल जीवन मिशन के आंकड़ों के मुताबिक, देश के 14 करोड़ ग्रामीण घरों तक पानी पहुंचाने के लिए, अगले पांच वर्षों में 3,60,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे. अगर केंद्र और राज्य सरकारें अपने संसाधनों को साझा भी करें तो यह लक्ष्य पाना आसान नहीं लगता है. साढ़े तीन साल पहले, मिहिर शाह समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि सेंट्रल वॉटर बॉडी और सेंट्रल ग्राउंड वॉटर सिस्टम को मौजूदा मांगों की पूर्ति के लिए पुनर्गठित करने की जरूरत है. जहां एक तरफ प्रधानमंत्री ने भूजल की कमी से परेशान इलाकों के किसानों से, पानी को बचा कर इस्तेमाल करने की अपील की थी, वहीं यह भी जरूरी है कि सरकार किसानों को यह करने के लिए तकनीकी मदद भी मुहैया कराए.

ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और ब्रिटेन ने अपने यहां भूजल संरक्षण के लिये तेजी से कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. चीन ने अपने यहां 12 मिलियन केयरगिवर्स को यह जिम्मेदारी दी है कि, वो पानी के स्रोतों को प्रदूषित होने से बचाएं. कई देशों में सड़कों और राजमार्गों का निर्माण इस तरह हो रहा है, ताकि बारिश के पानी की बर्बादी न हो और उसे इस्तेमाल में लाया जा सके. अगर पानी की हर बूंद का पूरा इस्तेमाल करने का जज्बा देशभर में फैल जाए, तो इससे फसलों के उत्पाद में भी बढ़ोतरी होगी. केंद्र सरकार ने पांच महीने पहले, दिशानिर्देश जारी कर शहरों के निगमों को कहा था कि वो अपने यहां भूजल की खपत पर काबू और उसकी भरपाई करना सुनिश्चित करे. अगर इन दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन हो, तो यह तय है कि अटल भूजल योजना सही मायने में देश के लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगी.

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