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विशेष लेख : आतंकी हमले को नहीं रोका, तो मुश्किल में पड़ेगा पाकिस्तान

26 फरवरी को बालाकोट हवाई हमले का एक साल पूरा हो गया. पाकिस्तान आज तक इसे नहीं भूल पाया है. इस हमले ने पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया. वैसे, भारत के लिए यह सीखने वाला पल रहा था कि हमारी आगे की रणनीति कैसी होनी चाहिए. यह मान लेना कि अब पाकिस्तान परमाणु हमले की गीदड़ भभकी नहीं देगा, बेमानी होगा. इस पर पढ़िए सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले रिटा. ले.जन. डीएस हुड्डा की राय.

बालाकोट
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Published : Mar 3, 2020, 8:35 PM IST

Updated : May 29, 2020, 12:15 PM IST

14 फरवरी 2019 को, कश्मीर में पुलवामा के पास आत्मघाती हमलावर ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर हमला कर दिया था. इसमें 40 जवानों की मौत हो गई थी. इसके जवाब में भारत ने 26 फरवरी को पाकिस्तान के बालाकोट में जैश ए मोहम्मद के आतंकी शिविर पर हमला किया. भारतीय वायु सेना ने यह कार्रवाई की. 1971 के बाद यह पहली बार था, जब भारतीय विमानों ने पाकिस्तानी सरजमीं पर हवाई हमला किया था. बालाकोट पाक के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में है.

अगले दिन यानि 27 फरवरी को, पाकिस्तानी वायु सेना ने एक काउंटर स्ट्राइक का प्रयास किया. लेकिन वह इसमें विफल रहा. हालांकि, हवाई लड़ाई में पाकिस्तान का एफ -16 ध्वस्त हो गया. भारत ने एक एमआईजी -21 खो दिया था. इसके पायलट पाकिस्तानी क्षेत्र में चले गए थे. अगले कुछ घंटों के लिए, युद्ध जैसा माहौल दिखने लगा था. सौभाग्य से अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारत में पायलट की जल्द वापसी के कारण दोनों पक्ष आगे की सैन्य कार्रवाई से बच गए.

जैसा कि भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में हमेशा होता है, सत्तारूढ़ और विपक्षी दल जल्द ही बालाकोट में मारे गए आतंकवादियों की संख्या को लेकर बहस करने लगे. विदेशी मीडिया भी इस बहस में कूद पड़ी. बालाकोट के उपग्रह चित्र जल्द ही पूरे इंटरनेट पर उपलब्ध हो गए. कुछ भारतीय इन दावों को सही ठहरा रहे थे, जबकि अन्य लोग इस पर सवाल उठा रहे थे.

अब जबकि एक साल का वक्त बीत गया है, हम शायद बालाकोट हवाई हमलों और भविष्य के लिए जो सबक हासिल कर सकते हैं, उसका निष्पक्ष अवलोकन करने का प्रयास कर सकते हैं.

संकट के समय में किसी देश की विश्वसनीयता को न केवल उसकी सैन्य क्षमता के आकार से आंका जाता है, बल्कि उसे किस तरह उपयोग करना है, इसकी इच्छा शक्ति का भी परीक्षण होता है. बहुत लंबे समय से, भारत को आतंकवाद पर बहुत रक्षात्मक देश के रूप में देखा जा रहा था. इससे पाकिस्तान को बढ़ावा मिला. उसने कश्मीर में छद्म युद्ध छेड़ दिया. लेकिन बालाकोट हमले ने इस सोच को बदल दिया. अब भारतीय राजनीतिक नेतृत्व बदल गया है. अब सैन्य उपकरण का उपयोग करने के लिए अधिक संकल्प और इच्छा शक्ति दिख रही है. पाकिस्तान को अब गंभीरता से विचार करना होगा कि आगे भी आतंकी हमलों को प्रायोजित करता रहता है, तो उसके लिए कितनी मुश्किलें आ सकती हैं.

पढ़ें : बालाकोट में कैसे बरसे थे बम, वायुसेना ने एयर स्ट्राइक पर जारी किया वीडियो

किसी आतंकवादी हमले के जवाब में वायुसेना का उपयोग पहली बार किया गया था. द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में तत्कालीन वायु सेना प्रमुख भदौरिया ने कहा, 'बालाकोट हवाई हमले ने राष्ट्रीय उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में वायुसेना के उपयोग को फिर से परिभाषित किया और उपमहाद्वीप में पारंपरिक कार्रवाई और प्रतिक्रिया के प्रतिमान को बदल दिया है.' जाहिर है हर आतंकी हमले का जवाब हवाई हमले नहीं हो सकता है, लेकिन वायु सेना की कार्रवाई ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत के प्रतिक्रिया विकल्पों में काफी वृद्धि की है.

क्या अधिक आक्रामक और मुखर भारत, पाकिस्तान के व्यवहार में बदलाव को मजबूर करेगा, खासकर आतंकी गतिविधि के परिप्रेक्ष्य में ? निस्संदेह पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के भीतर अधिक आत्मनिरीक्षण होगा कि वे कश्मीर की खातिर अपने राष्ट्र को जोखिम में डालने के लिए कितने तैयार हैं. कारगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान में भी इसी तरह की बहस हुई थी और पूर्व राजनयिक शाहिद एम अमीन ने द डॉन में लिखा था, 'यह उच्च समय है कि देश अपनी सीमाओं और प्राथमिकताओं के बारे में निर्मम रूप से यथार्थवादी बने. पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि कश्मीर के प्रति हमारे लगाव सहित, पाकिस्तान के अस्तित्व को बाकी सब से पहले छोड़ देना चाहिए.

पाकिस्तान के भीतर किसी भी आत्मनिरीक्षण के बावजूद, यह संभावना कम प्रतीत होती है कि पाकिस्तान सेना भारत के साथ रणनीतिक समानता प्राप्त करने के अपने तर्कहीन उद्देश्य को बदल देगी. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज के हालिया संबोधन में, सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल खली किदवई ने कहा, 'वास्तविकता यह है कि यह पाकिस्तान है, जिस पर महत्वपूर्ण निर्धारक के रूप में भारत के साथ पारंपरिक और परमाणु समीकरण को लेकर महत्वपूर्ण रणनीतिक संतुलन बनाए रखने की जवाबदेही है. दक्षिण एशिया में रणनीतिक स्थिरता की स्थिति की जिम्मेवारी पाकिस्तान पर है.'

परमाणु कार्ड को लेकर किदवई ने आगे कहा कि यह मान लेना कि एक हवाई हमले के बाद पाकिस्तान परमाणु धमकी देना बंद कर देगा, यह बहुत ही गंभीर भूल होगी.

इस हमले के बाद दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण सबक हैं. भारतीय सेना का मानना ​​है कि पारंपरिक शक्ति को लागू करने के लिए परमाणु सीमा से नीचे पर्याप्त जगह है और भारत को पाकिस्तान से आतंकवादी हमलों का मुकाबला करने के लिए अपनी बेहतर क्षमता का उपयोग करना चाहिए. दूसरी ओर, पाकिस्तान सेना को लगता है कि उसका परमाणु खतरा भारत को एक सीमित ऑपरेशन से आगे बढ़ने से रोक देगा, इस तरह पारंपरिक विषमता को बेअसर कर देगा.

इस परिप्रेक्ष्य में दोनों पक्षों को वास्तविक रूप से और तर्कसंगत रूप से अपने विकल्पों और राजनीतिक उद्देश्यों का आकलन करना चाहिए. पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि भारत के खिलाफ एक आतंकी हमला एस्केलेशन सीढ़ी में पहला कदम है और अगर इसे टाला जाता है, तो दूसरे कदम की बिल्कुल भी जरूरत नहीं होगी.

(लेखक- रिटा. ले. जन. डीएस हुड्डा)

14 फरवरी 2019 को, कश्मीर में पुलवामा के पास आत्मघाती हमलावर ने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर हमला कर दिया था. इसमें 40 जवानों की मौत हो गई थी. इसके जवाब में भारत ने 26 फरवरी को पाकिस्तान के बालाकोट में जैश ए मोहम्मद के आतंकी शिविर पर हमला किया. भारतीय वायु सेना ने यह कार्रवाई की. 1971 के बाद यह पहली बार था, जब भारतीय विमानों ने पाकिस्तानी सरजमीं पर हवाई हमला किया था. बालाकोट पाक के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में है.

अगले दिन यानि 27 फरवरी को, पाकिस्तानी वायु सेना ने एक काउंटर स्ट्राइक का प्रयास किया. लेकिन वह इसमें विफल रहा. हालांकि, हवाई लड़ाई में पाकिस्तान का एफ -16 ध्वस्त हो गया. भारत ने एक एमआईजी -21 खो दिया था. इसके पायलट पाकिस्तानी क्षेत्र में चले गए थे. अगले कुछ घंटों के लिए, युद्ध जैसा माहौल दिखने लगा था. सौभाग्य से अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारत में पायलट की जल्द वापसी के कारण दोनों पक्ष आगे की सैन्य कार्रवाई से बच गए.

जैसा कि भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में हमेशा होता है, सत्तारूढ़ और विपक्षी दल जल्द ही बालाकोट में मारे गए आतंकवादियों की संख्या को लेकर बहस करने लगे. विदेशी मीडिया भी इस बहस में कूद पड़ी. बालाकोट के उपग्रह चित्र जल्द ही पूरे इंटरनेट पर उपलब्ध हो गए. कुछ भारतीय इन दावों को सही ठहरा रहे थे, जबकि अन्य लोग इस पर सवाल उठा रहे थे.

अब जबकि एक साल का वक्त बीत गया है, हम शायद बालाकोट हवाई हमलों और भविष्य के लिए जो सबक हासिल कर सकते हैं, उसका निष्पक्ष अवलोकन करने का प्रयास कर सकते हैं.

संकट के समय में किसी देश की विश्वसनीयता को न केवल उसकी सैन्य क्षमता के आकार से आंका जाता है, बल्कि उसे किस तरह उपयोग करना है, इसकी इच्छा शक्ति का भी परीक्षण होता है. बहुत लंबे समय से, भारत को आतंकवाद पर बहुत रक्षात्मक देश के रूप में देखा जा रहा था. इससे पाकिस्तान को बढ़ावा मिला. उसने कश्मीर में छद्म युद्ध छेड़ दिया. लेकिन बालाकोट हमले ने इस सोच को बदल दिया. अब भारतीय राजनीतिक नेतृत्व बदल गया है. अब सैन्य उपकरण का उपयोग करने के लिए अधिक संकल्प और इच्छा शक्ति दिख रही है. पाकिस्तान को अब गंभीरता से विचार करना होगा कि आगे भी आतंकी हमलों को प्रायोजित करता रहता है, तो उसके लिए कितनी मुश्किलें आ सकती हैं.

पढ़ें : बालाकोट में कैसे बरसे थे बम, वायुसेना ने एयर स्ट्राइक पर जारी किया वीडियो

किसी आतंकवादी हमले के जवाब में वायुसेना का उपयोग पहली बार किया गया था. द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में तत्कालीन वायु सेना प्रमुख भदौरिया ने कहा, 'बालाकोट हवाई हमले ने राष्ट्रीय उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में वायुसेना के उपयोग को फिर से परिभाषित किया और उपमहाद्वीप में पारंपरिक कार्रवाई और प्रतिक्रिया के प्रतिमान को बदल दिया है.' जाहिर है हर आतंकी हमले का जवाब हवाई हमले नहीं हो सकता है, लेकिन वायु सेना की कार्रवाई ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत के प्रतिक्रिया विकल्पों में काफी वृद्धि की है.

क्या अधिक आक्रामक और मुखर भारत, पाकिस्तान के व्यवहार में बदलाव को मजबूर करेगा, खासकर आतंकी गतिविधि के परिप्रेक्ष्य में ? निस्संदेह पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के भीतर अधिक आत्मनिरीक्षण होगा कि वे कश्मीर की खातिर अपने राष्ट्र को जोखिम में डालने के लिए कितने तैयार हैं. कारगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान में भी इसी तरह की बहस हुई थी और पूर्व राजनयिक शाहिद एम अमीन ने द डॉन में लिखा था, 'यह उच्च समय है कि देश अपनी सीमाओं और प्राथमिकताओं के बारे में निर्मम रूप से यथार्थवादी बने. पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि कश्मीर के प्रति हमारे लगाव सहित, पाकिस्तान के अस्तित्व को बाकी सब से पहले छोड़ देना चाहिए.

पाकिस्तान के भीतर किसी भी आत्मनिरीक्षण के बावजूद, यह संभावना कम प्रतीत होती है कि पाकिस्तान सेना भारत के साथ रणनीतिक समानता प्राप्त करने के अपने तर्कहीन उद्देश्य को बदल देगी. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज के हालिया संबोधन में, सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल खली किदवई ने कहा, 'वास्तविकता यह है कि यह पाकिस्तान है, जिस पर महत्वपूर्ण निर्धारक के रूप में भारत के साथ पारंपरिक और परमाणु समीकरण को लेकर महत्वपूर्ण रणनीतिक संतुलन बनाए रखने की जवाबदेही है. दक्षिण एशिया में रणनीतिक स्थिरता की स्थिति की जिम्मेवारी पाकिस्तान पर है.'

परमाणु कार्ड को लेकर किदवई ने आगे कहा कि यह मान लेना कि एक हवाई हमले के बाद पाकिस्तान परमाणु धमकी देना बंद कर देगा, यह बहुत ही गंभीर भूल होगी.

इस हमले के बाद दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण सबक हैं. भारतीय सेना का मानना ​​है कि पारंपरिक शक्ति को लागू करने के लिए परमाणु सीमा से नीचे पर्याप्त जगह है और भारत को पाकिस्तान से आतंकवादी हमलों का मुकाबला करने के लिए अपनी बेहतर क्षमता का उपयोग करना चाहिए. दूसरी ओर, पाकिस्तान सेना को लगता है कि उसका परमाणु खतरा भारत को एक सीमित ऑपरेशन से आगे बढ़ने से रोक देगा, इस तरह पारंपरिक विषमता को बेअसर कर देगा.

इस परिप्रेक्ष्य में दोनों पक्षों को वास्तविक रूप से और तर्कसंगत रूप से अपने विकल्पों और राजनीतिक उद्देश्यों का आकलन करना चाहिए. पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि भारत के खिलाफ एक आतंकी हमला एस्केलेशन सीढ़ी में पहला कदम है और अगर इसे टाला जाता है, तो दूसरे कदम की बिल्कुल भी जरूरत नहीं होगी.

(लेखक- रिटा. ले. जन. डीएस हुड्डा)

Last Updated : May 29, 2020, 12:15 PM IST
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