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कोरोना काल में बढ़ रही नशाखोरी, पीछे छूट गया 'नशा मुक्त भारत' - लॉकडाउन में बढ़ी नशाखोरी

विकासशील देशों में मादक पदार्थों की तस्करी बेरोकटोक जारी है. दुनिया भर में भांग की खपत में खतरनाक वृद्धि हुई है. 71% ड्रग ओवरडोज से होने वाली मौतों के लिए हेरोइन जिम्मेदार है. पंजाब में सिर्फ 18 वर्षों में नशा करने वालों की संख्या दो प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई है. पढ़ें पूरी खबर...

लॉकडाउन में बढ़ी नशाखोरी
लॉकडाउन में बढ़ी नशाखोरी
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Published : Jul 2, 2020, 7:58 PM IST

हैदराबाद : कोरोना काल में लोगों की नशे की लत भी बढ़ती जा रही है. शोध से पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान पैदा हुए आर्थिक व सामाजिक संकट ने नशेड़ियों की हालत और बदतर कर दी है. वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2019 के मुताबिक, 2009 की तुलना में ड्रग्स लेने वालों की संख्या 30 प्रतिशत बढ़ गई है.

आंकड़ों से पता चलता है कि अफ्रीका, एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में ओपिओइड ड्रग का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में दुनिया भर में नशीले पदार्थों की खपत में 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी और 3.5 करोड़ लोग नशीली दवाओं से होने वाले विकारों से पीड़ित थे. 2004 की तुलना में 2009 में भारत में हेरोइन और अफीम के उपयोग में पांच गुना वृद्धि हुई.

इससे पहले कि संयुक्त राष्ट्र के ये चौंकाने वाले आंकड़ों प्रकाशित होते, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने भारत में दो देशव्यापी ड्रग्स सर्वेक्षण किए. जिसमें यह पता चला कि 15 प्रतिशत भारतीयों को शराब की लत और 8 प्रतिशत को नशे से संबंधित बीमारियां थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि 5 करोड़ से अधिक भारतीय मादक द्रव्यों के सेवन करने की वजह से किसी न किसी स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे थे, जिनमें से 5 प्रतिशत को चिकित्सा सुविधा भी नहीं मिली.

बीते दिनों जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 65 करोड़ रुपये की मादक सामग्री जब्त की थी. दिसंबर 2019 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने 1,300 करोड़ रुपये के अंतरराष्ट्रीय ड्रग कार्टेल का भंडाफोड़ किया था. लेकिन विशेषज्ञों का दावा है कि ये समंदर में बूंद के सामान है. नशे का कारोबार भयंकर रूप से फैला हुआ है.

विकासशील देशों में मादक पदार्थों की तस्करी बेरोकटोक जारी है. दुनिया भर में भांग की खपत में खतरनाक वृद्धि हुई है. 71% ड्रग ओवरडोज से होने वाली मौतों के लिए हेरोइन नशीले पदार्थ जिम्मेदार है. पंजाब में सिर्फ 18 वर्षों में नशा करने वालों की संख्या दो प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई है. पहले युवा भांग तक ही सीमित था, बाद में तेजी से ओपिओइड की ओर बढ़ गए. महिलाओं और बच्चों को समान रूप से नशे की लत हो गई. जिससे ड्रग सप्लाई की खतरनाक श्रृंखला भी बनती चली गई.

लॉकडाउन में बढ़ी नशाखोरी
लॉकडाउन में बढ़ी नशाखोरी

रिपोर्ट्स की मानें तो विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) नशे के कारोबार के लिए हॉटस्पॉट बन गया है. यहां मारिजुआना (गांजा-चरस) का करीब 7,200 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार होता है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 72 लाख भारतीयों को अपनी भांग की समस्याओं के लिए मदद की आवश्यकता है. उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इंजेक्शन के जरिए नशा लिया जा रहा है.

ड्रग माफिया सिर्फ विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को ही नहीं, बल्कि हाई स्कूलों को भी निशाना बना रहे हैं. केंद्र सरकार ने मादक द्रव्यों के सेवन और नशीली दवाओं की पहुंच के आधार पर 272 जिलों को संवेदनशील घोषित किया है.

इसी साल फरवरी में केंद्र सरकार ने 'नशा मुक्त भारत' के लिए 336 करोड़ रुपए आवंटित किए, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते यह अभियान थोड़ा पीछे छूट गया. ड्रग माफिया के खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत है. माता-पिता, शिक्षकों और सरकारों को इस खतरे से निपटने के लिए मिलकर काम करना होगा.

हैदराबाद : कोरोना काल में लोगों की नशे की लत भी बढ़ती जा रही है. शोध से पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान पैदा हुए आर्थिक व सामाजिक संकट ने नशेड़ियों की हालत और बदतर कर दी है. वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2019 के मुताबिक, 2009 की तुलना में ड्रग्स लेने वालों की संख्या 30 प्रतिशत बढ़ गई है.

आंकड़ों से पता चलता है कि अफ्रीका, एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में ओपिओइड ड्रग का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, 2009 में दुनिया भर में नशीले पदार्थों की खपत में 30 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी और 3.5 करोड़ लोग नशीली दवाओं से होने वाले विकारों से पीड़ित थे. 2004 की तुलना में 2009 में भारत में हेरोइन और अफीम के उपयोग में पांच गुना वृद्धि हुई.

इससे पहले कि संयुक्त राष्ट्र के ये चौंकाने वाले आंकड़ों प्रकाशित होते, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने भारत में दो देशव्यापी ड्रग्स सर्वेक्षण किए. जिसमें यह पता चला कि 15 प्रतिशत भारतीयों को शराब की लत और 8 प्रतिशत को नशे से संबंधित बीमारियां थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि 5 करोड़ से अधिक भारतीय मादक द्रव्यों के सेवन करने की वजह से किसी न किसी स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे थे, जिनमें से 5 प्रतिशत को चिकित्सा सुविधा भी नहीं मिली.

बीते दिनों जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 65 करोड़ रुपये की मादक सामग्री जब्त की थी. दिसंबर 2019 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने 1,300 करोड़ रुपये के अंतरराष्ट्रीय ड्रग कार्टेल का भंडाफोड़ किया था. लेकिन विशेषज्ञों का दावा है कि ये समंदर में बूंद के सामान है. नशे का कारोबार भयंकर रूप से फैला हुआ है.

विकासशील देशों में मादक पदार्थों की तस्करी बेरोकटोक जारी है. दुनिया भर में भांग की खपत में खतरनाक वृद्धि हुई है. 71% ड्रग ओवरडोज से होने वाली मौतों के लिए हेरोइन नशीले पदार्थ जिम्मेदार है. पंजाब में सिर्फ 18 वर्षों में नशा करने वालों की संख्या दो प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई है. पहले युवा भांग तक ही सीमित था, बाद में तेजी से ओपिओइड की ओर बढ़ गए. महिलाओं और बच्चों को समान रूप से नशे की लत हो गई. जिससे ड्रग सप्लाई की खतरनाक श्रृंखला भी बनती चली गई.

लॉकडाउन में बढ़ी नशाखोरी
लॉकडाउन में बढ़ी नशाखोरी

रिपोर्ट्स की मानें तो विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) नशे के कारोबार के लिए हॉटस्पॉट बन गया है. यहां मारिजुआना (गांजा-चरस) का करीब 7,200 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार होता है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 72 लाख भारतीयों को अपनी भांग की समस्याओं के लिए मदद की आवश्यकता है. उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इंजेक्शन के जरिए नशा लिया जा रहा है.

ड्रग माफिया सिर्फ विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को ही नहीं, बल्कि हाई स्कूलों को भी निशाना बना रहे हैं. केंद्र सरकार ने मादक द्रव्यों के सेवन और नशीली दवाओं की पहुंच के आधार पर 272 जिलों को संवेदनशील घोषित किया है.

इसी साल फरवरी में केंद्र सरकार ने 'नशा मुक्त भारत' के लिए 336 करोड़ रुपए आवंटित किए, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते यह अभियान थोड़ा पीछे छूट गया. ड्रग माफिया के खिलाफ कड़े कदम उठाने की जरूरत है. माता-पिता, शिक्षकों और सरकारों को इस खतरे से निपटने के लिए मिलकर काम करना होगा.

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