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'सहिष्णुता और समरसता रामराज्य के मूलतत्त्व हैं'

देश को 7 दशकों तक सामाजिक और राजनीतिक मोर्चों पर हिला देने वाले अयोध्या मुद्दे पर शीर्ष अदालत अपना फैसले को सुनाने के लिए तैयार है. 40 दिनों तक चली लम्बी सुनवाई के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय ने 16 अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रतिवादी आशावादी हैं कि अयोध्या पर आने वाला फैसला दशकों लंबे कानूनी विवादों और धार्मिक मतभेदों को खत्म कर देगा.

अयोध्या
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Published : Nov 9, 2019, 8:24 AM IST

Updated : Nov 9, 2019, 2:00 PM IST

'माननीय अदालत का फैसला चाहे जिसके पक्ष में हो, वह आने वाली पीढ़ियों पर अपनी छाप छोड़ जाएगा. इसका असर देश की राजनीति पर भी देखने को मिलेगा.' उक्त बातें सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन द्वारा लिखित नोट में अयोध्या मामले पर मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश किया था.

देश को सात दशकों तक सामाजिक और राजनीतिक मोर्चों पर हिला देने वाले अयोध्या मुद्दे पर शीर्ष अदालत अपना फैसले को सुनाने के लिए तैयार है. 40 दिनों तक चली लम्बी सुनवाई के पश्चात् सर्वोच्च न्यायालय ने 16 अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. जैसे कि मुख्य न्यायाधीश राजन गोगोई 17 नवम्बर को सेवानिवृत्त होने जा रहें हैं इसलिए ये अटकलें लगाई जा रही कि वे अयोध्या पर अपन फैसला अंतिम फैसले के तौर पर सुनायेंगे. इस मुद्दे में धार्मिक पेंच देखते हुए केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में सुरक्षा तैनाती के लिए 4,000 सैनिकों को भेजा है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया पर कड़ी निगरानी रखने और भड़काऊ पोस्टों पर नजर रखने के लिए 16,000 स्वयंसेवकों को भी तैनात किया है. अंतिम फैसला सुनाए जाने पर शांति बनाए रखने के लिए फैजाबाद पुलिस ने जिले में बराबर तादाद में स्वयंसेवकों को तैनात किया है. तीन हफ्ते पहले समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) ने समाचार चैनलों को निर्देश दिए हैं कि वे भड़काऊ टिप्पणी न करें या मस्जिद के विध्वंस के दृश्यों का प्रसारण न करें.

आरएसएस और भाजपा नेताओं द्वारा आयोजित आम सहमति बैठक में जमीयत उलमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों ने भी हिस्सा लिया. उन्होंने घोषणा की कि वे अदालत के हर फैसले को स्वीकार करेंगे और लोगों से आग्रह किया कि निर्णय सुनाए जाने के बाद वे जश्न या हिंसक गतिविधियों में लिप्त न हों, उनकी यह चेष्टा परिपक्वता की भावना दर्शाती है.

हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रतिवादी आशावादी हैं कि अयोध्या पर आने वाला फैसला दशकों लंबे कानूनी विवादों और धार्मिक मतभेदों को खत्म कर देगा. कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने इस सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए राष्ट्रपति द्वारा की अपील के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के कंधों पर जिम्मेदारी को स्थानांतरित करना चाहा.

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद उत्पन्न होने वाले टकराव से अपनी सरकार को बचाने के लिए पीवी की सरकार ने पूरी घटना का एक पंक्ति का विवरण देते हुए लिखा था: क्या 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पहले यहां कोई मंदिर था? सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को लेने से इनकार कर दिया और यह कहकर कि न्यायपालिका की अखंडता से समझौता नहीं किया जा सकता है, सरकार की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

उस ही शीर्ष न्यायलय ने 25 साल पुराने अयोध्या विवाद के आखरी चरण में प्रवेश किया है. सभी प्रतिवादियों की अदालत में सुनवाई 180 घंटे तक चली. जजों के पैनल ने हिंदू अपीलकर्ताओं को शुरुआती 15 दिन का समय दिया और मुसलमान अपीलकर्ताओं को अगले 20 दिन आवंटित कि. आखिर के 5 दिन जवाबी दलीलों को सुनने के लिए निर्धारित किये गये थे. जिन हिंदू पक्षों ने तर्क दिया कि राजा विक्रमादित्य ने सदियों पहले अयोध्या में मंदिर का निर्माण किया था, जिसका 11वीं शताब्दी में पुनर्निर्माण किया गया था और 1526 में बाबर द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, कुछ खास साबित नहीं कर पाए.

मुस्लिम पक्षकारों ने तर्क दिया कि सभी आधिकारिक गजट में मस्जिद का उल्लेख था और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 1993 की रिपोर्ट अधूरी थी. हालाँकि दोनों पक्षों ने सर्वोच्च पीठ के सामने बहस की, लेकिन दोनों पक्षों का साथ आकर और अमन बनाये रखने के लिए अपील करना गौर करने काबिल है.

इलाहाबाद (लखनऊ पीठ) में उच्च न्यायालय द्वारा सुनाये गए अयोध्या के फैसले की प्रस्तावना कहती है. यहाँ जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा (1500 वर्ग गज) है जहाँ स्वर्गदूतों को भी पैर रखने से डर लगता है. यह वाक्य स्थिति की गंभीरता को दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत है. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, उच्च न्यायालय ने 1500 वर्ग गज भूमि को 3 बराबर भागों में विभाजित करने का आदेश दिया था.

संपूर्ण भूमि के वास्तविक स्वामित्व का दावा करते हुए सर्वोच्च न्यायलय में 14 याचिकाएँ दायर की गई थीं. सर्वोच्च न्यायलय द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय पैनल में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एफएम इब्राहिम कलीफुल्ला, श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल थे जिन्होंने अपनी रिपोर्ट पहले ही सौंप दी है. कुछ समाचार रिपोर्टों के अनुसार, उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर अपने स्वामित्व के दावे को छोड़ने की मंज़ूरी दे दी है और उन्होंने हिंदू महासभा के प्रतिनिधियों के साथ एक निपटान दावे पर हस्ताक्षर भी किए हैं. जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, हिंदू धर्म सभी धर्मों को अपनाने करने का उपदेश देता है और इसमें ही रामराज्य का सार निहित है. भारत की अखंडता का आधार धार्मिक सहिष्णुता की नींव पर आधारित हैं.

सर्वोच्च न्यायलय का फैसला जो भी हो, सभी वर्गों के लोगों को विनम्रता अपनानी चाहिए और हिंसक साधनों का सहारा लेने के बजाय राष्ट्रीय एकता को बनाये रखना चाहिए. संबंधित पक्षों के नेताओं की आम सहमति की बैठक सांप्रदायिक तनावों की आशंकाओं से उत्पन्न तनावों में उल्लेखनीय मील का पत्थर है.

'माननीय अदालत का फैसला चाहे जिसके पक्ष में हो, वह आने वाली पीढ़ियों पर अपनी छाप छोड़ जाएगा. इसका असर देश की राजनीति पर भी देखने को मिलेगा.' उक्त बातें सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन द्वारा लिखित नोट में अयोध्या मामले पर मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश किया था.

देश को सात दशकों तक सामाजिक और राजनीतिक मोर्चों पर हिला देने वाले अयोध्या मुद्दे पर शीर्ष अदालत अपना फैसले को सुनाने के लिए तैयार है. 40 दिनों तक चली लम्बी सुनवाई के पश्चात् सर्वोच्च न्यायालय ने 16 अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. जैसे कि मुख्य न्यायाधीश राजन गोगोई 17 नवम्बर को सेवानिवृत्त होने जा रहें हैं इसलिए ये अटकलें लगाई जा रही कि वे अयोध्या पर अपन फैसला अंतिम फैसले के तौर पर सुनायेंगे. इस मुद्दे में धार्मिक पेंच देखते हुए केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में सुरक्षा तैनाती के लिए 4,000 सैनिकों को भेजा है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया पर कड़ी निगरानी रखने और भड़काऊ पोस्टों पर नजर रखने के लिए 16,000 स्वयंसेवकों को भी तैनात किया है. अंतिम फैसला सुनाए जाने पर शांति बनाए रखने के लिए फैजाबाद पुलिस ने जिले में बराबर तादाद में स्वयंसेवकों को तैनात किया है. तीन हफ्ते पहले समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) ने समाचार चैनलों को निर्देश दिए हैं कि वे भड़काऊ टिप्पणी न करें या मस्जिद के विध्वंस के दृश्यों का प्रसारण न करें.

आरएसएस और भाजपा नेताओं द्वारा आयोजित आम सहमति बैठक में जमीयत उलमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों ने भी हिस्सा लिया. उन्होंने घोषणा की कि वे अदालत के हर फैसले को स्वीकार करेंगे और लोगों से आग्रह किया कि निर्णय सुनाए जाने के बाद वे जश्न या हिंसक गतिविधियों में लिप्त न हों, उनकी यह चेष्टा परिपक्वता की भावना दर्शाती है.

हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रतिवादी आशावादी हैं कि अयोध्या पर आने वाला फैसला दशकों लंबे कानूनी विवादों और धार्मिक मतभेदों को खत्म कर देगा. कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने इस सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए राष्ट्रपति द्वारा की अपील के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के कंधों पर जिम्मेदारी को स्थानांतरित करना चाहा.

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद उत्पन्न होने वाले टकराव से अपनी सरकार को बचाने के लिए पीवी की सरकार ने पूरी घटना का एक पंक्ति का विवरण देते हुए लिखा था: क्या 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पहले यहां कोई मंदिर था? सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को लेने से इनकार कर दिया और यह कहकर कि न्यायपालिका की अखंडता से समझौता नहीं किया जा सकता है, सरकार की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

उस ही शीर्ष न्यायलय ने 25 साल पुराने अयोध्या विवाद के आखरी चरण में प्रवेश किया है. सभी प्रतिवादियों की अदालत में सुनवाई 180 घंटे तक चली. जजों के पैनल ने हिंदू अपीलकर्ताओं को शुरुआती 15 दिन का समय दिया और मुसलमान अपीलकर्ताओं को अगले 20 दिन आवंटित कि. आखिर के 5 दिन जवाबी दलीलों को सुनने के लिए निर्धारित किये गये थे. जिन हिंदू पक्षों ने तर्क दिया कि राजा विक्रमादित्य ने सदियों पहले अयोध्या में मंदिर का निर्माण किया था, जिसका 11वीं शताब्दी में पुनर्निर्माण किया गया था और 1526 में बाबर द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, कुछ खास साबित नहीं कर पाए.

मुस्लिम पक्षकारों ने तर्क दिया कि सभी आधिकारिक गजट में मस्जिद का उल्लेख था और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 1993 की रिपोर्ट अधूरी थी. हालाँकि दोनों पक्षों ने सर्वोच्च पीठ के सामने बहस की, लेकिन दोनों पक्षों का साथ आकर और अमन बनाये रखने के लिए अपील करना गौर करने काबिल है.

इलाहाबाद (लखनऊ पीठ) में उच्च न्यायालय द्वारा सुनाये गए अयोध्या के फैसले की प्रस्तावना कहती है. यहाँ जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा (1500 वर्ग गज) है जहाँ स्वर्गदूतों को भी पैर रखने से डर लगता है. यह वाक्य स्थिति की गंभीरता को दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत है. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, उच्च न्यायालय ने 1500 वर्ग गज भूमि को 3 बराबर भागों में विभाजित करने का आदेश दिया था.

संपूर्ण भूमि के वास्तविक स्वामित्व का दावा करते हुए सर्वोच्च न्यायलय में 14 याचिकाएँ दायर की गई थीं. सर्वोच्च न्यायलय द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय पैनल में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एफएम इब्राहिम कलीफुल्ला, श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल थे जिन्होंने अपनी रिपोर्ट पहले ही सौंप दी है. कुछ समाचार रिपोर्टों के अनुसार, उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर अपने स्वामित्व के दावे को छोड़ने की मंज़ूरी दे दी है और उन्होंने हिंदू महासभा के प्रतिनिधियों के साथ एक निपटान दावे पर हस्ताक्षर भी किए हैं. जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, हिंदू धर्म सभी धर्मों को अपनाने करने का उपदेश देता है और इसमें ही रामराज्य का सार निहित है. भारत की अखंडता का आधार धार्मिक सहिष्णुता की नींव पर आधारित हैं.

सर्वोच्च न्यायलय का फैसला जो भी हो, सभी वर्गों के लोगों को विनम्रता अपनानी चाहिए और हिंसक साधनों का सहारा लेने के बजाय राष्ट्रीय एकता को बनाये रखना चाहिए. संबंधित पक्षों के नेताओं की आम सहमति की बैठक सांप्रदायिक तनावों की आशंकाओं से उत्पन्न तनावों में उल्लेखनीय मील का पत्थर है.

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सहिष्णुता और समरसता रामराज्य के मूलतत्त्व हैं



“माननीय अदालत का फैसला चाहे जिसके पक्ष में हो, वह आने वाली पीढ़ियों पर अपनी छाप छोड़ जायेगा। इसका असर देश की राजनीती पर भी होगा,” ये कहता है सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन द्वारा लिखित नोट, जो अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश हो रहा हैं। देश को 7 दशकों तक सामाजिक और राजनीतिक मोर्चों पर हिला देने वाले अयोध्या मुद्दे पर शीर्ष अदालत अपना फैसले को सुनाने के लिए तैयार है। 40 दिनों तक चली लम्बी सुनवाई के पश्चात्, सर्वोच्च न्यायालय ने 16 अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था. जैसे कि, मुख्य न्यायाधीश राजन गोगोई 17 नवम्बर को सेवानिवृत्त होने जा रहें हैं इसलिए ये अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि वे अयोध्या पर अपन फैसला अंतिम फैसले के तौर पर सुनायेंगे। इस मुद्दे में धार्मिक पेंच देखते हुए केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश में सुरक्षा तैनाती के लिए 4,000 सैनिकों को भेजा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सोशल मीडिया पर कड़ी निगरानी रखने और भड़काऊ पोस्टों पर नजर रखने के लिए 16,000 स्वयंसेवकों को भी तैनात किया है। अंतिम फैसला सुनाए जाने पर शांति बनाए रखने के लिए फैजाबाद पुलिस ने जिले में बराबर तादाद में स्वयंसेवकों को तैनात किया है। तीन हफ्ते पहले, समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण (एनबीएसए) ने समाचार चैनलों को निर्देश दिए हैं कि वे भड़काऊ टिप्पणी न करें या मस्जिद के विध्वंस के दृश्यों का प्रसारण न करें। आरएसएस और भाजपा नेताओं द्वारा आयोजित आम सहमति बैठक में जमीयत उलमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों ने भी हिस्सा लिया था। उन्होंने घोषणा की कि वे अदालत के हर फैसले को स्वीकार करेंगे और लोगों से आग्रह किया कि निर्णय सुनाए जाने के बाद वे जश्न या हिंसक गतिविधियों में लिप्त न हों, उनकी यह चेष्टा परिपक्वता की भावना दर्शाती है।



हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रतिवादी आशावादी हैं कि अयोध्या पर आने वाला फैसला दशकों लंबे कानूनी विवादों और धार्मिक मतभेदों को खत्म कर देगा। कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने इस सिरदर्द से छुटकारा पाने के लिए राष्ट्रपति द्वारा की अपील के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के कंधों पर जिम्मेदारी को स्थानांतरित करना चाहा था। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद उत्पन्न होने वाले टकराव से अपनी सरकार को बचाने के लिए पीवी की सरकार ने पूरी घटना का एक पंक्ति का विवरण देते हुए लिखा था: क्या 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पहले यहां कोई मंदिर था? सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को लेने से इनकार कर दिया और यह कहकर कि न्यायपालिका की अखंडता से समझौता नहीं किया जा सकता है, सरकार की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। उस ही शीर्ष न्यायलय ने 25 साल पुराने अयोध्या विवाद के आखरी चरण में प्रवेश किया है। सभी प्रतिवादियों की अदालत में सुनवाई 180 घंटे तक चली। जजों के पैनल ने हिंदू अपीलकर्ताओं को शुरुआती 15 दिन का समय दिया और मुसलमान अपीलकर्ताओं को अगले 20 दिन आवंटित किए। आखिर के 5 दिन जवाबी दलीलों को सुनने के लिए निर्धारित किये गये थे। जिन हिंदू पक्षों ने तर्क दिया कि राजा विक्रमादित्य ने सदियों पहले अयोध्या में मंदिर का निर्माण किया था, जिसका 11वीं शताब्दी में पुनर्निर्माण किया गया था और 1526 में बाबर द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, कुछ ख़ास साबित नहीं कर पाए। मुस्लिम पक्षकारों ने तर्क दिया कि सभी आधिकारिक गजट में मस्जिद का उल्लेख था और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 1993 की रिपोर्ट अधूरी थी। हालाँकि दोनों पक्षों ने सर्वोच्च पीठ के सामने बहस की, लेकिन दोनों पक्षों का साथ आकर और अमन बनाये रखने के लिए अपील करना गौर करने काबिल है।



इलाहाबाद (लखनऊ पीठ) में उच्च न्यायालय द्वारा सुनाये गए अयोध्या के फैसले की प्रस्तावना कहती है: यहाँ जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा (1500 वर्ग गज) है जहाँ स्वर्गदूतों को भी पैर रखने से डर लगता है। यह वाक्य स्थिति की गंभीरता को दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, उच्च न्यायालय ने 1500 वर्ग गज भूमि को 3 बराबर भागों में विभाजित करने का आदेश दिया था। संपूर्ण भूमि के वास्तविक स्वामित्व का दावा करते हुए सर्वोच्च न्यायलय में 14 याचिकाएँ दायर की गई थीं। सर्वोच्च न्यायलय द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय पैनल में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एफएम इब्राहिम कलीफुल्ला, श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल थे जिन्होंने अपनी रिपोर्ट पहले ही सौंप दी है। कुछ समाचार रिपोर्टों के अनुसार, उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर अपने स्वामित्व के दावे को छोड़ने की मंज़ूरी दे दी है और उन्होंने हिंदू महासभा के प्रतिनिधियों के साथ एक निपटान दावे पर हस्ताक्षर भी किए हैं। जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, हिंदू धर्म सभी धर्मों को अपनाने करने का उपदेश देता है और इसमें ही रामराज्य का सार निहित है। भारत की अखंडता का आधार धार्मिक सहिष्णुता की नींव पर आधारित हैं। सर्वोच्च न्यायलय का फैसला जो भी हो, सभी वर्गों के लोगों को विनम्रता अपनानी चाहिए और हिंसक साधनों का सहारा लेने के बजाय राष्ट्रीय एकता को बनाये रखना चाहिए। संबंधित पक्षों के नेताओं की आम सहमति की बैठक सांप्रदायिक तनावों की आशंकाओं से उत्पन्न तनावों में उल्लेखनीय मील का पत्थर है।



 


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Last Updated : Nov 9, 2019, 2:00 PM IST
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