रायपुर : वैसे तो बस्तर अपनी प्राकृतिक सुंदरता की वजह से दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन बस्तर संभाग को और भी खूबसूरत बनाती हैं यहां की प्राचीन धरोहरें, जिनकी वजह से बस्तर संभाग और भी ज्यादा समृद्ध हो जाता है. इन्हीं धरोहरों में से एक हैं दंतेवाड़ा के ढोलकाल गणेश, जो हजारों फीट की ऊंचाई पर विराजे हैं, जिनके दर्शन हम आपको गणेशोत्सव के मौके पर करवा रहे हैं.
जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर स्थित ढाई हजार फीट की ऊंचाई पर विराजमान है ढोलकाल गणेश. यहां तक पहुंचना आसान नहीं है. पहाड़ के उबड़-खाबड़ रास्ते, कटीले पेड़-पौधों को पार करने के बाद 11वीं शताब्दी की इस मूर्ति के दर्शन होते हैं, लेकिन तमाम परेशानियों को झेलते हुए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.
गणपति को शक्ति के रूप में पूजते हैं आदिवासी
सर्व आदिवासी समाज के प्रमुख सदस्य बल्लू भोगामी बताते हैं कि, 'आदिवासियों द्वारा पूरे ढोलकाल पहाड़ ही आदि शक्ति के रूप में पूजा जाता है. गणेश जी की ये प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है, लेकिन पूर्वज कहते हैं कि सदियों से आदिवासी गणेश देवता की पूजा शक्ति के रूप में करते आ रहे हैं'.
गणेश चतुर्थी पर पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचे पुजारी सहदेव मंडावी का कहना है कि, 'ललितासन में विराजे गणेश भगवान से जो भी कुछ मांगा जाता है वो जरूरत मिलता है. गणेश जी के शरीर पर नाग देवता भी लिपटे हुए हैं. इसीलिए भक्तों पर गणेश जी के साथ-साथ शिव जी की भी कृपा रहती है'.
साल 2017 में खंडित की गई थी मूर्ति
2017 में कुछ असामाजिक तत्वों ने मूर्ति को पहाड़ से गिरा दिया था और तीन फीट की ये मूर्ति कई टुकड़ों में बंट गई थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन और पुरातत्व विभाग ने मूर्ति को जोड़कर दोबारा स्थापित करवा दिया.
पढ़ें- Ganesh Chaturthi 2019: ऐसे करें भगवान गणेश को प्रसन्न, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त
ढोलकाल गणेश लोगों ने आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ पर्यटन स्थल के लिए भी मशहूर है, लिहाजा प्रशासन ने यहां टूरिस्ट गाइड भी नियुक्त किए हैं. ये टूरिस्ट गाइड लोगों को ऊपर तक सुरक्षित पहुंचा कर गणेश के दर्शन कराते हैं. तो इस गणेशोत्सव पर आप भी प्रकृति की गोद में बैठे ढोलकाल गणेश के दर्शन करने जरूर जाएं और अपनी आंखों में ये सुंदर दृश्य जरूर कैद कर आएं.