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छत्तीसगढ़: यहां प्रकृति की गोद में बसे हैं ढोलकाल गणेश, शक्ति के रूप में पूजते हैं आदिवासी

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Published : Sep 2, 2019, 4:34 PM IST

Updated : Sep 29, 2019, 4:32 AM IST

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में ढोलकाल पर्वत पर बसे गणेश जी के दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. गणेशोत्सव के मौके पर ETV भारत पर देखिए ढोलकाल गणेश का इतिहास.

कॉन्सेप्ट इमेज ( भगवान गणेश)

रायपुर : वैसे तो बस्तर अपनी प्राकृतिक सुंदरता की वजह से दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन बस्तर संभाग को और भी खूबसूरत बनाती हैं यहां की प्राचीन धरोहरें, जिनकी वजह से बस्तर संभाग और भी ज्यादा समृद्ध हो जाता है. इन्हीं धरोहरों में से एक हैं दंतेवाड़ा के ढोलकाल गणेश, जो हजारों फीट की ऊंचाई पर विराजे हैं, जिनके दर्शन हम आपको गणेशोत्सव के मौके पर करवा रहे हैं.

जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर स्थित ढाई हजार फीट की ऊंचाई पर विराजमान है ढोलकाल गणेश. यहां तक पहुंचना आसान नहीं है. पहाड़ के उबड़-खाबड़ रास्ते, कटीले पेड़-पौधों को पार करने के बाद 11वीं शताब्दी की इस मूर्ति के दर्शन होते हैं, लेकिन तमाम परेशानियों को झेलते हुए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

गणपति को शक्ति के रूप में पूजते हैं आदिवासी
सर्व आदिवासी समाज के प्रमुख सदस्य बल्लू भोगामी बताते हैं कि, 'आदिवासियों द्वारा पूरे ढोलकाल पहाड़ ही आदि शक्ति के रूप में पूजा जाता है. गणेश जी की ये प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है, लेकिन पूर्वज कहते हैं कि सदियों से आदिवासी गणेश देवता की पूजा शक्ति के रूप में करते आ रहे हैं'.

गणेश चतुर्थी पर पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचे पुजारी सहदेव मंडावी का कहना है कि, 'ललितासन में विराजे गणेश भगवान से जो भी कुछ मांगा जाता है वो जरूरत मिलता है. गणेश जी के शरीर पर नाग देवता भी लिपटे हुए हैं. इसीलिए भक्तों पर गणेश जी के साथ-साथ शिव जी की भी कृपा रहती है'.

साल 2017 में खंडित की गई थी मूर्ति
2017 में कुछ असामाजिक तत्वों ने मूर्ति को पहाड़ से गिरा दिया था और तीन फीट की ये मूर्ति कई टुकड़ों में बंट गई थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन और पुरातत्व विभाग ने मूर्ति को जोड़कर दोबारा स्थापित करवा दिया.

पढ़ें- Ganesh Chaturthi 2019: ऐसे करें भगवान गणेश को प्रसन्न, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

ढोलकाल गणेश लोगों ने आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ पर्यटन स्थल के लिए भी मशहूर है, लिहाजा प्रशासन ने यहां टूरिस्ट गाइड भी नियुक्त किए हैं. ये टूरिस्ट गाइड लोगों को ऊपर तक सुरक्षित पहुंचा कर गणेश के दर्शन कराते हैं. तो इस गणेशोत्सव पर आप भी प्रकृति की गोद में बैठे ढोलकाल गणेश के दर्शन करने जरूर जाएं और अपनी आंखों में ये सुंदर दृश्य जरूर कैद कर आएं.

रायपुर : वैसे तो बस्तर अपनी प्राकृतिक सुंदरता की वजह से दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन बस्तर संभाग को और भी खूबसूरत बनाती हैं यहां की प्राचीन धरोहरें, जिनकी वजह से बस्तर संभाग और भी ज्यादा समृद्ध हो जाता है. इन्हीं धरोहरों में से एक हैं दंतेवाड़ा के ढोलकाल गणेश, जो हजारों फीट की ऊंचाई पर विराजे हैं, जिनके दर्शन हम आपको गणेशोत्सव के मौके पर करवा रहे हैं.

जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर स्थित ढाई हजार फीट की ऊंचाई पर विराजमान है ढोलकाल गणेश. यहां तक पहुंचना आसान नहीं है. पहाड़ के उबड़-खाबड़ रास्ते, कटीले पेड़-पौधों को पार करने के बाद 11वीं शताब्दी की इस मूर्ति के दर्शन होते हैं, लेकिन तमाम परेशानियों को झेलते हुए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

गणपति को शक्ति के रूप में पूजते हैं आदिवासी
सर्व आदिवासी समाज के प्रमुख सदस्य बल्लू भोगामी बताते हैं कि, 'आदिवासियों द्वारा पूरे ढोलकाल पहाड़ ही आदि शक्ति के रूप में पूजा जाता है. गणेश जी की ये प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है, लेकिन पूर्वज कहते हैं कि सदियों से आदिवासी गणेश देवता की पूजा शक्ति के रूप में करते आ रहे हैं'.

गणेश चतुर्थी पर पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचे पुजारी सहदेव मंडावी का कहना है कि, 'ललितासन में विराजे गणेश भगवान से जो भी कुछ मांगा जाता है वो जरूरत मिलता है. गणेश जी के शरीर पर नाग देवता भी लिपटे हुए हैं. इसीलिए भक्तों पर गणेश जी के साथ-साथ शिव जी की भी कृपा रहती है'.

साल 2017 में खंडित की गई थी मूर्ति
2017 में कुछ असामाजिक तत्वों ने मूर्ति को पहाड़ से गिरा दिया था और तीन फीट की ये मूर्ति कई टुकड़ों में बंट गई थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन और पुरातत्व विभाग ने मूर्ति को जोड़कर दोबारा स्थापित करवा दिया.

पढ़ें- Ganesh Chaturthi 2019: ऐसे करें भगवान गणेश को प्रसन्न, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

ढोलकाल गणेश लोगों ने आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ पर्यटन स्थल के लिए भी मशहूर है, लिहाजा प्रशासन ने यहां टूरिस्ट गाइड भी नियुक्त किए हैं. ये टूरिस्ट गाइड लोगों को ऊपर तक सुरक्षित पहुंचा कर गणेश के दर्शन कराते हैं. तो इस गणेशोत्सव पर आप भी प्रकृति की गोद में बैठे ढोलकाल गणेश के दर्शन करने जरूर जाएं और अपनी आंखों में ये सुंदर दृश्य जरूर कैद कर आएं.

Intro:ढाई हजार फीट की ऊंचाई पर ललिता आसान में बिराजमान है ढोलकाल के गणेश दंतेवाड़ा। जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर स्थिति पहाड़ी पर बिराजमान गणेश के दर्शन करनेके लिए पर्यटकों की भीड़ उमड़ रही है। ये भीड़ गणेश चतुर्थी की वजह से और भी ज्यादा हो रही है। यहां पहुंचने के लिए पहाड़ियों को पार कर जाना होता है। कड़ी मशक्कत के बाद 11 वी शताब्दी की इस मूर्ति के दर्शन होते है। सर्व आदिवासी समाज के प्रमुख सदस्य बाल्लू भोगामी बताते है कि आदिवासियों के लिए ढोलकाल पूरा पहाड़ ही आदि शक्ति के रूप में पूजा जाता है। यह मूर्ति 11 वी शताब्दी की बताई जाती है। लेकिन पूर्वज कहते है सदियों से गणेश देवता की पूजा आदिवासी शक्ति के रूप में करते आ रहे है। इधर गणेश चतुर्थी के दिन पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचे पुजारी सहदेव मंडावी का कहना है कि कोई भी मनोकामना ललिता आसान में विराजित गणेश पूरी करते है। ऐसे गणेश बहुत कम ही देखेने को मिलते है। उनके शरीर मे नाग देवता भी लपटे हुए है। इस लिए शिव की भी गणेश के साथ भक्तो पर कृपा रहती है।


Body:2017 में खण्डित की गई थी मूर्ति 2017 में कुछ असामाजिक तत्वों ने मूर्ति को पहाड़ से गिरा दिया था। तीन फीट की इस मूर्ति के के टुकड़े हो गए थे। जैसे ही यहब ख़बर फैली तो आदिवासी एक जुट हो गया। इधर पुरातत्व गीभग और स्थानीय प्रशासन ने टुकड़ो को एक जुट कर दोबारा से जुड़वाया। इसके बाद पुनः शापित करवाया गया। करीब एक हफ्ते तक मूर्ति को स्थापित करने के लिए विभाग जुटा रहा।


Conclusion:अब टूरिस्ट गाइड भी है मौजूद प्रशासन ढोलकाल के गणेश दर्शन के लिए रास्ता तो सुलभ नही किया है , लेकिन टूरिस्ट गाइड की नियुक्ति की है। ये सभी आने वाले लोंगो को सुरक्षित गणेश के दर्शन करवाते है। पहाड़ी के पहले हैण्डपम्प और शौचालय तैयार किये गए है। इससे श्रद्धालुओं और पर्यटकों को राहत मिली है। byt टूरिस्ट byt श्रद्धालु byt बल्लू भगामी byt पुजारी vis
Last Updated : Sep 29, 2019, 4:32 AM IST
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