हैदराबाद : हम एक ऐसे देश में हैं जहां लगभग आधी नदियों का जल दूषित हो गया है. यह सिर्फ नदियों के साथ नहीं है. आज असंख्य तालाब, अन्य जल निकाय और भूजल भी प्रदूषित हो रहे हैं.
हैदराबाद के महानगरीय क्षेत्र के भीतर औद्योगिक और रासायनिक अपशिष्टों से कुल 185 जल निकायों की स्थिति बदतर हालत में है.
हालांकि लॉकडाउन के कारण पानी और वायु की गुणवत्ता में कुछ हद तक सुधार हुआ है. हाल ही में हुई बारिश से जमा हुए अपशिष्टों से दोबारा यह समस्या सामने आई है और इसके कारण दुर्गंध भी फैल रही है.
हैदराबाद के हुसैन सागर सहित सभी जल स्रोतों में रासायनिक कचरा डाला जा रहा है, जिस पर सरकार ने शुद्धिकरण के नाम पर 400 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
तेलंगाना उच्च न्यायालय ने अधिकारियों पर जल निकायों में अवैध अतिक्रमण और घरों के निर्माण पर चुप्पी का आरोप लगाया है और हाल ही में जनवरी के महीने में टिप्पणी की है कि क्या सरकार 'हैदराबाद को जैसलमेर की तरह बदलना चाहेगी'!
वहीं इसी महीने 'मुन्नरु वागु' में सैकड़ों बत्तखों की मौत ने हंगामा खड़ा कर दिया. पूर्व में भी, गांडीगुडेम और गद्दी पोटाराम पेद्दा चेरुवु में बड़े पैमाने पर मृत मछलियों का ढेर लग गया था. इसका कारण रासायनिक अपशिष्ट है. इस पर क्लोरोमेटेन की भूमिका पर गहराई से लेख लिखे गए हैं.
यह समस्या किसी एक क्षेत्र या कुछ राज्यों तक ही सीमित नहीं है.
'द वाटर एड' संगठन का अध्ययन है कि देश में जमीन का 80 प्रतिशत पानी दूषित हो चुका है, जोकि स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है.
उल्लेखनीय है कि साठ के दशक में बेंगलुरु शहर 260 से अधिक झीलों के साथ संपन्न था, लेकिन आज यहां केवल दस झीलें बची हैं. अहमदाबाद शहर में दो दशक पहले 137 जल निकाय थे. 2012 तक अतिक्रमण और निर्माण के कारण उनमें से आधे को खो दिया है.
यह अनुमान है कि पिछले बारह वर्षों में शहर के 3200 से अधिक जल स्रोत क्षेत्र गायब हो गए है. छह दशकों में बिहार के पटना जिले में लगभग 800 तालाबों और झीलों पर कब्जा कर लिया गया है.
आंकड़े बताते हैं कि केरल में तीन प्रतिशत जल संसाधन दूषित हैं. भारतीय विज्ञान संस्थान और डॉ रामचंद्र प्रभुपाद जैसे अन्य विज्ञान के प्राध्यापकों ने चेतावनी दी है कि अगर तत्काल सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए तो राष्ट्र में उपलब्ध जल संसाधनों को खो देगा.
सरकारों द्वारा इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और 'नीति आयोग' ने घोषणा की थी कि देश में 60 करोड़ से अधिक लोग पहले से ही पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं. तीन-चौथाई से अधिक जल संसाधनों के दूषित होने के कारण दो लाख लोग सालाना जान गंवा रहे हैं.
ऐसे कई चमत्कार हैं जो विज्ञान कर सकता है, लेकिन मनुष्य पानी नहीं बना सकता है. ऐसे समय में जब प्रकृति से संपन्न पानी की एक-एक बूंद का सही इस्तेमाल किया जाना है, सीमित जल संसाधनों को बर्बाद करना आत्मघाती कदम से कम नहीं है! इस तरह के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत को प्रदूषित करना एक गंभीर अपराध है और अधिकतम सजा का हकदार है.
जब केंद्र और राज्य सरकारें नियमों को सुधारने और जल प्रबंधन के अच्छे मानकों को लागू करने में सफल होंगी, तभी लोगों के जीने का अधिकार सुरक्षित रहेगा.