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नए, युवा और महात्वाकांक्षी नेपाल से निबटना भारत के लिए बड़ी चुनौती

नेपाल में नए राजनीतिक मानचित्र व नए नागरिकता संशोधन विधेयक लाए जाने के साथ ही भारत और इस हिमालयी राष्ट्र के बीच सदियों से चले आ रहे संबंधों में ऐतिहासिक गिरावट देखने को मिली है. पर्यवेक्षकों के अनुसार यदि नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होकर कानून बन जाता है तो इससे दोनों देशों के लोगों के सदियों से चले आ रहे ‘रोटी-बेटी’ के संबंधों पर बहुत बुरा असर होगा. हालांकि पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली भारत विरोधी कदम इसलिए उठा रहे हैं ताकि लोगों का ध्यान भटकाया जा सके क्योंकि कोविड-19 महामारी से निबटने में उनकी विफलता को लेकर उन्हीं की पार्टी के भीतर से उनकी आलोचना हो रही है. फिलहाल वर्तमान में जो स्थिति उभरी है, उसमें नए, युवा और महात्वाकांक्षी नेपाल से निबटना भारत के लिए बड़ी चुनौती है और भारत इससे जितनी जल्दी निबटेगा, वह उसके लिए उतना ही बेहतर होगा.

भारत-नेपाल संबंध
भारत-नेपाल संबंध
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Published : Jul 7, 2020, 4:15 PM IST

नई दिल्ली : नेपाल की संसद ने पिछले महीने एक नया राजनीतिक मानचित्र पारित किया, जिसमें भारतीय क्षेत्र शामिल है. इसके तुरंत बाद हिमालयी राष्ट्र के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने खुले तौर पर भारत पर उन्हें पद से हटाने का प्रयास करने का आरोप लगा दिया. इससे नई दिल्ली और काठमांडू के बीच संबंध में ऐतिहासिक गिरावट आ गई है. इतना ही नहीं, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी संसद में नया नागरिकता संशोधन विधेयक भी लेकर आई. इससे भारत और नेपाल के लोगों के बीच सदियों से चले आ रहे संबंधों पर भी तनावपूर्ण स्थिति बन गई है.

पिछले महीने ओली ने संसद में नेपाल का नया मानचित्र पारित कराया, जिसमें भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को शामिल दिखाया गया. ऐसा भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा कैलाश मानसरोवर के यात्रियों की सुविधा के लिए लिपुलेख तक बनी रोड के उद्घाटन के बाद किया गया.

नेपाल की संसद के निचले सदन, जनप्रतिनिधि सभा में गत 13 जून को जब यह विधेयक पारित किया गया, तब भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, 'कृत्रिम तरीके से उपजाए गए इन दावों का ऐतिहासिक तथ्य या प्रमाण पर कोई आधार नहीं होने से इसे मान्य नहीं किया जा सकता. यह सीमा सम्बन्धी प्रश्नों को बातचीत से सुलझाने के वर्तमान करार का भी उल्लंघन है.'

कोविड-19 महामारी से त्रस्त लोगों के घाव पर नमक छिड़कने जैसा काम नागरिकता संशोधन विधेयक ने किया, जिसे संसद की घरेलू मामले और अच्छे प्रशासन की समिति के सदस्यों ने 21 जून को अपना समर्थन दिया.

इस नए संशोधन के अनुसार नेपाली पुरुष से विदेशी महिला की शादी होने के बाद उस महिला को नेपाली नागरिकता सात साल के इंतजार के बाद ही मिल सकती है, जो पहले शादी के तुरंत बाद मिल जाती थी. अगर कोई विदेशी पुरुष किसी नेपाली महिला से शादी करता है तो उसे नेपाल की नागरिकता के लिए 15 साल इंतजार करना पड़ेगा.

इससे दोनों देशों के लोगों में, विशेष रूप से सीमा के निकट रह रहे भारतीय परिवारों में, जबर्दस्त असंतोष पैदा हुआ क्योंकि उनमें से कई ने अपनी बेटियों की शादी नेपाली पुरुषों से कराई है. दोनों देशों के बीच खुली सीमा व्यवस्था के कारण सीमा-पार की शादियां सदियों से होती रही हैं. इसने विशेष रूप से मधेशी लोगों को परेशान किया है, जो नेपाल के तराई क्षेत्र में सदियों से रहने वाले भारतीय मूल के हैं और अब वर्षों से समान अधिकारों, सम्मान और पहचान के लिए लड़ रहे हैं.

पढ़ें : भारत को नेपाल के प्रति अपनी कूटनीति पर दोबारा मंथन की जरूरत

पर्यवेक्षकों के अनुसार यदि नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होकर कानून बन जाता है तो इससे दोनों देशों के लोगों के सदियों से चले आ रहे ‘रोटी-बेटी’ के संबंधों पर बहुत बुरा असर होगा. शादी के रिश्ते से दोनों देशों की सीमा पर रहने वाले न केवल सामान्य लोग जुड़े हैं बल्कि दोनों देश के राजघराने भी जुड़े हैं. नेपाल के महाराजा त्रिभुवन की दोनों रानियां भारत के राजघराने की हैं. नेपाल के पूर्व उत्तराधिकारी राजकुमार पारस की विधवा हिमानी राज्यलक्ष्मी देवी शाह भी राजस्थान के सीकर के शाही परिवार से हैं. इसी तरह, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री मोहन शमशेर राणा की चचेरी बहन की शादी कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के बेटे डॉ. कर्ण सिंह से हुई है. साथ ही, कांग्रेस के पूर्व सांसद और अब भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की, जो ग्वालियर के शाही परिवार से हैं, मां नेपाल से हैं.

इन सभी के अलावा भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार 2018-19 में 8.27 बिलियन डॉलर था. नई दिल्ली, काठमांडू का एक प्रमुख विकास सहायता भागीदार भी है. भारतीय कंपनियां हिमालयी राष्ट्र में सबसे बड़े निवेशकों में से हैं, जो कुल स्वीकृत विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों में से 30 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं.

भारत और नेपाल के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि है. इस संधि के प्रावधानों के अनुसार नेपाली नागरिक भारतीय नागरिकों के समान सुविधाओं और अवसरों का लाभ उठाते हैं. भारत में लगभग अस्सी लाख नेपाली नागरिक रहते हैं और काम करते हैं.

तब फिर क्यों आज ऐसे हालात हुए?
पर्यवेक्षकों के अनुसार प्रधानमंत्री ओली भारत विरोधी कदम इसलिए उठा रहे हैं ताकि लोगों का ध्यान भटकाया जा सके क्योंकि कोविड-19 महामारी से निबटने में उनकी विफलता को लेकर उन्हीं की पार्टी के भीतर से उनकी आलोचना हो रही है. पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कुमार दहल 'प्रचंड' ने ओली से प्रधानमंत्री के रूप में या पार्टी के सहअध्यक्ष के पद से इस्तीफे की मांग की है.

ओली ने गत जून 28 को एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान यह आरोप लगाया कि भारत उन्हें उनके पद से हटाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि 2015 के अंत से, राजनीतिक मुद्दों और सीमा विवादों ने दोनों देशों की सरकारों के बीच तनाव बढ़ा दिया है और नेपाल के लोगों और सरकार को भारत विरोधी भावना से भर दिया है.

सितंबर 2015 में, मधेसी समूहों ने देश में एक नए संविधान की घोषणा के बाद भारत के साथ सीमा पर आर्थिक नाकेबंदी का आयोजन किया. यह संविधान राजशाही के उन्मूलन के बाद और माओवादी विद्रोह के अंत में लाया गया था, जिसका नेतृत्व दहल ने किया था. काठमांडू ने आरोप लगाया था कि नाकेबंदी के पीछे भारत का हाथ था और नई दिल्ली नए संविधान के गठन में हस्तक्षेप कर रहा था.

पढ़ें : विशेष : 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के कारण नेपाल गया चीन के करीब

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डॉ एस.डी. मुनि के अनुसार हाल के दिनों में नेपाली राष्ट्रवाद मजबूत होकर उभरा है.

मुनि ने ईटीवी भारत को बताया, 'यह उस समय से अलग नेपाल है, जब भारत सरकार वहां की राजशाही से सरोकार रखती थी. नेपाल के युवा अब भारत को उस नजर से नहीं देखते, जैसा पहले देखते थे.'

मुनि के विचारों का प्रतिबिम्ब देते हुए नई दिल्ली की आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो और पडोसी क्षेत्र के अध्ययन परियोजना में कार्यरत हैं के य्होम कहते हैं- 'यह एक नया नेपाल, एक युवा नेपाल और एक महत्वाकांक्षी नेपाल है. इससे कैसे निबटा जाए, यह एक बड़ी चुनौती है. लेकिन हम इससे जितनी जल्दी निबटेंगे, वह हमारे लिए बेहतर होगा.'

नेपाल की अपनी आतंरिक समस्याएं हैं, जैसी किसी भी अन्य लोकतांत्रिक देश की होती हैं. लेकिन के. य्होम कहते हैं कि एक महत्वाकांक्षी देश दुनिया को अलग दृष्टिकोण से देख रहा है.

ओली की नई दिल्ली विरोधी चालें उस समय भी आई हैं, जब भारत और चीन लद्दाख क्षेत्र में सीमा विवाद में उलझे हैं. हालांकि ओली को हमेशा चीन समर्थक के रूप में देखा जाता रहा है, मुनि के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से जब भी नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंधों में समस्याएं खड़ी हुई, नेपाल हमेशा चीन की ओर झुकता रहा है. वह कहते हैं- 'चीन के पास नेपाल में निवेश करने के लिए बड़ा वित्त है.'

चीन ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत नेपाल में पनबिजली परियोजनाओं और काठमांडू से तिब्बत में केरूंग तक एक रेलवे लाइन का निवेश शुरू किया है. मुनि बताते हैं- 'भारत हालांकि नेपाल के विकास का बड़ा सहभागी रहा है, फिर भी उसने पिछले कई सालों से वहां कोई बड़ी योजना नहीं बनाई है. हमें नेपाल के साथ सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंध अलग ढंग से बनाने होंगे.'

(अरुणिम भुयान)

नई दिल्ली : नेपाल की संसद ने पिछले महीने एक नया राजनीतिक मानचित्र पारित किया, जिसमें भारतीय क्षेत्र शामिल है. इसके तुरंत बाद हिमालयी राष्ट्र के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने खुले तौर पर भारत पर उन्हें पद से हटाने का प्रयास करने का आरोप लगा दिया. इससे नई दिल्ली और काठमांडू के बीच संबंध में ऐतिहासिक गिरावट आ गई है. इतना ही नहीं, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी संसद में नया नागरिकता संशोधन विधेयक भी लेकर आई. इससे भारत और नेपाल के लोगों के बीच सदियों से चले आ रहे संबंधों पर भी तनावपूर्ण स्थिति बन गई है.

पिछले महीने ओली ने संसद में नेपाल का नया मानचित्र पारित कराया, जिसमें भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को शामिल दिखाया गया. ऐसा भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा कैलाश मानसरोवर के यात्रियों की सुविधा के लिए लिपुलेख तक बनी रोड के उद्घाटन के बाद किया गया.

नेपाल की संसद के निचले सदन, जनप्रतिनिधि सभा में गत 13 जून को जब यह विधेयक पारित किया गया, तब भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, 'कृत्रिम तरीके से उपजाए गए इन दावों का ऐतिहासिक तथ्य या प्रमाण पर कोई आधार नहीं होने से इसे मान्य नहीं किया जा सकता. यह सीमा सम्बन्धी प्रश्नों को बातचीत से सुलझाने के वर्तमान करार का भी उल्लंघन है.'

कोविड-19 महामारी से त्रस्त लोगों के घाव पर नमक छिड़कने जैसा काम नागरिकता संशोधन विधेयक ने किया, जिसे संसद की घरेलू मामले और अच्छे प्रशासन की समिति के सदस्यों ने 21 जून को अपना समर्थन दिया.

इस नए संशोधन के अनुसार नेपाली पुरुष से विदेशी महिला की शादी होने के बाद उस महिला को नेपाली नागरिकता सात साल के इंतजार के बाद ही मिल सकती है, जो पहले शादी के तुरंत बाद मिल जाती थी. अगर कोई विदेशी पुरुष किसी नेपाली महिला से शादी करता है तो उसे नेपाल की नागरिकता के लिए 15 साल इंतजार करना पड़ेगा.

इससे दोनों देशों के लोगों में, विशेष रूप से सीमा के निकट रह रहे भारतीय परिवारों में, जबर्दस्त असंतोष पैदा हुआ क्योंकि उनमें से कई ने अपनी बेटियों की शादी नेपाली पुरुषों से कराई है. दोनों देशों के बीच खुली सीमा व्यवस्था के कारण सीमा-पार की शादियां सदियों से होती रही हैं. इसने विशेष रूप से मधेशी लोगों को परेशान किया है, जो नेपाल के तराई क्षेत्र में सदियों से रहने वाले भारतीय मूल के हैं और अब वर्षों से समान अधिकारों, सम्मान और पहचान के लिए लड़ रहे हैं.

पढ़ें : भारत को नेपाल के प्रति अपनी कूटनीति पर दोबारा मंथन की जरूरत

पर्यवेक्षकों के अनुसार यदि नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होकर कानून बन जाता है तो इससे दोनों देशों के लोगों के सदियों से चले आ रहे ‘रोटी-बेटी’ के संबंधों पर बहुत बुरा असर होगा. शादी के रिश्ते से दोनों देशों की सीमा पर रहने वाले न केवल सामान्य लोग जुड़े हैं बल्कि दोनों देश के राजघराने भी जुड़े हैं. नेपाल के महाराजा त्रिभुवन की दोनों रानियां भारत के राजघराने की हैं. नेपाल के पूर्व उत्तराधिकारी राजकुमार पारस की विधवा हिमानी राज्यलक्ष्मी देवी शाह भी राजस्थान के सीकर के शाही परिवार से हैं. इसी तरह, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री मोहन शमशेर राणा की चचेरी बहन की शादी कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के बेटे डॉ. कर्ण सिंह से हुई है. साथ ही, कांग्रेस के पूर्व सांसद और अब भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की, जो ग्वालियर के शाही परिवार से हैं, मां नेपाल से हैं.

इन सभी के अलावा भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार 2018-19 में 8.27 बिलियन डॉलर था. नई दिल्ली, काठमांडू का एक प्रमुख विकास सहायता भागीदार भी है. भारतीय कंपनियां हिमालयी राष्ट्र में सबसे बड़े निवेशकों में से हैं, जो कुल स्वीकृत विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों में से 30 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं.

भारत और नेपाल के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार 1950 की भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि है. इस संधि के प्रावधानों के अनुसार नेपाली नागरिक भारतीय नागरिकों के समान सुविधाओं और अवसरों का लाभ उठाते हैं. भारत में लगभग अस्सी लाख नेपाली नागरिक रहते हैं और काम करते हैं.

तब फिर क्यों आज ऐसे हालात हुए?
पर्यवेक्षकों के अनुसार प्रधानमंत्री ओली भारत विरोधी कदम इसलिए उठा रहे हैं ताकि लोगों का ध्यान भटकाया जा सके क्योंकि कोविड-19 महामारी से निबटने में उनकी विफलता को लेकर उन्हीं की पार्टी के भीतर से उनकी आलोचना हो रही है. पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के सह अध्यक्ष पुष्प कुमार दहल 'प्रचंड' ने ओली से प्रधानमंत्री के रूप में या पार्टी के सहअध्यक्ष के पद से इस्तीफे की मांग की है.

ओली ने गत जून 28 को एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान यह आरोप लगाया कि भारत उन्हें उनके पद से हटाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि 2015 के अंत से, राजनीतिक मुद्दों और सीमा विवादों ने दोनों देशों की सरकारों के बीच तनाव बढ़ा दिया है और नेपाल के लोगों और सरकार को भारत विरोधी भावना से भर दिया है.

सितंबर 2015 में, मधेसी समूहों ने देश में एक नए संविधान की घोषणा के बाद भारत के साथ सीमा पर आर्थिक नाकेबंदी का आयोजन किया. यह संविधान राजशाही के उन्मूलन के बाद और माओवादी विद्रोह के अंत में लाया गया था, जिसका नेतृत्व दहल ने किया था. काठमांडू ने आरोप लगाया था कि नाकेबंदी के पीछे भारत का हाथ था और नई दिल्ली नए संविधान के गठन में हस्तक्षेप कर रहा था.

पढ़ें : विशेष : 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के कारण नेपाल गया चीन के करीब

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डॉ एस.डी. मुनि के अनुसार हाल के दिनों में नेपाली राष्ट्रवाद मजबूत होकर उभरा है.

मुनि ने ईटीवी भारत को बताया, 'यह उस समय से अलग नेपाल है, जब भारत सरकार वहां की राजशाही से सरोकार रखती थी. नेपाल के युवा अब भारत को उस नजर से नहीं देखते, जैसा पहले देखते थे.'

मुनि के विचारों का प्रतिबिम्ब देते हुए नई दिल्ली की आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो और पडोसी क्षेत्र के अध्ययन परियोजना में कार्यरत हैं के य्होम कहते हैं- 'यह एक नया नेपाल, एक युवा नेपाल और एक महत्वाकांक्षी नेपाल है. इससे कैसे निबटा जाए, यह एक बड़ी चुनौती है. लेकिन हम इससे जितनी जल्दी निबटेंगे, वह हमारे लिए बेहतर होगा.'

नेपाल की अपनी आतंरिक समस्याएं हैं, जैसी किसी भी अन्य लोकतांत्रिक देश की होती हैं. लेकिन के. य्होम कहते हैं कि एक महत्वाकांक्षी देश दुनिया को अलग दृष्टिकोण से देख रहा है.

ओली की नई दिल्ली विरोधी चालें उस समय भी आई हैं, जब भारत और चीन लद्दाख क्षेत्र में सीमा विवाद में उलझे हैं. हालांकि ओली को हमेशा चीन समर्थक के रूप में देखा जाता रहा है, मुनि के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से जब भी नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंधों में समस्याएं खड़ी हुई, नेपाल हमेशा चीन की ओर झुकता रहा है. वह कहते हैं- 'चीन के पास नेपाल में निवेश करने के लिए बड़ा वित्त है.'

चीन ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत नेपाल में पनबिजली परियोजनाओं और काठमांडू से तिब्बत में केरूंग तक एक रेलवे लाइन का निवेश शुरू किया है. मुनि बताते हैं- 'भारत हालांकि नेपाल के विकास का बड़ा सहभागी रहा है, फिर भी उसने पिछले कई सालों से वहां कोई बड़ी योजना नहीं बनाई है. हमें नेपाल के साथ सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंध अलग ढंग से बनाने होंगे.'

(अरुणिम भुयान)

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