अफसोस है कि हमारी कानूनी व्यवस्था समकालीन समाज में न्याय देने में विफल रही है. न्याय उन पीड़ितों के लिए एक ओएसिस के रूप में बदल जा रहा है, जो बलात्कार, अत्याचार, उत्पीड़न, यातना और अन्य क्रूरताओं का शिकार होते हैं.
जब तक कोई लड़की मुख्यमंत्री के आवास पर आत्महत्या का प्रयास नहीं करती है, और न्याय के लिए चिल्लाती नहीं है, तब तक राज्य में कानूनी तंत्र की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है जो निश्चित तौर पर लापरवाही और गैरजिम्मेदारी का उदाहरण है.
उत्तर प्रदेश में ऐसी ही एक घटना हुई. दरअसल, यह मामला बिल्कुल फिट है, कि कैसे अपराधी ने अमानवीय तरीके से काम किया. अधकारियों संग मिलकर बर्बरता की. जो अधिकारी जांच में शामिल थे, डेढ़ महीने के भीतर ही उन्हें जांच से निकाल दिया गया, वो भी सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद. इस मामले में मुख्य आरोपी को दोषी ठहराकर आजीवन कैद की सजा सुना दी गई है.
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने हाल के दिनों में अपराधियों को खत्म करने के लिए नई व्यवस्था अपनाई है. इस प्रक्रिया में 100 से अधिक अपराधियों और असामाजिक तत्वों को सजा मिली.
आदित्यनाथ की सरकार बनने के ठीक तीन महीने बाद 2017 में मनखी गांव की एक 17 साल की लड़की लापता हो गई. आरोप लगाया गया कि तत्कालीन भाजपा विधायक, कुलदीप सिंह सेंगर, उनके भाई अथूप सिंह और उनके अनुयायियों ने पीड़िता के साथ गैंगरेप किया. उनके माता-पिता ने गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया था. उसके बाद ही पीड़िता को उनके चंगुल से मुक्त कराया जा सका.
पुलिस उस विधायक पर मामला दर्ज करने से हिचकती रही. हद तो ये रहा कि पीड़िता को शादी करने के लिए मजबूर किया गया. अपहरण का मामला दर्ज कराया गया. इस बीच विधायक और उनके गुर्गों ने पीड़िता के पिता की पिटाई कर दी. उन पर अवैध हथियार रखने का मामला दर्ज हुआ. पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया. पीड़िता को जान से मारने की धमकी दी गई. इसके बाद पीड़िता ने सीएम आवास के सामने आत्महत्या की कोशिश की. अगले ही दिन पीड़िता के पिता का शव पुलिस हिरासत में मिला.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने कार्रवाई शुरू की और मामले में शामिल विधायक, उनके भाई और अनुयायियों को गिरफ्तार कर लिया गया.
दिलचस्प बात यह है कि सीबीआई ने तत्काल कदम नहीं उठाए और मामले को एक साल से अधिक समय तक टाल दिया. इस बीच, आपराधिक विधायक भाइयों ने अलग-अलग तरीकों से पीड़ितों के परिजनों को परेशान करने के लिए सहारा लिया. पीड़िता के चाचा को कथित हत्या के एक मामले में 10 साल की सजा हो गई.
उत्पीड़न का सिलसिला यही नहीं थमा. कहा जाता है कि विधायक ने उनके पूरे परिवार को मारने की योजना बनाई थी. पीड़िता का पूरा परिवार जब कहीं जा रहा था, तो सामने से आती लॉरी ने उनकी गाड़ी जोरदार टक्कर मारी. इस हमले में पीड़िता और वकील घायल हो गए. उनके दो रिश्तेदार मारे गए.
इस घटना को लेकर जब पूरे देश में हंगामा हुआ और जघन्य अपराध पर नाराजगी के साथ जनता ने विरोध प्रदर्शन किया, तो विधायक सेंगर को भाजपा ने पार्टी से निष्कासित कर दिया.
बाद में अदालत ने दोषी साबित होने पर विधायक को उम्रकैद की सजा सुनाई. मामले की सुनवाई में तेजी तब आई, जब पीड़िता ने अपने सुसाइड की धमकी दी थी. इस मामले को दिल्ली की कोर्ट में तबादला कर दिया गया था. नियमित सुनवाई के बाद अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया. लेकिन पुलिस और जांच एजेंसियों का क्या हुआ, इस पर कोई जवाब नहीं मिला है.
उन्नाव मामले पर दृढ़ता से प्रतिक्रिया देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल की एक अपील को खारिज करने से इनकार कर दिया कि अदालत को कानून के अनुसार पीड़ित को मुआवजा देना है.
न्यायालय ने काफी सख्त टिप्पणी की कि क्या देश में अधिनियम और कानून के अनुसार कुछ भी चल रहा है या नहीं. शीर्ष अदालत ने इन अपराधों और घटनाओं पर कुछ प्रमुख टिप्पणियां कीं. यह भी जानना चाहा कि वास्तव में देश में क्या हो रहा है.
यूपी में ही जब एक पीड़िता अपराधियों के खिलाफ बलात्कार के मामले में सुनवाई के लिए आ रही थी, तो गुंडों ने उस पर पेट्रोल से हमला कर दिया. वह आग की लपटों में चीखती चिल्लाती भागती रही. अस्पताल में अपनी मौत से पहले उसने अपील कि उनके गुनाहगारों को फांसी की सजा जरूर मिले.
इसी तरह का एक मामला पंजाब में भी देखने को मिला. बलात्कार की शिकार पीड़िता ने सुसाइड कर लिया. ऐसा इसलिए क्योंकि पुलिस ने मामला दर्ज करने से इनकार कर दिया था.
इसे कानून व्यवस्था का मजाक ही कहें, कि राजनीति ऐसे अपराधियों को शक्ति प्रदान करती है. इससे ना सिर्फ संवैधानिक भावना की अवहेलना होती है, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव भी कमजोर होती है. एक बार तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि उन्हें ऐसे लोगों के करीब जाने से परहेज होता है, जो अपना सिर उठाकर चल नहीं सकते हैं.
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भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली ने खुद ही यह भयावह स्थिति बना ली है. इसमें पॉलिटिकल पार्टी जीतने वाले अपराधियों पर दांव लगाते हैं. और जीतने वाले को प्रोत्साहित करते हैं. उन्हें अत्यंत सम्मान के साथ सदन भेज देते हैं.
कोई भी राजनीतिक दल सेंगर के खिलाफ बोलने को तैयार नहीं थी. वह चार बार विधायक रह चुका है. वह कांग्रेस, बसपा, सपा और भाजपा चारों पार्टी में रह चुका है.
यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए, कि ऐसे अपराध हर जगह होते हैं. ऐसे अपराधी राजनेताओं के इशारे पर काम करते हैं. कोई भी व्यक्ति सेंगर के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं कर सकता था. हैरानी की बात है कि कानून उसके भाई पर कार्रवाई करने में विफल रहा, जिसने एसपी पर जानलेवा हमला किया था. यह बात विशेष अदालत के न्यायाधीश ने उन्नाव मामले में अपने फैसले के दौरान कही. उन्होंने कहा कि संविधान और अधिनियम देश में किसी भी अन्य से अधिक हैं.
कोर्ट की यह टिप्पणी अपने आप में बहुत कुछ कहती है. हमें अपने संविधान और संविधान के उद्देश्यों को बचाना है, तो ऐसे राजनीतिक अपराधियों को खत्म करना होगा. अन्यथा स्थिति और भी खराब होगी. पुलिस और जांच एजेंसियां कट्टर अपराधियों के लिए ना हों. समय आ गया है कि राजनीतिक दल कानून के नियमों का पालन करने करते हुए इस विकृत प्रणाली को दफन कर दें, अन्यथा अपने 'भस्मासुर' अपराधी राजनीति का हाथ अपने सिर पर रख लें.