हैदराबाद : दुनियाभर के देश लॉकडाउन नियमों और छूट को बढ़ाने के लिए कमर कस रहे हैं. कोविड19 से उबरने वालों, इम्युनिटी पासपोर्ट और एंटीबॉडी परीक्षणों के सकारात्मक परिणाम वाले लोगों को लेकर बहस जारी है.
हालांकि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि एक बार किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के एंटीबॉडी विकसित करने के बाद समान वायरस से लड़ने के लिए दोबारा उसके शरीर में रोगप्रतिरोध क्षमता विकसित हो.
ऐसे ही कुछ कारणों की वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इम्युनिटी पासपोर्ट के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है.
यदि कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाता है, तो उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली सफेद रक्त कोशिकाओं को जुटाने में लग जाती है. यह कोशिकाएं वायरस को घेरकर उसे खत्म करने की कोशिश करती हैं. यह प्रक्रिया वायरस द्वारा संक्रमित होने के पांच से 10 दिनों के भीतर शुरू हो जाती है और जारी रहती है.
दूसरी तरफ एंटीबॉडी (जो खास प्रोटीन हैं) -सफेद रक्त कोशिकाओं (लिम्फोसाइट्स के रूप में कहा जाता है) से बनती हैं. वायरस के आसपास की ये कोशिकाएं वायरस को समझने की कोशिश करती हैं.
कोरोना संक्रमण के बाद शरीर में बनी एंटीबॉडीज दो से तीन साल तक रह सकती है. हालांकि यह अलग-अलग रोगी और उनकी शारीरिक क्षमता पर भी निर्भर करती है. व्यक्ति जितना युवा होगा, उसका शरीर उतनी ही शक्तिशाली एंटीबॉडी बनाएगा.
विशेषज्ञ कहते हैं कि आपके शरीर में एंटीबॉडीज हैं, तो वायरस न्यूट्रलाइज हो जाएगा और आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी. हां यह बात जरूर है कि शरीर में एंटीबॉडीज कब तक रहेंगी, यह अब भी सवालों के घेरे में हैं.
हालांकि कुछ सुराख हैं और यह सार्स-कोविड-2 और एमईआरएस से निकटता से जुड़े हुए हैं.
यह एंटीबॉडी एसएआरएस संक्रमित लोगों में दो साल और एमईआर पीड़ितों में तीन साल की अवधि के लिए मौजूद पाए गए हैं.
वास्तव में कुछ ऐसे वायरस होते हैं, जो शरीर के लिए हानिकारक नहीं होते. इन्हीं में से एक है 229 ई वायरस. यह मनुष्यों में केवल ठंड का कारण बन सकता है. साथ ही इससे मनुष्यों से संबंधित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को समझने में मदद मिली है.
साल 1970 में 229 ई वायरस पर किए गए एक शोध में पाया गया कि इस संक्रमण के दौरान बनने वाले एंटीबॉडी एक वर्ष से कम सक्रिय हैं. हालांकि 1990 के दशक में हुए शोध में पता चला कि एक साल बाद वायरस से संक्रमित लोगों में बहुत कम लक्षण दिखाई दिए. इसका सीधा मतलब है कि अगर शरीर में एंटीबॉडी नहीं, तो इसका यह मतलब नहीं है कि प्रतिरक्षा नहीं है.
शंघाई की एक रिसर्च बताती है कि यही दृष्टिकोण कोविड-19 पर भी लागू होता है. उन्होंने कोरोना से संक्रमित 175 लोगों के खून की जांच की. उनमें से अधिकांश में, संक्रमण की शुरुआत के 10-15 दिनों के भीतर एंटीबॉडी बनते देखा गया, जिसमें समय-समय पर बदलाव हुए.
हैरानी की बात है कि खून के लगभग 10 नमूनों में कोई डिटेक्टेबल एंटीबॉडीज नहीं थे. हालांकि यह रोगी ठीक भी हुए हैं.
इससे पता चलता है कि टी-कोशिकाओं जैसे अन्य इम्यूनोसप्रेसिव घटकों की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है.
इसी तरह कोविड-19 रोगियों पर किए शोध से पता चलता है कि वायरस से ठीक होने पर वायरस एक बार फिर से हमला करता है, तो उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस पर जवाबी हमला करने के लिए तैयार होती है, ताकि वायरस पूरे शरीर में न फैले.
शरीर में पर्याप्त न होने के कारण ऐसे लोग एंटीबॉडी आधारित इम्यून पासपोर्ट प्राप्त करने में असमर्थ हैं. नतीजतन, कोई भी लॉकडाउन से नहीं बच सकता.
मुख्य आपत्ति यह है कि भले ही एंटीबॉडी सुरक्षा सही है, फिर भी यह एंटी-बॉडी परीक्षण विश्वसनीय साबित नहीं होते हैं. इसी तरह यह सवाल भी बना हुआ है कि क्या यह एंटीबॉडी वायरस के हमले के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए? जब तक उपरोक्त सभी प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया जाता है, तब तक लॉकडाउन नियमों को शिथिल करने पर उचित निर्णय नहीं लिया जा सकता है.
क्या होती है एंटीबॉडी ?
एंटीबॉडी एक तरह की प्रोटीन होती है, जो शरीर में किसी एंटीजेन जैसे बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या किसी अन्य बीमारी के खिलाफ बनती है. बॉडी का इम्यून सिस्टम उससे लड़ने के लिए जो प्रोटीन बनाता है, उसे ही एंटीबॉडी कहते हैं. एंटीबॉडी जी, एम, ए, बी और ई यानी पांच तरह की होती है.