नई दिल्ली : इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा संकलित एक शोध में कहा गया है कि कॉन्टेक्ट लैंस का उपयोग करने वाले लोगों को कोविड-19 बीमारी से संक्रमित होने का खतरा है. इस वजह से व्यक्ति अंधेपन का शिकार हो सकता है या उसे कॉर्निया प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ सकती है.
अध्ययन में कहा गया है कि माइक्रोबियल केराटाइटिस कॉन्टेक्ट लैंस से संबंधित बीमारी है. यह कॉर्निया को प्रभावित करता है जहां पर कॉन्टेक्ट लैंस लगाया जाता है. यह एक जटिल बहु कारक बीमारी है. हालांकि संपर्क लैंस उपयोगकर्ताओं के बीच इस तरह के संक्रमण की दर काफी कम है परंतु अस्पताल में रोगजनक जीवों के संपर्क में आने से खतरा बढ़ सकता है. आईजेएमआर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा प्रकाशित सबसे पुरानी चिकित्सा पत्रिका में से एक है.
अध्ययन में कहा गया है कि आंख के रंग की सतह, नासोलैक्रिमल नलिका के माध्यम से श्वसन मार्ग से जुड़ी हुई है. कोरोना वायरस आंख से श्वसन मार्ग के जरिए फैल सकता है.
वायु जनित बूंदें आसानी से खुले ऑक्यूलर सतह को संक्रमित कर सकती हैं. इससे जानवरों और मनुष्यों दोनों में विभिन्न प्रकार ऑक्यूलर जटिलताएं पैदा हो सकती हैं. मुमकिन है कि एसएआरएस-सीओवी-2 भी ऑक्यूलर टिश्यू को भी संक्रमित कर सकता है.
रिपोर्ट्स की मानें तो भारत में 1 मिलियन कॉन्टैक्ट लैंस यूजर्स हैं और यह संख्या वर्ष में 15 से 20 प्रतिशत बढ़ रही है. दुनिया में लगभग 140 मिलियन कॉन्टेक्ट लैंस यूजर्स हैं.
SARS-CoV-2 पॉजिटिव मरीजों के आंसू और कंजंक्टिवल एपिथेलियम में कोरोना वायरस पाए गए हैं. हालांकि वर्तमान कॉन्टैक्ट लैंस सॉल्यूशन और SARS-CoV-2 कीटाणुशोधन के बीच कोई अध्ययन नहीं हुआ है.
अध्ययन में कहा गया है कि कॉन्टैक्ट लैंस को पहनने और हटाने से पहले हाथों को सैनिटाइज करना चाहिए.
पीपीई किट में लेयर्स को बढ़ाने से ज्यादा कठिनाई पैदा होगी, क्योंकि इसकी वजह से अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होगी.
इन खतरों से बचने के लिए सलाह दी जाती है कि आप कॉन्टैक्ट लैंस की बजाए चश्मा पहनें. इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि आप चश्मे को उतारकर बार-बार सैनिटाइज कर सकते हैं और उससे कोई खतरा नहीं है. आईजेएमआर ने कहा कि इसमें और शोध की आवश्यकता है.