काठमांडू : नेपाल के निचले सदन ने मंगलवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें लंबी चर्चा के बाद देश के नक्शे में बदलाव के लिए संविधान संशोधन बिल पर विचार करने की मांग की गई थी.
प्रस्ताव 'नेपाल का संविधान (दूसरा संशोधन) विधेयक 2077' देश के एक नए नक्शे से संबंधित है, जिसमें कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख के भारतीय क्षेत्र शामिल हैं.
मधेश-आधारित दलों ने भी प्रतिनिधि सभा में कानून, न्याय और संसदीय मामलों की मंत्री शिवा माया तुंबांगफे द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया.
तुंबांगफे ने सांसदों द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब दिए और हाउस स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोटा ने संशोधन बिल पर विचार करने के लिए प्रस्ताव पेश किया. संशोधनों के सुझाव के लिए सदस्यों को 72 घंटे का समय दिया गया है.
जबकि सदस्यों ने केपी शर्मा ओली सरकार द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव का समर्थन किया, उन्होंने इसे भारत के साथ बातचीत के लिए आगे बढ़ने के लिए कहा है.
गौरतलब है कि नेपाल सरकार ने विगत 31 मई, 2020 (रविवार) को एक अभूतपूर्व घटनाक्रम में संसद में संविधान संशोधन बिल पेश किया, जो देश के आधिकारिक नक्शे में बदलाव करने से संबंधित है.
इसमें भारत के कुछ हिस्सों को नेपाल की सीमाओं के भीतर दर्शाया गया. इस जटिल लेकिन अपेक्षाकृत शांत पड़े क्षेत्रीय विवाद ने तब तूल पकड़ा, जब भारत ने उत्तराखंड में एक सड़क का उद्घाटन करने का फैसला किया.
इसके तहत वार्षिक कैलाश मानसरोवर तीर्थ यात्रा के लिए लिपुलेख दर्रे से गुजरते हुए एक नया भूमि मार्ग खोलने की मंशा जताई गई.
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यह विवाद तब से सुलग रहा है जब दिल्ली ने जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के बाद एक आधिकारिक नक्शा जारी किया और इसमें कालापानी और लिपुलेख जैसे क्षेत्रों को भारत की सरहद के भीतर दिखाया, जिसे नेपाल अपना मानता आया है. नेपाल ने दावा किया कि दिल्ली द्वारा किया गया यह कृत्य भारत द्वारा इस विवादास्पद और संवेदनशील मामले पर पहले किए गए समझौतों को खारिज करना है.
क्या है भारत-नेपाल सीमा विवाद?
चीन और नेपाल से सटे भारतीय क्षेत्र कालापानी और लिपुलेख पर नेपाल पूर्व में भी अपना दावा जताता रहा है. चीन सीमा को जोड़ने वाली लिपुलेख सड़क बनने के बाद मित्र राष्ट्र नेपाल के तेवर उग्र हो गए हैं. कालापानी और लिपुलेख पर दावा जताते हुए नेपाल में प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया है.
इसके साथ ही कालापानी में भारतीय गतिविधियों पर नजर रखने के लिए नेपाल ने भारत को बिना जानकारी दिए छांगरु में बीओपी बना दी है. इसके साथ ही नेपाल अपने बॉर्डर इलाके में एक और बीओपी बनाने जा रहा है.
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जानकारी मिली है कि नेपाल इस इलाके को जल्द ही सैनिक छावनी में तब्दील करने जा रहा है. इस छावनी में 160 सैनिकों की तैनाती स्थाई तौर पर होनी है.
यह छावनी इंटरनेशनल बॉर्डर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित होगी. वहीं, नेपाल ने हाल ही में नया नक्शा जारी कर भारतीय क्षेत्र कालापानी और छियालेख को अपना हिस्सा बताया है.
बता दें कि चीन सीमा को जोड़ने वाली लिपुलेख सड़क बनने के बाद मित्र राष्ट्र नेपाल के सुर बदलते नजर आ रहे हैं. नेपाल सरकार ने हाल ही में एक नया नक्शा जारी कर कालापानी और लिपुलेख को अपना क्षेत्र बताया है. लेकिन, असल में यह दोनों ही इलाके पूरी तरह से भारत का हिस्सा हैं.
धारचूला तहसील के भीतर आने वाले यह दोनों इलाके 1962 के बंदोबस्त में भी भूमि अभिलेखों में दर्ज हैं. खतौनी (जमीन से संबंधित कागजात) के मुताबिक, कालापानी से नाभीढांग तक नौ किलोमीटर का इलाका गर्बयांग गांव का तोक है. करीब पांच हजार नाली के इस भू-भाग में 704 नाप खेत मौजूद हैं. वहीं नाभीढांग से लिपुलेख तक का इलाका गुंजी ग्राम सभा का हिस्सा है. यह इलाका गुंजी गांव की वन पंचायत की जमीन में भी दर्ज है.