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अदालतों में लंबित मामलों पर CJI गोगोई ने जताई चिंता, कहा- सरकार से है उम्मीद - indian judiciary

भारत के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने देश में लंबित मामलों पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि देश में पिछले 50 साल से लंबित मामलों की संख्या 1000 से अधिक है. उन्होंने कहा कि लगभग दो लाख से अधिक मामले ऐसे हैं जो 25 साल से लंबित हैं. पढ़ें पूरी खबर....

कार्यक्रम में बोलते सीजेआई रंजन गोगोई
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Published : Aug 5, 2019, 7:00 AM IST

गुवाहाटीः भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई रविवार को गुवाहाटी उच्च न्यायालय पहुंचे. उन्होंने कानून व्यवस्थाओं समेत अदालत में लंबित मामलों की प्रकृत्ति, इसके कारणों और निवारण पर भी बात की. वे एक ऑडिटोरियम के स्थापना कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने रविवार को कुछ लोगों और समूहों के 'आक्रामक तथा लापरवाही भरे बर्ताव' को लेकर चिंता जताई. हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई कि देश का कानूनी संस्थान ऐसे 'स्वेच्छाचारी' तत्वों को परास्त करने में सफल रहेगा. गोगोई ने यह उम्मीद भी जताई कि केंद्र उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र को 62 साल से बढ़ाकर 65 साल करने के उनके प्रस्ताव को स्वीकार करेगा.

गोगोई ने कहा कि भले ही न्यायपालिका को आलोचना का सामना करना पड़ता है, लेकिन विलंब के लिए केवल न्यायपालिका ही पूरी तरह जिम्मेदार नहीं है. उन्होंने कहा कि न्याय प्रदान करने वाली व्यवस्था में कार्यपालिका की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है.

न्यायमूर्ति ने कहा, 'तात्कालिक परिणाम के रूप में, सेवानिवृत्ति की आयु तीन साल के लिए बढ़ जाएगी. इन तीन वर्षों में हम 403 रिक्तियों को अच्छे न्यायाधीशों से भर सकते हैं. यह मेरा सपना है. यह काम मेरे उत्तराधिकारी प्रधान न्यायाधीश द्वारा किया जाना चाहिए और मुझे नहीं लगता कि वह भारतीय न्यायपालिका का चेहरा क्यों नहीं बदल सकते.'

प्रधान न्यायाधीश ने निचली अदालतों के मुद्दे पर कहा कि 6,000 में 4,000 रिक्त पदों को पहले ही भरा जा चुका है तथा 1,500 और रिक्तियों को इस साल के अंत तक भर दिया जाएगा.

उन्होंने कहा, 'जहां तक उच्च न्यायालयों का संबंध है तो देशभर में 1,079 पदों में से 403 खाली हैं. मैंने (उच्च न्यायालयों के) मुख्य न्यायाधीशों से कहा है कि वे अपनी सिफारिशें भेजें...अच्छी सिफारिशें करें.'

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मौजूदा वक्त में कुछ लोगों और समूहों का 'आक्रामक तथा लापरवाही भरा बर्ताव' देखने को मिल रहा है.' उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि इस तरह की घटनाएं अपवाद होंगी और हमारे संस्थानों की मजबूत परंपराएं तथा लोकाचार इस तरह के स्वेच्छाचारी तत्वों के आक्रामक बर्ताव से उबरने में हमारे हितधारकों की सदैव मदद करेंगे.'

सीजेआई गोगोई ने कहा कि सरकारी कार्यालयों या प्रतिष्ठानों के विपरीत, अदालतें इसलिए अद्वितीय हैं क्योंकि न्याय के पहिये को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिदिन कई हितधारक जुटते हैं, भले ही वे एक भी आदेश से बाध्य नहीं हों.

गोगोई ने कहा, 'इसलिए, अदालत परिसर में काम करने वाले प्रत्येक हितधारक के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह सीखे और स्वीकार करे कि संस्थागत परंपराएं और कार्यप्रणाली महानतम उपहार हैं जो हमें न्याय प्रदायगी की प्रक्रिया में विभिन्न क्षमताओं में हमारी संबंधित यात्राओं में विरासत में मिले हैं.'

गोगोई ने समारोह के दौरान गुवाहाटी उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार गोस्वामी को निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि वे असम में लंबे समय से लंबित इस तरह के मामलों का जल्द निपटारा करें.

सीजेआई ने कहा कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को याद रखना चाहिए कि फैसलों और अदालती आदेशों का जनता के विश्वास पर गहरा असर होता है.

उन्होंने कहा, 'आज, मैं यह कहने के लिए मजबूर हूं कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को इस बात को अवश्य याद रखना चाहिए कि जनता के जिस विश्वास और भरोसे पर हमारी संस्था का अस्तित्व है, वह हमारे आदेशों और फैसलों के आधार पर बना है.' सीजेआई ने यह भी कहा कि न्यायिक पदाधिकारी के रूप में चयनित होना इस प्रतिष्ठित संस्था की सेवा करने का एक अवसर है, जिसका मूल्य हमेशा कल्पना से काफी अधिक है.

गोगोई ने इस अवसर पर कहा कि असम प्रकृति के उपहार से लबरेज है और यह समृद्ध, लेकिन विभिन्न परंपराओं वाले लोगों तथा समुदायों का आवास है.

उन्होंने कहा, 'नस्ल, धर्म, संस्कृति की यह ऐसी विविधता है जो उच्च न्यायालय और इन क्षेत्रों की अधीनस्थ अदालतों के लिए विशिष्ट चुनौतियां उत्पन्न करती है.'

सीजेआई ने कहा कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को इस खास क्षेत्र में विशिष्ट हो सकने वाली विविध सांस्कृतिक परंपराओं की संवेदनशीलता के बारे में निरंतर सीखना चाहिए और इन्हें स्वीकार करना चाहिए.

देश की अदालतों में लंबित मामलों पर चिंता व्यक्त करते हुए गोगोई ने कहा कि दो लाख से अधिक मामले 25 साल से लंबित हैं, जबकि एक हजार से अधिक ऐसे मामले हैं जो 50 साल से लंबित हैं.

गुवाहाटी उच्च न्यायालय के ऑडिटोरियम के बारे में गोगोई ने कहा कि चूंकि न्यायिक कार्यप्रणाली में सीखने की निरंतर प्रक्रिया शामिल होती है, इसलिए विश्राम और फुर्सत के लिए पर्याप्त अवसर जरूरी हैं.

गोगोई ने यह भी कहा कि करीब 90 लाख लंबित दीवानी मामलों में से 20 लाख से अधिक ऐसे मामले हैं जिनमें अभी तक सम्मन तक तामील नहीं हुआ है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने विगत 10 जुलाई को विभिन्न उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को संबोधित किया था. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से अन्य विषयों के साथ 50 साल तथा 25 साल पुराने मामलों को निपटाने का आग्रह भी किया गया है.

गोगोई ने कहा, 'देश में दीवानी मामलों का यह करीब 23 प्रतिशत है. फौजदारी मामलों में आंकड़ा अत्यंत खराब है. 2.10 करोड़ लंबित फौजदारी मामलों में से सम्मन के स्तर पर लंबित मामलों की संख्या एक करोड़ से अधिक है.'

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'यदि सम्मन तामील नहीं हुए हैं तो मेरे न्यायाधीश किस तरह मुकदमा शुरू कर सकते हैं? यह कार्यपालिका से मेरा सवाल है. सम्मन तामील कराना पूरी तरह कार्यपालिका पर निर्भर है.' उन्होंने कहा कि फौजदारी के कुल लंबित मामलों में से करीब 45 लाख छोटे-मोटे अपराधों के हैं.

गुवाहाटीः भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई रविवार को गुवाहाटी उच्च न्यायालय पहुंचे. उन्होंने कानून व्यवस्थाओं समेत अदालत में लंबित मामलों की प्रकृत्ति, इसके कारणों और निवारण पर भी बात की. वे एक ऑडिटोरियम के स्थापना कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने रविवार को कुछ लोगों और समूहों के 'आक्रामक तथा लापरवाही भरे बर्ताव' को लेकर चिंता जताई. हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई कि देश का कानूनी संस्थान ऐसे 'स्वेच्छाचारी' तत्वों को परास्त करने में सफल रहेगा. गोगोई ने यह उम्मीद भी जताई कि केंद्र उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र को 62 साल से बढ़ाकर 65 साल करने के उनके प्रस्ताव को स्वीकार करेगा.

गोगोई ने कहा कि भले ही न्यायपालिका को आलोचना का सामना करना पड़ता है, लेकिन विलंब के लिए केवल न्यायपालिका ही पूरी तरह जिम्मेदार नहीं है. उन्होंने कहा कि न्याय प्रदान करने वाली व्यवस्था में कार्यपालिका की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है.

न्यायमूर्ति ने कहा, 'तात्कालिक परिणाम के रूप में, सेवानिवृत्ति की आयु तीन साल के लिए बढ़ जाएगी. इन तीन वर्षों में हम 403 रिक्तियों को अच्छे न्यायाधीशों से भर सकते हैं. यह मेरा सपना है. यह काम मेरे उत्तराधिकारी प्रधान न्यायाधीश द्वारा किया जाना चाहिए और मुझे नहीं लगता कि वह भारतीय न्यायपालिका का चेहरा क्यों नहीं बदल सकते.'

प्रधान न्यायाधीश ने निचली अदालतों के मुद्दे पर कहा कि 6,000 में 4,000 रिक्त पदों को पहले ही भरा जा चुका है तथा 1,500 और रिक्तियों को इस साल के अंत तक भर दिया जाएगा.

उन्होंने कहा, 'जहां तक उच्च न्यायालयों का संबंध है तो देशभर में 1,079 पदों में से 403 खाली हैं. मैंने (उच्च न्यायालयों के) मुख्य न्यायाधीशों से कहा है कि वे अपनी सिफारिशें भेजें...अच्छी सिफारिशें करें.'

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मौजूदा वक्त में कुछ लोगों और समूहों का 'आक्रामक तथा लापरवाही भरा बर्ताव' देखने को मिल रहा है.' उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि इस तरह की घटनाएं अपवाद होंगी और हमारे संस्थानों की मजबूत परंपराएं तथा लोकाचार इस तरह के स्वेच्छाचारी तत्वों के आक्रामक बर्ताव से उबरने में हमारे हितधारकों की सदैव मदद करेंगे.'

सीजेआई गोगोई ने कहा कि सरकारी कार्यालयों या प्रतिष्ठानों के विपरीत, अदालतें इसलिए अद्वितीय हैं क्योंकि न्याय के पहिये को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिदिन कई हितधारक जुटते हैं, भले ही वे एक भी आदेश से बाध्य नहीं हों.

गोगोई ने कहा, 'इसलिए, अदालत परिसर में काम करने वाले प्रत्येक हितधारक के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह सीखे और स्वीकार करे कि संस्थागत परंपराएं और कार्यप्रणाली महानतम उपहार हैं जो हमें न्याय प्रदायगी की प्रक्रिया में विभिन्न क्षमताओं में हमारी संबंधित यात्राओं में विरासत में मिले हैं.'

गोगोई ने समारोह के दौरान गुवाहाटी उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार गोस्वामी को निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि वे असम में लंबे समय से लंबित इस तरह के मामलों का जल्द निपटारा करें.

सीजेआई ने कहा कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को याद रखना चाहिए कि फैसलों और अदालती आदेशों का जनता के विश्वास पर गहरा असर होता है.

उन्होंने कहा, 'आज, मैं यह कहने के लिए मजबूर हूं कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को इस बात को अवश्य याद रखना चाहिए कि जनता के जिस विश्वास और भरोसे पर हमारी संस्था का अस्तित्व है, वह हमारे आदेशों और फैसलों के आधार पर बना है.' सीजेआई ने यह भी कहा कि न्यायिक पदाधिकारी के रूप में चयनित होना इस प्रतिष्ठित संस्था की सेवा करने का एक अवसर है, जिसका मूल्य हमेशा कल्पना से काफी अधिक है.

गोगोई ने इस अवसर पर कहा कि असम प्रकृति के उपहार से लबरेज है और यह समृद्ध, लेकिन विभिन्न परंपराओं वाले लोगों तथा समुदायों का आवास है.

उन्होंने कहा, 'नस्ल, धर्म, संस्कृति की यह ऐसी विविधता है जो उच्च न्यायालय और इन क्षेत्रों की अधीनस्थ अदालतों के लिए विशिष्ट चुनौतियां उत्पन्न करती है.'

सीजेआई ने कहा कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को इस खास क्षेत्र में विशिष्ट हो सकने वाली विविध सांस्कृतिक परंपराओं की संवेदनशीलता के बारे में निरंतर सीखना चाहिए और इन्हें स्वीकार करना चाहिए.

देश की अदालतों में लंबित मामलों पर चिंता व्यक्त करते हुए गोगोई ने कहा कि दो लाख से अधिक मामले 25 साल से लंबित हैं, जबकि एक हजार से अधिक ऐसे मामले हैं जो 50 साल से लंबित हैं.

गुवाहाटी उच्च न्यायालय के ऑडिटोरियम के बारे में गोगोई ने कहा कि चूंकि न्यायिक कार्यप्रणाली में सीखने की निरंतर प्रक्रिया शामिल होती है, इसलिए विश्राम और फुर्सत के लिए पर्याप्त अवसर जरूरी हैं.

गोगोई ने यह भी कहा कि करीब 90 लाख लंबित दीवानी मामलों में से 20 लाख से अधिक ऐसे मामले हैं जिनमें अभी तक सम्मन तक तामील नहीं हुआ है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने विगत 10 जुलाई को विभिन्न उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को संबोधित किया था. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से अन्य विषयों के साथ 50 साल तथा 25 साल पुराने मामलों को निपटाने का आग्रह भी किया गया है.

गोगोई ने कहा, 'देश में दीवानी मामलों का यह करीब 23 प्रतिशत है. फौजदारी मामलों में आंकड़ा अत्यंत खराब है. 2.10 करोड़ लंबित फौजदारी मामलों में से सम्मन के स्तर पर लंबित मामलों की संख्या एक करोड़ से अधिक है.'

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'यदि सम्मन तामील नहीं हुए हैं तो मेरे न्यायाधीश किस तरह मुकदमा शुरू कर सकते हैं? यह कार्यपालिका से मेरा सवाल है. सम्मन तामील कराना पूरी तरह कार्यपालिका पर निर्भर है.' उन्होंने कहा कि फौजदारी के कुल लंबित मामलों में से करीब 45 लाख छोटे-मोटे अपराधों के हैं.

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AS-2NDLD CJI
Reckless behaviour by few, hopeful judiciary will overcome wayward constituents: CJI
          Guwahati, Aug 4 (PTI) Chief Justice of India Ranjan Gogoi on Sunday expressed concern over "belligerent and reckless behaviour" by some individuals and groups and hoped the country's legal institution will overcome such "wayward" constituents.
          The CJI, who was speaking after laying the foundation stone of an auditorium of the Gauhati High Court here, however, did not elaborate on his remarks and refrained from naming any individuals or groups.
          "It is unfortunate that the present times are witnessing belligerent and reckless behaviour by a few individuals and some groups.
          "I am hopeful that such incidents turn out to be exceptions and the strong traditions and ethos of our institution shall always assist our stakeholders to display resilience to overcome the belligerence of such wayward constituents," Gogoi said.
          He said that unlike offices or government establishments, courts are unique, with multiple stakeholders converging every day to facilitate and make the wheels of justice move forward, though they may not be bound by any single hierarchy of commands.
          "It is therefore important, for each stakeholder functioning in a court complex, to learn and accept that the institutional traditions and practices are the greatest gifts that we inherit in our respective journeys even as we associate with the process of justice dispensation in various capacities," Gogoi said.
          The CJI said that judges and judicial officers must remember that judgments and court orders have a bearing on public faith.
          "Today, I feel compelled to assert that judges and judicial officers must remember that public faith and confidence, on which our institution lives and survives, is largely built on the basis of orders and judgements passed by us," Gogoi said.
          The CJI also said that getting selected as a judicial functionary is an opportunity to serve the hallowed institution, whose value is always immeasurably more than what can be reasonably visualised.
          "The right to adjudicate the affairs of fellow human beings and citizens has an element of divinity to it and this privilege by itself must fill us with humility and a profound sense of duty towards the people, whom we serve," he said.
          Gogoi emphasised that the connect, behaviour and ways of interaction of every judicial officer and staff member of a subordinate court with fellow citizens signify the way the judiciary would like to serve the aspirations of the people.
          "Every subordinate court is the interface that Indian judiciary has with the constituents of our republic, whom we serve," he said.
          Expressing concern over pendency of cases, Gogoi said that more than two lakh cases are in courts for 25 years, while over 1,000 cases have not been disposed of even after five decades.
          He said the diversities of race, religion and culture in Assam present unique challenges before the high court as well as the subordinate courts serving these areas.
          The judges and judicial officers must constantly learn and acknowledge the sensitivities of diverse cultural traditions that may be unique to this particular area, he said.
          About the auditorium of the Gauhati High Court, the CJI said that since judicial functioning involves a constant process of learning, adequate opportunities for relaxation and leisure are a must. PTI TR MM
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