नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश (CJI) एसए बोबडे ने प्रार्थना के अधिकार से जुड़ी याचिकाओं पर दलीलें पूरी करने के लिए 10 दिन की अवधि तय की है.
गौरतलब है कि सीजेआई बोबडे की अध्यक्षता में 9 जजों की संविधान पीठ केरल के सबरीमाला मंदिर, मस्जिद और पारसी अगियारी में महिलाओं के प्रवेश और प्रार्थना के अधिकार से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वकीलों ने एक साथ बैठ कर चर्चा की, लेकिन आम सहमति नहीं बना सके.
गौरतलब है कि नौ न्यायाधीशों की पीठ ने पक्षकारों को कुछ प्रश्नों पर विचार करने का निर्देश दिया था. इस पर चुषार मेहता ने अदालत से कहा कि प्रश्नों को दोबारा तैयार करने पर विचार किया जाए. तुषार मेहता ने सभी पक्षकारों के सुझावों से जुड़ा एक चार्ट भी पीठ के समक्ष पेश किया.
बता दें कि गत छह जनवरी को प्रकाशित सूचना के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने नौ जजों की पीठ गठित की थी. केरल के अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सबरीमाला मामले में तीन हफ्ते बाद सुनवाई होगी. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पांच जजों की बेंच ने जिन मुद्दों को सुनवाई के लिए भेजा था, उस पर सुनवाई होगी.
सीजेआई ने एसए बोबडे कहा था कि हम नहीं चाहते कि इस मामले की सुनवाई में अधिक समय खराब हो, इसलिए सबरीमाला केस के लिए टाइम लाइन तय करना चाहते हैं. सभी वकील आपस में तय करके बताएं कि दलीलों में कितना समय लगेगा.
प्रधान न्यायाधीश बोबडे की अगुवाई वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वह सबरीमला मामले में पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर रही है. पीठ ने कहा, 'हम सबरीमला मामले की पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई नहीं कर रहे. हम पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पहले भेजे गए मुद्दों पर विचार कर रहे हैं.'
इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की पीठ ने 14 नवंबर, 2019 को एक वृहद पीठ को कहा था कि वह मस्जिदों समेत सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश समेत विभिन्न धार्मिक मामलों और दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खतने की प्रथा पर फिर से विचार करे.
पांच सदस्यीय पीठ ने धार्मिक मामलों को वृहद पीठ को सौंपने का फैसला सर्वसम्मति से लिया था, लेकिन उसने केरल के सबरीमला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं को प्रवेश देने के शीर्ष अदालत के सितबंर, 2018 के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर 3:2 के बहुमत से फैसला सुनाया था.