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भारतीय न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी के प्रयोग पर सीआईआई की रिपोर्ट - कोरोना महामारी

कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को उसकी व्यवस्थाओं के बारे में एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है. ऐसे में सीआईआई ने न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी का प्रयोग पर एक रिपोर्ट पेश की है.

Indian Judicial System and technology
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Published : Jun 10, 2020, 4:12 PM IST

हैदराबाद : कोविड-19 महामारी से दुनियाभर में स्वास्थ्य, सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक चुनौतियां पैदा हो गई हैं. इस महामारी ने सरकारों और व्यवसायों को उनके उपर पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिए मजबूर कर दिया है.

यह सरकार, न्यायपालिका, व्यापार, उद्योग सहित सभी के लिए कोरोना से पूर्व की प्रणालियों और प्रक्रियाओं की समीक्षा करने का समय है. इसके साथ ही नई तकनीक और प्रौद्योगिकी का उपयोग कर आगे बढ़ने की जरूरत है.

सीआईआई (confederation of indian industry) की रिपोर्ट 'न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी का उपयोग' यह बताती है कि किस प्रकार भारतीय न्यायिक प्रणाली के कामकाज में तकनीक का उपयोग किया जा सकता है.

सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि तकनीक का प्रयोग किस तरह से किया जा सकता है. रिपोर्ट में दिए गए बिंदू कुछ इस प्रकार हैं-

  • क्षेत्र का वैश्विक विकास
  • विवादों के ऑनलाइन समाधान के लिए व्यवस्था बनाई जाए
  • सिविल ट्रायल के विभिन्न चरणों में प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन पर चर्चा
  • उन कारकों का विश्लेषण किया जाए जो ई-कोर्ट के कार्यान्वयन को सफल बनाएंगे

रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि किस तरह सामाजिक दूरी का प्रचलन बढ़ रहा है, जो कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने का एक प्रमुख साधन भी है.

भारतीय न्याय प्रणाली को कोरोना महामारी के कारण कटघरे में सुनवाई की सदियों पुरानी परंपरा को छोड़ना पड़ा है. भारत की अदालतों में वर्चुअल सुनवाई शुरु हो गई है. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की ई-फाइलिंग के कई फायदे हैं. इन्हे आगे भी अपनाया जा सकता है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि नियोजित कार्यान्वयन से पूरी न्याय प्रणाली को ऑनलाइन विवाद समाधान की एक प्रणाली में बदला जा सकता है. हालांकि, यह सत्य है किसी भी व्यवस्था को रातो रात नहीं बदला जा सकता है.

अधिकांश वादकारियों की कंप्यूटर या इंटरनेट तक पहुंच नहीं है. मामलों की ई-फाइलिंग और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई का आयोजन किया जा सकता है, लेकिन यह सभी के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है. भारतीय न्याय प्रणाली का प्रौद्योगिकी के साथ जुड़ना स्वदेशी परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए.

हैदराबाद : कोविड-19 महामारी से दुनियाभर में स्वास्थ्य, सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक चुनौतियां पैदा हो गई हैं. इस महामारी ने सरकारों और व्यवसायों को उनके उपर पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिए मजबूर कर दिया है.

यह सरकार, न्यायपालिका, व्यापार, उद्योग सहित सभी के लिए कोरोना से पूर्व की प्रणालियों और प्रक्रियाओं की समीक्षा करने का समय है. इसके साथ ही नई तकनीक और प्रौद्योगिकी का उपयोग कर आगे बढ़ने की जरूरत है.

सीआईआई (confederation of indian industry) की रिपोर्ट 'न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी का उपयोग' यह बताती है कि किस प्रकार भारतीय न्यायिक प्रणाली के कामकाज में तकनीक का उपयोग किया जा सकता है.

सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि तकनीक का प्रयोग किस तरह से किया जा सकता है. रिपोर्ट में दिए गए बिंदू कुछ इस प्रकार हैं-

  • क्षेत्र का वैश्विक विकास
  • विवादों के ऑनलाइन समाधान के लिए व्यवस्था बनाई जाए
  • सिविल ट्रायल के विभिन्न चरणों में प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन पर चर्चा
  • उन कारकों का विश्लेषण किया जाए जो ई-कोर्ट के कार्यान्वयन को सफल बनाएंगे

रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि किस तरह सामाजिक दूरी का प्रचलन बढ़ रहा है, जो कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने का एक प्रमुख साधन भी है.

भारतीय न्याय प्रणाली को कोरोना महामारी के कारण कटघरे में सुनवाई की सदियों पुरानी परंपरा को छोड़ना पड़ा है. भारत की अदालतों में वर्चुअल सुनवाई शुरु हो गई है. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की ई-फाइलिंग के कई फायदे हैं. इन्हे आगे भी अपनाया जा सकता है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि नियोजित कार्यान्वयन से पूरी न्याय प्रणाली को ऑनलाइन विवाद समाधान की एक प्रणाली में बदला जा सकता है. हालांकि, यह सत्य है किसी भी व्यवस्था को रातो रात नहीं बदला जा सकता है.

अधिकांश वादकारियों की कंप्यूटर या इंटरनेट तक पहुंच नहीं है. मामलों की ई-फाइलिंग और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई का आयोजन किया जा सकता है, लेकिन यह सभी के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है. भारतीय न्याय प्रणाली का प्रौद्योगिकी के साथ जुड़ना स्वदेशी परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए.

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