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बौखलाए चीनी मीडिया ने पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादियों के समर्थन का उठाया मुद्दा - वास्तविक नियंत्रण रेखा

भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव कम करने लिए बातचीत का दौर जारी है. इस बीच चीनी मीडिया ने ताइवान को लेकर भारतीय मीडिया पर निशाना साधा है. ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि अगर चीन की मीडिया में पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद का समर्थन करे, तो आप किस तरह से प्रतिक्रिया करेंगे. इस पर पढ़िए एक लेख हमारे वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ का.

चीन ने उठाए सवाल
चीन ने उठाए सवाल
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Published : Oct 12, 2020, 10:31 PM IST

Updated : Oct 13, 2020, 9:25 AM IST

नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में चल रहे तनाव और उसे कम करने के प्रयास के बीच चीनी मीडिया ने उत्तर पूर्व में उग्रवाद के मुद्दे को ताइवान से जोड़ने की कोशिश की है.

ग्लोबल टाइम्स ने भारतीय मीडिया में 'ताइवान नेशनल डे' की खबरों को प्रमुखता से उठाने पर सवाल उठाया है. अखबार लिखता है कि अगर चीन की मीडिया उत्तर पूर्व भारत में उग्रवाद की समस्याओं पर सार्वजनिक तौर लिखे, या अलगाववादियों के पक्ष में लेख लिखे, तो नई दिल्ली किस तरह से प्रतिक्रिया देगा ? जिस तरह से आज चीन उसका जवाब दे रहा है, भारत भी उसी तरह से उसका जवाब देगा.

अखबार ने लिखा, आप इसे इस पृष्ठभूमि में देखें, कि उत्तर पूर्व में सक्रिय कई उग्रवादी संगठन, जैसे नेशनल सोशलिस्ट काउंसल ऑफ नागालिंगम (एनएससीएन) और यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के वरिष्ठ नेता चीनी भूभाग में कैंप कर रहे हैं और वे चीनी मदद की आस लिए हुए हैं, ताकि उन्हें भारत से अलग होने में मदद मिल सके.

ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि एनएससीएन में तो हताशा चरम पर है. क्योंकि सरकार से चल रही उनकी बातचीत पिछले 23 सालों से जारी है. इसका कोई माकूल हल अब तक नहीं निकला है.

दस्तावेज बताते हैं कि उत्तर पूर्व भारत में उग्रवादियों (नागा समेत) को चीनी सत्ता से सहयोग मिल चुका है.

यह सर्वविदिति है कि चीन की मीडिया में वही बातें छपती हैं, जैसा वहां की सरकार चाहती है. लिहाजा, ग्लोबल टाइम्स के इस लेख को उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए. चीन एक तरह से उत्तर पूर्व को लेकर धमकी देना चाहता है. भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इसे लेकर हमेशा ही सजग रही है.

लेख में बताया गया है कि 'वन-चाइना' नीति को भारत स्वीकार करे. वह इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगा कि कोई दूसरा देश उसकी इस नीति का उल्लंघन करे. भारत और चीन के बीच राजनयिक रिश्तों की बुनियाद भी यही है.

सात अक्टूबर को , ताइवान नेशनल डे (10 अक्टूबर) से तीन दिन पहले, नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने भारतीय मीडिया को एक विज्ञप्ति जारी की थी. इसमें यह कहा गया था कि ताइवान को लेकर भारतीय मीडिया भारत सरकार के स्टैंड पर ही चले. वह ताइवान को अलग देश के रूप में रेफर न करे. इसे रिपब्लिक ऑफ चाइना या चीन के ताइवान का इलाका कहकर संबोधित करे.

आर्टिकल में आगे कहा गया है कि भारत अमेरिका और पश्चिमी मीडिया पर यकीन न करे. अमेरिकी समर्थन बहुत ही अस्थिर होता है.

रविवार को अमेरिकी रक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन ने कहा था कि चीन बातचीत से नहीं मानेगा. समय आ गया है कि चीन को बातचीत और समझौतों के आधार पर मना नहीं सकते हैं.

नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में चल रहे तनाव और उसे कम करने के प्रयास के बीच चीनी मीडिया ने उत्तर पूर्व में उग्रवाद के मुद्दे को ताइवान से जोड़ने की कोशिश की है.

ग्लोबल टाइम्स ने भारतीय मीडिया में 'ताइवान नेशनल डे' की खबरों को प्रमुखता से उठाने पर सवाल उठाया है. अखबार लिखता है कि अगर चीन की मीडिया उत्तर पूर्व भारत में उग्रवाद की समस्याओं पर सार्वजनिक तौर लिखे, या अलगाववादियों के पक्ष में लेख लिखे, तो नई दिल्ली किस तरह से प्रतिक्रिया देगा ? जिस तरह से आज चीन उसका जवाब दे रहा है, भारत भी उसी तरह से उसका जवाब देगा.

अखबार ने लिखा, आप इसे इस पृष्ठभूमि में देखें, कि उत्तर पूर्व में सक्रिय कई उग्रवादी संगठन, जैसे नेशनल सोशलिस्ट काउंसल ऑफ नागालिंगम (एनएससीएन) और यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के वरिष्ठ नेता चीनी भूभाग में कैंप कर रहे हैं और वे चीनी मदद की आस लिए हुए हैं, ताकि उन्हें भारत से अलग होने में मदद मिल सके.

ग्लोबल टाइम्स लिखता है कि एनएससीएन में तो हताशा चरम पर है. क्योंकि सरकार से चल रही उनकी बातचीत पिछले 23 सालों से जारी है. इसका कोई माकूल हल अब तक नहीं निकला है.

दस्तावेज बताते हैं कि उत्तर पूर्व भारत में उग्रवादियों (नागा समेत) को चीनी सत्ता से सहयोग मिल चुका है.

यह सर्वविदिति है कि चीन की मीडिया में वही बातें छपती हैं, जैसा वहां की सरकार चाहती है. लिहाजा, ग्लोबल टाइम्स के इस लेख को उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए. चीन एक तरह से उत्तर पूर्व को लेकर धमकी देना चाहता है. भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इसे लेकर हमेशा ही सजग रही है.

लेख में बताया गया है कि 'वन-चाइना' नीति को भारत स्वीकार करे. वह इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगा कि कोई दूसरा देश उसकी इस नीति का उल्लंघन करे. भारत और चीन के बीच राजनयिक रिश्तों की बुनियाद भी यही है.

सात अक्टूबर को , ताइवान नेशनल डे (10 अक्टूबर) से तीन दिन पहले, नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने भारतीय मीडिया को एक विज्ञप्ति जारी की थी. इसमें यह कहा गया था कि ताइवान को लेकर भारतीय मीडिया भारत सरकार के स्टैंड पर ही चले. वह ताइवान को अलग देश के रूप में रेफर न करे. इसे रिपब्लिक ऑफ चाइना या चीन के ताइवान का इलाका कहकर संबोधित करे.

आर्टिकल में आगे कहा गया है कि भारत अमेरिका और पश्चिमी मीडिया पर यकीन न करे. अमेरिकी समर्थन बहुत ही अस्थिर होता है.

रविवार को अमेरिकी रक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन ने कहा था कि चीन बातचीत से नहीं मानेगा. समय आ गया है कि चीन को बातचीत और समझौतों के आधार पर मना नहीं सकते हैं.

Last Updated : Oct 13, 2020, 9:25 AM IST
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