तिरुवनंतपुरम : केरल के पलक्कड़ जिले के मन्नारकाड वन प्रभाग ने गर्भवती जंगली हाथिनी की मौत और हथिनी को बचाने के प्रयासों के बारे में कुछ और जानकारियों का खुलासा किया है. वन विभाग पर आरोप लगा था कि हथिनी के तुंरत इलाज के लिए उसने कोई कदम नहीं उठाया. हालांकि वन विभाग ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि हथिनी ने दुर्भाग्यवश पटाखे से भरा अनानास खा लिया था, जिसे इलाके के जंगली सूअरों को निशाना बनाने के लिए रखा गया था. जंगली हथिनी की गत 27 मई को जबड़े और मुंह पर गंभीर चोटें आने के बाद मौत हो गई थी.
केरल के मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) और मुख्य वन्यजीव वार्डन सुरेंद्र कुमार ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि हथिनी को बचाने के लिए विभाग ने कोई प्रयास नहीं किया, यह आरोप झूठा और बेबुनियाद है.
सुरेंंद्र कुमार ने बताया कि हथिनी को गत 23 मई को जंगल की सीमा के बाहर देखा गया था. उसी दिन वन विभाग के अधिकारियों ने हथिनी को वापस में जंगल में भेज दिया था जैसा कि वे आमतौर पर करते हैं. दूसरी बार 25 मई को जब हाथिनी को वेल्लियार नदी में खड़ा देखा गया, तब वन विभाग के अधिकारियों को एहसास हुआ कि उसे कुछ समस्या है.
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वन विभाग के पशु चिकित्सकों को बुलाया गया. उन्होंने दूर से हथिनी की जांच की. उन्होंने कहा कि हथिनी की सेहत खराब है, इसलिए बेहोशी की दवा का इस्तेमाल नहीं कर सकते. डॉक्टरों ने कहा कि वह पानी में खड़ी है, इसलिए इसका उपचार करना घातक हो सकता है. तब डॉक्टर के कहने पर बचाव अभियान में मदद के लिए पलक्कड़ से दो कुमकी हाथियों को भेजा गया. योजना थी कि पहले कुमकी हाथियों की मदद से हथिनी को पानी से बाहर लाया जाएगा, फिर उसका इलाज किया जाएगा. कुमकी हाथी मौके पर पहुंच गए थे, लेकिन कुछ करने से पहले ही हथिनी की हालत और ज्यादा बिगड़ चुकी थी.
गत 27 मई को पानी में रहने के दौरान ही उसकी मौत हो गई. सुरेंद्र कुमार ने बताया कि वन विभाग ने हथिनी के जीवन को बचाने के लिए सभी संभव उपाय किए. उन्होंने बताय कि हर किसी को यह समझना चाहिए कि यह केवल एक पालतू हाथिनी या इंसान नहीं है, जिसका इलाज तुरंत शुरू किया जा सकता था. यह एक घायल जंगली जानवर है. एक जंगली जानवर को बचाने की कोशिश करते समय कुछ प्रोटोकॉल का पालन करना होता है.
इस मामले में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. सीडब्ल्यूडब्ल्यू ने कहा कि उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी ताकि भविष्य में ऐसे मामलों को दोहराया नहीं जा सके. इसके अलावा सभी वन सीमाओं में एक राज्यव्यापी कॉम्बिंग ऑपरेशन शुरू किया गया है. यह ऑपरेशन पहले से ही गुरुवार को पलक्कड़ में किया जा चुका है. अफसरों को कुछ भी असामान्य नहीं मिला है. राज्य के अन्य हिस्सों में तलाशी अभियान जारी है. अन्य योजनाओं में जन जागृति समिति के माध्यम से इन सीमाओं के साथ रहने वाले लोगों से बातचीत करना भी शामिल है.
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वन कर्मचारी अपने-अपने क्षेत्रों में लोगों के संपर्क में रहेंगे और मानव-पशु संघर्ष से निबटने में सहयोग लेंगे. वन विभाग ने राज्य की वनसीमा के कई हिस्सों में खाइयों, बिजली की बाड़, रेल की बाड़ और ग्रेनाइट की दीवारों जैसे अन्य उपाय किए हैं, फिर भी जानवर बाहर आते हैं क्योंकि सीमाएं बहुत बड़ी हैं. वन विभाग हर साल जंगली जानवरों द्वारा सीमावर्ती इलाकों में किए गए किसानों की फसलों के नुकसान की भरपाई करता है.
सुरेंद्र कुमार ने कहा कि जानवर अपने परिवेश में रहते हैं, लेकिन मनुष्यों ने इनपर अतिक्रमण किया है. इसलिए जानवरों को शिकायत होनी चाहिए, इंसानों को नहीं. उन्होंने कहा, मैं सभी जानवरों की ओर से शिकायत कर रहा हूं, कि लोगों को सहनशील होना चाहिए क्योंकि यह पहले जानवरों का निवास स्थान था.' मनुष्य उस निवास स्थान को साझा कर सकते हैं, जैसा कि वे पहले किया करते थे. आजकल सभी जानवरों के प्रति असहिष्णुता बढ़ रही है. मैं लोगों से जानवरों के साथ पारिस्थितिकी तंत्र में सहयोग करने और साझा करने का अनुरोध करता हूं. हम पारिस्थितिकी तंत्र के मालिक नहीं हैं. हम उनमें से केवल एक हैं.'