नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश में लगातार हो रही आपराधिक घटनाओं और किसानों में असंतोष को लेकर अब एक बार फिर प्रदेश को चार अलग-अलग राज्यों में विभाजित करने की मांग उठने लगी है.
संसद के बीते सत्र में भी उत्तर प्रदेश के सांसद द्वारा यह आवाज उठाई गई थी. अब खबर आ रही है कि उत्तर प्रदेश के सामाजिक संगठन और कुछ किसान संगठन इसके लिए आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहे हैं.
किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह ने इस विषय पर ईटीवी भारत से बातचीत की, जिसमें उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या आज लगभग 23 करोड़ है और यदि यह एक अलग देश होता तो आज दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा देश होता.
जब पहला राज्य पुनर्गठन आयोग बना था, तब जनसंख्या 6 करोड़ 32 लाख थी और उस समय डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने अपनी किताब 'थॉट्स ऑन लिंगविस्टिक स्टेट' में इस बात को लिखा था कि दो करोड़ की जनसंख्या वाले तीन राज्य में उत्तर प्रदेश को विभाजित कर देना चाहिए.
इतने बड़े सूबे को एक प्रशासनिक इकाई के नीचे शासन देना बड़ा मुश्किल काम हो जाता है. राज्य में सरकार चाहे कोई भी रही हो, लॉ एंड आर्डर की समस्या, किसानों की समस्या, बेरोजगारी, अच्छे अस्पताल और स्कूल की समस्याएं हमेशा बनी रहती हैं. इन सभी समस्याओं का मूल कारण यही है कि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या बहुत ज्यादा है और इसलिए इसे तीन या चार राज्यों में विभाजित कर देना चाहिए.
उत्तर प्रदेश की जनसंख्या और बड़े क्षेत्रफल को देखते हुए मुख्यमंत्री के अलावा भाजपा सरकार में दो उपमुख्यमंत्री हैं. केंद्र सरकार भी यह दावा करती है कि योगी सरकार के आने के बाद स्थिति बेहतर हुई है. सत्तासीन पार्टी के तमाम दावों के बावजूद लोगों में असंतोष दिखता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विभाजन ही एक मात्र विकल्प है?
देश के तमाम राज्यों के विभाजन का उदाहरण देते हुए पुष्पेंद्र सिंह ने कहा कि राज्य जब छोटी इकाई हो जाती है, तो सरकार के लिए शासन करना आसान हो जाता है. आज अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश अलग राज्य होता तो समस्याएं कम होतीं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुल छह मंडल जिसमें बरेली, आगरा, सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद और अलीगढ़ मंडल शामिल होंगे, जिन्हें हम राज्य बनाने की मांग कर रहे हैं.
यह भी कोई छोटा राज्य नहीं होगा, इसमें कुल 27 लोकसभा क्षेत्र, 26 जिले और 136 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. विभाजन के बाद भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश यह गुजरात और राजस्थान से बड़ा राज्य होगा. इसकी जनसंख्या 7.5 करोड़ के आस पास होगी. इसी प्रकार से अवध, बुंदेलखंड और पूर्वांचल की मांग भी उठ रही है.
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उत्तर प्रदेश के विभाजन की मांग नई नहीं है, लेकिन क्या राजनीतिक पार्टियों में यह राजनीतिक इच्छाशक्ति है कि वह इस मुद्दे पर काम कर सकें यह सबसे बड़ा सवाल है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रभावी राष्ट्रीय लोक दल ने इस मुद्दे को पहले उठाया भी था, लेकिन आज राष्ट्रीय लोक दल का गठबंधन समाजवादी पार्टी से है और समाजवादी पार्टी विभाजन के खिलाफ है. इस तरह से राजनीतिक लाभ और सुविधा के लिए राष्ट्रीय लोक दल ने इस मुद्दे को छोड़ दिया है.
पार्टियों को अब नफा नुक्सान से ऊपर उठ कर मुद्दा आधारित राजनीति करनी चाहिए. चौधरी चरण सिंह भी विभाजन के पक्ष में थे और उन्होंने खुद कहा था कि उत्तर प्रदेश के तीन या चार हिस्से कर देने चाहिए. उत्तर प्रदेश में 70% आबादी खेती किसानी पर निर्भर है. ऐसे में किसानों को गोलबंद कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने के लिए पुष्पेंद्र सिंह आंदोलन चलाने की तैयारी में जुट गए हैं. जाहिर तौर पर 2022 विधानसभा चुनाव से पहले यह एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आ सकता है.