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लखनऊ-नोएडा में पुलिस आयुक्त प्रणाली, क्या-क्या होंगे बदलाव

उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और गौतमबुद्धनगर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के सरकार के फैसले को विशेषज्ञों ने 'देर आयद दुरुस्त आयद' करार दिया है. इस व्यवस्था से क्या बदलाव आएगा, इस पर डालें एक नजर.

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Published : Jan 13, 2020, 6:54 PM IST

लखनऊ : उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के गौतमबुद्धनगर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के सरकार के फैसले को विशेषज्ञों ने 'देर आयद दुरुस्त आयद' करार देते हुए सोमवार को कहा कि इच्‍छाशक्ति की कमी और हितों के टकराव के कारण उत्‍तर प्रदेश में इस प्रणाली के लागू होने में इतनी देर लगी.

जानकारों का मानना है कि पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू होना पुलिस की कार्य स्‍वतंत्रता की दिशा में एक बेहद महत्‍वपूर्ण कदम है और यह पुलिस सुधार के प्रयासों का तकाजा भी है.

प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक आई. सी. द्विवेदी ने कहा कि उत्‍तर प्रदेश जैसे बड़े राज्‍य में पुलिस आयुक्त प्रणाली बहुत पहले लागू हो जानी चाहिये थी. मगर, हितों का टकराव होने और राजनीतिक इच्‍छाशक्ति की कमी की वजह से यह नहीं लागू हो सकी थी.

उन्होंने कहा कि सरकार ने देर आयद, दुरुस्‍त आयद की तर्ज पर इस पुलिसिंग प्रणाली को हरी झंडी देकर अच्‍छा काम किया है. इससे पुलिस को काम करने की आजादी मिलेगी और उसकी जवाबदेही भी बढ़ेगी.

द्विवेदी ने कहा कि पिछली सरकारों ने भी राज्‍य में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की कोशिश की थी, मगर दुर्भाग्‍य से यह हितों के टकराव में उलझ गयी. आईएएस संवर्ग को यह लगा कि इससे उनके अधिकारों में कटौती हो जाएगी.

उन्होंने कहा कि इस वक्‍त देश में 71 स्‍थानों पर पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू है, लेकिन उत्‍तर प्रदेश में बार-बार राजनेताओं को पुलिस के निरंकुश होने का डर दिखाये जाने के कारण यह प्रणाली लागू नहीं हो सकी थी.

राज्य के मौजूदा पुलिस महानिदेशक ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि अभी तक पुलिस को प्रशासन पर निर्भर रहकर काम करना होता था, लेकिन जिस तरह से शहरीकरण बढ़ रहा है, अपराध के तरीके और आयाम बदल रहे हैं. ऐसे में त्वरित निर्णय लेने की आवश्यकता महसूस की जा रही है. इसके मद्देनजर हमने माना कि पुलिस आयुक्त प्रणाली बिल्कुल उपयुक्त है.

उन्होंने कहा कि इससे स्मार्ट और संवेदनशील पुलिसिंग को बढ़ावा मिलेगा. कुल मिलाकर एकीकृत पुलिसिंग से लाभ मिलेगा.

पूर्व में प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके रंजन द्विवेदी ने कहा कि अंग्रेजों की बनायी शासन प्रणाली में तब्‍दीली की गुंजाइश लगभग ना के बराबर थी. उत्‍तर प्रदेश भी काफी हद तक उसी ढर्रे पर चल रहा है. ऐसे में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करना सरकार का अच्‍छा कदम है.

उन्‍होंने कहा कि अफसरशाही खुद ही कोई बदलाव नहीं चाहती है. क्‍योंकि परिवर्तन होने से अधिकारों का कुछ हद तक अंतरण हो जाता है और अफसरशाही की तंत्र पर वैसी पकड़ नहीं रह जाती. दिल्‍ली में जब पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हुई तो उसका खासा विरोध किया गया था. कोई भी बदलाव होता है तो एक पक्ष को लगता है कि उसका नुकसान होगा.

द्विवेदी ने कहा कि आयुक्त प्रणाली लागू होने से खासे फायदे होंगे. शहर जितना बड़ा होगा, समस्‍याएं भी उतनी ही विकट होंगी. गांव में जो समस्‍या एक दिन में फैलेगी, वह शहर में एक घंटे में ही फैल जाएगी. ऐसे में यह जरूरी है कि तुरंत निर्णय लेने की एक व्‍यवस्‍था हो.

द्विवेदी ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत में पुलिस की जो प्रणाली लागू की, वह आयरलैंड जैसी थी. उसमें पुलिस का सिर्फ इस्‍तेमाल किया जाता था, उसे निर्णय लेने के कोई अधिकार नहीं दिये जाते थे. लखनऊ और गौतमबुद्धनगर जिलों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का फैसला इस गलती के सुधार की दिशा में उठाया गया अहम कदम है.

पुलिस महानिरीक्षक रह चुके सेवानिवृत्‍त आईपीएस अफसर एस. आर. दारापुरी ने कहा कि आज से करीब 25 साल पहले एक घोषणा की गयी थी कि कानपुर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होगी और वी. पी. पंजानी पहले पुलिस आयुक्‍त होंगे, मगर रातोंरात एक लॉबी ने मिलकर सरकार को अपना फैसला वापस लेने पर मजबूर कर दिया था.

उन्‍होंने बताया कि पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू होने से सम्बन्धित जिले में पुलिस को मजिस्‍ट्रेट के अधिकार मिल जाते हैं. जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी की मजिस्‍ट्रेट वाली शक्तियां पुलिस के हाथ में आ जाती हैं. जिलाधिकारी के पास केवल राजस्‍व और विकास सम्‍बन्‍धी शक्तियां रह जाती हैं.

दारापुरी ने कहा कि पुलिस के पास अधिकार आ जाने से एक तरह सिंगल विंडो सिस्‍टम लागू हो जाता है और काम सुगमता से होता है. इससे पुलिस को अपना काम करने की आजादी मिलती है और उसे विभिन्‍न प्रक्रियाओं के लिये प्रशासनिक अफसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है.

उन्‍होंने भी कहा कि राजनीतिक इच्‍छाशक्ति की कमी की वजह से ही उत्‍तर प्रदेश में पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू होने में इतनी देर हुई. राजनेता और अफसर अब तक लागू रही प्रणाली के सबसे बड़े लाभार्थी होते हैं और वे पुरानी प्रणाली को ही लागू रखने की कोशिश करते रहे.

गौरतलब है कि उत्‍तर प्रदेश कैबिनेट ने राज्‍य की पुलिसिंग व्‍यवस्‍था के लिहाज से एक अहम फैसला लेते हुए राजधानी लखनऊ और गौतमबुद्धनगर जिलों में पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू करने के प्रस्‍ताव को हरी झंडी दे दी.

(इनपुट- भाषा)

लखनऊ : उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के गौतमबुद्धनगर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के सरकार के फैसले को विशेषज्ञों ने 'देर आयद दुरुस्त आयद' करार देते हुए सोमवार को कहा कि इच्‍छाशक्ति की कमी और हितों के टकराव के कारण उत्‍तर प्रदेश में इस प्रणाली के लागू होने में इतनी देर लगी.

जानकारों का मानना है कि पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू होना पुलिस की कार्य स्‍वतंत्रता की दिशा में एक बेहद महत्‍वपूर्ण कदम है और यह पुलिस सुधार के प्रयासों का तकाजा भी है.

प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक आई. सी. द्विवेदी ने कहा कि उत्‍तर प्रदेश जैसे बड़े राज्‍य में पुलिस आयुक्त प्रणाली बहुत पहले लागू हो जानी चाहिये थी. मगर, हितों का टकराव होने और राजनीतिक इच्‍छाशक्ति की कमी की वजह से यह नहीं लागू हो सकी थी.

उन्होंने कहा कि सरकार ने देर आयद, दुरुस्‍त आयद की तर्ज पर इस पुलिसिंग प्रणाली को हरी झंडी देकर अच्‍छा काम किया है. इससे पुलिस को काम करने की आजादी मिलेगी और उसकी जवाबदेही भी बढ़ेगी.

द्विवेदी ने कहा कि पिछली सरकारों ने भी राज्‍य में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की कोशिश की थी, मगर दुर्भाग्‍य से यह हितों के टकराव में उलझ गयी. आईएएस संवर्ग को यह लगा कि इससे उनके अधिकारों में कटौती हो जाएगी.

उन्होंने कहा कि इस वक्‍त देश में 71 स्‍थानों पर पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू है, लेकिन उत्‍तर प्रदेश में बार-बार राजनेताओं को पुलिस के निरंकुश होने का डर दिखाये जाने के कारण यह प्रणाली लागू नहीं हो सकी थी.

राज्य के मौजूदा पुलिस महानिदेशक ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि अभी तक पुलिस को प्रशासन पर निर्भर रहकर काम करना होता था, लेकिन जिस तरह से शहरीकरण बढ़ रहा है, अपराध के तरीके और आयाम बदल रहे हैं. ऐसे में त्वरित निर्णय लेने की आवश्यकता महसूस की जा रही है. इसके मद्देनजर हमने माना कि पुलिस आयुक्त प्रणाली बिल्कुल उपयुक्त है.

उन्होंने कहा कि इससे स्मार्ट और संवेदनशील पुलिसिंग को बढ़ावा मिलेगा. कुल मिलाकर एकीकृत पुलिसिंग से लाभ मिलेगा.

पूर्व में प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके रंजन द्विवेदी ने कहा कि अंग्रेजों की बनायी शासन प्रणाली में तब्‍दीली की गुंजाइश लगभग ना के बराबर थी. उत्‍तर प्रदेश भी काफी हद तक उसी ढर्रे पर चल रहा है. ऐसे में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करना सरकार का अच्‍छा कदम है.

उन्‍होंने कहा कि अफसरशाही खुद ही कोई बदलाव नहीं चाहती है. क्‍योंकि परिवर्तन होने से अधिकारों का कुछ हद तक अंतरण हो जाता है और अफसरशाही की तंत्र पर वैसी पकड़ नहीं रह जाती. दिल्‍ली में जब पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हुई तो उसका खासा विरोध किया गया था. कोई भी बदलाव होता है तो एक पक्ष को लगता है कि उसका नुकसान होगा.

द्विवेदी ने कहा कि आयुक्त प्रणाली लागू होने से खासे फायदे होंगे. शहर जितना बड़ा होगा, समस्‍याएं भी उतनी ही विकट होंगी. गांव में जो समस्‍या एक दिन में फैलेगी, वह शहर में एक घंटे में ही फैल जाएगी. ऐसे में यह जरूरी है कि तुरंत निर्णय लेने की एक व्‍यवस्‍था हो.

द्विवेदी ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत में पुलिस की जो प्रणाली लागू की, वह आयरलैंड जैसी थी. उसमें पुलिस का सिर्फ इस्‍तेमाल किया जाता था, उसे निर्णय लेने के कोई अधिकार नहीं दिये जाते थे. लखनऊ और गौतमबुद्धनगर जिलों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का फैसला इस गलती के सुधार की दिशा में उठाया गया अहम कदम है.

पुलिस महानिरीक्षक रह चुके सेवानिवृत्‍त आईपीएस अफसर एस. आर. दारापुरी ने कहा कि आज से करीब 25 साल पहले एक घोषणा की गयी थी कि कानपुर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होगी और वी. पी. पंजानी पहले पुलिस आयुक्‍त होंगे, मगर रातोंरात एक लॉबी ने मिलकर सरकार को अपना फैसला वापस लेने पर मजबूर कर दिया था.

उन्‍होंने बताया कि पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू होने से सम्बन्धित जिले में पुलिस को मजिस्‍ट्रेट के अधिकार मिल जाते हैं. जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी की मजिस्‍ट्रेट वाली शक्तियां पुलिस के हाथ में आ जाती हैं. जिलाधिकारी के पास केवल राजस्‍व और विकास सम्‍बन्‍धी शक्तियां रह जाती हैं.

दारापुरी ने कहा कि पुलिस के पास अधिकार आ जाने से एक तरह सिंगल विंडो सिस्‍टम लागू हो जाता है और काम सुगमता से होता है. इससे पुलिस को अपना काम करने की आजादी मिलती है और उसे विभिन्‍न प्रक्रियाओं के लिये प्रशासनिक अफसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है.

उन्‍होंने भी कहा कि राजनीतिक इच्‍छाशक्ति की कमी की वजह से ही उत्‍तर प्रदेश में पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू होने में इतनी देर हुई. राजनेता और अफसर अब तक लागू रही प्रणाली के सबसे बड़े लाभार्थी होते हैं और वे पुरानी प्रणाली को ही लागू रखने की कोशिश करते रहे.

गौरतलब है कि उत्‍तर प्रदेश कैबिनेट ने राज्‍य की पुलिसिंग व्‍यवस्‍था के लिहाज से एक अहम फैसला लेते हुए राजधानी लखनऊ और गौतमबुद्धनगर जिलों में पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू करने के प्रस्‍ताव को हरी झंडी दे दी.

(इनपुट- भाषा)

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लखनऊ-नोएडा में पुलिस कमिश्नर, क्या-क्या होंगे बदलाव

'हितों का टकराव था आयुक्त प्रणाली की राह में सबसे बड़ा अवरोध' 



लखनऊ : उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के गौतमबुद्धनगर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने के सरकार के फैसले को विशेषज्ञों ने 'देर आयद दुरुस्त आयद' करार देते हुए सोमवार को कहा कि इच्‍छाशक्ति की कमी और हितों के टकराव के कारण उत्‍तर प्रदेश में इस प्रणाली के लागू होने में इतनी देर लगी.



जानकारों का मानना है कि पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू होना पुलिस की कार्य स्‍वतंत्रता की दिशा में एक बेहद महत्‍वपूर्ण कदम है और यह पुलिस सुधार के प्रयासों का तकाजा भी है.



प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक आई. सी. द्विवेदी ने कहा कि उत्‍तर प्रदेश जैसे बड़े राज्‍य में पुलिस आयुक्त प्रणाली बहुत पहले लागू हो जानी चाहिये थी. मगर, हितों का टकराव होने और राजनीतिक इच्‍छाशक्ति की कमी की वजह से यह नहीं लागू हो सकी थी.



उन्होंने कहा कि सरकार ने देर आयद, दुरुस्‍त आयद की तर्ज पर इस पुलिसिंग प्रणाली को हरी झंडी देकर अच्‍छा काम किया है. इससे पुलिस को काम करने की आजादी मिलेगी और उसकी जवाबदेही भी बढ़ेगी.



द्विवेदी ने कहा कि पिछली सरकारों ने भी राज्‍य में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की कोशिश की थी, मगर दुर्भाग्‍य से यह हितों के टकराव में उलझ गयी. आईएएस संवर्ग को यह लगा कि इससे उनके अधिकारों में कटौती हो जाएगी.



उन्होंने कहा कि इस वक्‍त देश में 71 स्‍थानों पर पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू है, लेकिन उत्‍तर प्रदेश में बार-बार राजनेताओं को पुलिस के निरंकुश होने का डर दिखाये जाने के कारण यह प्रणाली लागू नहीं हो सकी थी.



राज्य के मौजूदा पुलिस महानिदेशक ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि अभी तक पुलिस को प्रशासन पर निर्भर रहकर काम करना होता था, लेकिन जिस तरह से शहरीकरण बढ़ रहा है, अपराध के तरीके और आयाम बदल रहे हैं. ऐसे में त्वरित निर्णय लेने की आवश्यकता महसूस की जा रही है. इसके मद्देनजर हमने माना कि पुलिस आयुक्त प्रणाली बिल्कुल उपयुक्त है.



उन्होंने कहा कि इससे स्मार्ट और संवेदनशील पुलिसिंग को बढ़ावा मिलेगा. कुल मिलाकर एकीकृत पुलिसिंग से लाभ मिलेगा.



पूर्व में प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रह चुके रंजन द्विवेदी ने कहा कि अंग्रेजों की बनायी शासन प्रणाली में तब्‍दीली की गुंजाइश लगभग ना के बराबर थी. उत्‍तर प्रदेश भी काफी हद तक उसी ढर्रे पर चल रहा है. ऐसे में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करना सरकार का अच्‍छा कदम है.



उन्‍होंने कहा कि अफसरशाही खुद ही कोई बदलाव नहीं चाहती है. क्‍योंकि परिवर्तन होने से अधिकारों का कुछ हद तक अंतरण हो जाता है और अफसरशाही की तंत्र पर वैसी पकड़ नहीं रह जाती. दिल्‍ली में जब पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हुई तो उसका खासा विरोध किया गया था. कोई भी बदलाव होता है तो एक पक्ष को लगता है कि उसका नुकसान होगा.



द्विवेदी ने कहा कि आयुक्त प्रणाली लागू होने से खासे फायदे होंगे. शहर जितना बड़ा होगा, समस्‍याएं भी उतनी ही विकट होंगी. गांव में जो समस्‍या एक दिन में फैलेगी, वह शहर में एक घंटे में ही फैल जाएगी. ऐसे में यह जरूरी है कि तुरंत निर्णय लेने की एक व्‍यवस्‍था हो.



द्विवेदी ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत में पुलिस की जो प्रणाली लागू की, वह आयरलैंड जैसी थी. उसमें पुलिस का सिर्फ इस्‍तेमाल किया जाता था, उसे निर्णय लेने के कोई अधिकार नहीं दिये जाते थे. लखनऊ और गौतमबुद्धनगर जिलों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने का फैसला इस गलती के सुधार की दिशा में उठाया गया अहम कदम है.



पुलिस महानिरीक्षक रह चुके सेवानिवृत्‍त आईपीएस अफसर एस. आर. दारापुरी ने कहा कि आज से करीब 25 साल पहले एक घोषणा की गयी थी कि कानपुर में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होगी और वी. पी. पंजानी पहले पुलिस आयुक्‍त होंगे, मगर रातोंरात एक लॉबी ने मिलकर सरकार को अपना फैसला वापस लेने पर मजबूर कर दिया था.



उन्‍होंने बताया कि पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू होने से सम्बन्धित जिले में पुलिस को मजिस्‍ट्रेट के अधिकार मिल जाते हैं. जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी की मजिस्‍ट्रेट वाली शक्तियां पुलिस के हाथ में आ जाती हैं. जिलाधिकारी के पास केवल राजस्‍व और विकास सम्‍बन्‍धी शक्तियां रह जाती हैं.



दारापुरी ने कहा कि पुलिस के पास अधिकार आ जाने से एक तरह सिंगल विंडो सिस्‍टम लागू हो जाता है और काम सुगमता से होता है. इससे पुलिस को अपना काम करने की आजादी मिलती है और उसे विभिन्‍न प्रक्रियाओं के लिये प्रशासनिक अफसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है.



उन्‍होंने भी कहा कि राजनीतिक इच्‍छाशक्ति की कमी की वजह से ही उत्‍तर प्रदेश में पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू होने में इतनी देर हुई. राजनेता और अफसर अब तक लागू रही प्रणाली के सबसे बड़े लाभार्थी होते हैं और वे पुरानी प्रणाली को ही लागू रखने की कोशिश करते रहे.



गौरतलब है कि उत्‍तर प्रदेश कैबिनेट ने राज्‍य की पुलिसिंग व्‍यवस्‍था के लिहाज से एक अहम फैसला लेते हुए राजधानी लखनऊ और गौतमबुद्धनगर जिलों में पुलिस आयुक्‍त प्रणाली लागू करने के प्रस्‍ताव को हरी झंडी दे दी.

(इनपुट- भाषा)


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