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2021 में भारतीय विदेश मंत्रालय के सामने प्रमुख चुनौतियां

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Published : Jan 1, 2021, 6:01 AM IST

साल 2020 बीत चुका है. विदेश नीति के क्षेत्र में भारत के सामने कई चुनौतियां सामने हैं. पड़ोसी देशों में चीन और नेपाल के साथ भारत के संबंधों को लेकर पूरी दुनिया की नजर बनी हुई है. अमेरिका में जो बाइडेन राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले हैं. वे भारत के साथ किस तरीके से अपनी नीति आगे बढ़ाएंगे, यह देखने वाली बात होगी. जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत के संबंध लगातार प्रगाढ़ होते जा रहे हैं. आइए एक नजर डालते हैं भारत की विदेश नीति के सामने कौन-कौन सी चुनौतियां हैं.

विदेश मंत्रालय
विदेश मंत्रालय

हैदराबाद : मई 2020 से भारत और चीन सीमा विवाद के कारण आमने सामने हैं. गतिरोध जून 2020 में उस वक्त घातक हो गया, जब गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हिंसक झड़पों में भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए. इसके बाद कथित तौर पर साइबर सुरक्षा चिंताओं को बताते हुए चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाकर भारत ने जवाबी कार्रवाई की. भारतीय और चीनी सेना के लाखों जवान हाई अलर्ट पर सीमा पर तैनात हैं.

गतिरोध को हल करने के लिए भारत और चीन ने पिछले कुछ महीनों में कई दौर की बातचीत की. हालांकि, अभी तक कोई ठोस सफलता नहीं मिली है.

चीन ने एलएसी के भारतीय हिस्से पर सड़कों और पुलों के निर्माण पर भी आपत्ति जताई. अमेरिका ने भी भारत के चीनी एप के प्रतिबंध का समर्थन किया.

भारत और चीन को सीमा विवाद के लिए कोई ठोस समाधान नहीं मिल पाया है. चूंकि सीमांओं पर बड़ी मात्रा में सैनिक तैनात हैं, इसलिए जिन देशों ने एक-दूसरे पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, वे भारत-चीन संबंधों को खराब कर सकते हैं.

रूस

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने चीन विरोधी एजेंडा के लिए भारत को पश्चिम का ऑब्जेक्ट बताया. उन्होंने पश्चिमी देशों पर रूस के भारत के साथ संबंधों को कमजोर करने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया.

भारत ने अमेरिका के साथ बढ़ती निकटता के मद्देनजर अपने सबसे पुराने दोस्त रूस के साथ कम होते रिश्तों का सामना किया. इस बीच चीन और पाकिस्तान रूस के करीब आ गए.

भारत के लिए अपने मित्र को संभालना एक चुनौती रहेगी, क्योंकि यह अपने सहयोगियों की सूची को व्यापक बना रहा है.

भारत-नेपाल सीमा संकट

नेपाल ने कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र को अपने क्षेत्र में दिखा कर एक नया मैप जारी कर दिया.

क्षेत्र अभी भी विवादित बना हुआ है और तब से दोनों सरकारें ठोस निर्णयों के साथ एक स्थिर सकारात्मक मार्ग सुनिश्चित करने में विफल रही हैं.

नेपाल के काठमांडू के साथ कालापानी और अन्य सीमा क्षेत्रों, जो भारतीय क्षेत्र हैं उन पर अपना दावा कर सकता है.

जहां तक विदेश नीति का संबंध है, नेपाल के विदेश मंत्रालय ने देश के नए मानचित्र के प्रकाशन को 2020 की प्रमुख झलकियों में से एक बताया.

भारत-बांग्लादेश और अप्रवासी मुद्दा

बांग्लादेश ने कई मौकों पर अप्रवासियों और शरणार्थियों को उनके देश वापस लेने से इनकार कर दिया है, जिससे दोनों देशों की सरकारों के बीच संबंधों खराब हो गए.

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के कारण भारत की पड़ोस नीति को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

साथ में अफगानिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारत के संबंधों पर इसका विशेष रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

भारत-अमेरिका संबंध

सीएए के बाद भारत का आउटरीच पर काफी प्रभाव पड़ा है. इस बीच जयशंकर ने यूएस हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी (एचएफएसी) के साथ बैठकों को रद्द कर दिया, क्योंकि प्रतिनिधिमंडल में प्रमिला जयपाल शामिल थीं. उन्होंने कश्मीर में सामन्य स्थिति बनाने के लिए डेमोक्रेट द्वारा कांग्रेस में पेश में किए गए प्रस्ताव पर नाराजगी जताई.

प्रधान मंत्री मोदी का बयान, अबकी बार ट्रंप सरकार, डेमोक्रेट के साथ अच्छा साबित नहीं हुआ. हालांकि, बाइडेन ने अतीत में भारत के लिए समर्थन दिखाया और भारत में बढ़ते NRI मुद्दे पर सूझबूझ दिखाई.

बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद गैरनिवासी भारतीयों और भारत से संबंधित अन्य मुद्दों से संबंधित नीतियों में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं.

भारत और ईरान के संबंध

तेहरान ने जुलाई 2020 में भारत को महत्वाकांक्षी चाबहार बंदरगाह रेलवे परियोजना से बाहर कर दिया, जिसकी वजह से पंसदीदा निर्माण कंपनी को लेकर असहमति और अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का भारत ने जवाब दिया था.

ईरानी विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि भारत अमेरिका और पश्चिम के करीब चला गया है और ईरान और चीन के साथ सहयोग कम कर दिया है. इसके बाद परियोजना चीन को हस्तांतरित की गई.

ईरान ने भारत को सबसे सस्ते तेल की आपूर्ति की, जिसने भारत में तेल की कीमतों को नियंत्रित बनाए रखा.

चाबहार बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इससे भारत को अफगानिस्तान में माल परिवहन में पाकिस्तान को बाईपास करने में मदद मिलती.

चाबहार बंदरगाह को ईरान तक भारत की पहुंच को बढ़ावा देने वाली थी, जहां अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे का मुख्य द्वार है. यहां, रूस, ईरान, यूरोप और मध्य एशिया के बीच समुद्री, रेल और सड़क मार्ग हैं, जो भारत के लिए लाभकारी होता.

अरब सागर में चीनी उपस्थिति का मुकाबला करने में चाबहार बंदरगाह भारत के लिए भी फायदेमंद थी, जिसे चीन, पाकिस्तान की मदद करके विकसित करने की कोशिश कर रहा है.

ग्वादर बंदरगाह चाबहार सड़क से 400 किमी और समुद्र से 100 किमी से कम दूरी पर है.

क्वाड

बीजिंग के पक्ष में झुकाव होने के कारण आरसीईपी से भारत ने खुद को अलग कर लिया. इस कारण ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का संबंध उच्च स्तर पर हैं.

भारत और ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय वार्ता में संलग्न होने की वजह से मुक्त व्यापार समझौता की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं.

क्वाड, जिसने पिछले महीने नौसेना अभ्यास किया था, भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा संबंधों को भी देख रहा है, लेकिन यह सहयोग अमेरिका-चीन संबंधों की स्थिति पर अत्यधिक डिपेंड करता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी पूर्व की नीति के मद्देनजर पश्चिमी शक्तियों के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.

भारत-कनाडा संबंध

भारतीय किसानों के समर्थन में ट्रूडो की टिप्पणी ने भारत सरकार से सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि यह देश का आंतरिक बड़ा मामला है.

जैसे-जैसे किसान आंदोलन लंबा खिंच रहा है, कनाडाई के पंजाबी एनआरआई इस पर प्रभाव डालेंगे और कुछ बिंदु पर प्रतिक्रिया करेंगे. वो कनाडा सरकार पर दबाव डाल सकते है क्योंकि कनाडा में अप्रवासी पंजाबियों के वोट का एक बड़ा हिस्सा है.

हैदराबाद : मई 2020 से भारत और चीन सीमा विवाद के कारण आमने सामने हैं. गतिरोध जून 2020 में उस वक्त घातक हो गया, जब गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हिंसक झड़पों में भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए. इसके बाद कथित तौर पर साइबर सुरक्षा चिंताओं को बताते हुए चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाकर भारत ने जवाबी कार्रवाई की. भारतीय और चीनी सेना के लाखों जवान हाई अलर्ट पर सीमा पर तैनात हैं.

गतिरोध को हल करने के लिए भारत और चीन ने पिछले कुछ महीनों में कई दौर की बातचीत की. हालांकि, अभी तक कोई ठोस सफलता नहीं मिली है.

चीन ने एलएसी के भारतीय हिस्से पर सड़कों और पुलों के निर्माण पर भी आपत्ति जताई. अमेरिका ने भी भारत के चीनी एप के प्रतिबंध का समर्थन किया.

भारत और चीन को सीमा विवाद के लिए कोई ठोस समाधान नहीं मिल पाया है. चूंकि सीमांओं पर बड़ी मात्रा में सैनिक तैनात हैं, इसलिए जिन देशों ने एक-दूसरे पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, वे भारत-चीन संबंधों को खराब कर सकते हैं.

रूस

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने चीन विरोधी एजेंडा के लिए भारत को पश्चिम का ऑब्जेक्ट बताया. उन्होंने पश्चिमी देशों पर रूस के भारत के साथ संबंधों को कमजोर करने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया.

भारत ने अमेरिका के साथ बढ़ती निकटता के मद्देनजर अपने सबसे पुराने दोस्त रूस के साथ कम होते रिश्तों का सामना किया. इस बीच चीन और पाकिस्तान रूस के करीब आ गए.

भारत के लिए अपने मित्र को संभालना एक चुनौती रहेगी, क्योंकि यह अपने सहयोगियों की सूची को व्यापक बना रहा है.

भारत-नेपाल सीमा संकट

नेपाल ने कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र को अपने क्षेत्र में दिखा कर एक नया मैप जारी कर दिया.

क्षेत्र अभी भी विवादित बना हुआ है और तब से दोनों सरकारें ठोस निर्णयों के साथ एक स्थिर सकारात्मक मार्ग सुनिश्चित करने में विफल रही हैं.

नेपाल के काठमांडू के साथ कालापानी और अन्य सीमा क्षेत्रों, जो भारतीय क्षेत्र हैं उन पर अपना दावा कर सकता है.

जहां तक विदेश नीति का संबंध है, नेपाल के विदेश मंत्रालय ने देश के नए मानचित्र के प्रकाशन को 2020 की प्रमुख झलकियों में से एक बताया.

भारत-बांग्लादेश और अप्रवासी मुद्दा

बांग्लादेश ने कई मौकों पर अप्रवासियों और शरणार्थियों को उनके देश वापस लेने से इनकार कर दिया है, जिससे दोनों देशों की सरकारों के बीच संबंधों खराब हो गए.

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के कारण भारत की पड़ोस नीति को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

साथ में अफगानिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारत के संबंधों पर इसका विशेष रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

भारत-अमेरिका संबंध

सीएए के बाद भारत का आउटरीच पर काफी प्रभाव पड़ा है. इस बीच जयशंकर ने यूएस हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी (एचएफएसी) के साथ बैठकों को रद्द कर दिया, क्योंकि प्रतिनिधिमंडल में प्रमिला जयपाल शामिल थीं. उन्होंने कश्मीर में सामन्य स्थिति बनाने के लिए डेमोक्रेट द्वारा कांग्रेस में पेश में किए गए प्रस्ताव पर नाराजगी जताई.

प्रधान मंत्री मोदी का बयान, अबकी बार ट्रंप सरकार, डेमोक्रेट के साथ अच्छा साबित नहीं हुआ. हालांकि, बाइडेन ने अतीत में भारत के लिए समर्थन दिखाया और भारत में बढ़ते NRI मुद्दे पर सूझबूझ दिखाई.

बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद गैरनिवासी भारतीयों और भारत से संबंधित अन्य मुद्दों से संबंधित नीतियों में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं.

भारत और ईरान के संबंध

तेहरान ने जुलाई 2020 में भारत को महत्वाकांक्षी चाबहार बंदरगाह रेलवे परियोजना से बाहर कर दिया, जिसकी वजह से पंसदीदा निर्माण कंपनी को लेकर असहमति और अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का भारत ने जवाब दिया था.

ईरानी विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि भारत अमेरिका और पश्चिम के करीब चला गया है और ईरान और चीन के साथ सहयोग कम कर दिया है. इसके बाद परियोजना चीन को हस्तांतरित की गई.

ईरान ने भारत को सबसे सस्ते तेल की आपूर्ति की, जिसने भारत में तेल की कीमतों को नियंत्रित बनाए रखा.

चाबहार बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इससे भारत को अफगानिस्तान में माल परिवहन में पाकिस्तान को बाईपास करने में मदद मिलती.

चाबहार बंदरगाह को ईरान तक भारत की पहुंच को बढ़ावा देने वाली थी, जहां अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे का मुख्य द्वार है. यहां, रूस, ईरान, यूरोप और मध्य एशिया के बीच समुद्री, रेल और सड़क मार्ग हैं, जो भारत के लिए लाभकारी होता.

अरब सागर में चीनी उपस्थिति का मुकाबला करने में चाबहार बंदरगाह भारत के लिए भी फायदेमंद थी, जिसे चीन, पाकिस्तान की मदद करके विकसित करने की कोशिश कर रहा है.

ग्वादर बंदरगाह चाबहार सड़क से 400 किमी और समुद्र से 100 किमी से कम दूरी पर है.

क्वाड

बीजिंग के पक्ष में झुकाव होने के कारण आरसीईपी से भारत ने खुद को अलग कर लिया. इस कारण ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का संबंध उच्च स्तर पर हैं.

भारत और ऑस्ट्रेलिया द्विपक्षीय वार्ता में संलग्न होने की वजह से मुक्त व्यापार समझौता की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे हैं.

क्वाड, जिसने पिछले महीने नौसेना अभ्यास किया था, भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा संबंधों को भी देख रहा है, लेकिन यह सहयोग अमेरिका-चीन संबंधों की स्थिति पर अत्यधिक डिपेंड करता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी पूर्व की नीति के मद्देनजर पश्चिमी शक्तियों के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.

भारत-कनाडा संबंध

भारतीय किसानों के समर्थन में ट्रूडो की टिप्पणी ने भारत सरकार से सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि यह देश का आंतरिक बड़ा मामला है.

जैसे-जैसे किसान आंदोलन लंबा खिंच रहा है, कनाडाई के पंजाबी एनआरआई इस पर प्रभाव डालेंगे और कुछ बिंदु पर प्रतिक्रिया करेंगे. वो कनाडा सरकार पर दबाव डाल सकते है क्योंकि कनाडा में अप्रवासी पंजाबियों के वोट का एक बड़ा हिस्सा है.

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