नई दिल्ली : भारत में नीति बनाने वालों की बात मानें तो आने वाले समय में देश के लोग ज्यादा से ज्यादा बिजली चालित वाहनों (ईवी) में सफर करेंगे. इससे वायु प्रदूषण में कमी आएगी, ध्वनि प्रदूषण में भी कमी आएगी और सरकार को तेल खरीदने में भी कम पैसे खर्च करने पड़ेंगे.
अगर इस बारे में सरकारी दावे सही साबित होते हैं, तो भारत ईवी बनाने का एक बड़ा केंद्र बनेगा. लेकिन यह सपना कब तक पूरा हो सकता है, ये सबसे बड़ा सवाल है.
हुंडई मोटर कम्पनी ने कुछ महीने पहले ही भारत की पहली बिजली चालित एसयूवी लॉन्च की, लेकिन कम्पनी अपने आप को अकेली पा रही है. 15 करोड़ वाहन चालकों वाले देश में इस साल अगस्त तक महज 130 कोना-एसयूवी गाड़ियों की बिक्री हो सकी है.
इन गाड़ियों की सुस्त बिक्री इस बात की तरफ इशारा करती है, कि कार बनाने वाली कम्पनियों को दुनिया के चौथे सबसे बड़े कार बाजार में बिजली की गाड़ियां बेचने में किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
कोना गाड़ी का दाम 25 लाख के करीब है. वहीं, एक भारतीय की औसतन कमाई 1.45 लाख रुपये है. सबसे ज्यादा बिकने वाली गाड़ियों में एक मारुति ऑल्टो की कीमत मात्र 2.80 लाख है. कोना जैसी गाड़ियों की कम बिक्री के पीछे इनका प्राइस टैग एक कारण है.
इसके अलावा देश में गाड़ियों के लिए चार्जिंग की सुविधा का न होना, इन गाड़ियों की खरीद के लिए लोन देने में बैंको का उत्साहित न होना और आदेश के बावजूद सरकारी विभागों का यह गाड़ियां न खरीदना भी इनकी कम बिक्री के कारण हैं.
ब्लूमबर्ग के आंकड़े कहते हैं कि पिछले छह सालों में देश में महज 8,000 बिजली की गाड़ियां ही बिकी हैं. ये आंकड़े ये भी बताते हैं कि हमारा पड़ोसी चीन इतनी गाड़ियां दो दिन में बेच लेता है.
बिजली की गाड़ियों के किफायती दाम न होना एक बड़ा परेशानी का कारण है. सरकार और कार निर्माता ये बात मानते हैं कि अगले दो से तीन सालों तक बिजली की गाड़ियों की बिक्री में कोई खास उछाल नहीं आएगी.
देश में पिछले चार साल से सरकार प्रदूषण पर काबू पाने के लिए बिजली की गाड़ियों की बिक्री को प्रमोट कर रही है, लेकिन अब तक इसका कोई उत्साहित करने वाला नतीजा नहीं आया है. इसी साल फरवरी में केंद्र सरकार ने इन गाड़ियों के लिए सब्सिडी, संसाधनों और प्रचार पर 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने का एलान किया.
भारत में बिजली के वाहनों की बाजार क्षमता को नकारा नहीं जा सकता. भारत में हर 1000 आदमी पर केवल 27 गाड़ियां हैं. वहीं जर्मनी में यह संख्या 570 है. जिससे अंतरराष्ट्रीय कार निर्माताओं को भारत में जापानी कम्पनी सुजुकी के आधिपत्य को चुनौती देने का मौका मिलता है.
मारुति सुजुकी अगले साल तक बाजार में अपनी बिजली की गाड़ियां नहीं लाने वाली है. टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने कुछ बेस लेवल की गाड़ियां जरूर बनाई हैं, लेकिन उनका ध्यान भी सरकारी इस्तेमाल में आने वाली बिजली की गाड़ियों की बिक्री पर है.
भारत में पिछले साल बिकी गाड़ियों में आधी की कीमत 5.80 लाख या उससे कम रही. जानकारों की राय में 2030 से पहले बिजली से चलने वाली गाड़ियां, ईंधन से चलने वाली गाड़ियों से दाम में मुकाबला नहीं कर सकेंगी.
ग्राहकों में बिजली की गाड़ियों को लेकर उत्साह तो है, लेकिन इनके दाम सुनते ही वो कदम खींच लेते हैं.
जो लोग कोना जैसी गाड़ी को ऊंचे दाम के बावजूद खरीद चुके हैं, उनके लिए इसे चार्ज करना समस्या है. 2018 तक भारत में ऐसी गाड़ियों को चार्ज करने के लिए 650 चार्जिंग स्टेशन थे, वहीं बिजली की गाड़ियों के सबसे बड़े निर्माता चीन मे ऐसे चार्जिंग स्टेशनों की संख्या 4,56,000 है. भारत में इन स्टेशनों की कम संख्या के पीछे पहले मुर्गी या पहले अंडे वाला सिद्धांत काम करता है.
पिछले महीने दिल्ली में हुई एक गोष्ठी में सरकारी अधिकारियों और बिजली के वाहन बनाने वाली कम्पनियों ने इस बात पर विचार किया, कि क्या पहले इन गाड़ियों को चार्ज करने के लिए स्टेशनों का इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जाए, या पहले इन गाड़ियों की सही संख्या में बिक्री का इंतजार किया जाए.
इस बात की पूरी उम्मीद है कि देश में लोगों को बिजली के वाहनों का विकल्प काफी पसंद आएगा, लेकिन ये भी तय है कि चार्जिंग जैसी बुनियादी सुविधा के बिना इन गाड़ियों की बिक्री आसान नहीं होगी.
इसके अलावा इन गाड़ियों की कम बिक्री का एक और अहम कारण यह है कि जब तक इन गाड़ियों की बिक्री के लिए सेकेंड्री बाजार तैयार नहीं होगा, तब तक बैंक आदि इनकी खरीद के लिए लोन देने में उत्साह नहीं दिखाएंगे.
बाजार में बिजली चालित वाहनों का माहौल बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को कदम उठाने की जरूरत है. जुलाई के बजट में बिजली की गाड़ियों को लेकर सरकार ने कई तरह की सब्सिडियों का एलान किया था. इनमें करों में छूट, आयकर में छूट और कुछ पुर्जों के आयात में छूट शामिल थी.
हालांकि, अभी सरकार को अपनी कथनी और करनी के फर्क को कम करने की जरूरत है. एनर्जी एफिशियेंसी सर्विसेस लिमिटेड (ईईएसएल) सरकार की तरफ से बनाई गई कम्पनी है, जिसका काम है सरकारी दफ्तरों में बिजली के वाहनों को लाना.
इस कंपनी ने 2017 में 10,000 गाड़ियों के लिये अपना पहला टेंडर जारी किया था. लेकिन अभी तक महज 1000 गाड़ियां ही ली गई हैं. अब ईईएसएल टैक्सी कंपनियों को अपनी गाड़ियां बेचने की कोशिश कर रही हैं.
बिजली के वाहनों का दुनियाभर में अलग अनुभव है. जिन देशों में बड़ी संख्या में बिजली के वाहनों का इस्तेमाल होता है, वहां के संसाधन भारत से अलग हैं. इसलिए यह जरूरी है कि बिजली के वाहनों को लेकर भारतीय ग्राहकों की पसंद आदि को ध्यान में रखा जाए, वरना इसके काफी विपरीत राजनीतिक और आर्थिक नतीजे हो सकते हैं.
दुनियाभर में ऑटो उद्योग पहले ही मंदी के दौर से गुजर रहा है. एक अनुमान के मुताबिक भारतीय ऑटो जगत में करीब तीन लाख नौकरियां अकेले इसी साल जा चुकी हैं. इसके पीछे बिजले के वाहनों के बाजार में आने को भी एक कारण माना जा रहा है. बिजली के वाहन भारतीय ऑटो बाजार में बड़ा बदलाव ला सकते हैं. ईंधन की गाड़ियों की तरह इन गाड़ियों में कई मंहगे पुर्जों की जरूरत नहीं होती है.
यह बात भी साफ नहीं है कि क्या नीति बनाने वालों ने ईंधन से बिजली में होने वाले बदलाव के नतीजों के बारे में सोचा है? देश में अभी सभी इलाकों में बिजली उपलब्ध नहीं हैं, और जहां है, वहां भी बिजली कटौती समस्या आम है.
ऐसे में लाखों बिजली चालित वाहनों के सड़क पर आने की सूरत में, बिजली की मांग पर क्या असर पड़ेगा? और ये अतिरिक्त बिजली का उत्पादन कैसे होगा?
इस सबके बीच तेल बिक्री से आने वाली कमाई भी एक बड़ा मुद्दा होगी. केंद्र और राज्य सरकारों की कमाई में तेल की बिक्री एक बड़ा हिस्सा है. बिजली के वाहनों को लाने की स्थिति में क्या राज्य सरकारें अपनी कमाई के इस हिस्से को जाने देंगी ? सभी राज्यों की ईंधन की बिक्री से होने वाली कमाई, मिलाकर करीब 1.9 लाख करोड़ से ऊपर है. इस कमाई के जाने से राज्यों के बजट में उथल-पुथल हो सकती है.
फिलहाल तेल के दामों को केंद्र सरकार तय करती है. बिजली के वाहनों के आने की सूरत में यह जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर आ जाएगी, क्योंकि बिजली के दाम राज्य सरकारें तय करती हैं. ऐसे में ये साफ नहीं है कि राज्य सरकारें क्या इस बोझ से निबट सकेंगी.
देश में सबसे पहले एक छोटी बिजली चालित गाड़ी को लाया गया था. इस गाड़ी में सुविधाएं कम और दाम ज्यादा था. इसके कारण लोगों के बीच इसे ज्यादा कामयाबी नहीं मिली. कुछ ऐसी ही चिंताएं आने वाली बिजली की गाड़ियों को लेकर भी हैं.
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गाड़ियों की बिक्री और सर्विसिंग के दाम भी उपभोक्ताओं के लिहाज से जरूरी है. ईंधन गीड़ियों की तुलना में बिजली के वाहनों को सर्विसिंग और पुर्जे बदलने की ज्यादा जरूरत नहीं होती है. ऐसे में कार निर्माता डीलरों को कैसे खुश रखेंगे, जबकि ये बात साफ है कि कार डीलरों की असल कमाई गाड़ियों की सर्विस और पुर्जे बदलने से होती है.
वहीं, उपभोक्ता, वॉरंटी को लेकर पूरी जानकारी लेना चाहेगा. फिलहाल कई कम्पनियां आठ साल की वारंटी देती हैं, लेकिन आने वाले समय में उपभोक्ताओं को इससे नुकसान होने की संभावना है, अगर उपभोक्ता को गाड़ी की वारंटी जारी रखनी है तो, उन्हें गाड़ी की सर्विसिंग डीलर से ही आठ सालों तक करानी पड़ेगी.
कनाडा और अमेरिका में बिना किसी साफ कारण के, बिजली की गाड़ियों में आग लगने और धमाके होने के मामले भी सामने आए हैं. इन गाड़ियों में बैटरी और मोटर सबसे जरूरी पुर्जे होते हैं. इन गाड़ियों से पूरे फायदे लेने के लिए जरूरी है कि इनकी बैट्रियां भारत में ही बनें. बैट्रियों का बाहर से खरीदना फायदेमंद नहीं होगा, क्योंकि ज्यादातर बैट्री बनाने वाले देश बिजली की गाड़ियों के बाजार में भारत से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं. भारत को इस समय बेहतर तकनीक की जरूरत है.
गाड़ी की बैट्री को चार्ज करना इन गाड़ियों को रोजाना चलाने में सबसे ज्यादा परेशानी का कारण बन सकता है. तेज चार्जिंग की सुविधा न होने कारण इन गाड़ियों से शहरों के बीच का सफर मुश्किल हो जाएगा.
फिलहाल देश में बिजली की गाड़ियां, जिज्ञासा का कारण हैं और बाजार में इन्हें अपनाए जाने के लिए इंतजार करना पड़ेगा. चीन की तर्ज पर भारत में भी पहले लोगों को बिजली के दोपहिया वाहनों से रूबरू कराने की जरूरत है. किसी भी अंतिम फैसले पर पहुंचने से पहले, सरकार बिजली के वाहन निर्माताओं और ग्राहकों के बीच संवाद होना बेहद जरूरी है.
(लेखक- पीवी राव, ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर, पीनार इंडस्ट्रीज)