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'इको पदयात्रा' कर रहे हैं 200 बौद्ध भिक्षु, पर्यावरण को बचाने का लिया संकल्प - बौद्ध धर्म,

पर्यावरण को बचाने के लिए 200 बौद्ध भिक्षुओं भारी जिम्मा उठाया है. बौद्ध भिक्षुओं ने इसके लिए 'इको पदयात्रा' की शुरुआत की है. जानिए क्या है 'इको पदयात्रा' और भिक्षु इसे कैसे पूरा करेंगे.

पर्यावरण को बचाने का बौद्ध भिक्षुओं ने लिया संकल्प
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Published : Jul 10, 2019, 4:31 PM IST

नई दिल्ली/कुल्लू: देश व हिमालयी क्षेत्रों में बिगड़ रहे पर्यावरण संतुलन को बचाने के लिए बौद्ध भिक्षुओं ने एक संकल्प लिया है. हिमाचल प्रदेश के काजा से 200 बौद्ध भिक्षुओं ने इको पदयात्रा की शुरुआत करने की ठानी है.

बता दें, पर्यावरण को बचाने के लिए 200 बौद्ध भिक्षुओं की यात्रा 18 हजार 800 फीट ऊंचे परागला दर्रे को पार करते हुए जम्मू-कश्मीर के लद्दाख में जाकर खत्म होगी.

भिक्षुओं का ये दल 13 दिन तक हिमालय के गगनचुंबी पहाड़ों और दर्रों को पैदल नापते हुए लगभग 150 किमी तक का पैदल सफर तय केरेंगे.

खास बात ये है कि इस पदयात्रा में कुछ विदेशी भी शामिल हैं, जो हिमालय के पिघलते ग्लेशियर पर शोध कर रहे हैं. इस दल की अगुआई बौद्ध धर्म के डुग्पा सम्प्रदाय के प्रमुख 12वें अवतारी ग्यालवांग डुग्पा कर रहे हैं. इसे इको पदयात्रा का नाम दिया गया है.

पढ़ें: छुट्टी पर BSF जवान ने बचाई एक व्यक्ति की जान, लोग बोले- फौजी कभी ऑफ ड्यूटी नहीं होता

बता दें कि बौद्ध भिक्षुओं ने स्पीति के चिचम गांव से पदयात्रा आरंभ की है. भिक्षु तिब्बत सीमा से सटे परांगला दर्रा को पार कर पारछू नदी को छूकर लद्दाख के कोरजोक पहुंचेंगे.

पदयात्रा के पहले दिन 4260 मीटर ऊंचे किब्बर गांव से भिक्षु स्पीति के अंतिम गांव धुमले पहुंचे. आपको बता दें, यहां से परांगला दर्रा सामने दिखाई देता है. इसके बाद वह दूसरे दिन धुमले से थलटक की तरफ रवाना होंगे.

गौरतलब है कि ये पदयात्रा जितनी रोमांचक है, उतनी ही खतरों से भरी हुई भी है. पारछू नदी इसी परांगला दर्रा से निकल कर तिब्बत और फिर भारत में प्रवेश करती है. इस पदयात्रा के दौरान भिक्षुओं को हर रोज करीब पांच घंटे का सफर तय करना पड़ेगा. 20 जुलाई को इको पदयात्रा का समापन होगा.

नई दिल्ली/कुल्लू: देश व हिमालयी क्षेत्रों में बिगड़ रहे पर्यावरण संतुलन को बचाने के लिए बौद्ध भिक्षुओं ने एक संकल्प लिया है. हिमाचल प्रदेश के काजा से 200 बौद्ध भिक्षुओं ने इको पदयात्रा की शुरुआत करने की ठानी है.

बता दें, पर्यावरण को बचाने के लिए 200 बौद्ध भिक्षुओं की यात्रा 18 हजार 800 फीट ऊंचे परागला दर्रे को पार करते हुए जम्मू-कश्मीर के लद्दाख में जाकर खत्म होगी.

भिक्षुओं का ये दल 13 दिन तक हिमालय के गगनचुंबी पहाड़ों और दर्रों को पैदल नापते हुए लगभग 150 किमी तक का पैदल सफर तय केरेंगे.

खास बात ये है कि इस पदयात्रा में कुछ विदेशी भी शामिल हैं, जो हिमालय के पिघलते ग्लेशियर पर शोध कर रहे हैं. इस दल की अगुआई बौद्ध धर्म के डुग्पा सम्प्रदाय के प्रमुख 12वें अवतारी ग्यालवांग डुग्पा कर रहे हैं. इसे इको पदयात्रा का नाम दिया गया है.

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बता दें कि बौद्ध भिक्षुओं ने स्पीति के चिचम गांव से पदयात्रा आरंभ की है. भिक्षु तिब्बत सीमा से सटे परांगला दर्रा को पार कर पारछू नदी को छूकर लद्दाख के कोरजोक पहुंचेंगे.

पदयात्रा के पहले दिन 4260 मीटर ऊंचे किब्बर गांव से भिक्षु स्पीति के अंतिम गांव धुमले पहुंचे. आपको बता दें, यहां से परांगला दर्रा सामने दिखाई देता है. इसके बाद वह दूसरे दिन धुमले से थलटक की तरफ रवाना होंगे.

गौरतलब है कि ये पदयात्रा जितनी रोमांचक है, उतनी ही खतरों से भरी हुई भी है. पारछू नदी इसी परांगला दर्रा से निकल कर तिब्बत और फिर भारत में प्रवेश करती है. इस पदयात्रा के दौरान भिक्षुओं को हर रोज करीब पांच घंटे का सफर तय करना पड़ेगा. 20 जुलाई को इको पदयात्रा का समापन होगा.

Intro:कुल्लू
पर्यावरण बचाने के लिए 18800 फुट ऊंचे दर्रे को पार करने निकले 200 बौद्ध भिक्षुBody:
काज़ा से शुरू होकर लद्धाख में खत्म होगी पदयात्रा
कुल्लू
देश व हिमालयी क्षेत्रों में बिगड़ रहे पर्यावरण संतुलन को बचाने के लिए काजा से 200 बौद्ध भिक्षुओं ने इको पदयात्रा भी शुरू कर दी है। पर्यावरण को बचाने के लिए 200 बौद्ध भिक्षु 18800 फुट ऊंचे पार परागला दर्रे को पार करेंगे वही खतरनाक दरों से गुजरती हुई यह यात्रा जम्मू कश्मीर के लद्दाख में जाकर खत्म होगी। भिक्षुओं का यह दल 13 दिन तक हिमालय के गगनचुंबी पहाड़ों और दर्रों को पैदल नापते हुए लगभग 150 किमी का पैदल सफर तय कर लद्दाख में पदयात्रा समाप्त करेंगे। इसे इको पदयात्रा का नाम दिया गया है। खास बात यह है कि इस पदयात्रा में कुछ विदेशी भी शामिल हैं जो हिमालय के पिघलते ग्लेशियरों पर शोध कर रहे हैं। इस दल की अगुवाई बौद्ध धर्म के डुग्पा संप्रदाय के प्रमुख 12वें अवतारी ग्यालवांग डुग्पा करे रहे हैं।
बौद्ध भिक्षुओं ने स्पीति के चिचम गांव से पदयात्रा आरंभ की है। भिक्षु तिब्बत सीमा से सटे परांगला दर्रा को पारकर पारछू नदी को छूकर लद्दाख के कोरजोक पहुंचेंगे। पदयात्रा के पहले दिन 4260 मीटर ऊंचे किब्बर गांव से भिक्षु स्पीति के अंतिम गांव धुमले पहुंचे। यहां पर परांगला दर्रा सामने दिखाई पड़ता है। दूसरे दिन धुमले से थलटक की तरफ रवाना होंगे। खराब मौसम के बीच इस इलाके में बर्फबारी की संभावना हमेशा बनी रहती है। Conclusion:लिहाजा, यह पदयात्रा जितनी रोमांचक है, उतनी ही खतरों से भरा हुआ। पारछू नदी इसी परांगला दर्रा से निकल कर तिब्बत और फिर भारत में प्रवेश करती है। इस पदयात्रा के दौरान भिक्षुओं को हर रोज 5 घंटे का सफर तय करना होगा। 20 जुलाई को इको पदयात्रा का समापन होगा।
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