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सही मामले को बिगाड़ने का जीता-जागता उदाहरण बोफोर्स मामला : पूर्व सीबीआई प्रमुख

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Published : Oct 21, 2020, 8:02 PM IST

Updated : Oct 22, 2020, 7:34 AM IST

चार जनवरी 1999 से 30 अप्रैल 2001 तक सीबीआई निदेशक के रूप में बोफोर्स मामले की जांच करने वाले राघवन ने अपनी आत्मकथा ‘ए रोड वेल ट्रैवल्ड’ में कांग्रेस की भूमिका के बारे में आलोचनात्मक रूप से लिखा है. उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि गहन जांच के सिवाय राजीव गांधी सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था, लेकिन परोक्ष रूप से यह चीजों को छिपाने के लिए था.

ex cbi chief
पूर्व सीबीआई प्रमुख

नई दिल्ली : केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व प्रमुख आर के राघवन ने कहा है कि ‘बोफोर्स’ मामला इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि किस तरह एक पार्टी की सरकार ने एक सही मामले की जांच को पलीता लगा दिया, जिसके पास बहुत कुछ छिपाने को है. उन्होंने कहा कि अदालत में मामला न टिक पाने के लिए वे लोग दोषी हैं, जिन्होंने 1990 के दशक में और 2004 से 2014 तक जांच एजेंसी को नियंत्रित किया.

भ्रष्टाचार का यह मामला 1,437 करोड़ रुपये के हॉवित्जर तोप सौदे में कथित रिश्वत से जुड़ा है. इसकी वजह से 1989 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा था. स्वीडन की अस्त्र निर्माता कंपनी बोफोर्स के साथ इस सौदे पर 1986 में हस्ताक्षर हुए थे. आरोप था कि कंपनी ने कांग्रेस के नेताओं और नौकरशाहों को लगभग 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी.

पढ़ें-जेकेसीए केस : ईडी के सामने दोबारा पेश हुए फारूक अब्दुल्ला

चार जनवरी 1999 से 30 अप्रैल 2001 तक सीबीआई निदेशक के रूप में मामले की जांच करने वाले राघवन ने अपनी आत्मकथा ‘ए रोड वेल ट्रैवल्ड’ में कांग्रेस की भूमिका के बारे में आलोचनात्मक रूप से लिखा है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि यह पुष्टि करना कठिन है कि क्या भुगतान वास्तव में पार्टी के लिए था? मामले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भी आरोप थे. राघवन ने अपने आगामी संस्मरण में लिखा है कि यह संभव है कि कुछ भुगतान कांग्रेस पार्टी के लिए रहा हो. हालांकि, इसकी पुष्टि करना कठिन है.

पढ़ें-महाराष्ट्र : एकनाथ खडसे का भाजपा से इस्तीफा, पहनेंगे एनसीपी की 'घड़ी'

उन्होंने लिखा है कि बोफोर्स मामला इस बात का उदाहरण रहेगा कि किस तरह एक सही मामले को एक पार्टी की सरकार द्वारा जानबूझकर बिगाड़ा जा सकता है, जिसके पास जनता से छिपाने के लिए बहुत कुछ है. दोष उन लोगों पर जाता है, जिन्होंने 1990 के दशक में और 2004-14 के दौरान सीबीआई को नियंत्रित किया. वर्ष 1991-96 में जहां कांग्रेस नेता पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे, वहीं 2004 से 2014 तक भी मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. नवंबर 1990 से जून 1991 तक कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चंद्रशेखर के नेतृत्व में अल्पमत की सरकार थी.

वर्ष 1988 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के अंतर्गत प्रारंभिक जांच का जिक्र करते हुए राघवन ने कहा है कि यह सब स्वीडिश रेडियो और राष्ट्रीय दैनिक हिन्दू के खुलासों से जनता में उत्पन्न असंतोष की वजह से किया गया. उन्होंने लिखा है कि गहन जांच के सिवाय राजीव गांधी सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था, लेकिन परोक्ष रूप से यह चीजों को छिपाने के लिए था.

नई दिल्ली : केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के पूर्व प्रमुख आर के राघवन ने कहा है कि ‘बोफोर्स’ मामला इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि किस तरह एक पार्टी की सरकार ने एक सही मामले की जांच को पलीता लगा दिया, जिसके पास बहुत कुछ छिपाने को है. उन्होंने कहा कि अदालत में मामला न टिक पाने के लिए वे लोग दोषी हैं, जिन्होंने 1990 के दशक में और 2004 से 2014 तक जांच एजेंसी को नियंत्रित किया.

भ्रष्टाचार का यह मामला 1,437 करोड़ रुपये के हॉवित्जर तोप सौदे में कथित रिश्वत से जुड़ा है. इसकी वजह से 1989 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा था. स्वीडन की अस्त्र निर्माता कंपनी बोफोर्स के साथ इस सौदे पर 1986 में हस्ताक्षर हुए थे. आरोप था कि कंपनी ने कांग्रेस के नेताओं और नौकरशाहों को लगभग 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी.

पढ़ें-जेकेसीए केस : ईडी के सामने दोबारा पेश हुए फारूक अब्दुल्ला

चार जनवरी 1999 से 30 अप्रैल 2001 तक सीबीआई निदेशक के रूप में मामले की जांच करने वाले राघवन ने अपनी आत्मकथा ‘ए रोड वेल ट्रैवल्ड’ में कांग्रेस की भूमिका के बारे में आलोचनात्मक रूप से लिखा है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि यह पुष्टि करना कठिन है कि क्या भुगतान वास्तव में पार्टी के लिए था? मामले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर भी आरोप थे. राघवन ने अपने आगामी संस्मरण में लिखा है कि यह संभव है कि कुछ भुगतान कांग्रेस पार्टी के लिए रहा हो. हालांकि, इसकी पुष्टि करना कठिन है.

पढ़ें-महाराष्ट्र : एकनाथ खडसे का भाजपा से इस्तीफा, पहनेंगे एनसीपी की 'घड़ी'

उन्होंने लिखा है कि बोफोर्स मामला इस बात का उदाहरण रहेगा कि किस तरह एक सही मामले को एक पार्टी की सरकार द्वारा जानबूझकर बिगाड़ा जा सकता है, जिसके पास जनता से छिपाने के लिए बहुत कुछ है. दोष उन लोगों पर जाता है, जिन्होंने 1990 के दशक में और 2004-14 के दौरान सीबीआई को नियंत्रित किया. वर्ष 1991-96 में जहां कांग्रेस नेता पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे, वहीं 2004 से 2014 तक भी मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. नवंबर 1990 से जून 1991 तक कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चंद्रशेखर के नेतृत्व में अल्पमत की सरकार थी.

वर्ष 1988 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के अंतर्गत प्रारंभिक जांच का जिक्र करते हुए राघवन ने कहा है कि यह सब स्वीडिश रेडियो और राष्ट्रीय दैनिक हिन्दू के खुलासों से जनता में उत्पन्न असंतोष की वजह से किया गया. उन्होंने लिखा है कि गहन जांच के सिवाय राजीव गांधी सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था, लेकिन परोक्ष रूप से यह चीजों को छिपाने के लिए था.

Last Updated : Oct 22, 2020, 7:34 AM IST
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