नई दिल्ली : महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के बेटे और बीजेपी विधायक नितेश राणे द्वारा ट्विटर पर वीडियो साझा किए जाने के बाद इस मुद्दे ने राजनीति पकड़ ली है. इसके बाद से महाराष्ट्र सरकार लगातार विपक्षी पार्टियों के निशाने पर आ गई है. भाजपा ने इस घटना को शर्मनाक बताते हुए सीधे-सीधे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से जवाब मांगा है.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र के केईएम अस्पताल में मरीजों के पास बॉडी बैग्स रखे नजर आ रहे हैं. इसका वीडियो भाजपा विधायक नीतीश राणे ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है. हालांकि इस तरह के बॉडी बैग्स रखे जाने को लेकर अस्पताल की तरफ से कोई टिप्पणी नहीं आई है.
श्रमिकों का मामला हो, भुखमरी का मुद्दा हो या पलायन संबंधित सवाल, केंद्र लगातार ही विपक्षियों के निशाने पर रहा है. ऐसे में भाजपा भी नहले पे दहला मार रही है. भाजपा एक के बाद एक राज्य सरकार की खामियों पर सवाल उठा रही है. इसी क्रम में एक बार फिर भाजपा ने महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाया है.
हालांकि इस घटना के बाद बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) ने यह संकेत भी दिए हैं कि वह कोरोना संक्रमितों की मृत्यु के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर संबंधित नीति पर राज्य सरकार से चर्चा करेगी.
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लेकिन भाजपा ने इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री पर सवाल उठाते हुए इसे घोर लापरवाही बताया है और कहा है कि इस तरह कोरोना मरीजों की संख्या और भी ज्यादा बढ़ सकती है.
इसी क्रम में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि महाराष्ट्र के अस्पतालों में मरीजों के साथ ही शव भी रखे जा रहे हैं. ऐसे में इन मरीजों के मस्तिष्क पर इसका क्या असर पडे़गा?
भाजपा ने महाराष्ट्र सरकार पर आरोप लगाते हुए यह भी कहा है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़े-बड़े दावे करते हैं और बड़ी-बड़ी व्यवस्था की बात करते हैं लेकिन यह कैसी व्यवस्था है, जिसमें मरीजों को मृत शरीर के साथ रखा जा रहा है. वास्तव में महाराष्ट्र और बंगाल की सरकार मरीजों के साथ जिस तरह का दुर्व्यवहार कर रही है यह अपने आप में बहुत ही खराब और दुर्भाग्यपूर्ण है.
ठाकरे के नामांकन पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा ने कहा है कि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं और किसी भी सदन के सदस्य नहीं है. इसके साथ ही छह माह का वक्त खत्म होने वाला है. मुख्यमंत्री रहने के लिए एमएलसी या कोई सदस्य होना जरूरी है. यही कारण है कि एमएलसी चुनाव के लिए ईसी (चुनाव आयोग) ने आज्ञा दी थी.