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विंध्य के 'वैभव' पर एमपी में सियासत - विंध्य प्रदेश

बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने अलग विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग को लेकर मोर्चा खोल दिया है. वे विंध्य प्रदेश की मांग के लिए सबसे समर्थन की मांग कर रहे हैं, जिस पर कहीं न कहीं कई नेताओं का मौन समर्थन मिलता नजर आ रहा है.

history of vindhya pradesh
विंध्य प्रदेश बनाए जाने की मांग
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Published : Jan 28, 2021, 8:25 AM IST

भोपाल : मैहर विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी मध्य प्रदेश से अलग विंध्य प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने एक अलग मोर्चा भी खोल रखा है. सीधी में एक कार्यक्रम में उन्होंने 'हमारा विन्ध्य हमें लौटा दो' के नारे लगाए. साथ ही अन्य सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा कि विंध्य की उपेक्षा की गई है. विधायक नारायण त्रिपाठी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर एक आंदोलन छेड़ रखा है. जिसके लिए वे मैहर-रीवा से लेकर भोपाल तक लोगों से समर्थन मांग रहे हैं. उनकी इस मांग को कुछ नेता जायज मानते हुए मौन समर्थन भी कर रहे हैं.

बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी

कई नेताओं का 'त्रिपाठी' को मौन समर्थन!

विंध्य प्रदेश की मांग मध्य प्रदेश के गठन के दौरान भी उठी थी, क्योंकि मध्य प्रदेश के गठन के पहले बुंदेलखंड, मध्य भारत और भोपाल राज्य के गठन की मांग थी, लेकिन इन सबको इकट्ठा कर मध्य प्रदेश का गठन किया गया. उस समय विंध्य के नेता श्रीनिवास तिवारी के अलावा कई नेताओं ने विंध्य प्रदेश बनाने की मांग की थी. उसके बाद अब एक बार फिर जब बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने विंध्य को अलग प्रदेश बनाने की मांग की है, तो माना जा रहा है कि उनकी मांग को कई नेताओं का मौन समर्थन मिल रहा है.

विंध्य प्रदेश पर पॉलिटिक्स

मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिलना हो सकती है वजह

हाल में ही जिस तरह से शिवराज मंत्रिमंडल में विंध्य के नेताओं को जगह नहीं मिली है, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि नारायण त्रिपाठी को काफी समर्थन मिल सकता है. इसके अलावा विंध्य के सभी बड़े नेता जो मंत्री पद की दौड़ में शमिल थे, वो भी कहीं न कहीं विंध्य प्रदेश की इस मांग में नारायण त्रिपाठी के साथ नजर आ रहे हैं. क्योंकि ये सब नेता भी सरकार के सामने यह बताना चाहते हैं, कि वो भी सरकार से ज्यादा संतुष्ट नहीं हैं.

history of vindhya pradesh
विंध्य प्रदेश का मैप

2023 चुनाव में अहम हो सकता है विंध्य प्रदेश

बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी की यह मांग कहीं न कहीं प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव यानी साल 2023 के लिए अटकलों का दौर शुरू करेगा. क्योंकि अगर विधायक त्रिपाठी की मांग के समर्थन में विंध्य के बाकी नेता खुलकर सामने आते हैं, तो हो सकता है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में विंध्य प्रदेश का अलग दबदबा हो. क्योंकि मौजूदा समय में शिवराज सरकार में सबसे ज्यादा विंध्य क्षेत्र का योगदान है.

विंध्य प्रदेश पर पॉलिटिक्स

चुरहट में गूंजा 'हमारा विंध्य हमें लौटा दो' का नारा

बुधवार को सीधी जिले के चुरहट के मोहनी स्टेडियम में मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी, पूर्व विधायक और विंध्य प्रदेश संगठन ने विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया. इस मौके पर 'हमारा विन्ध्य हमें लौटा दो' का नारा लगाया गया और कई सरकारों पर विंध्य के उपेक्षा होने की बात कही गई. इस मौके पर मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने विशाल जन समूह को संबोधित करते हुए कहा कि जब तक विंध्य प्रदेश नहीं बनता तब तक विंध्य प्रदेश की मांग उठती रहेगी और राज्य की मांग को लेकर विभिन्न संगठनों द्वारा आंदोलन जारी रहेगा.

'पुराना विंध्य वापस लौटा दो'

विंध्य प्रदेश की मांग करते हुए बीजेपी विधायक कहा चुके हैं कि वे चाहते हैं कि पुराना विंध्य हमें वापस लौटा दिया जाए. अब वो जनसंपर्क के जरिए लोगों को विंध्य प्रदेश के इतिहास के बारे में बताएंगे. विधायक ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का सपना था कि छोटे राज्य बनाए जाएं. इसलिए उन्होंने पृथक विंध्य प्रदेश की मांग की है. इसके अलावा विधायक ने कहा कि अगर हम विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर शांत हुए तो बुंदेलखंड को प्रदेश बना दिया जाएगा.

वीडी शर्मा ने किया विधायक को तलब

विधायक नारायण त्रिपाठी ने जब विंध्य प्रदेश बनाने की मांग उठाई थी, तब बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उनसे तलब किया था. प्रदेश मुख्यालय में वीडी शर्मा ने त्रिपाठी को बुलाकर चर्चा की. हालांकि मुलाकात के बाद भी नारायण त्रिपाठी के तेवर कम नहीं हुए थे. विधायक ने कहा था कि विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर लगातार आंदोलन करेंगे.

विंध्य प्रदेश पर पॉलिटिक्स

जानें इतिहास

मध्य प्रदेश का गठन 01 नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था. नए प्रदेश के गठन के बाद से इसका अस्तित्व समाप्त हो गया. इसमें आने वाले बघेलखंड और बुंदेलखंड के साथ अन्य कई क्षेत्र मध्य प्रदेश का हिस्सा हो गए. उस दौरान विलय के समय इस क्षेत्र में जो संसाधन दिए जाने थे, वे नहीं मिले. जिसकी वजह से फिर विंध्य प्रदेश के पुनर्गठन की मांग उठ खड़ी हुई है, हालांकि विलय का भी व्यापक रूप से विरोध हुआ था, बड़ा आंदोलन हुआ, गोलियां चली. गंगा, चिंताली और अजीज नाम के लोग शहीद भी हुए, सैकड़ों लोग जेल भी गए. लेकिन सरकारी तंत्र ने उस आवाज को शांत कर दिया था. बढ़ती मांग के चलते मध्यप्रदेश विधानसभा ने 10 मार्च 2000 को संकल्प पारित कर विंध्य प्रदेश के अलग राज्य गठित करने के लिए केंद्र सरकार से कई बार इस पर विचार करने की मांग की गई थी.

लगातार उपेक्षित हो रहा विंध्य प्रदेश

विंध क्षेत्र को बड़े संस्थान अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम मिल रहे हैं. विंध्य प्रदेश पुनर्गठन को लेकर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व समन्वयक जयराम शुक्ला बताते हैं कि मध्यप्रदेश में आईआईटीएस यूनिवर्सिटी सहित कई बड़े संस्थान इंदौर, भोपाल और जबलपुर को दिए जा रहे हैं. विंध्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. बस शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जा रहे हैं. यहां उद्योग भी आए तो धुंए और धूल वाले विंध्य प्रदेश की राजधानी रहे रीवा को स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट से भी अलग रखा गया. जब रीवा राजधानी थी तो ये लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर जैसे शहरों के बराबर माना जाता था. उस समय इसे भोपाल से भी बड़ा माना जाता था. यहां राजनीतिक जागरूकता सबसे अधिक रही. लेकिन क्षेत्र के विकास में इसका फायदा जनप्रतिनिधि नहीं दिला सके.

60 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला था विंध्य प्रदेश

राज्य पुनर्गठन 1956 के पूर्व विंध्य प्रदेश 1951 में गवर्नमेंट ऑफ स्टेट्स एक्ट के अंतर्गत पार्ट सी स्टेट था. इसका क्षेत्रफल 14,84,5721 एकड़ था यानि लगभग 60 हजार वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 35 लाख 75 हजार थी. तब विंध्य प्रदेश में 8 जिले थे. जिसमें रीवा, सतना, शहडोल, सीधी, पन्ना, छतरपुर, दतिया और टीकमगढ़ शामिल थे. इसके अलावा गांव की कुल संख्या 12,776 थी उस समय भी प्रदेश में 11 नगरपालिका थीं और एक नोटिफाइड एरिया कमेटी थीं. विंध्य प्रदेश में 1806 ग्राम पंचायत और 585 न्याय पंचायतें थी. 1 मार्च 1952 से विंध्य प्रदेश में उप राज्यपाल नियुक्त हुआ, प्रथम आम चुनाव में मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए सदस्यों और लोकसभा के लिए 6 सदस्यों का निर्वाचन हुआ साथ ही राज्यसभा में मध्य प्रदेश को चार स्थान आवंटित किए गए थे.

पढ़े: मध्य प्रदेश: चुरहट में गूंजा 'हमारा विंध्य हमें लौटा दो' का नारा

विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे अवधेश प्रताप सिंह

साल 1948 में जब विंध्यप्रदेश की स्थापना हुई, तब पहली बार अवधेश प्रताप सिंह को मुख्यमंत्री निर्वाचित किया गया था, जिसके नाम से बाद में रीवा में एक विश्वविद्यालय भी बनाया गया. साथ ही रीवा के वर्तमान नगर निगम कार्यालय में विधानसभा लगाई जा रही थी. इसके अलावा वर्तमान स्वागत भवन में विधायकों का विश्राम गृह था. वर्तमान एसपी के निवासरत को मुख्यमंत्री का निवास स्थान बनाया गया था.

भोपाल : मैहर विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी मध्य प्रदेश से अलग विंध्य प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने एक अलग मोर्चा भी खोल रखा है. सीधी में एक कार्यक्रम में उन्होंने 'हमारा विन्ध्य हमें लौटा दो' के नारे लगाए. साथ ही अन्य सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा कि विंध्य की उपेक्षा की गई है. विधायक नारायण त्रिपाठी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर एक आंदोलन छेड़ रखा है. जिसके लिए वे मैहर-रीवा से लेकर भोपाल तक लोगों से समर्थन मांग रहे हैं. उनकी इस मांग को कुछ नेता जायज मानते हुए मौन समर्थन भी कर रहे हैं.

बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी

कई नेताओं का 'त्रिपाठी' को मौन समर्थन!

विंध्य प्रदेश की मांग मध्य प्रदेश के गठन के दौरान भी उठी थी, क्योंकि मध्य प्रदेश के गठन के पहले बुंदेलखंड, मध्य भारत और भोपाल राज्य के गठन की मांग थी, लेकिन इन सबको इकट्ठा कर मध्य प्रदेश का गठन किया गया. उस समय विंध्य के नेता श्रीनिवास तिवारी के अलावा कई नेताओं ने विंध्य प्रदेश बनाने की मांग की थी. उसके बाद अब एक बार फिर जब बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने विंध्य को अलग प्रदेश बनाने की मांग की है, तो माना जा रहा है कि उनकी मांग को कई नेताओं का मौन समर्थन मिल रहा है.

विंध्य प्रदेश पर पॉलिटिक्स

मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिलना हो सकती है वजह

हाल में ही जिस तरह से शिवराज मंत्रिमंडल में विंध्य के नेताओं को जगह नहीं मिली है, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि नारायण त्रिपाठी को काफी समर्थन मिल सकता है. इसके अलावा विंध्य के सभी बड़े नेता जो मंत्री पद की दौड़ में शमिल थे, वो भी कहीं न कहीं विंध्य प्रदेश की इस मांग में नारायण त्रिपाठी के साथ नजर आ रहे हैं. क्योंकि ये सब नेता भी सरकार के सामने यह बताना चाहते हैं, कि वो भी सरकार से ज्यादा संतुष्ट नहीं हैं.

history of vindhya pradesh
विंध्य प्रदेश का मैप

2023 चुनाव में अहम हो सकता है विंध्य प्रदेश

बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी की यह मांग कहीं न कहीं प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव यानी साल 2023 के लिए अटकलों का दौर शुरू करेगा. क्योंकि अगर विधायक त्रिपाठी की मांग के समर्थन में विंध्य के बाकी नेता खुलकर सामने आते हैं, तो हो सकता है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में विंध्य प्रदेश का अलग दबदबा हो. क्योंकि मौजूदा समय में शिवराज सरकार में सबसे ज्यादा विंध्य क्षेत्र का योगदान है.

विंध्य प्रदेश पर पॉलिटिक्स

चुरहट में गूंजा 'हमारा विंध्य हमें लौटा दो' का नारा

बुधवार को सीधी जिले के चुरहट के मोहनी स्टेडियम में मैहर विधायक नारायण त्रिपाठी, पूर्व विधायक और विंध्य प्रदेश संगठन ने विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया. इस मौके पर 'हमारा विन्ध्य हमें लौटा दो' का नारा लगाया गया और कई सरकारों पर विंध्य के उपेक्षा होने की बात कही गई. इस मौके पर मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने विशाल जन समूह को संबोधित करते हुए कहा कि जब तक विंध्य प्रदेश नहीं बनता तब तक विंध्य प्रदेश की मांग उठती रहेगी और राज्य की मांग को लेकर विभिन्न संगठनों द्वारा आंदोलन जारी रहेगा.

'पुराना विंध्य वापस लौटा दो'

विंध्य प्रदेश की मांग करते हुए बीजेपी विधायक कहा चुके हैं कि वे चाहते हैं कि पुराना विंध्य हमें वापस लौटा दिया जाए. अब वो जनसंपर्क के जरिए लोगों को विंध्य प्रदेश के इतिहास के बारे में बताएंगे. विधायक ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का सपना था कि छोटे राज्य बनाए जाएं. इसलिए उन्होंने पृथक विंध्य प्रदेश की मांग की है. इसके अलावा विधायक ने कहा कि अगर हम विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर शांत हुए तो बुंदेलखंड को प्रदेश बना दिया जाएगा.

वीडी शर्मा ने किया विधायक को तलब

विधायक नारायण त्रिपाठी ने जब विंध्य प्रदेश बनाने की मांग उठाई थी, तब बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उनसे तलब किया था. प्रदेश मुख्यालय में वीडी शर्मा ने त्रिपाठी को बुलाकर चर्चा की. हालांकि मुलाकात के बाद भी नारायण त्रिपाठी के तेवर कम नहीं हुए थे. विधायक ने कहा था कि विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर लगातार आंदोलन करेंगे.

विंध्य प्रदेश पर पॉलिटिक्स

जानें इतिहास

मध्य प्रदेश का गठन 01 नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था. नए प्रदेश के गठन के बाद से इसका अस्तित्व समाप्त हो गया. इसमें आने वाले बघेलखंड और बुंदेलखंड के साथ अन्य कई क्षेत्र मध्य प्रदेश का हिस्सा हो गए. उस दौरान विलय के समय इस क्षेत्र में जो संसाधन दिए जाने थे, वे नहीं मिले. जिसकी वजह से फिर विंध्य प्रदेश के पुनर्गठन की मांग उठ खड़ी हुई है, हालांकि विलय का भी व्यापक रूप से विरोध हुआ था, बड़ा आंदोलन हुआ, गोलियां चली. गंगा, चिंताली और अजीज नाम के लोग शहीद भी हुए, सैकड़ों लोग जेल भी गए. लेकिन सरकारी तंत्र ने उस आवाज को शांत कर दिया था. बढ़ती मांग के चलते मध्यप्रदेश विधानसभा ने 10 मार्च 2000 को संकल्प पारित कर विंध्य प्रदेश के अलग राज्य गठित करने के लिए केंद्र सरकार से कई बार इस पर विचार करने की मांग की गई थी.

लगातार उपेक्षित हो रहा विंध्य प्रदेश

विंध क्षेत्र को बड़े संस्थान अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत कम मिल रहे हैं. विंध्य प्रदेश पुनर्गठन को लेकर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व समन्वयक जयराम शुक्ला बताते हैं कि मध्यप्रदेश में आईआईटीएस यूनिवर्सिटी सहित कई बड़े संस्थान इंदौर, भोपाल और जबलपुर को दिए जा रहे हैं. विंध्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. बस शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जा रहे हैं. यहां उद्योग भी आए तो धुंए और धूल वाले विंध्य प्रदेश की राजधानी रहे रीवा को स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट से भी अलग रखा गया. जब रीवा राजधानी थी तो ये लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर जैसे शहरों के बराबर माना जाता था. उस समय इसे भोपाल से भी बड़ा माना जाता था. यहां राजनीतिक जागरूकता सबसे अधिक रही. लेकिन क्षेत्र के विकास में इसका फायदा जनप्रतिनिधि नहीं दिला सके.

60 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला था विंध्य प्रदेश

राज्य पुनर्गठन 1956 के पूर्व विंध्य प्रदेश 1951 में गवर्नमेंट ऑफ स्टेट्स एक्ट के अंतर्गत पार्ट सी स्टेट था. इसका क्षेत्रफल 14,84,5721 एकड़ था यानि लगभग 60 हजार वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 35 लाख 75 हजार थी. तब विंध्य प्रदेश में 8 जिले थे. जिसमें रीवा, सतना, शहडोल, सीधी, पन्ना, छतरपुर, दतिया और टीकमगढ़ शामिल थे. इसके अलावा गांव की कुल संख्या 12,776 थी उस समय भी प्रदेश में 11 नगरपालिका थीं और एक नोटिफाइड एरिया कमेटी थीं. विंध्य प्रदेश में 1806 ग्राम पंचायत और 585 न्याय पंचायतें थी. 1 मार्च 1952 से विंध्य प्रदेश में उप राज्यपाल नियुक्त हुआ, प्रथम आम चुनाव में मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए सदस्यों और लोकसभा के लिए 6 सदस्यों का निर्वाचन हुआ साथ ही राज्यसभा में मध्य प्रदेश को चार स्थान आवंटित किए गए थे.

पढ़े: मध्य प्रदेश: चुरहट में गूंजा 'हमारा विंध्य हमें लौटा दो' का नारा

विंध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे अवधेश प्रताप सिंह

साल 1948 में जब विंध्यप्रदेश की स्थापना हुई, तब पहली बार अवधेश प्रताप सिंह को मुख्यमंत्री निर्वाचित किया गया था, जिसके नाम से बाद में रीवा में एक विश्वविद्यालय भी बनाया गया. साथ ही रीवा के वर्तमान नगर निगम कार्यालय में विधानसभा लगाई जा रही थी. इसके अलावा वर्तमान स्वागत भवन में विधायकों का विश्राम गृह था. वर्तमान एसपी के निवासरत को मुख्यमंत्री का निवास स्थान बनाया गया था.

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