बीड (महाराष्ट्र) : मानव अस्तित्व मिट्टी के अस्तित्व पर निर्भर करता है. मिट्टी बची तो ही लोग बच सकते हैं. कुछ ऐसे ही विचारों के साथ महाराष्ट्र के बीड जिले के लोलाडगांव के युवा शिवराम घोडके ने जैविक खेती शुरू की थी.
किसानों के खेतों में 21 साल की उम्र में गोबर के ढेर से शुरू हुई बीड के इस युवक की यात्रा आज भी जारी है. लेकिन आज वह दूसरों के लिए मिसाल बन चुके हैं.
उन्होंने गाय के गोबर और अन्य कचरे से वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन कर जैविक खेती का व्यवसाय शुरू किया. बीड के वर्मीकम्पोस्ट ने न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर के 7 देशों में अपना नाम बनाया है.
5 लाख किसानों को दे चुके ट्रेनिंग
शिवराम घोडके महाराष्ट्र के पांच लाख किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दे चुके हैं. वर्तमान में बीड जिले के करीब 40 हजार किसान इस युवा के पदचिह्ननों पर चलकर जैविक खेती कर रहे हैं.
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लोग ताने देते थे पर शिवराम डटे रहे
लोलाडगांव में बलिराजा कृषि विज्ञान मंडल के तहत जैविक खेती के साथ-साथ जैविक उत्पादक कंपनी के माध्यम से जैविक उत्पादन किया जा रहा है. 2002-2003 में परभणी विश्वविद्यालय से कृषि में बी.एससी करने के बाद उनका परिवार चाहता था कि वह कृषि कंपनी में काम करें, लेकिन शिवराम ने कुछ अलग करने की ठानी.
उन्होंने जैविक खेती के लिए वर्मीकम्पोस्ट बनाने का रास्ता चुना. शुरुआत में वह खुद खेतों पर जाकर जहां गोबर के ढेर लगे होते थे वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने में किसानों की मदद करते थे. ऐसा करते देख गांव के लोग उनके पिता से कहते थे कि जब शिवराम ने बी.एससी कर रखी है तो वह ये क्यों कर रहा है. लेकिन शिवराम ने अपना काम जारी रखा.
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कृषिभूषण अवार्ड मिला
महाराष्ट्र सरकार ने शिवराम के काम को सराहा. जैविक खेती के लिए 2010 में कृषिभूषण अवार्ड से नवाजा. शिवराम ने अपनी 20 एकड़ जमीन में जैविक खेती की. वह पहले ऐसे व्यक्ति थे जो 20 एकड़ जमीन में जैविक खेती कर रहे थे.
घर में भी हुआ विरोध, लेकिन साबित कर दिखाया
शिवराम की राह आसान नहीं थी. घर वालों ने भी विरोध किया कि खेतों में रासायनिक उर्वरक का उपयोग नहीं किया तो फसल की अच्छी पैदावार कैसे होगी. लेकिन शिवराम ने साबित किया कि बिना रासायनिक उर्वरकों के भी अच्छी पैदावार की जा सकती है. दूर-दूर के किसान देखने आते थे कि शिवराम ये कैसे करते हैं.
कृषि विभाग ने भी उनके काम पर गौर किया. प्रशासन ने शिवराम घोडके को बलिराज कृषि विज्ञान मंडल के तहत किसानों के लिए जैविक खेती में प्रशिक्षण देने में मदद की. किसान गर्व से कहते हैं कि शिवराम घोडके अपने 20 एकड़ खेत में, रासायनिक खाद के बिना गन्ना, चना, शरबत (गेहूं) सहित अन्य फसलों को उगा रहे हैं. बीड वर्मीकम्पोस्ट के लिए न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के कई देशों में जाना जाने लगा है.
शिवराम घोडके ने बताया कि पीटर पॉकेटर, जो बायोडायनामिक्स के क्षेत्र में काम करते हैं, बलिराज कृषि विज्ञान मंडल के तहत निर्मित वर्मीकम्पोस्ट परियोजना का दौरा करने आए थे, तब उन्होंने बीड से वर्मीकम्पोस्ट लिया. शिवराम घोडके 200 से 250 रुपए क्विंटल पर वर्मीकम्पोस्ट उपलब्ध करा रहे हैं.