ETV Bharat / bharat

विश्व शरणार्थी दिवस : बांग्लादेशी शरणार्थियों को आज भी स्थायी पुनर्वास का इंतजार

आज विश्व शरणार्थी दिवस है. बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को कोरबा आए करीब पांच दशक बीतने वाले हैं, लेकिन आज भी इनकी परिस्थितियां बिल्कुल भी नहीं बदली हैं. इन शरणार्थियों के पास अब तक स्थायी पुनर्वास नहीं है.

world refugee day
विश्व शरणार्थी दिवस
author img

By

Published : Jun 20, 2020, 1:15 PM IST

रायपुर : बांग्लादेशी शरणार्थियों को कोरबा जिले में बसे करीब 50 साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन आज भी इन्हें स्थायी पुनर्वास का इंतजार है. 1982 में करीब 40 बांग्लादेशी परिवारों को रायपुर के माना कैंप से कोरबा में बसाया गया था. इसके साथ ही इनके लिए कई घोषणाएं भी की गईं, लेकिन वो घोषणाएं सिर्फ कागजी बनकर रह गईं.

पावर हब में शरणार्थियों का दर्द
बीते चार दशकों में कोरबा पावर हब बन गया है. लेकिन बांग्लादेश से कोरबा आए शरणार्थियों का जीवन अब भी वहीं रुका हुआ है, न इन्हें स्थायी पुनर्वास मिल पाया और न ही दुकान के लिए जमीन. आज विश्व शरणार्थी दिवस है. इस अवसर पर हम आपको 40 ऐसे बांग्लादेशी परिवारों से मिला रहे हैं, जो पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है) से विस्थापित होकर पहले रायपुर आए और उसके बाद कोरबा पहुंचे.

स्थायी पुनर्वास के इंतजार में बांग्लादेशी शरणार्थी.

प्रदेश के अलग-अलग जिलों में बसाए गए बांग्लादेशी शरणार्थी
तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 1958 में दंडकारण्य परियोजना शुरू की थी, जिसके तहत पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से भारत आए. असंख्य बंगाली शरणार्थियों को विभाजन के बाद ओडिशा, मध्यप्रदेश और पूर्वोत्तर के क्षेत्र में बसाया गया था. वर्तमान छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़ और कोरबा जिले में अलग-अलग स्थानों पर ऐसे शरणार्थी रह रहे हैं. पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार और युद्ध के बाद उपजे विपरीत परिस्थितियों और दंगों से त्रस्त होकर शरणार्थी भारत में ही रहना चाहते थे. इंदिरा गांधी ने तब इनकी पीड़ा समझी और इन्हें भारत में शरण दी. तब से लेकर अब तक अन्य स्थानों की तुलना में कोरबा में रहने वाले शरणार्थियों के जीवन स्तर में कोई खास बदलाव नहीं आया है.

10 बाई 15 के कमरे में सिमटी जिंदगी
सारे शरणार्थी अब भी उसी घर में निवास करते हैं, जहां वह 1980 के दशक में निवासरत थे. शरणार्थियों की मानें तो उन्हें उनकी जमीन का मालिकाना हक भी नहीं मिला है. 40 परिवारों को 1982 में कोरबा शहर के बीचों-बीच स्थित टीपी नगर में जगह मिली. हालांकि तब टीपी नगर उतना विकसित नहीं था, जितना कि अब है. टीपी नगर 1982 के कोरबा के लिहाज से आउटर क्षेत्र हुआ करता था, जहां अब नया बस स्टैंड भी विकसित हो गया है. वर्तमान में शरणार्थी जहां निवासरत है वह शहर का सबसे रिहायशी व पॉश इलाके के पास है. लेकिन इनके जीवन स्तर और जीविकोपार्जन पर इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है. आज भी उसी 10 बाई 15 के कमरे में जीवन बीत रहा है.

घोषणाएं आज तक नहीं हुईं पूरी
शरणार्थी कहते हैं कि हमें यहां बसाते वक्त जो घोषणाएं की गई थी, उसके अनुसार हमें पुनर्वास आज तक नहीं मिला है. कुछ लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में बसाया गया जो कि आज किसान हैं, और अच्छी कमाई करते हैं. हमने व्यवसाय चुना था लेकिन हमें आज तक दुकान आवंटित नहीं की गई है. पान ठेले वाली एक गुमटी दी गई थी लेकिन उसे रखने के लिए हमें जमीन मिलने का इंतजार है. तब 5,000 रुपए देने की घोषणा हुई थी, उसमें से भी हमें सिर्फ 3 हजार की राशि मिली. ऐसी कई घोषणाएं थी, जो अब तक अधूरी हैं. शरणार्थियों का कहना है कि इतने सालों में हमने कई नेताओं के चक्कर काटे, कई अफसरों को आवेदन दिया. लेकिन इसका कोई भी सकारात्मक परिणाम नहीं निकला.

सरकारी योजनाओं का भी नहीं मिल रहा लाभ
इन्हीं में से एक युवक गौरव नंदी ने कहा कि हमने अपने पूर्वजों से सुना है कि हमें बांग्लादेश से लाकर यहां बसाया गया था. इतने सालों से हम पट्टे की मांग कर रहे हैं. पिछले निकाय चुनाव में पार्षद ने वादा किया था कि हमें पट्टा दिया जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आसपास के क्षेत्र में पट्टा वितरण हो रहा है. पीएम आवास के तहत मकान बनाए जा रहे हैं. लेकिन हम इस योजना से वंचित हैं. हमारा जो कैंप है यहां के शौचालय भी जाम हैं. बरसात के मौसम में वहां शौच करने नहीं जा सकते.

कोरबा जिले से जयसिंह अग्रवाल छत्तीसगढ़ शासन में राजस्व एवं पुनर्वास मंत्री हैं, लेकिन अब भी बांग्लादेशी शरणार्थियों को वह मुकाम नहीं मिल सका जिसकी घोषणाएं हुई थी. इस मामले पर ETV भारत ने राजस्व मंत्री से संपर्क करने का प्रयास भी किया लेकिन वह आउट ऑफ स्टेशन हैं.

हर व्यक्ति का योगदान मायने रखता है
आज विश्व शरणार्थी दिवस है. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग के अनुसार हर मिनट 20 लोग अपना सबकुछ छोड़कर भागने को मजबूर हो जाते हैं. विश्व शरणार्थी दिवस का उद्देश्य विश्व का ध्यान शरणार्थियों की दुर्दशा की तरफ केंद्रित करना है. यूएनएचसीआर की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2,00,000 शरणार्थी हैं. इस वर्ष विश्व शरणार्थी दिवस की थीम है-हर व्यक्ति का योगदान मायने रखता है.

हर साल 20 जून को मनाया जाता है विश्व शरणार्थी दिवस
हर साल 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य दुनियाभर में शरणार्थियों की दुर्दशा के लिए दीर्घकालिक समाधान की दिशा में काम करना है. विश्व शरणार्थी दिवस शरणार्थियों के अधिकारों, जरूरतों और उम्मीदों पर प्रकाश डालता है. यह राजनीतिक मदद और संसाधनों को जुटाने में मदद करता है, ताकि शरणार्थी न केवल जीवित रह सकें, बल्कि उनका सर्वांगीण विकास हो सके.

हर एक दिन शरणार्थियों के जीवन की रक्षा और उसके स्तर को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है, विश्व शरणार्थी दिवस जैसे अंतर्राष्ट्रीय दिवस शरणार्थियों की दुर्दशा पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं. इस दिन ऐसे कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जो शरणार्थियों की मदद करने के अवसर प्रदान करते हैं.

रायपुर : बांग्लादेशी शरणार्थियों को कोरबा जिले में बसे करीब 50 साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन आज भी इन्हें स्थायी पुनर्वास का इंतजार है. 1982 में करीब 40 बांग्लादेशी परिवारों को रायपुर के माना कैंप से कोरबा में बसाया गया था. इसके साथ ही इनके लिए कई घोषणाएं भी की गईं, लेकिन वो घोषणाएं सिर्फ कागजी बनकर रह गईं.

पावर हब में शरणार्थियों का दर्द
बीते चार दशकों में कोरबा पावर हब बन गया है. लेकिन बांग्लादेश से कोरबा आए शरणार्थियों का जीवन अब भी वहीं रुका हुआ है, न इन्हें स्थायी पुनर्वास मिल पाया और न ही दुकान के लिए जमीन. आज विश्व शरणार्थी दिवस है. इस अवसर पर हम आपको 40 ऐसे बांग्लादेशी परिवारों से मिला रहे हैं, जो पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है) से विस्थापित होकर पहले रायपुर आए और उसके बाद कोरबा पहुंचे.

स्थायी पुनर्वास के इंतजार में बांग्लादेशी शरणार्थी.

प्रदेश के अलग-अलग जिलों में बसाए गए बांग्लादेशी शरणार्थी
तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 1958 में दंडकारण्य परियोजना शुरू की थी, जिसके तहत पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से भारत आए. असंख्य बंगाली शरणार्थियों को विभाजन के बाद ओडिशा, मध्यप्रदेश और पूर्वोत्तर के क्षेत्र में बसाया गया था. वर्तमान छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़ और कोरबा जिले में अलग-अलग स्थानों पर ऐसे शरणार्थी रह रहे हैं. पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार और युद्ध के बाद उपजे विपरीत परिस्थितियों और दंगों से त्रस्त होकर शरणार्थी भारत में ही रहना चाहते थे. इंदिरा गांधी ने तब इनकी पीड़ा समझी और इन्हें भारत में शरण दी. तब से लेकर अब तक अन्य स्थानों की तुलना में कोरबा में रहने वाले शरणार्थियों के जीवन स्तर में कोई खास बदलाव नहीं आया है.

10 बाई 15 के कमरे में सिमटी जिंदगी
सारे शरणार्थी अब भी उसी घर में निवास करते हैं, जहां वह 1980 के दशक में निवासरत थे. शरणार्थियों की मानें तो उन्हें उनकी जमीन का मालिकाना हक भी नहीं मिला है. 40 परिवारों को 1982 में कोरबा शहर के बीचों-बीच स्थित टीपी नगर में जगह मिली. हालांकि तब टीपी नगर उतना विकसित नहीं था, जितना कि अब है. टीपी नगर 1982 के कोरबा के लिहाज से आउटर क्षेत्र हुआ करता था, जहां अब नया बस स्टैंड भी विकसित हो गया है. वर्तमान में शरणार्थी जहां निवासरत है वह शहर का सबसे रिहायशी व पॉश इलाके के पास है. लेकिन इनके जीवन स्तर और जीविकोपार्जन पर इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है. आज भी उसी 10 बाई 15 के कमरे में जीवन बीत रहा है.

घोषणाएं आज तक नहीं हुईं पूरी
शरणार्थी कहते हैं कि हमें यहां बसाते वक्त जो घोषणाएं की गई थी, उसके अनुसार हमें पुनर्वास आज तक नहीं मिला है. कुछ लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों में बसाया गया जो कि आज किसान हैं, और अच्छी कमाई करते हैं. हमने व्यवसाय चुना था लेकिन हमें आज तक दुकान आवंटित नहीं की गई है. पान ठेले वाली एक गुमटी दी गई थी लेकिन उसे रखने के लिए हमें जमीन मिलने का इंतजार है. तब 5,000 रुपए देने की घोषणा हुई थी, उसमें से भी हमें सिर्फ 3 हजार की राशि मिली. ऐसी कई घोषणाएं थी, जो अब तक अधूरी हैं. शरणार्थियों का कहना है कि इतने सालों में हमने कई नेताओं के चक्कर काटे, कई अफसरों को आवेदन दिया. लेकिन इसका कोई भी सकारात्मक परिणाम नहीं निकला.

सरकारी योजनाओं का भी नहीं मिल रहा लाभ
इन्हीं में से एक युवक गौरव नंदी ने कहा कि हमने अपने पूर्वजों से सुना है कि हमें बांग्लादेश से लाकर यहां बसाया गया था. इतने सालों से हम पट्टे की मांग कर रहे हैं. पिछले निकाय चुनाव में पार्षद ने वादा किया था कि हमें पट्टा दिया जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. आसपास के क्षेत्र में पट्टा वितरण हो रहा है. पीएम आवास के तहत मकान बनाए जा रहे हैं. लेकिन हम इस योजना से वंचित हैं. हमारा जो कैंप है यहां के शौचालय भी जाम हैं. बरसात के मौसम में वहां शौच करने नहीं जा सकते.

कोरबा जिले से जयसिंह अग्रवाल छत्तीसगढ़ शासन में राजस्व एवं पुनर्वास मंत्री हैं, लेकिन अब भी बांग्लादेशी शरणार्थियों को वह मुकाम नहीं मिल सका जिसकी घोषणाएं हुई थी. इस मामले पर ETV भारत ने राजस्व मंत्री से संपर्क करने का प्रयास भी किया लेकिन वह आउट ऑफ स्टेशन हैं.

हर व्यक्ति का योगदान मायने रखता है
आज विश्व शरणार्थी दिवस है. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग के अनुसार हर मिनट 20 लोग अपना सबकुछ छोड़कर भागने को मजबूर हो जाते हैं. विश्व शरणार्थी दिवस का उद्देश्य विश्व का ध्यान शरणार्थियों की दुर्दशा की तरफ केंद्रित करना है. यूएनएचसीआर की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2,00,000 शरणार्थी हैं. इस वर्ष विश्व शरणार्थी दिवस की थीम है-हर व्यक्ति का योगदान मायने रखता है.

हर साल 20 जून को मनाया जाता है विश्व शरणार्थी दिवस
हर साल 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य दुनियाभर में शरणार्थियों की दुर्दशा के लिए दीर्घकालिक समाधान की दिशा में काम करना है. विश्व शरणार्थी दिवस शरणार्थियों के अधिकारों, जरूरतों और उम्मीदों पर प्रकाश डालता है. यह राजनीतिक मदद और संसाधनों को जुटाने में मदद करता है, ताकि शरणार्थी न केवल जीवित रह सकें, बल्कि उनका सर्वांगीण विकास हो सके.

हर एक दिन शरणार्थियों के जीवन की रक्षा और उसके स्तर को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है, विश्व शरणार्थी दिवस जैसे अंतर्राष्ट्रीय दिवस शरणार्थियों की दुर्दशा पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं. इस दिन ऐसे कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जो शरणार्थियों की मदद करने के अवसर प्रदान करते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.