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अयोध्या केस में 15वें दिन की सुनवाई पूरी, जानें पूरा विवरण - hearing of ram mandir

सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद में चल रही सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि वो विवाद में जाना नहीं चाहते कि बाबर ने मस्जिद शरिया, हदीस और इस्लामिक नियमों के अनुसार बनाई है या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ( फाइल फोटो)
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Published : Aug 30, 2019, 12:13 AM IST

Updated : Sep 28, 2019, 7:50 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या भूमि विवाद पर 15वें दिन सुनवाई की गई. इस दौरान अदालत ने कहा कि 500 साल पहले के दावों की पुष्टि 'थोड़ी परेशानी' का मामला है. शुक्रवार को आगे की सुनवाई जारी रहेगी.

दरअसल, गुरुवार को ये दलील दी गई कि, मुगल सम्राट बाबर ने अयोध्या में विवादित ढांचे को 'अल्लाह' को समर्पित किया था, इसके लिए इस्लाम के सिद्धांतों के तहत एक वैध मस्जिद होना चाहिए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 500 साल पुराने मामले की जांच 'थोड़ी परेशानी' वाली है.

अखिल भारतीय श्री राम जन्मभूमि पुनरूद्धार समिति के वकील ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए इसे दलील को यह कहते हुए खत्म कर दिया था कि वो इस विवाद में जाना नहीं चाहते जिसमें यह कहा गया है कि बाबर ने मस्जिद शरिया, हदीस और इस्लामिक नियमों के अनुसार बनाई है या नहीं.

हिंदू पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पीएन मिश्रा ने मामले में एक मुस्लिम पक्षकार द्वारा दायर मुकदमे के हवाले से कहा कि बाबर जमीन का मालिक नहीं था और यह आरोप लगाने में असमर्थ था कि वह वैध रूप से 'वक्फ' को क्रियान्वित करने में असमर्थ था.

पढ़ें- अयोध्या केस: SC में 14वें दिन की सुनवाई, हिंदू संस्था की दलील- बाबर ने नहीं दिया था मंदिर गिराने का आदेश

उच्च न्यायालय ने कहा कि लगभग 500 साल बीत जाने के बाद, यह उस मुद्दे पर बहस नहीं करेगा जो 'इतिहासकारों के लिए बहस' का विषय हो सकता है.

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में सुनवाई के 15 वें दिन जस्टिस एसए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एसए नाजे की पीठ को बताया कि इस्लाम में बाबर जैसे लोग भी पूरी तरह संप्रभू नहीं था वो कुछ नहीं कर सकता था.था। उसे अभी भी धर्म का पालन करना था.

मिश्रा ने हाईकोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कि बाबर के पास पूर्ण शक्ति थी और उसने कुछ किया था ... जिसकी समीक्षा नहीं की जा सकती. इस पर पीठ ने कहा कि कि अब हम इस सवाल में नहीं पड़ सकते कि बाबर ने जो किया वह 'शरिया' के खिलाफ था. कोर्ट ने आगे कहा वो इस्लामिक नियमों के उल्लंघन मामले में पढ़ना नही चाहते. कोर्ट ने कहा कि कि यह लोगों के पहलू के साथ समझौता करेगा जो इसे मस्जिद मानते हैं.

पीठ ने कहा कि होगा, अगर हमने बाबर द्वारा मस्जिद के रूप में भूमि के समर्पण की न्यायिक वैधता पूछी तो यह काफी समय लेगा.

फिर यह कहेगा कि इस जगह 400 सालों से मुसलमान इबादत कर रहे और हिंदू भी पिछली दो सदियों से पूजा कर रहे हैं जबकि तर्क यह है कि दालतें इस दलील की जांच करें कि क्या सम्राट का कृत्य अवैध था.

मिश्रा ने कहा कि इस तरह के विवादों को तय करने के लिए कोई धार्मिक मंच नहीं था और अदालतें इस तरह के मुद्दों पर निर्णय लेने से इंकार नहीं कर सकती हैं.इस तरह के मामलों पर फैसला हिंदू-मुस्लिम कानूनों के आधार पर फैसला किया जा सकता है.

इस पर कोर्ट ने कहा कि इस बात का फैसला कोर्ट करे कि बाबर ने जो किया वो सही था या गलत.

इस पर, वरिष्ठ वकील ने कहा, अदालत कैसे कह सकती है कि वह फैसला नहीं करेगी यह मामला 70 सालों से कोर्ट में है.

पढ़ें- अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का पांचवां दिन, हिंदू पक्ष ने रखी ये दलीलें

मिश्रा ने कहा कि अगर दो समुदायों के बीच निरंतर संघर्ष होता है, तो यह तय करते समय धार्मिक पक्ष पर विचार किया जाना चाहिए कि किस पक्ष को विवादित पक्ष पर दावा करने के लिए बेहतर मामला मिला है क्योंकि दोनों धार्मिक स्थल एक भूखंड पर नहीं हो सकते हैं.

इससे पहले मिश्रा ने कहा था कि विवाद को तय करने के लिए ऐतिहासिक पुस्तकों को साक्ष्य कानून के तहत माना जा सकता है. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के बहुमत के फैसले ने माना था कि मुस्लिम यह साबित करने में विफल रहे थे कि विवादित ढांचे की संरचना बाबर ने की थी.

इस पर न्यायमूर्ति एसयू खान ने इस पर न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के साथ सहमति जताई, लेकिन कहा कि चूंकि हिंदुओं द्वारा कोई विपरीत सबूत नहीं दिया गया था, इसलिए संभावना थी कि संरचना एक मस्जिद थी.

मिश्रा ने कहा कि उन्होंने यह बात इसलिए कही कि हाईकोर्ट के फैसले के अवुसार बाबर जमीन का मालिक नहीं था.

उन्होंने कहा कि मुस्लिमों ने दो शिलालेखों पर भरोसा किया था, जो संरचना के प्रवेश द्वार और लुगदी पर रखे गए थे, उन्होंने कहा कि वे जाली थे क्योंकि उन्हें पहली बार 1934 के बाद एक मजिस्ट्रेट द्वारा देखा गया था.

इसपर पीठ ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद वो वक्फ वैध नहीं था,एक मस्जिद वहां मौजूद थी.

पीठ ने कहा कि दो पहलू हैं, पहला यह कि वहां ढांचा है, संरचना का निर्माण विवादित नहीं है और दूसरा जो कि आप कह रहे हैं कि यह समर्पित था या नहीं.

पीठ ने मिश्रा से पूछा कि वहां एक एक संरचना थी जो एक मस्जिद के आकार में थी .. आप इसके अस्तित्व से कैसे इनकार कर सकते हैं, और यह मस्जिद की वैधता से भी इंकार नहीं करता.

इसपर मिश्रा ने जवाब दिया कि इस ढांचे को मस्जिद के रूप में नहीं माना जा सकता. इस दौरान उन्होंने और इस्लामिक ग्रंथों और विभिन्न धार्मिक विशेषज्ञों की गवाही का उल्लेख किया, जो इस मामले पर गवाहों के तौर पर शामिल किए गए.

उन्होंने कहा कि अगर कोई मस्जिद दूसरे धर्म के लोगों की जमीन पर बनी है तो वह वैध नहीं है और 'वाकिफ' (जमीन वक्फ करना वाला) को जमीन का मालिक होना चाहिए.तभी वो जमीन को खुदा के समर्पित कर सकता है.

इसके बाद उन्होंने एक शाही फरमान का जिक्र करते हुए कहा है कि एक बार गुजरात में सती दास नामक एक हिंदू मंदिर के मालिक से औरंगजेब ने जमीन हड़प कर उस पर मस्जिद बनवा दी थी. जिसपर शाहजहां ने एक फरमान जारी कर उस जमीन को उसके मालिक को लौटाने का आदेश दिया.

उन्होंने कहा कि मंदिर को जमीन के वैध होने के बाद असली मालिक को वापस लौटाया जा सकता है. उसके बाद तब एक मंदिर और मस्जिद की विशेषताओं को प्रतिष्ठित किया और कहा कि विवादित ढांचे में मस्जिद होने के गुणों की कमी थी.

बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चार सिविल मुकदमों पर 2010 के अपने फैसले में, 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच समान रूप से विभाजित किया था. इस फैसले के के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चौदह अपील दायर की गई थीं.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या भूमि विवाद पर 15वें दिन सुनवाई की गई. इस दौरान अदालत ने कहा कि 500 साल पहले के दावों की पुष्टि 'थोड़ी परेशानी' का मामला है. शुक्रवार को आगे की सुनवाई जारी रहेगी.

दरअसल, गुरुवार को ये दलील दी गई कि, मुगल सम्राट बाबर ने अयोध्या में विवादित ढांचे को 'अल्लाह' को समर्पित किया था, इसके लिए इस्लाम के सिद्धांतों के तहत एक वैध मस्जिद होना चाहिए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 500 साल पुराने मामले की जांच 'थोड़ी परेशानी' वाली है.

अखिल भारतीय श्री राम जन्मभूमि पुनरूद्धार समिति के वकील ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए इसे दलील को यह कहते हुए खत्म कर दिया था कि वो इस विवाद में जाना नहीं चाहते जिसमें यह कहा गया है कि बाबर ने मस्जिद शरिया, हदीस और इस्लामिक नियमों के अनुसार बनाई है या नहीं.

हिंदू पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पीएन मिश्रा ने मामले में एक मुस्लिम पक्षकार द्वारा दायर मुकदमे के हवाले से कहा कि बाबर जमीन का मालिक नहीं था और यह आरोप लगाने में असमर्थ था कि वह वैध रूप से 'वक्फ' को क्रियान्वित करने में असमर्थ था.

पढ़ें- अयोध्या केस: SC में 14वें दिन की सुनवाई, हिंदू संस्था की दलील- बाबर ने नहीं दिया था मंदिर गिराने का आदेश

उच्च न्यायालय ने कहा कि लगभग 500 साल बीत जाने के बाद, यह उस मुद्दे पर बहस नहीं करेगा जो 'इतिहासकारों के लिए बहस' का विषय हो सकता है.

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद के राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले में सुनवाई के 15 वें दिन जस्टिस एसए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एसए नाजे की पीठ को बताया कि इस्लाम में बाबर जैसे लोग भी पूरी तरह संप्रभू नहीं था वो कुछ नहीं कर सकता था.था। उसे अभी भी धर्म का पालन करना था.

मिश्रा ने हाईकोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कि बाबर के पास पूर्ण शक्ति थी और उसने कुछ किया था ... जिसकी समीक्षा नहीं की जा सकती. इस पर पीठ ने कहा कि कि अब हम इस सवाल में नहीं पड़ सकते कि बाबर ने जो किया वह 'शरिया' के खिलाफ था. कोर्ट ने आगे कहा वो इस्लामिक नियमों के उल्लंघन मामले में पढ़ना नही चाहते. कोर्ट ने कहा कि कि यह लोगों के पहलू के साथ समझौता करेगा जो इसे मस्जिद मानते हैं.

पीठ ने कहा कि होगा, अगर हमने बाबर द्वारा मस्जिद के रूप में भूमि के समर्पण की न्यायिक वैधता पूछी तो यह काफी समय लेगा.

फिर यह कहेगा कि इस जगह 400 सालों से मुसलमान इबादत कर रहे और हिंदू भी पिछली दो सदियों से पूजा कर रहे हैं जबकि तर्क यह है कि दालतें इस दलील की जांच करें कि क्या सम्राट का कृत्य अवैध था.

मिश्रा ने कहा कि इस तरह के विवादों को तय करने के लिए कोई धार्मिक मंच नहीं था और अदालतें इस तरह के मुद्दों पर निर्णय लेने से इंकार नहीं कर सकती हैं.इस तरह के मामलों पर फैसला हिंदू-मुस्लिम कानूनों के आधार पर फैसला किया जा सकता है.

इस पर कोर्ट ने कहा कि इस बात का फैसला कोर्ट करे कि बाबर ने जो किया वो सही था या गलत.

इस पर, वरिष्ठ वकील ने कहा, अदालत कैसे कह सकती है कि वह फैसला नहीं करेगी यह मामला 70 सालों से कोर्ट में है.

पढ़ें- अयोध्या केस: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का पांचवां दिन, हिंदू पक्ष ने रखी ये दलीलें

मिश्रा ने कहा कि अगर दो समुदायों के बीच निरंतर संघर्ष होता है, तो यह तय करते समय धार्मिक पक्ष पर विचार किया जाना चाहिए कि किस पक्ष को विवादित पक्ष पर दावा करने के लिए बेहतर मामला मिला है क्योंकि दोनों धार्मिक स्थल एक भूखंड पर नहीं हो सकते हैं.

इससे पहले मिश्रा ने कहा था कि विवाद को तय करने के लिए ऐतिहासिक पुस्तकों को साक्ष्य कानून के तहत माना जा सकता है. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के बहुमत के फैसले ने माना था कि मुस्लिम यह साबित करने में विफल रहे थे कि विवादित ढांचे की संरचना बाबर ने की थी.

इस पर न्यायमूर्ति एसयू खान ने इस पर न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के साथ सहमति जताई, लेकिन कहा कि चूंकि हिंदुओं द्वारा कोई विपरीत सबूत नहीं दिया गया था, इसलिए संभावना थी कि संरचना एक मस्जिद थी.

मिश्रा ने कहा कि उन्होंने यह बात इसलिए कही कि हाईकोर्ट के फैसले के अवुसार बाबर जमीन का मालिक नहीं था.

उन्होंने कहा कि मुस्लिमों ने दो शिलालेखों पर भरोसा किया था, जो संरचना के प्रवेश द्वार और लुगदी पर रखे गए थे, उन्होंने कहा कि वे जाली थे क्योंकि उन्हें पहली बार 1934 के बाद एक मजिस्ट्रेट द्वारा देखा गया था.

इसपर पीठ ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद वो वक्फ वैध नहीं था,एक मस्जिद वहां मौजूद थी.

पीठ ने कहा कि दो पहलू हैं, पहला यह कि वहां ढांचा है, संरचना का निर्माण विवादित नहीं है और दूसरा जो कि आप कह रहे हैं कि यह समर्पित था या नहीं.

पीठ ने मिश्रा से पूछा कि वहां एक एक संरचना थी जो एक मस्जिद के आकार में थी .. आप इसके अस्तित्व से कैसे इनकार कर सकते हैं, और यह मस्जिद की वैधता से भी इंकार नहीं करता.

इसपर मिश्रा ने जवाब दिया कि इस ढांचे को मस्जिद के रूप में नहीं माना जा सकता. इस दौरान उन्होंने और इस्लामिक ग्रंथों और विभिन्न धार्मिक विशेषज्ञों की गवाही का उल्लेख किया, जो इस मामले पर गवाहों के तौर पर शामिल किए गए.

उन्होंने कहा कि अगर कोई मस्जिद दूसरे धर्म के लोगों की जमीन पर बनी है तो वह वैध नहीं है और 'वाकिफ' (जमीन वक्फ करना वाला) को जमीन का मालिक होना चाहिए.तभी वो जमीन को खुदा के समर्पित कर सकता है.

इसके बाद उन्होंने एक शाही फरमान का जिक्र करते हुए कहा है कि एक बार गुजरात में सती दास नामक एक हिंदू मंदिर के मालिक से औरंगजेब ने जमीन हड़प कर उस पर मस्जिद बनवा दी थी. जिसपर शाहजहां ने एक फरमान जारी कर उस जमीन को उसके मालिक को लौटाने का आदेश दिया.

उन्होंने कहा कि मंदिर को जमीन के वैध होने के बाद असली मालिक को वापस लौटाया जा सकता है. उसके बाद तब एक मंदिर और मस्जिद की विशेषताओं को प्रतिष्ठित किया और कहा कि विवादित ढांचे में मस्जिद होने के गुणों की कमी थी.

बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चार सिविल मुकदमों पर 2010 के अपने फैसले में, 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला के बीच समान रूप से विभाजित किया था. इस फैसले के के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चौदह अपील दायर की गई थीं.

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SC-AYODHYA
After 500 yrs, examining Babur's dedication of mosque 'little problematic': SC in Ayodhya case
By Sanjeev Kumar
         New Delhi, Aug 29 (PTI) The Supreme Court Thursday termed as a "little problematic" the demand of a Hindu body that it judicially scrutinise, after almost 500 years, whether Mughal emperor Babur dedicated the disputed structure in Ayodhya to the 'Allah' for it to be a valid mosque under the tenets of Islam.
         The counsel for 'Akhil Bhartiya Sri Ram Janam Bhoomi Punarudhar Samiti' told a 5-judge Constitution bench, headed by Chief Justice Ranjan Gogoi, that the Allahabad High Court erred in saying it will not go into the issue as to whether Babur constructed the mosque without following 'Shraia', 'hadidth and other Islamic practices.
         Senior advocate P N Mishra, appearing for the Hindu body, a defendant in a lawsuit filed by a Muslim party in the case, said that instead of deciding on the allegations that Babur was not the owner of the land and was incapable of validly executing 'wakf' for the mosque, the high court held that since almost 500 years have passed, it would not deal with the issue which may be a matter of "debate for historians".
         "In Islam, even an absolute sovereign like Babur could not do everything. He still had to abide by the religion," Mishra told the bench, also comprising Justices S A Bobde, D Y Chandrachud, Ashok Bhushan and S A Nazeer, on the 15th day of the hearing in the politically sensitive case of the Ram Janmbhoomi-Babri Masjid land dispute.
         "What High Court suggested here that Babur had the absolute power and he had done something...that cannot be reviewed. They (HC) said that now we cannot get into the question as to what Babur did was against 'sharia'," the bench said.
         It added that rather than getting into the alleged violations of Islamic law and practices, the High Court said it would deal with the aspect of people believing it to be a mosque.
         "This will be little problematic, if we asked the judicial validity of the dedication of the land as mosque by Babur," the bench observed.
         It then said that Muslims have been claiming that they have been worshipping for more than 400 years and Hindus say that they are offering 'puja' for last two millennia and the argument was that the courts should examine the plea whether the act of the monarch was invalid.
         Mishra said there was no religious forum for deciding such disputes and the courts cannot simply refuse to decide such issues and there are judgements which provided that it can be done on the basis of Hindu and Muslim laws.
         "What you are saying is that the (High) court should have decided as to what Babur did was right or wrong," Justice Bobde asked.
         To this, the senior lawyer said, "How can the court say that it will not decide" and the case is being pursued for almost 70 years in courts.
         If there was continuous conflict between two communities, the religious tenets should be considered while deciding as to which side has got the better case to lay claim over the disputed party as both the religious place cannot be there on one plot, Mishra said.
         At the outset, the lawyer referred to a High Court order to say that the historical books can be considered under the Evidence law to decide the dispute.
         He said the majority verdict of the High Court had held that the Muslims failed to prove that the structure was built by Babur in 1528.
         Justice S U Khan concurred with Justice Sudhir Agrawal on this but said that as there was no contrary evidence put up by Hindus so there was the probability that the structure was a mosque, Mishra said and referred to the gist of conclusions of the HC verdict to highlight the point that Babur was not the owner of the land.
         Muslims had relied upon two inscriptions which were placed at entrance and pulpit of the structure, he said, adding that they were forged as they were first seen by a magistrate after 1934.
         The bench said that irrespective of the fact that there was no valid 'wakf', a mosque existed there and asked the lawyer as to how he will deal with it.
         "There are two aspects, first is the structure. The structure was built is not disputed. Second is that you are saying there was the issue whether it was dedicated or not.
         "But there was a structure that was in shape of a mosque.. how do you deny its existence. It does not take away the validity of the mosque," the bench asked.
         The structure cannot be treated as mosque, Mishra responded and referred to Islamic texts and testimonies of various religious experts who had testified as witnesses in the case.
         He said a mosque is not valid if it is built on the land of people of another religion and the 'wakif" should be the owner of the land for dedicating it to the almighty.
         He then referred to a 'shahi farman' (Royal order) of emperor Shahjahan and said that the land was ordered to be reverted to a Hindu temple owner, Sati Das in Gujarat, after prince Aurangzeb had forcibly taken it over and had converted into a mosque.
         "The temple can be returned back to the real owner after the usurpation of land is held to be invalid," he said.
         He then distinguished the characteristics of a temple and mosque and said that the disputed structure lacked the qualities of being a mosque.
         The advancing of arguments would continue on Friday.
         The Allahabad High Court, in its judgment of 2010 on four civil lawsuits, had partitioned the 2.77-acre disputed land equally among the three parties Sunni Waqf Board, Nirmohi Akhara and Ram Lalla.
         Fourteen appeals have been filed in the Supreme Court against the verdict. PTI SJK
SA
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Last Updated : Sep 28, 2019, 7:50 PM IST
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