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SC में अयोध्या केस का 13वां दिनः निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि वह 'राम लला' के दावे का विरोध नहीं कर रहा

अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की सुनवाई जारी है. 13वें दिन निर्मोही अखाड़ा ने अपना पक्ष रखना जारी रखा. निर्मोही अखाड़ा की तरफ से वकील सुशील जैन दलीलें दे रहे थे. इस सबके बाद कोर्ट ने हिंदू पक्ष की दलीलें सुनीं. पढ़ें पूरी खबर...

SC में अयोध्या केस का 13वां दिन
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Published : Aug 28, 2019, 2:25 AM IST

Updated : Sep 28, 2019, 1:26 PM IST

नई दिल्लीः निर्मोही अखाड़ा ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि के स्वामित्व के लिए 'राम लला' के वाद का विरोध नहीं कर रहा है.

अखाड़ा ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को इस रुख के बारे में बताया.

उससे पूछा गया था कि क्या वह इस तथ्य के आलोक में राम लला की याचिका का विरोध कर रहा है कि 'शबैत' (उपासक) के तौर पर संपत्ति पर उसका अधिकार तभी हो सकता है जब 'राम लला विराजमान' के वाद को विचारार्थ स्वीकार किया जाए.

वरिष्ठ वकील ने क्या कहा
निर्मोही अखाड़े की ओर से वरिष्ठ वकील सुशील जैन ने पीठ से कहा, 'कल आपने जो कहा, उसके जवाब में निर्मोही अखाड़ा का रुख यह है कि वह वाद संख्या 5 (देवकी नंदन अग्रवाल के माध्यम से देवता द्वारा दाखिल) की विचारणीयता के मुद्दे पर जोर नहीं देगा बशर्ते कि देवता के वकील भी अखाड़ा के शबैत अधिकारों को चुनौती नहीं दें.'

पीठ में कौन कौन हैं शामिल
पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं.

पीठ ने जैन के इस लगातार दिये जा रहे रुख से इत्तेफाक नहीं जताया कि देवता का मुकदमा विचारणीय नहीं है क्योंकि शबैत के रूप में केवल अखाड़ा को देवता की तरफ से मुकदमा दायर करने का हक है.

पढ़ेंः हिंदुओं का विश्वास है कि अयोध्या राम का जन्मस्थान है, राम लला के वकील का SC में तर्क

पीठ ने अखाड़ा को उसका रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया.

जैन ने की सुनवाई की दलीलें पेश
दशकों पुराने संवेदनशील मामले की 13वें दिन की सुनवाई में दलीलें पेश करते हुए जैन ने कहा कि 1934 से किसी मुस्लिम ने नियमित नमाज अदा करने के लिए विवादित इमारत में प्रवेश नहीं किया है और यह स्थान अखाड़े के कब्जे वाला मंदिर है.

पीठ ने कहा, 'आपने यह सब कल ही पढ़ा है. आप जो पढ़ चुके हैं, उसके आगे की बात करिए. दोहराइए मत.

जैन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष की इस दलील को नहीं माना जा सकता कि 1934 में सांप्रदायिक दंगे के बाद विवादित ढांचे की मरम्मत के लिए एक ठेकेदार को कहा गया था. इस बात पर इसलिए भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि राजस्व रिकार्ड अखाड़े का कब्जा दिखाते हैं.

फिर वरिष्ठ वकील ने कहा कि मामले में मुस्लिम पक्षों का वाद निर्धारित कालावधि से बहुत बाद का है क्योंकि उन्होंने वाद हेतु कारण सामने आने के बाद समय पर अदालत का रुख नहीं किया.

पढ़ेंः अयोध्या विवाद : CJI गोगोई के रिटायरमेंट से पहले फैसले की उम्मीद

वाद का पहला कारण 1855 में आया सामने
उन्होंने कहा कि वाद का पहला कारण 1855 में सामने आया था जब एक दंगा भड़का था. जिसके बाद मुसलमानों ने इस जगह पर कब्जा ले लिया और बाद में कुछ समय पश्चात हिंदुओं का कब्जा हो गया.

वकील ने कहा कि फिर 1934 में मुसलमानों को दंगों के बाद नमाज अदा करने से रोका गया और 12 साल गुजरने के बाद भी उन्होंने मुकदमा दायर नहीं किया.

जैन ने दलीलें समाप्त करते हुए कहा कि 'सुन्नी वक्फ बोर्ड' ने 1961 में मामला दाखिल किया था जिसे निर्धारित कालावधि पर नहीं होने की वजह से खारिज कर दिया गया.

अखिल भारतीय श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से वरिष्ठ वकील पी एन मिश्रा ने 'स्कंद पुराण' और 'अयोध्या महात्म्य' जैसे शास्त्रों एवं अन्य उल्लेखों के आधार पर दलीलें शुरू कीं. यह समिति एक मुस्लिम पक्ष द्वारा दाखिल पक्ष में प्रतिवादी हैं.

बाबरी ने किसी मस्जिद का नहीं करवाया निर्माण
उन्होंने कहा कि बाबर कभी अयोध्या नहीं आया और उसने किसी मस्जिद या अन्य किसी चीज का निर्माण नहीं कराया। मीर बाकी नाम का कोई शख्स नहीं था जिसे बाबर का कथित सेनापति और मस्जिद का निर्माता बताया जाता है.

पुराकाल से कर रहे उपासना
मिश्रा ने कहा, 'हमारा मामला कुछ अलग है. हमने उच्च न्यायालय में कहा है कि बाबर ने मस्जिद नहीं बनवाई. मीर बाकी जैसा कोई शख्स नहीं था. हमारा पक्ष है कि हम पुराकाल से वहां उपासना कर रहे हैं.

पढ़ेंः अयोध्या केस: वकील ने कहा , मस्जिद बनाने के लिए मंदिर गिराया गया

उन्होंने कहा, हमारे दो बिंदु हैं. पहला तो बाबर ने इसका निर्माण नहीं कराया और दूसरा कि तीन गुंबद वाले ढांचे को मस्जिद नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें मस्जिद की विशेषताएं नहीं थीं.

पीठ ने मांगा मंदिर के अस्तित्व का प्रमाण
पीठ ने धार्मिक उल्लेखों पर सवाल उठाते हुए कहा कि आस्था को प्रमाणित करने के लिए ये कारगर हो सकते हैं लेकिन मंदिर के अस्तित्व को प्रमाणित करने में वे कैसे मददगार होंगे.

मिश्रा ने कहा कि मामले में निर्णय के लिए मुकदमे से पहले के शास्त्रों और अनुसंधान कार्यों पर विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने हंस बेकर की एक पुस्तक का भी उल्लेख किया.

उन्होंने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान को दिखाने वाले एक नक्शे का भी संदर्भ दिया.

यह भी पढ़ेंः राम जन्मभूमि मामले में पार्टी क्यों नहीं हैं अयोध्या नरेश?

मुस्लिम पक्षों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने नक्शे में कथित विसंगतियों के मुद्दे को उठाया.

मिश्रा ने कहा कि जिस किताब में नक्शा है, वह रिकार्ड का हिस्सा है.

उन्होंने कहा कि जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (SSI) ने उस जगह पर खुदाई कार्य की तो स्तंभों की सात पंक्तियां दिखाई दीं और हिंदू परंपराओं के अनुसार कुल 85 स्तंभ (पिलर) वहां थे.

मिश्रा ने कहा, 'मैंने उच्च न्यायालय में साबित किया है कि फर्जी शिलालेख लगाये गए.'

उन्होंने कहा कि दो शिलालेखों में मस्जिद के निर्माण का अलग-अलग समय था.

अब सुनवाई बुधवार को शुरू होगी.

नई दिल्लीः निर्मोही अखाड़ा ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि के स्वामित्व के लिए 'राम लला' के वाद का विरोध नहीं कर रहा है.

अखाड़ा ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को इस रुख के बारे में बताया.

उससे पूछा गया था कि क्या वह इस तथ्य के आलोक में राम लला की याचिका का विरोध कर रहा है कि 'शबैत' (उपासक) के तौर पर संपत्ति पर उसका अधिकार तभी हो सकता है जब 'राम लला विराजमान' के वाद को विचारार्थ स्वीकार किया जाए.

वरिष्ठ वकील ने क्या कहा
निर्मोही अखाड़े की ओर से वरिष्ठ वकील सुशील जैन ने पीठ से कहा, 'कल आपने जो कहा, उसके जवाब में निर्मोही अखाड़ा का रुख यह है कि वह वाद संख्या 5 (देवकी नंदन अग्रवाल के माध्यम से देवता द्वारा दाखिल) की विचारणीयता के मुद्दे पर जोर नहीं देगा बशर्ते कि देवता के वकील भी अखाड़ा के शबैत अधिकारों को चुनौती नहीं दें.'

पीठ में कौन कौन हैं शामिल
पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं.

पीठ ने जैन के इस लगातार दिये जा रहे रुख से इत्तेफाक नहीं जताया कि देवता का मुकदमा विचारणीय नहीं है क्योंकि शबैत के रूप में केवल अखाड़ा को देवता की तरफ से मुकदमा दायर करने का हक है.

पढ़ेंः हिंदुओं का विश्वास है कि अयोध्या राम का जन्मस्थान है, राम लला के वकील का SC में तर्क

पीठ ने अखाड़ा को उसका रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया.

जैन ने की सुनवाई की दलीलें पेश
दशकों पुराने संवेदनशील मामले की 13वें दिन की सुनवाई में दलीलें पेश करते हुए जैन ने कहा कि 1934 से किसी मुस्लिम ने नियमित नमाज अदा करने के लिए विवादित इमारत में प्रवेश नहीं किया है और यह स्थान अखाड़े के कब्जे वाला मंदिर है.

पीठ ने कहा, 'आपने यह सब कल ही पढ़ा है. आप जो पढ़ चुके हैं, उसके आगे की बात करिए. दोहराइए मत.

जैन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष की इस दलील को नहीं माना जा सकता कि 1934 में सांप्रदायिक दंगे के बाद विवादित ढांचे की मरम्मत के लिए एक ठेकेदार को कहा गया था. इस बात पर इसलिए भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि राजस्व रिकार्ड अखाड़े का कब्जा दिखाते हैं.

फिर वरिष्ठ वकील ने कहा कि मामले में मुस्लिम पक्षों का वाद निर्धारित कालावधि से बहुत बाद का है क्योंकि उन्होंने वाद हेतु कारण सामने आने के बाद समय पर अदालत का रुख नहीं किया.

पढ़ेंः अयोध्या विवाद : CJI गोगोई के रिटायरमेंट से पहले फैसले की उम्मीद

वाद का पहला कारण 1855 में आया सामने
उन्होंने कहा कि वाद का पहला कारण 1855 में सामने आया था जब एक दंगा भड़का था. जिसके बाद मुसलमानों ने इस जगह पर कब्जा ले लिया और बाद में कुछ समय पश्चात हिंदुओं का कब्जा हो गया.

वकील ने कहा कि फिर 1934 में मुसलमानों को दंगों के बाद नमाज अदा करने से रोका गया और 12 साल गुजरने के बाद भी उन्होंने मुकदमा दायर नहीं किया.

जैन ने दलीलें समाप्त करते हुए कहा कि 'सुन्नी वक्फ बोर्ड' ने 1961 में मामला दाखिल किया था जिसे निर्धारित कालावधि पर नहीं होने की वजह से खारिज कर दिया गया.

अखिल भारतीय श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से वरिष्ठ वकील पी एन मिश्रा ने 'स्कंद पुराण' और 'अयोध्या महात्म्य' जैसे शास्त्रों एवं अन्य उल्लेखों के आधार पर दलीलें शुरू कीं. यह समिति एक मुस्लिम पक्ष द्वारा दाखिल पक्ष में प्रतिवादी हैं.

बाबरी ने किसी मस्जिद का नहीं करवाया निर्माण
उन्होंने कहा कि बाबर कभी अयोध्या नहीं आया और उसने किसी मस्जिद या अन्य किसी चीज का निर्माण नहीं कराया। मीर बाकी नाम का कोई शख्स नहीं था जिसे बाबर का कथित सेनापति और मस्जिद का निर्माता बताया जाता है.

पुराकाल से कर रहे उपासना
मिश्रा ने कहा, 'हमारा मामला कुछ अलग है. हमने उच्च न्यायालय में कहा है कि बाबर ने मस्जिद नहीं बनवाई. मीर बाकी जैसा कोई शख्स नहीं था. हमारा पक्ष है कि हम पुराकाल से वहां उपासना कर रहे हैं.

पढ़ेंः अयोध्या केस: वकील ने कहा , मस्जिद बनाने के लिए मंदिर गिराया गया

उन्होंने कहा, हमारे दो बिंदु हैं. पहला तो बाबर ने इसका निर्माण नहीं कराया और दूसरा कि तीन गुंबद वाले ढांचे को मस्जिद नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें मस्जिद की विशेषताएं नहीं थीं.

पीठ ने मांगा मंदिर के अस्तित्व का प्रमाण
पीठ ने धार्मिक उल्लेखों पर सवाल उठाते हुए कहा कि आस्था को प्रमाणित करने के लिए ये कारगर हो सकते हैं लेकिन मंदिर के अस्तित्व को प्रमाणित करने में वे कैसे मददगार होंगे.

मिश्रा ने कहा कि मामले में निर्णय के लिए मुकदमे से पहले के शास्त्रों और अनुसंधान कार्यों पर विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने हंस बेकर की एक पुस्तक का भी उल्लेख किया.

उन्होंने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान को दिखाने वाले एक नक्शे का भी संदर्भ दिया.

यह भी पढ़ेंः राम जन्मभूमि मामले में पार्टी क्यों नहीं हैं अयोध्या नरेश?

मुस्लिम पक्षों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने नक्शे में कथित विसंगतियों के मुद्दे को उठाया.

मिश्रा ने कहा कि जिस किताब में नक्शा है, वह रिकार्ड का हिस्सा है.

उन्होंने कहा कि जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (SSI) ने उस जगह पर खुदाई कार्य की तो स्तंभों की सात पंक्तियां दिखाई दीं और हिंदू परंपराओं के अनुसार कुल 85 स्तंभ (पिलर) वहां थे.

मिश्रा ने कहा, 'मैंने उच्च न्यायालय में साबित किया है कि फर्जी शिलालेख लगाये गए.'

उन्होंने कहा कि दो शिलालेखों में मस्जिद के निर्माण का अलग-अलग समय था.

अब सुनवाई बुधवार को शुरू होगी.

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SC-AYODHYA
Not opposing 'Ram Lalla' plea for title of disputed land at Ayodhya, Nirmohi Akahara tells SC
         New Delhi, Aug 27 (PTI) Hindu body 'Nirmohi Akahara' told the Supreme Court Tuesday that it was not opposing the lawsuit of deity 'Ram Lalla' for the title of disputed Ramjanam Bhoomi-Babri Masjid land at Ayodhya.
         'Akahara' apprised a 5-judge Constitution bench, headed by Chief Justice Ranjan Gogoi, of its stand following a direction whether it opposes the plea of the deity in view of the fact that its right as 'shebait' (devotee) over the property can only stand if the lawsuit of 'Ram Lalla Virajman' is allowed.
         "In response to what had fallen from your Lordships yesterday, the stand of 'Nirmohi Akahara' is that it will not press the issue of maintainability of suit number 5 (filed by the deity through its next friend Deoki Nandan Agrawal) provided that they (lawyers of deity) also do not dispute 'shebait' right of 'Akahara'," senior advocate Sushil Jain, appearing for the Hindu body, told the bench.
         The bench, also comprising Justices S A Bobde, D Y Chandrachud, Ashok Bhushan and S A Nazeer, has been critical of Jain's persistent stand that the suit of the deity is not maintainable as 'Akhara' alone has the right as 'shebait' to institute the lawsuit on behalf of deity.
         "You (Akhara) stand together and you will fall together...You cannot be the 'shebait' of mosque," the bench had quipped and had directed it to clear its stand.
         Advancing submissions on the 13th day of the decades-old sensitive case, Jain said no Muslims entered the disputed building since 1934 to offer regular 'namaz' and the place has been a temple under possession of 'Akhara'.
         "Mr Jain you have read all this yesterday. Please add to what you have already read, don't repeat," the bench said.
         Jain said the plea of Muslim side that a contractor was asked to repair the disputed structure following communal riot in 1934 cannot be believed in view of the fact that revenue records showed possession of 'Akahara'.
         The senior lawyer then said that the lawsuits of Muslim parties in the case have been "hopelessly time-barred" as they did not approach the court for remedies within time after the cause of action arose.
         The first cause of action arose in 1855 following a riot after which Muslims took possession of the site and later, Hindus took back after a brief period, he said.
         Then in 1934, Muslims were barred from offering 'namaz' following riots and even after passing of 12 years, they did not file the lawsuit, he said.
         'Sunni Wakf Board' filed the case in 1961 which was dismissed being "time-barred", Jain said while concluding his submissions.
         Senior advocate P N Mishra, appearing for 'Akhil Bhartiya Sri Ram Janam Bhoomi Punarudhar Samiti', which is one of the defendants in a lawsuit filed by a Muslim party, commenced his arguments relying on religious texts from 'Skand Puran' and 'Ayodhya Mahatamya', 'Babarnama', reports and scriptures.
         He took the stand that Babar never visited Ayodhya and he did not construct any mosque and moreover, there was no person of the name of Mir Baki, the alleged commander of the Mughal emperor and the maker of the mosque.
         "Our case is little different. We have submitted before the High Court that Babar did not construct the mosque, there was no person like Mir Baqi... Our case is that since time immemorial we have been worshipping there," Mishra said.
         "We have got two points. First, it (disputed structure) was not constructed by Babar and second, the three dome structure cannot be called a mosque as it lacked the characteristics of a mosque," Mishra said.
         At the outset, Mishra, referring to 'Skand Puran' and other religious texts including 'Valmiki Ramayana', said that there was a 'janmsthan' temple of Lord Ram.
         The bench then questioned the reference of religious texts saying that they may be beneficial to establish faith and belief and asked as to how they will help in establishing existence of the temple.
         Pre-litigation scriptures and research work should be considered in deciding the case, Mishra said and referred to a book written by one Hans Baker.
         He also referred to a map to show the birth place of Lord Ram in Ayodhya.
         Senior advocate Rajeev Dhavan, appearing for Muslim parties, raised the issue of alleged discrepancies in the map.
         Mishra said the book, containing the map, was part of the records.
         When the ASI excavated the site, they found seven row of pillars and there were a total of 85 pillars as per Hindu traditions, Mishra said.
         "I have proved in HC that the stone inscriptions were forged," he said, adding that two inscriptions had different time of construction of the mosque.
         While some Muslims say that Babar constructed the mosque, others said it was Aurangzeb who created mosques at five Hindu religious places such as Kashi, Mathura and Ayodhya.
         The bench asked Mishra as to who created the 'Wakf' of the disputed site.
         "As per them, it was Babar. For a property to become 'Waqf', first thing is that 'Waqif' must be the owner because if land is not owned at the time of making the 'waqf' then it would be against the religious tenets of Islam," he said.
         "Our case is that idols have been there since time immemorial," he said.
         The hearing would commence on Wednesday.
         The Allahabad High Court, in its judgment of 2010 on four civil lawsuits, had partitioned the 2.77-acre disputed land equally among the three parties Sunni Waqf Board, Nirmohi Akhara and Ram Lalla.
         Fourteen appeals have been filed in the Supreme Court against the verdict. PTI SJK RKS
SA
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Last Updated : Sep 28, 2019, 1:26 PM IST
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