नई दिल्लीः निर्मोही अखाड़ा ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि वह अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि के स्वामित्व के लिए 'राम लला' के वाद का विरोध नहीं कर रहा है.
अखाड़ा ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को इस रुख के बारे में बताया.
उससे पूछा गया था कि क्या वह इस तथ्य के आलोक में राम लला की याचिका का विरोध कर रहा है कि 'शबैत' (उपासक) के तौर पर संपत्ति पर उसका अधिकार तभी हो सकता है जब 'राम लला विराजमान' के वाद को विचारार्थ स्वीकार किया जाए.
वरिष्ठ वकील ने क्या कहा
निर्मोही अखाड़े की ओर से वरिष्ठ वकील सुशील जैन ने पीठ से कहा, 'कल आपने जो कहा, उसके जवाब में निर्मोही अखाड़ा का रुख यह है कि वह वाद संख्या 5 (देवकी नंदन अग्रवाल के माध्यम से देवता द्वारा दाखिल) की विचारणीयता के मुद्दे पर जोर नहीं देगा बशर्ते कि देवता के वकील भी अखाड़ा के शबैत अधिकारों को चुनौती नहीं दें.'
पीठ में कौन कौन हैं शामिल
पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं.
पीठ ने जैन के इस लगातार दिये जा रहे रुख से इत्तेफाक नहीं जताया कि देवता का मुकदमा विचारणीय नहीं है क्योंकि शबैत के रूप में केवल अखाड़ा को देवता की तरफ से मुकदमा दायर करने का हक है.
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पीठ ने अखाड़ा को उसका रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया.
जैन ने की सुनवाई की दलीलें पेश
दशकों पुराने संवेदनशील मामले की 13वें दिन की सुनवाई में दलीलें पेश करते हुए जैन ने कहा कि 1934 से किसी मुस्लिम ने नियमित नमाज अदा करने के लिए विवादित इमारत में प्रवेश नहीं किया है और यह स्थान अखाड़े के कब्जे वाला मंदिर है.
पीठ ने कहा, 'आपने यह सब कल ही पढ़ा है. आप जो पढ़ चुके हैं, उसके आगे की बात करिए. दोहराइए मत.
जैन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष की इस दलील को नहीं माना जा सकता कि 1934 में सांप्रदायिक दंगे के बाद विवादित ढांचे की मरम्मत के लिए एक ठेकेदार को कहा गया था. इस बात पर इसलिए भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि राजस्व रिकार्ड अखाड़े का कब्जा दिखाते हैं.
फिर वरिष्ठ वकील ने कहा कि मामले में मुस्लिम पक्षों का वाद निर्धारित कालावधि से बहुत बाद का है क्योंकि उन्होंने वाद हेतु कारण सामने आने के बाद समय पर अदालत का रुख नहीं किया.
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वाद का पहला कारण 1855 में आया सामने
उन्होंने कहा कि वाद का पहला कारण 1855 में सामने आया था जब एक दंगा भड़का था. जिसके बाद मुसलमानों ने इस जगह पर कब्जा ले लिया और बाद में कुछ समय पश्चात हिंदुओं का कब्जा हो गया.
वकील ने कहा कि फिर 1934 में मुसलमानों को दंगों के बाद नमाज अदा करने से रोका गया और 12 साल गुजरने के बाद भी उन्होंने मुकदमा दायर नहीं किया.
जैन ने दलीलें समाप्त करते हुए कहा कि 'सुन्नी वक्फ बोर्ड' ने 1961 में मामला दाखिल किया था जिसे निर्धारित कालावधि पर नहीं होने की वजह से खारिज कर दिया गया.
अखिल भारतीय श्री राम जन्म भूमि पुनरुद्धार समिति की ओर से वरिष्ठ वकील पी एन मिश्रा ने 'स्कंद पुराण' और 'अयोध्या महात्म्य' जैसे शास्त्रों एवं अन्य उल्लेखों के आधार पर दलीलें शुरू कीं. यह समिति एक मुस्लिम पक्ष द्वारा दाखिल पक्ष में प्रतिवादी हैं.
बाबरी ने किसी मस्जिद का नहीं करवाया निर्माण
उन्होंने कहा कि बाबर कभी अयोध्या नहीं आया और उसने किसी मस्जिद या अन्य किसी चीज का निर्माण नहीं कराया। मीर बाकी नाम का कोई शख्स नहीं था जिसे बाबर का कथित सेनापति और मस्जिद का निर्माता बताया जाता है.
पुराकाल से कर रहे उपासना
मिश्रा ने कहा, 'हमारा मामला कुछ अलग है. हमने उच्च न्यायालय में कहा है कि बाबर ने मस्जिद नहीं बनवाई. मीर बाकी जैसा कोई शख्स नहीं था. हमारा पक्ष है कि हम पुराकाल से वहां उपासना कर रहे हैं.
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उन्होंने कहा, हमारे दो बिंदु हैं. पहला तो बाबर ने इसका निर्माण नहीं कराया और दूसरा कि तीन गुंबद वाले ढांचे को मस्जिद नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसमें मस्जिद की विशेषताएं नहीं थीं.
पीठ ने मांगा मंदिर के अस्तित्व का प्रमाण
पीठ ने धार्मिक उल्लेखों पर सवाल उठाते हुए कहा कि आस्था को प्रमाणित करने के लिए ये कारगर हो सकते हैं लेकिन मंदिर के अस्तित्व को प्रमाणित करने में वे कैसे मददगार होंगे.
मिश्रा ने कहा कि मामले में निर्णय के लिए मुकदमे से पहले के शास्त्रों और अनुसंधान कार्यों पर विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने हंस बेकर की एक पुस्तक का भी उल्लेख किया.
उन्होंने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान को दिखाने वाले एक नक्शे का भी संदर्भ दिया.
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मुस्लिम पक्षों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने नक्शे में कथित विसंगतियों के मुद्दे को उठाया.
मिश्रा ने कहा कि जिस किताब में नक्शा है, वह रिकार्ड का हिस्सा है.
उन्होंने कहा कि जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (SSI) ने उस जगह पर खुदाई कार्य की तो स्तंभों की सात पंक्तियां दिखाई दीं और हिंदू परंपराओं के अनुसार कुल 85 स्तंभ (पिलर) वहां थे.
मिश्रा ने कहा, 'मैंने उच्च न्यायालय में साबित किया है कि फर्जी शिलालेख लगाये गए.'
उन्होंने कहा कि दो शिलालेखों में मस्जिद के निर्माण का अलग-अलग समय था.
अब सुनवाई बुधवार को शुरू होगी.