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भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिए सर्वव्यापी आईओटी कनेक्टिविटी की जरूरत

दुनिया चौथी औद्योगिक क्रांति का गवाह बन रही है. अब नई तकनीकें उद्योगों और व्यवसायों के संचालन के तरीके बदल रही हैं. इन सब के बीच आईआर 4.0 में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जो स्मार्ट कारखानों का निर्माण करेंगे.

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आत्मनिर्भर भारत
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Published : Jun 28, 2020, 3:47 AM IST

नई दिल्ली : दुनिया चौथी औद्योगिक क्रांति का गवाह बन रही है. अब नई तकनीकें उद्योगों और व्यवसायों के संचालन के तरीके बदल रही हैं. इन सब के बीच आईआर 4.0 में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जो स्मार्ट कारखानों का निर्माण करेंगे.

अफसोस की बात है कि भारत सरकार द्वारा विभिन्न डिजिटल कार्यक्रमों के माध्यम से तकनीकी रूप से देश को उन्नत बनाने के लिए जोर देने के बावजूद भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है. इस प्रकार, यह चिंता का विषय बना हुआ है कि कनेक्टिविटी तेजी से गिर रही है और भारत में ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में तो इसका अस्तित्व ही नहीं है, जबकि रेलवे, फार्म्स, सीमाओं, पॉवरलाइन, लास्ट-माइल वितरण केंद्रों और कई अन्य औद्योगिक कार्यों के लिए डेटा की जरूरत है.

जाहिर है कि भारत एक पूर्ण डिजिटल परिवर्तन के शिखर पर है और इसे और अधिक तत्परता के साथ आगे बढ़ने की भी जरूरत है.

सरकार के कार्यक्रम जैसे मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया भारत को विनिर्माण के साथ ही प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकते हैं. साथ ही, आईआर 4.0 प्रौद्योगिकियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित आत्मनिर्भर भारत का परीक्षण भी पास करना होगा, ताकि भारत अप्रचलित प्रौद्योगिकियों के लिए डंपिंग ग्राउंड न बन जाए.

भारत के उद्योग अभी भी काफी हद तक मैनुअल हैं और मशीन, उपकरण व वाहन आदि काफी हद तक कनेक्ट नहीं हैं. कारखानों को स्मार्ट बनने की आवश्यकता है और साथ ही मशीन व उपकरण एलओटी तैयार होने चाहिए.

ऐसा नहीं लगता कि भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम आईओटी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाता है. भारत में 2009 और 2019 के बीच दायर लगभग 6,000 एलओटी पेटेंट में से 70 प्रतिशत से अधिक बहुराष्ट्रीय कंपनियों और महज सात प्रतिशत इंडिया इंक और स्टार्टअप्स द्वारा दायर किए गए हैं. इनमें से 40 प्रतिशत से अधिक पेटेंट दिए गए थे, जिनमें से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का 90 प्रतिशत हिस्सा रहा है.

भारत 2019 में एफडीआई गंतव्यों की सूची में नौवें स्थान पर रहा, लेकिन ये निवेश प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के परिणामस्वरूप नहीं हैं, बल्कि इसमें रक्षा क्षेत्र शामिल है. भारतीय लोग विश्व स्तर पर दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तकनीक का निर्माण कर रहे हैं, लेकिन देखने वाली बात यह है कि क्या यह ब्रेन बैंक भारत में पुरानी तकनीक के डंपिंग को समाप्त कर सकता है और इसे अत्याधुनिक तकनीक में आत्मनिर्भर बनने में मदद कर सकता है.

कोविड-19 के बाद की दुनिया में एलओटी का बढ़ता उपयोग देखा जाएगा और 5-जी तकनीक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि दुनिया मानव संपर्क को कम से कम करना चाहेगी.

5-जी पर पॉलराज समिति की रिपोर्ट 5-जी एप्लीकेशन में नवाचारों (इनोवेशन) पर ध्यान केंद्रित करने की सिफारिश करती है, क्योंकि भारत में 5-जी बाजार 2019 और 2024 के बीच ऊंचाई छुएगा. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस रिपोर्ट को लागू करने में देरी से हमारी प्रशिक्षित जनशक्ति (मैनपावर) और विशाल बाजार के विकास को विकसित देशों द्वारा उनके 5 जी नेटवर्क और आईआर 4.0 के निर्माण के लिए हथिया लिया जाएगा.

प्रधानमंत्री ने संकट के बीच में अवसर खोजने की बात की है और कोविड-19 महामारी भारत को सर्वव्यापी आधार पर 5जी-एलओटी कनेक्टिविटी अपनाने का अवसर प्रदान करती है. इसके लाभार्थियों में मछुआरे जैसे समुदाय भी शामिल होंगे, जो अन्य देशों के जल क्षेत्र में भी चले जाते हैं और कई बार अपना जीवन गंवा देते हैं, क्योंकि उनका गहरे पानी से जुड़ाव नहीं होता है. इसके अलावा विनाशकारी कीटों के कारण फसलों का नुकसान झेलने वाले किसान और सुदूर क्षेत्रों (रिमोट एरिया) में तैनात सैनिकों को भी इसका लाभ मिलेगा, जिनकी महत्वपूर्ण डेटा और कनेक्टिविटी तक पहुंच नहीं होती है.

भारत को न केवल स्मार्ट शहरों, बल्कि स्मार्ट गांवों के लिए भी अपने 5-जी-आईओटी डिजिटल हाईवे की सख्त जरूरत है. देश में आईओटी और मशीन डेटा के लिए एक समर्पित डिजिटल राजमार्ग होना चाहिए, जो हर जगह मौजूद हो और इससे देश में कहीं से भी न्यूनतम लागत पर पहुंचा जा सके.

हम पहले से ही 5-जी लाने के मामले में पीछे हैं, लेकिन हमारे पास खोए हुए समय को अवसर में भुनाने का मौका भी है. इस समय हमारे पास विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता कम करते हुए 5-जी आईओटी प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनने का अवसर है.

नई दिल्ली : दुनिया चौथी औद्योगिक क्रांति का गवाह बन रही है. अब नई तकनीकें उद्योगों और व्यवसायों के संचालन के तरीके बदल रही हैं. इन सब के बीच आईआर 4.0 में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जो स्मार्ट कारखानों का निर्माण करेंगे.

अफसोस की बात है कि भारत सरकार द्वारा विभिन्न डिजिटल कार्यक्रमों के माध्यम से तकनीकी रूप से देश को उन्नत बनाने के लिए जोर देने के बावजूद भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है. इस प्रकार, यह चिंता का विषय बना हुआ है कि कनेक्टिविटी तेजी से गिर रही है और भारत में ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में तो इसका अस्तित्व ही नहीं है, जबकि रेलवे, फार्म्स, सीमाओं, पॉवरलाइन, लास्ट-माइल वितरण केंद्रों और कई अन्य औद्योगिक कार्यों के लिए डेटा की जरूरत है.

जाहिर है कि भारत एक पूर्ण डिजिटल परिवर्तन के शिखर पर है और इसे और अधिक तत्परता के साथ आगे बढ़ने की भी जरूरत है.

सरकार के कार्यक्रम जैसे मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया भारत को विनिर्माण के साथ ही प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकते हैं. साथ ही, आईआर 4.0 प्रौद्योगिकियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित आत्मनिर्भर भारत का परीक्षण भी पास करना होगा, ताकि भारत अप्रचलित प्रौद्योगिकियों के लिए डंपिंग ग्राउंड न बन जाए.

भारत के उद्योग अभी भी काफी हद तक मैनुअल हैं और मशीन, उपकरण व वाहन आदि काफी हद तक कनेक्ट नहीं हैं. कारखानों को स्मार्ट बनने की आवश्यकता है और साथ ही मशीन व उपकरण एलओटी तैयार होने चाहिए.

ऐसा नहीं लगता कि भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम आईओटी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाता है. भारत में 2009 और 2019 के बीच दायर लगभग 6,000 एलओटी पेटेंट में से 70 प्रतिशत से अधिक बहुराष्ट्रीय कंपनियों और महज सात प्रतिशत इंडिया इंक और स्टार्टअप्स द्वारा दायर किए गए हैं. इनमें से 40 प्रतिशत से अधिक पेटेंट दिए गए थे, जिनमें से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का 90 प्रतिशत हिस्सा रहा है.

भारत 2019 में एफडीआई गंतव्यों की सूची में नौवें स्थान पर रहा, लेकिन ये निवेश प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के परिणामस्वरूप नहीं हैं, बल्कि इसमें रक्षा क्षेत्र शामिल है. भारतीय लोग विश्व स्तर पर दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तकनीक का निर्माण कर रहे हैं, लेकिन देखने वाली बात यह है कि क्या यह ब्रेन बैंक भारत में पुरानी तकनीक के डंपिंग को समाप्त कर सकता है और इसे अत्याधुनिक तकनीक में आत्मनिर्भर बनने में मदद कर सकता है.

कोविड-19 के बाद की दुनिया में एलओटी का बढ़ता उपयोग देखा जाएगा और 5-जी तकनीक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, क्योंकि दुनिया मानव संपर्क को कम से कम करना चाहेगी.

5-जी पर पॉलराज समिति की रिपोर्ट 5-जी एप्लीकेशन में नवाचारों (इनोवेशन) पर ध्यान केंद्रित करने की सिफारिश करती है, क्योंकि भारत में 5-जी बाजार 2019 और 2024 के बीच ऊंचाई छुएगा. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस रिपोर्ट को लागू करने में देरी से हमारी प्रशिक्षित जनशक्ति (मैनपावर) और विशाल बाजार के विकास को विकसित देशों द्वारा उनके 5 जी नेटवर्क और आईआर 4.0 के निर्माण के लिए हथिया लिया जाएगा.

प्रधानमंत्री ने संकट के बीच में अवसर खोजने की बात की है और कोविड-19 महामारी भारत को सर्वव्यापी आधार पर 5जी-एलओटी कनेक्टिविटी अपनाने का अवसर प्रदान करती है. इसके लाभार्थियों में मछुआरे जैसे समुदाय भी शामिल होंगे, जो अन्य देशों के जल क्षेत्र में भी चले जाते हैं और कई बार अपना जीवन गंवा देते हैं, क्योंकि उनका गहरे पानी से जुड़ाव नहीं होता है. इसके अलावा विनाशकारी कीटों के कारण फसलों का नुकसान झेलने वाले किसान और सुदूर क्षेत्रों (रिमोट एरिया) में तैनात सैनिकों को भी इसका लाभ मिलेगा, जिनकी महत्वपूर्ण डेटा और कनेक्टिविटी तक पहुंच नहीं होती है.

भारत को न केवल स्मार्ट शहरों, बल्कि स्मार्ट गांवों के लिए भी अपने 5-जी-आईओटी डिजिटल हाईवे की सख्त जरूरत है. देश में आईओटी और मशीन डेटा के लिए एक समर्पित डिजिटल राजमार्ग होना चाहिए, जो हर जगह मौजूद हो और इससे देश में कहीं से भी न्यूनतम लागत पर पहुंचा जा सके.

हम पहले से ही 5-जी लाने के मामले में पीछे हैं, लेकिन हमारे पास खोए हुए समय को अवसर में भुनाने का मौका भी है. इस समय हमारे पास विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता कम करते हुए 5-जी आईओटी प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनने का अवसर है.

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