गुवाहाटी : असम विधानसभा में मदरसा के प्रांतीयकरण (provincialisation) से जुड़ा विधेयक पेश किया गया है. असम की सर्बानंद सोनोवाल सरकार में मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, 'हमने एक विधेयक पेश किया है जिसके तहत सभी मदरसों को सामान्य शिक्षा के संस्थानों में बदल दिया जाएगा और भविष्य में सरकार द्वारा कोई मदरसा स्थापित नहीं किया जाएगा.' विधानसभा अध्यक्ष हितेंद्रनाथ गोस्वामी ने विधेयक पेश करने की अनुमति दी तो विपक्ष ने हंगामा किया और सदन के भीतर नारेबाजी की. हालांकि, अध्यक्ष ने उनसे बुधवार को विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेने को कहा जिसके बाद कांग्रेस और एआईयूडीएफ सदस्य शांत हो गए.
हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि कांग्रेस और AIUDF (ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) ने इस विधेयक का विरोध किया है, लेकिन हम दृढ़ हैं कि इस विधेयक को पारित करने की आवश्यकता है और इसे पारित किया जाएगा.
तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र का पहला दिन
दरअसल, असम सरकार ने एक अप्रैल, 2021 से राज्य में सभी सरकारी मदरसों को बंद करने और उन्हें स्कूलों में बदलने संबंधी एक विधेयक सोमवार को विधानसभा में पेश किया. विपक्ष की आपत्ति के बावजूद शिक्षा मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने विधानसभा के तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र के पहले दिन असम निरसन विधेयक, 2020 को पेश किया.
क्या हैं प्रस्ताव
विधेयक में दो मौजूदों कानूनों असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) कानून, 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवा का प्रांतीयकरण और मदरसा शिक्षण संस्थानों का पुनर्गठन) कानून, 2018 को निरस्त करने का प्रस्ताव दिया गया है.
सेवा शर्तों में कोई बदलाव नहीं
सोमवार को विधानसभा में हेमंत बिस्व सरमा ने कहा, विधेयक निजी मदरसे पर नियंत्रण और उनको बंद करने के लिए नहीं है. उन्होंने कहा कि विधेयक के 'लक्ष्यों और उद्देश्यों के बयान' में 'निजी' शब्द गलती से शामिल हो गया. उन्होंने कहा कि सभी मदरसे उच्च प्राथमिक, उच्च और माध्यमिक स्कूलों में बदले जाएंगे और शिक्षक तथा गैर शिक्षण कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों में कोई बदलाव नहीं होगा.
मंत्रिमंडल ने 13 दिसंबर को सभी मदरसे और संस्कृत स्कूलों को बंद करने के एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. विधानसभा में लाए गए विधेयक में संस्कृत स्कूलों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है और शिक्षा मंत्री ने भी इस बारे में उल्लेख नहीं किया.
कांग्रेस विधायक की आपत्ति
विधेयक पेश किए जाने के बाद कांग्रेस के विधायक नुरूल हुदा ने कहा कि मदरसा में अरबी भाषा के अलावा अन्य विषयों की शिक्षा दी जाती है और किसी भाषा की पढ़ाई करने को सांप्रदायिक नहीं बताया जा सकता. कांग्रेस के एक और सदस्य कमालख्या डे पुरकायस्थ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मदरसों का आधुनिकीकरण का सुझाव दिया था इसे बंद करने के लिए नहीं कहा था.
सार्वजनिक धन पर कुरान की पढ़ाई की अनुमति नहीं
सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए शिक्षा मंत्री ने कहा कि वह कुरान, गीता, बाइबिल जैसी आध्यात्मिक शिक्षा में विश्वास रखते हैं लेकिन प्रस्तावित विधेयक ऐसी शिक्षा को रोकने से संबंधित नहीं है. उन्होंने कहा, 'मदरसा में दर्शन को एक विषय के तौर पर पढ़ाया जाता है. अगर अरबी की ही पढ़ाई हो तो कोई मुद्दा नहीं है. लेकिन सरकार के नाते हम सार्वजनिक धन पर कुरान की पढ़ाई की अनुमति नहीं दे सकते. कल हिंदू, ईसाई, सिख, जैन और अन्य लोग अपनी धार्मिक किताबों की पढ़ाई के लिए आ जाएंगे.' उन्होंने कहा, 'कई इस्लामी विद्वानों ने कुरान की पढ़ाई के लिए सरकारी समर्थन का विरोध किया है. यह गलत परंपरा थी और हम इसे खत्म करना चाहते थे.'
13 दिसंबर को कैबिनेट की मंजूरी
इससे पहले असम के शिक्षा मंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने विगत 14 दिसंबर को कहा था कि असम भारत का पहला राज्य होगा, जहां कई सरकारी मदरसों और संस्कृत विद्यालयों के बंद होने के बाद धर्म से परे भारतीय सभ्यता के बारे में पढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा था कि असम कैबिनेट ने 13 दिसंबर को मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की अध्यक्षता में अपनी बैठक में सभी सरकारी मदरसों और संस्कृत स्कूलों को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी.
सामान्य विद्यालयों में बदलेंगे मदरसे
उन्होंने बताया था, 'सरकार द्वारा संचालित सभी 683 मदरसों को सामान्य विद्यालयों में परिवर्तित किया जाएगा और 97 संस्कृत टोल कुमार भास्करवर्मा संस्कृत विश्वविद्यालय को सौंप दिए जाएंगे. इन संस्कृत टोल को शिक्षा और अनुसंधान के केंद्रों में परिवर्तित किया जाएगा जहां धर्म से परे भारतीय संस्कृति, सभ्यता और राष्ट्रीयता की शिक्षा दी जाएगी, जो ऐसा करने वाला असम को पहला भारतीय राज्य बनाया जाएगा.'
मदरसे बंद नहीं होंगे
दिलचस्प है कि सरमा ने पहले कहा था कि राज्य सरकार मदरसों को चलाने के लिए सालाना 260 करोड़ रुपये खर्च कर रही है और 'सरकार धार्मिक शिक्षा के लिए सार्वजनिक धन खर्च नहीं कर सकती.' इस संबंध में उन्होंने कहा था कि असम में निजी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे मदरसे बंद नहीं होंगे. बता दें कि सरमा के पास वित्त और स्वास्थ्य विभाग का भी प्रभार है.
मदरसा शिक्षा की शुरुआत 1934 में
शिक्षा मंत्री सरमा ने बीते 14 दिसंबर को कहा था कि मदरसा शिक्षा की शुरुआत 1934 में हुई थी, जब सर सैयद मुहम्मद सादुल्ला ब्रिटिश शासन के दौरान असम के प्रधानमंत्री थे. उन्होंने कहा था कि यूनिफॉर्मिटी लाने के लिए सरकारी खजाने की कीमत पर कुरान पढ़ाना जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती.
मदरसों में दो पाठ्यक्रम
उन्होंने कहा था कि वर्तमान में राज्य मदरसा बोर्ड के तहत चार अरबी कॉलेज भी हैं और इन कॉलेजों और मदरसों में दो पाठ्यक्रम थे, एक विशुद्ध रूप से इस्लाम पर धार्मिक विषय है, और दूसरा सामान्य माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा निर्धारित सामान्य पाठ्यक्रम है. सरमा ने दावा किया था कि अभिभावकों और माता-पिता के अलावा, मदरसों में नामांकित अधिकांश छात्र डॉक्टर और इंजीनियर बनना चाहते हैं और इस तथ्य से अवगत नहीं हैं कि ये नियमित स्कूल नहीं हैं.
सर्वे का दावा- नियमित विषय की पढ़ाई नहीं
गौरतलब है कि गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर द्वारा एक सर्वेक्षण में पाया गया कि मदरसों के अधिकांश छात्रों के माता-पिता और अभिभावक इस तथ्य से अवगत नहीं हैं कि उनके बच्चों को नियमित विषय नहीं पढ़ाए जा रहे हैं.