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पर्यावरण संरक्षण के लिए सिर्फ तकनीक समाधान नहीं, जरूरी है समाज की पहल - प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा

पर्यावरण संरक्षण पर प्रो आशुतोश शर्मा ने कहा कि इसके लिए सिर्फ तकनीक ही समाधान नहीं है. पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर उन्होंने क्या कुछ कहा जानें....

पर्यावरण संरक्षण पर बात करते हुए प्रो. आशुतोष शर्मा
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Published : May 29, 2019, 11:59 PM IST

नई दिल्लीः पर्यावरण संरक्षण के लिए सिर्फ तकनीक समाधान नहीं है बल्कि इसके लिए पूरे समाज को सोचना होगा. ये कहना है विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा का. शर्मा नई दिल्ली में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) में आयोजित विज्ञान पुस्तकों के विमोचन के दौरान बोल रहे थे.

आशुतोष शर्मा ने कहा कि इसमे कोई संदेह नहीं है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का अहम योगदान है, तकनीक के ज़रिए हम यह देखते हैं कि उत्पादन और खपत को ज़्यादा कुशल कैसे बनाया जाए. उन्होंने कहा कि हमें देखना होगा कि हम सभी अपने-अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग प्रति वर्ष लगभग 500 करोड़ रुपये हरित ऊर्जा की तकनीक के क्षेत्र में व्यय करता है.

पढ़ेंः पर्यावरण नियमों का उल्लंघन पड़ा भारी, NGT ने बिल्डर्स पर लगाया 10 करोड़ का जुर्माना

उन्होंने कहा कि यदि हम बात करें कि मानवता के सामने तीन सबसे बड़ी चुनौतियां क्या होंगी तो वह है सतत विकास, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में बढ़ती तकनीक और वैश्वीकरण.

आशुतोष शर्मा ने उदाहरण देते हुए कहा कि बहुत से लोग यह कहते हैं की वे कॉटन के कपड़े पहनते हैं और यह पारिस्थितिक है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि एक किलो कॉटन को बनाने के लिए लगभग 10 हज़ार लीटर पानी की खपत होती है. इसलिये हमें समझना होगा कि तकनीक के ज़रिये हम किसी भी तरह की खपत कुशल तौर पर तो कर सकते हैं लेकिन हमारे लिए मूलभूत समस्या का हल संभव नहीं है.

नई दिल्लीः पर्यावरण संरक्षण के लिए सिर्फ तकनीक समाधान नहीं है बल्कि इसके लिए पूरे समाज को सोचना होगा. ये कहना है विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा का. शर्मा नई दिल्ली में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) में आयोजित विज्ञान पुस्तकों के विमोचन के दौरान बोल रहे थे.

आशुतोष शर्मा ने कहा कि इसमे कोई संदेह नहीं है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का अहम योगदान है, तकनीक के ज़रिए हम यह देखते हैं कि उत्पादन और खपत को ज़्यादा कुशल कैसे बनाया जाए. उन्होंने कहा कि हमें देखना होगा कि हम सभी अपने-अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या कर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग प्रति वर्ष लगभग 500 करोड़ रुपये हरित ऊर्जा की तकनीक के क्षेत्र में व्यय करता है.

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उन्होंने कहा कि यदि हम बात करें कि मानवता के सामने तीन सबसे बड़ी चुनौतियां क्या होंगी तो वह है सतत विकास, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में बढ़ती तकनीक और वैश्वीकरण.

आशुतोष शर्मा ने उदाहरण देते हुए कहा कि बहुत से लोग यह कहते हैं की वे कॉटन के कपड़े पहनते हैं और यह पारिस्थितिक है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि एक किलो कॉटन को बनाने के लिए लगभग 10 हज़ार लीटर पानी की खपत होती है. इसलिये हमें समझना होगा कि तकनीक के ज़रिये हम किसी भी तरह की खपत कुशल तौर पर तो कर सकते हैं लेकिन हमारे लिए मूलभूत समस्या का हल संभव नहीं है.

Intro:नई दिल्ली। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने आज नई दिल्ली में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) में आयोजित विज्ञान पुस्तकों के विमोचन के दौरान कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सिर्फ तकनीक समाधान नहीं है बल्कि इसके लिए पूरे समाज को सोचना होगा और देखना होगा कि हम सभी अपने-अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए क्या कर रहे हैं ।

आशुतोष शर्मा ने कहा कि इसमे कोई संदेह नहीं है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का अहम योगदान है, तकनीक के ज़रिए हम यह देखते हैं कि उत्पादन और खपत को ज़्यादा कुशल कैसे बनाया जाए।




Body:उन्होंने कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग प्रति वर्ष लगभग 500 करोड़ रूपये हरित ऊर्जा की तकनीक के क्षेत्र में व्यय करता है। यदि हम बात करें कि मानवता के सामने तीन सबसे बड़ी चुनौतियां क्या होंगी तो वह है सतत विकास, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में बढ़ती तकनीक और वैश्वीकरण।


Conclusion:आशुतोष शर्मा ने उदाहरण देते हुए कहा कि बहुत से लोग यह कहते हैं की वह कॉटन के कपड़े पहनते हैं और यह परिस्थितिक है लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि एक किलो कॉटन को बनाने के लिए लगभग 10 हज़ार लीटर पानी की खपत होती है। इसलिये हमे समझना होगा कि तकनीक के ज़रिये हम किसी भी तरह की खपत कुशल तौर पर तो कर सकते हैं लेकिन हमारे लिए मूलभूत समस्या का हल सम्भव नहीं है।
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