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असम द अकॉर्ड, द डिस्कॉर्ड' के अनुसार असम समझौते से राज्य में नहीं आई स्थाई शांति

संगीता बरुआ पिशरोती ने अपनी पुस्तक 'असम: द अकॉर्ड, द डिस्कॉर्ड' में कहा है कि 1985 के असम समझौते से राज्य में स्थाई शांति नहीं आई. उन्होंने आरोप लगाया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हुए समझौते ने राज्य की राजनीति को दूषित किया और उग्रवाद को बढ़ाया.

असम द अकॉर्ड (सौ, @PenguinIndia)
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Published : Aug 19, 2019, 3:30 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 11:29 AM IST

नई दिल्ली, 1985 के असम समझौते से राज्य में स्थाई शांति नहीं आई और ऐसा लगता है कि इससे केवल असहमति और मतभेद उत्पन्न हुए. एक नई पुस्तक में इस बात का दावा किया गया है.

संगीता बरुआ पिशरोती ने अपनी पुस्तक 'असम द अकॉर्ड, द डिस्कॉर्ड' में दावा किया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हुए समझौते ने राज्य की राजनीति को दूषित किया और उग्रवाद को बढ़ाया.

पिशरोती कहती हैं, 'आम लोग अजीब स्थिति में फंसे थे, उन्हें नहीं पता कि कौन शत्रु है, कौन मित्र.'

पिशरोती का कहना है कि असम की कहानी बहुत पुरानी है जिसमें हर एक व्यक्ति समय के साथ एकदूसरे की नजर में पीड़ित और अपराधी बना.

पिशरोती का कहना है कि उन्होंने 'जितना संभव हो उनके तथ्य प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जिससे रुचि रखने वाला पाठक असम की कहानी की जटिलताओं को समझ सके.'

पिशरोती को इसका दुख है कि भारत में मुख्यधारा के आख्यान में असम शायद ही कभी शामिल हुआ हो, खासकर जब दो महत्वपूर्ण घटनाक्रमों..विभाजन और आपातकाल..की बात होती है जिसने आधुनिक भारतीय राजशासन के निर्माण को परिभाषित किया है.

उन्होंने कहा, 'दोनों घटनाओं की लोगों और असम की राजनीति को आकार देने में बड़ी भूमिका थी जितना इसके बारे में स्वीकार किया जाता है. शायद असम आंदोलन को आपातकाल से उभरा राजनीति का अंकुर कहना पूरी तरह से गलत नहीं होगा.'

उन्होंने कहा है, ‘‘फिर भी विचार करने के लिए एक और बिंदु राज्य की सीमा पर बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का प्रभाव है. देश बांग्लादेश के निर्माण को लेकर खुश था और यह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मुकुट में रत्न बना, लेकिन सीमापार से शरणार्थियों के पलायन ने पुरानी ऐतिहासिक आशंकाओं को ताजा कर दिया और असम में व्यापक अशांति उत्पन्न की, जिस पर मुख्यधारा के भारत में ध्यान नहीं दिया गया.

पुस्तक का प्रकाशन 'पेंगुइन रैंडम हाउसद्वारा किया गया है.

पढ़ें- राजस्थान के नागौर में तालाब में डूबने से तीन भाई-बहनों की मौत

उल्लेखनीय है कि अवैध प्रवासियों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने की मांग को लेकर छह वर्ष का आंदोलन संगठन एएएसयू द्वारा 1979 में किया गया था.
इसकी समाप्ति राजीव गांधी की मौजूदगी में 15 अगस्त 1985 में असम समझौते के हस्ताक्षर के साथ हुई थी.

पुस्तक में भाषायी आंदोलन, राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी), नागरिकता विधेयक के साथ ही असम में भाजपा के बढ़ने और 1916 में सत्ता में आने जैसे विषयों पर भी चर्चा की गई है.

नई दिल्ली, 1985 के असम समझौते से राज्य में स्थाई शांति नहीं आई और ऐसा लगता है कि इससे केवल असहमति और मतभेद उत्पन्न हुए. एक नई पुस्तक में इस बात का दावा किया गया है.

संगीता बरुआ पिशरोती ने अपनी पुस्तक 'असम द अकॉर्ड, द डिस्कॉर्ड' में दावा किया है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हुए समझौते ने राज्य की राजनीति को दूषित किया और उग्रवाद को बढ़ाया.

पिशरोती कहती हैं, 'आम लोग अजीब स्थिति में फंसे थे, उन्हें नहीं पता कि कौन शत्रु है, कौन मित्र.'

पिशरोती का कहना है कि असम की कहानी बहुत पुरानी है जिसमें हर एक व्यक्ति समय के साथ एकदूसरे की नजर में पीड़ित और अपराधी बना.

पिशरोती का कहना है कि उन्होंने 'जितना संभव हो उनके तथ्य प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जिससे रुचि रखने वाला पाठक असम की कहानी की जटिलताओं को समझ सके.'

पिशरोती को इसका दुख है कि भारत में मुख्यधारा के आख्यान में असम शायद ही कभी शामिल हुआ हो, खासकर जब दो महत्वपूर्ण घटनाक्रमों..विभाजन और आपातकाल..की बात होती है जिसने आधुनिक भारतीय राजशासन के निर्माण को परिभाषित किया है.

उन्होंने कहा, 'दोनों घटनाओं की लोगों और असम की राजनीति को आकार देने में बड़ी भूमिका थी जितना इसके बारे में स्वीकार किया जाता है. शायद असम आंदोलन को आपातकाल से उभरा राजनीति का अंकुर कहना पूरी तरह से गलत नहीं होगा.'

उन्होंने कहा है, ‘‘फिर भी विचार करने के लिए एक और बिंदु राज्य की सीमा पर बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का प्रभाव है. देश बांग्लादेश के निर्माण को लेकर खुश था और यह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मुकुट में रत्न बना, लेकिन सीमापार से शरणार्थियों के पलायन ने पुरानी ऐतिहासिक आशंकाओं को ताजा कर दिया और असम में व्यापक अशांति उत्पन्न की, जिस पर मुख्यधारा के भारत में ध्यान नहीं दिया गया.

पुस्तक का प्रकाशन 'पेंगुइन रैंडम हाउसद्वारा किया गया है.

पढ़ें- राजस्थान के नागौर में तालाब में डूबने से तीन भाई-बहनों की मौत

उल्लेखनीय है कि अवैध प्रवासियों की पहचान करने और उन्हें वापस भेजने की मांग को लेकर छह वर्ष का आंदोलन संगठन एएएसयू द्वारा 1979 में किया गया था.
इसकी समाप्ति राजीव गांधी की मौजूदगी में 15 अगस्त 1985 में असम समझौते के हस्ताक्षर के साथ हुई थी.

पुस्तक में भाषायी आंदोलन, राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी), नागरिकता विधेयक के साथ ही असम में भाजपा के बढ़ने और 1916 में सत्ता में आने जैसे विषयों पर भी चर्चा की गई है.

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Last Updated : Sep 27, 2019, 11:29 AM IST
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