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अनुच्छेद 370 निरस्त होने से भी लद्दाखियों के सपने नहीं हुए साकार - अनुच्छेद 370 निरस्त

लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष पीटी कुंजंग ने ईटीवी भारत को बताया कि हम लद्दाखी 1949 से एक अलग राज्य या केंद्रशासित प्रदेश (यूटी) के लिए प्रयास कर रहे थे. हमने अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए पिछले सात दशकों में कई आंदोलन किए. यूटी की स्थिति प्राप्त करना हमारे लिए एक सपने के सच होने जैसा था. लेकिन स्थानीय लद्दाखी इन दावों का खंडन करते हैं. वे बताते हैं कि हकीकत कुछ और ही है.

लद्दाखियों के सपने नहीं हुए साकार
लद्दाखियों के सपने नहीं हुए साकार
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Published : Jul 11, 2020, 11:02 PM IST

श्रीनगर : पिछले साल 5 अगस्त को केंद्र की भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था. केंद्र सरकार ने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था. जिसके बाद क्षेत्र में एक तरह से संवादहीनता की स्थिति पैदा हो गई. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के अनुसार, लद्दाख एक अलग केंद्रशासित क्षेत्र होगा जिसमें कोई विधायिका नहीं होगी.

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से सरकार और स्थानीय राजनेता दावा कर रहे हैं कि स्थिति शांतिपूर्ण है और लद्दाख सहित तीनों क्षेत्रों के लोगों ने फैसले का स्वागत किया है.

अनुच्छेद 370 हटाए जाने का किया था स्वागत
लद्दाख बौद्ध संघ के अनुसार, यह फैसला लद्दाखियों के सपनों को साकार करेगा. लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष पीटी कुंजंग ने ईटीवी भारत को बताया कि हम लद्दाखी, 1949 से एक अलग राज्य या केंद्रशासित प्रदेश (यूटी) के लिए प्रयास कर रहे थे. हमने अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए पिछले सात दशकों में कई आंदोलन किए. यूटी की स्थिति प्राप्त करना हमारे लिए एक सपने के सच होने जैसा था.

उन्होंने इस फैसले के लिए केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि कई सरकारें आईं और गईं. उन्होंने वादे किए, मुद्दे पर राजनीति की, लेकिन हमारे लिए कुछ नहीं किया. पीएम मोदी ने एक ऐतिहासिक रुख अपनाया जो बहुत सराहनीय है और हम वर्तमान सरकार को इस तरह का साहसिक कदम उठाने के लिए धन्यवाद देते हैं.

लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास निगम के मुख्य कार्यकारी पार्षद ग्याल पी वांग्याल ने कहा कि यूटी की स्थिति लद्दाख के लोगों के लिए एक उपहार है. उन्होंने कहा, 'मेरे पास यह बताने के लिए शब्द नहीं है कि लद्दाख के लोग कितने खुश हैं. पिछले सात दशकों से हम 'मुक्त लद्दाख' की मांग कर रहे हैं और अब हमें यह मिल गया है. हमने इसे कश्मीर से अलग कर दिया है. यूटी की स्थिति पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और हमारे पूर्वजों की ओर से एक उपहार है, जिन्होंने हमारी भावी पीढ़ियों के लिए कड़ी मेहनत की है.'

यह बताते हुए कि जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग क्यों करना चाहते थे, उन्होंने कहा, 'केंद्र सरकार के धन का अधिकांश भाग केवल कश्मीरियों के लिए जाता था, जबकि लद्दाख क्षेत्र लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्र में फैला हुआ लेकिन उसके पास जीरो फंड आता था.'

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने 2014 में जम्मू-कश्मीर को 80,000 करोड़ रुपये का पैकेज दिया, लेकिन लद्दाख को कुछ नहीं मिला. हालांकि, राज्य में तीन क्षेत्र जम्मू, कश्मीर और लद्दाख थे. यह केवल कश्मीर था जिसे हमेशा तरजीह मिलती थी.

हकीकत कुछ और ही है
हालांकि, स्थानीय लद्दाखी इन दावों का खंडन करते हैं. वे बताते हैं कि हकीकत कुछ और ही है. लद्दाख के रहने वाले सरवर हुसैन ने ईटीवी भारत को बताया कि हमारे राजनेता और नेता अवसरवादी हैं. उन्होंने कभी भी क्षेत्र के लोगों के बारे में नहीं सोचा है. हम भ्रमित हैं और खुश नहीं हैं. हमारी किसी भी स्थिति में कोई स्पष्टता नहीं है और न ही कोई कुछ कर रहा है.

हुसैन कहते हैं कि केंद्रशासित प्रदेश बने हुए लगभग एक साल बीत चुके हैं, लेकिन हम अभी भी नए नियमों के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं. पहले सूचनाएं भी आती थीं, लेकिन अब कुछ नहीं हो रहा है. यहां तक ​​कि हमारे सरकारी अफसरों के पास भी कोई जानकारी नहीं है.

एक अन्य स्थानीय एंग्मो डेस्किट कहती हैं, 'मैं सिविल सेवाओं की तैयारी कर रही थी और केंद्र और राज्य दोनों स्तर की परीक्षाओं के लिए उपस्थित होने की योजना बनाई थी. अब मुझे नहीं पता कि क्या हो रहा है. ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि राज्य का कोटा कम किया जा रहा है, लेकिन आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं है. अगर यह सच है तो हमें क्या फायदा होगा. हमारे राजनेता अपने स्वार्थ साधने में व्यस्त हैं. उन्होंने हमारे या क्षेत्र के बारे में कभी नहीं सोचा. उन्हें इस बार सवाल करना चाहिए लेकिन चुप हैं. इस देश का नागरिक होने के नाते मुझे यह जानने का पूरा अधिकार है कि क्या हो रहा है लेकिन किसी के पास कोई जानकारी नहीं है. सबसे बुरी बात यह है कि कोई पूछ भी नहीं रहा.'

जब डेस्किट से पूछा गया कि क्या वह भी लद्दाख को कश्मीर से अलग करना चाहती हैं, तो उन्होंने कहा कि इससे क्या फर्क पड़ता है. एक आम लद्दाखी को विकास, बेहतर शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता है. हमारी साक्षरता दर कम है. बहुत सारे मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है. कश्मीर एक समस्या नहीं थी बल्कि भ्रष्टाचार समस्या थी. ये मुद्दे एक स्वायत्त राज्य को तोड़ने की बजाय रचनात्मक कदम उठाकर समाप्त हो सकते थे.

डोमिसाइल यानी अधिवास कानून पर तीखी प्रतिक्रिया
इस साल अप्रैल में केंद्र सरकार के औपचारिक अधिवास कानून की अधिसूचना के बाद लद्दाख प्रशासन की चुप्पी पर स्थानीय लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. वहां के लोग काफी गुस्से में हैं. जब ईटीवी भारत ने विकास पर लद्दाख प्रशासन और स्थानीय राजनेताओं की प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की तो उन्होंने यह कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि इस मुद्दे पर बात करने का सही समय नहीं है.

लद्दाख प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि लद्दाख नवगठित केंद्रशासित प्रदेश है. हमें शून्य से शुरू करना था और इन सब में समय लगता है. हमने जम्मू-कश्मीर पुलिस की बजाय अब लद्दाख पुलिस को तैयार किया है. इसी तरह वाहन पंजीकरण के लिए हम अब जेके की बजाय एलए का इस्तेमाल करते हैं. कई अन्य बदलाव किए जा रहे हैं. इसमें समय लगता है और मुझे विश्वास है कि सभी मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा.

उन्होंने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर में केंद्र से निर्देशों को लागू करना आसान है क्योंकि उनके पास पहले से ही प्रक्रिया को तेजी से लागू करने के लिए संसाधन हैं. दूसरी ओर हमारे पास सीमित विकल्प हैं. एक बार सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा तो सब कुछ आसान हो जाएगा. उन्होंने कहा कि अधिवास के मुद्दे के बारे में बात करने का यह सही समय नहीं है.

यूटी के सिविल सेवा उम्मीदवारों के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अब केंद्रीय नियम यहां भी लागू होते हैं. पुनर्गठन अधिनियम 2019 के बाद केंद्र सरकार से इस संबंध में कोई अलग अधिसूचना नहीं आई है. हम सभी के लिए धैर्य रखना बेहतर होगा.

इस बीच राजनेताओं और संघवादियों ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. हालांकि, स्थानीय लोगों ने क्षेत्र की मौजूदा स्थिति के बारे में अपनी निराशा व्यक्त की है.

एंग्मो डेस्किट कहती हैं कि हमारे सवाल पत्थरों से टकराकर वापस आ रहे हैं. कोई जवाब नहीं देता है क्योंकि कोई कुछ भी नहीं जानता है. डोमिसाइल और परिसीमन क्षेत्र के निवासियों के लिए एक बड़ी बात है लेकिन कौन परवाह करता है. जम्मू-कश्मीर में लोगों ने अधिवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया है. इससे हम लोगों में घबराहट पैदा हुई है. बहुत सारे सवाल हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं है. हम यही उम्मीद करते हैं कि हमारे लिए कुछ अच्छा होगा.

भारत-चीन भिड़ंत से लद्दाखियों में डर का माहौल
भारत और चीन ने इस तथ्य पर सहमति व्यक्त की है कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर से सैनिकों को हटाने के लिए तैयार होंगे. इसके लिए भारतीय सेना और चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के वरिष्ठ कमांडरों के बीच सहमति जरूरी है. लद्दाख के निवासियों के लिए यह राहत की खबर है.

लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद के पार्षद चुशुल कोंचोक स्टैनजिन ने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कहा कि यह अच्छी खबर है कि दोनों सेनाएं किसी निष्कर्ष पर पहुंची हैं और विघटन चल रहा है.

उन्होंने कहा, 'मेरे क्षेत्र के लोग अधिक चिंतित थे क्योंकि उनकी आय का एकमात्र स्रोत भूमि चराई है. चरागाह हमारी जीवन रेखा है और यदि दोनों सेनाओं के बीच की वार्ता फिर से विफल होती है तो हमें काफी नुकसान होगा. सैनिकों की तैनाती के कारण लोगों में अभी भी डर कम नहीं हुआ है. पिछले कुछ महीनों में क्षेत्र में विशाल सैन्य टुकड़ी ने 1962 के युद्ध के बुरे सपने को वापस ला दिया था.'

कोरजोक काउंसिल के गुरमत दोरजे के अनुसार, चीनी घुसपैठ दशकों से चल रही है. उन्होंने कहा कि दो साल पहले चीनियों ने नर्बु तामचो में आयोजित धार्मिक प्रार्थनाओं पर आपत्ति जताई थी, जहां हम नियमित रूप से जाते थे. चीनियों का कहना था कि यह क्षेत्र उनकी सीमा में आता है. लगातार आपत्तियों के बाद अधिकारियों ने हमें वहां जाने से रोक दिया.

श्रीनगर : पिछले साल 5 अगस्त को केंद्र की भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था. केंद्र सरकार ने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था. जिसके बाद क्षेत्र में एक तरह से संवादहीनता की स्थिति पैदा हो गई. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के अनुसार, लद्दाख एक अलग केंद्रशासित क्षेत्र होगा जिसमें कोई विधायिका नहीं होगी.

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से सरकार और स्थानीय राजनेता दावा कर रहे हैं कि स्थिति शांतिपूर्ण है और लद्दाख सहित तीनों क्षेत्रों के लोगों ने फैसले का स्वागत किया है.

अनुच्छेद 370 हटाए जाने का किया था स्वागत
लद्दाख बौद्ध संघ के अनुसार, यह फैसला लद्दाखियों के सपनों को साकार करेगा. लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष पीटी कुंजंग ने ईटीवी भारत को बताया कि हम लद्दाखी, 1949 से एक अलग राज्य या केंद्रशासित प्रदेश (यूटी) के लिए प्रयास कर रहे थे. हमने अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए पिछले सात दशकों में कई आंदोलन किए. यूटी की स्थिति प्राप्त करना हमारे लिए एक सपने के सच होने जैसा था.

उन्होंने इस फैसले के लिए केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि कई सरकारें आईं और गईं. उन्होंने वादे किए, मुद्दे पर राजनीति की, लेकिन हमारे लिए कुछ नहीं किया. पीएम मोदी ने एक ऐतिहासिक रुख अपनाया जो बहुत सराहनीय है और हम वर्तमान सरकार को इस तरह का साहसिक कदम उठाने के लिए धन्यवाद देते हैं.

लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास निगम के मुख्य कार्यकारी पार्षद ग्याल पी वांग्याल ने कहा कि यूटी की स्थिति लद्दाख के लोगों के लिए एक उपहार है. उन्होंने कहा, 'मेरे पास यह बताने के लिए शब्द नहीं है कि लद्दाख के लोग कितने खुश हैं. पिछले सात दशकों से हम 'मुक्त लद्दाख' की मांग कर रहे हैं और अब हमें यह मिल गया है. हमने इसे कश्मीर से अलग कर दिया है. यूटी की स्थिति पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और हमारे पूर्वजों की ओर से एक उपहार है, जिन्होंने हमारी भावी पीढ़ियों के लिए कड़ी मेहनत की है.'

यह बताते हुए कि जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग क्यों करना चाहते थे, उन्होंने कहा, 'केंद्र सरकार के धन का अधिकांश भाग केवल कश्मीरियों के लिए जाता था, जबकि लद्दाख क्षेत्र लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्र में फैला हुआ लेकिन उसके पास जीरो फंड आता था.'

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने 2014 में जम्मू-कश्मीर को 80,000 करोड़ रुपये का पैकेज दिया, लेकिन लद्दाख को कुछ नहीं मिला. हालांकि, राज्य में तीन क्षेत्र जम्मू, कश्मीर और लद्दाख थे. यह केवल कश्मीर था जिसे हमेशा तरजीह मिलती थी.

हकीकत कुछ और ही है
हालांकि, स्थानीय लद्दाखी इन दावों का खंडन करते हैं. वे बताते हैं कि हकीकत कुछ और ही है. लद्दाख के रहने वाले सरवर हुसैन ने ईटीवी भारत को बताया कि हमारे राजनेता और नेता अवसरवादी हैं. उन्होंने कभी भी क्षेत्र के लोगों के बारे में नहीं सोचा है. हम भ्रमित हैं और खुश नहीं हैं. हमारी किसी भी स्थिति में कोई स्पष्टता नहीं है और न ही कोई कुछ कर रहा है.

हुसैन कहते हैं कि केंद्रशासित प्रदेश बने हुए लगभग एक साल बीत चुके हैं, लेकिन हम अभी भी नए नियमों के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं. पहले सूचनाएं भी आती थीं, लेकिन अब कुछ नहीं हो रहा है. यहां तक ​​कि हमारे सरकारी अफसरों के पास भी कोई जानकारी नहीं है.

एक अन्य स्थानीय एंग्मो डेस्किट कहती हैं, 'मैं सिविल सेवाओं की तैयारी कर रही थी और केंद्र और राज्य दोनों स्तर की परीक्षाओं के लिए उपस्थित होने की योजना बनाई थी. अब मुझे नहीं पता कि क्या हो रहा है. ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि राज्य का कोटा कम किया जा रहा है, लेकिन आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं है. अगर यह सच है तो हमें क्या फायदा होगा. हमारे राजनेता अपने स्वार्थ साधने में व्यस्त हैं. उन्होंने हमारे या क्षेत्र के बारे में कभी नहीं सोचा. उन्हें इस बार सवाल करना चाहिए लेकिन चुप हैं. इस देश का नागरिक होने के नाते मुझे यह जानने का पूरा अधिकार है कि क्या हो रहा है लेकिन किसी के पास कोई जानकारी नहीं है. सबसे बुरी बात यह है कि कोई पूछ भी नहीं रहा.'

जब डेस्किट से पूछा गया कि क्या वह भी लद्दाख को कश्मीर से अलग करना चाहती हैं, तो उन्होंने कहा कि इससे क्या फर्क पड़ता है. एक आम लद्दाखी को विकास, बेहतर शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता है. हमारी साक्षरता दर कम है. बहुत सारे मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है. कश्मीर एक समस्या नहीं थी बल्कि भ्रष्टाचार समस्या थी. ये मुद्दे एक स्वायत्त राज्य को तोड़ने की बजाय रचनात्मक कदम उठाकर समाप्त हो सकते थे.

डोमिसाइल यानी अधिवास कानून पर तीखी प्रतिक्रिया
इस साल अप्रैल में केंद्र सरकार के औपचारिक अधिवास कानून की अधिसूचना के बाद लद्दाख प्रशासन की चुप्पी पर स्थानीय लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. वहां के लोग काफी गुस्से में हैं. जब ईटीवी भारत ने विकास पर लद्दाख प्रशासन और स्थानीय राजनेताओं की प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की तो उन्होंने यह कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि इस मुद्दे पर बात करने का सही समय नहीं है.

लद्दाख प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि लद्दाख नवगठित केंद्रशासित प्रदेश है. हमें शून्य से शुरू करना था और इन सब में समय लगता है. हमने जम्मू-कश्मीर पुलिस की बजाय अब लद्दाख पुलिस को तैयार किया है. इसी तरह वाहन पंजीकरण के लिए हम अब जेके की बजाय एलए का इस्तेमाल करते हैं. कई अन्य बदलाव किए जा रहे हैं. इसमें समय लगता है और मुझे विश्वास है कि सभी मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा.

उन्होंने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर में केंद्र से निर्देशों को लागू करना आसान है क्योंकि उनके पास पहले से ही प्रक्रिया को तेजी से लागू करने के लिए संसाधन हैं. दूसरी ओर हमारे पास सीमित विकल्प हैं. एक बार सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा तो सब कुछ आसान हो जाएगा. उन्होंने कहा कि अधिवास के मुद्दे के बारे में बात करने का यह सही समय नहीं है.

यूटी के सिविल सेवा उम्मीदवारों के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अब केंद्रीय नियम यहां भी लागू होते हैं. पुनर्गठन अधिनियम 2019 के बाद केंद्र सरकार से इस संबंध में कोई अलग अधिसूचना नहीं आई है. हम सभी के लिए धैर्य रखना बेहतर होगा.

इस बीच राजनेताओं और संघवादियों ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. हालांकि, स्थानीय लोगों ने क्षेत्र की मौजूदा स्थिति के बारे में अपनी निराशा व्यक्त की है.

एंग्मो डेस्किट कहती हैं कि हमारे सवाल पत्थरों से टकराकर वापस आ रहे हैं. कोई जवाब नहीं देता है क्योंकि कोई कुछ भी नहीं जानता है. डोमिसाइल और परिसीमन क्षेत्र के निवासियों के लिए एक बड़ी बात है लेकिन कौन परवाह करता है. जम्मू-कश्मीर में लोगों ने अधिवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया है. इससे हम लोगों में घबराहट पैदा हुई है. बहुत सारे सवाल हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं है. हम यही उम्मीद करते हैं कि हमारे लिए कुछ अच्छा होगा.

भारत-चीन भिड़ंत से लद्दाखियों में डर का माहौल
भारत और चीन ने इस तथ्य पर सहमति व्यक्त की है कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर से सैनिकों को हटाने के लिए तैयार होंगे. इसके लिए भारतीय सेना और चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के वरिष्ठ कमांडरों के बीच सहमति जरूरी है. लद्दाख के निवासियों के लिए यह राहत की खबर है.

लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद के पार्षद चुशुल कोंचोक स्टैनजिन ने अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कहा कि यह अच्छी खबर है कि दोनों सेनाएं किसी निष्कर्ष पर पहुंची हैं और विघटन चल रहा है.

उन्होंने कहा, 'मेरे क्षेत्र के लोग अधिक चिंतित थे क्योंकि उनकी आय का एकमात्र स्रोत भूमि चराई है. चरागाह हमारी जीवन रेखा है और यदि दोनों सेनाओं के बीच की वार्ता फिर से विफल होती है तो हमें काफी नुकसान होगा. सैनिकों की तैनाती के कारण लोगों में अभी भी डर कम नहीं हुआ है. पिछले कुछ महीनों में क्षेत्र में विशाल सैन्य टुकड़ी ने 1962 के युद्ध के बुरे सपने को वापस ला दिया था.'

कोरजोक काउंसिल के गुरमत दोरजे के अनुसार, चीनी घुसपैठ दशकों से चल रही है. उन्होंने कहा कि दो साल पहले चीनियों ने नर्बु तामचो में आयोजित धार्मिक प्रार्थनाओं पर आपत्ति जताई थी, जहां हम नियमित रूप से जाते थे. चीनियों का कहना था कि यह क्षेत्र उनकी सीमा में आता है. लगातार आपत्तियों के बाद अधिकारियों ने हमें वहां जाने से रोक दिया.

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