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जानिए झारखंड के 'आत्मनिर्भर' आरा-केरम गांव की कहानी - पहाड़ की तलहट्टी में बसा गांव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश से आत्मनिर्भर बनने की अपील की है, लेकिन उनकी अपील से पहले ही झारखंड का एक गांव पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गया है. रांची के पास बसे आरा-केरम गांव के लोग पूरी तरह से गांव के ही संसाधन पर निर्भर हैं. इस गांव में ना कोई नशा करता है और ना ही लड़ाई झगड़े होते हैं. इस गांव की तारीफ पीएम मोदी भी कर चुके हैं. पढ़ें विस्तार से खबर...

ara keram village
झारखंड का आत्मनिर्भर गांव
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Published : Jun 27, 2020, 5:37 PM IST

रांची : झारखंड की राजधानी से करीब 25 किमी दूर ओरमांझी प्रखंड में पहाड़ की तलहट्टी में बसा है आरा और केरम गांव. दोनों गांव के बीच फासला कुछ सौ मीटर का है. आरा में करीब 80 और केरम में 30 घर हैं. इस गांव को खास बनाती है यहां की नई संस्कृति जिसके जरिए अब यह गांव ना सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि प्लास्टिक मुक्त और इको फ्रेंडली भी है.

गांव में है 104 लोगों का परिवार
104 परिवार वाले गांव में सिर्फ छह परिवार ऐसे हैं, जिनके पास खेती की जमीन नहीं है. शेष के पास 10 डिसमिल से चार एकड़ तक जमीन है. आबादी करीब सवा छह सौ. आदिवासी बहुल इस गांव में एक मुस्लिम परिवार के अलावा छह अन्य जातियों के लोग रहते हैं.

जानकारी देते वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह

पीएम मोदी कर चुके हैं गांव की तारीफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल मन की बात में इन दोनों गांवों की तारीफ की थी. अब सवाल है कि कोरोना काल में आरा और केरम गांव से रूबरू कराने की क्या वजह है. दरअसल, कोविड-19 वायरस ने पूरी दुनिया की जीवनशैली बदल दी है. अब इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि बदलते हालात में हम तभी टिक पाएंगे जब हम लोकल के लिए वोकल होंगे. ऐसा होने के बाद ही आत्मनिर्भर बना जा सकता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आरा-केरम गांव के लोग इस बात को चार साल पहले ही समझ गये थे. इसकी शुरुआत हुई नशाबंदी से.

ara keram village in jharkhand
गांव के घर

इस गांव के लोग नहीं करते किसी तरह का नशा
2016 तक दोनों गांवों में अवैध शराब का निर्माण होता है. बड़ी आबादी इसी पर आश्रित थी. नशे में लोग धुत रहते थे. लड़ाई-झगड़े होते थे. इसी बीच कुछ महिलाओं की आंख खुली और बदलाव की बुनियाद तैयार होने लगी. नशाबंदी का सामाजिक व्यवस्था पर असर दिखा तो कुछ और करने की आस जगी. आज दोनों गांव नशामुक्त हैं, प्लास्टिक मुक्त हैं, लोटा मुक्त (ओडीएफ) हैं.

Village drug free operation
गांव का नशा मुक्त अभियान

पढ़ें- 'आत्मनिर्भर रोजगार कार्यक्रम' के लिए प्रधानमंत्री ने योगी को सराहा

यहां होती है सिर्फ जैविक खेती
इन दोनों गांवों में सिर्फ जैविक खेती होती है. श्रमदान कर ग्रामीण अमृत मिट्टी तैयार करते हैं. इसे जैविक खाद भी कह सकते हैं. पशुपालन, मुर्गीपालन और बकरीपालन कमाई का एक बड़ा जरिया है. महीने में दो दिन हर ग्रामीण श्रमदान करता है. बारिश के मौसम में पहाड़ से बहते वर्षाजल को रोकने के लिए जगह-जगह एलबीएस यानी लूज बोल्डर स्ट्रक्चर बने हुए हैं. पहाड़ पर एलबीएस में जमे पानी को पाइप के जरिए खेतों तक पहुंचाया जाता है.

ara keram village in jharkhand
पशुपालन से भी जुड़े हैं लोग

चार साल में लोगों की आमदनी में हुआ 5 गुना इजाफा
पिछले चार वर्षों में इस गांव की आमदनी पांच गुना बढ़ गई है. यहां 45 बाइक, दो ट्रेक्टर, दो ऑटो, एक ट्रेकर, एक बोलेरो और एक मारूति डिजायर खरीदी जा चुकी है. मनरेगा के तहत बंजर जमीन पर 180 गड्ढे खोदे जा चुके हैं. यहां बिरसा हरित योजना के तहत फलदार पेड़ लगाए जाएंगे. अब सवाल है कि ग्रामीणों को किसने प्रेरित किया. इसकी पड़ाताल करने पर एक नाम सामने आया. नाम है सिद्धार्थ त्रिपाठी. मनरेगा आयुक्त हैं. इन्होंने इस गांव को गोद लिया था और वक्त निकालकर ग्रामीणों को मोटिवेट करते रहे. नतीजा आपके सामने है.

Use of water flowing from the mountain
पहाड़ से बहते पानी का भी करते हैं इस्तेमाल

रांची : झारखंड की राजधानी से करीब 25 किमी दूर ओरमांझी प्रखंड में पहाड़ की तलहट्टी में बसा है आरा और केरम गांव. दोनों गांव के बीच फासला कुछ सौ मीटर का है. आरा में करीब 80 और केरम में 30 घर हैं. इस गांव को खास बनाती है यहां की नई संस्कृति जिसके जरिए अब यह गांव ना सिर्फ आत्मनिर्भर है, बल्कि प्लास्टिक मुक्त और इको फ्रेंडली भी है.

गांव में है 104 लोगों का परिवार
104 परिवार वाले गांव में सिर्फ छह परिवार ऐसे हैं, जिनके पास खेती की जमीन नहीं है. शेष के पास 10 डिसमिल से चार एकड़ तक जमीन है. आबादी करीब सवा छह सौ. आदिवासी बहुल इस गांव में एक मुस्लिम परिवार के अलावा छह अन्य जातियों के लोग रहते हैं.

जानकारी देते वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह

पीएम मोदी कर चुके हैं गांव की तारीफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल मन की बात में इन दोनों गांवों की तारीफ की थी. अब सवाल है कि कोरोना काल में आरा और केरम गांव से रूबरू कराने की क्या वजह है. दरअसल, कोविड-19 वायरस ने पूरी दुनिया की जीवनशैली बदल दी है. अब इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि बदलते हालात में हम तभी टिक पाएंगे जब हम लोकल के लिए वोकल होंगे. ऐसा होने के बाद ही आत्मनिर्भर बना जा सकता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आरा-केरम गांव के लोग इस बात को चार साल पहले ही समझ गये थे. इसकी शुरुआत हुई नशाबंदी से.

ara keram village in jharkhand
गांव के घर

इस गांव के लोग नहीं करते किसी तरह का नशा
2016 तक दोनों गांवों में अवैध शराब का निर्माण होता है. बड़ी आबादी इसी पर आश्रित थी. नशे में लोग धुत रहते थे. लड़ाई-झगड़े होते थे. इसी बीच कुछ महिलाओं की आंख खुली और बदलाव की बुनियाद तैयार होने लगी. नशाबंदी का सामाजिक व्यवस्था पर असर दिखा तो कुछ और करने की आस जगी. आज दोनों गांव नशामुक्त हैं, प्लास्टिक मुक्त हैं, लोटा मुक्त (ओडीएफ) हैं.

Village drug free operation
गांव का नशा मुक्त अभियान

पढ़ें- 'आत्मनिर्भर रोजगार कार्यक्रम' के लिए प्रधानमंत्री ने योगी को सराहा

यहां होती है सिर्फ जैविक खेती
इन दोनों गांवों में सिर्फ जैविक खेती होती है. श्रमदान कर ग्रामीण अमृत मिट्टी तैयार करते हैं. इसे जैविक खाद भी कह सकते हैं. पशुपालन, मुर्गीपालन और बकरीपालन कमाई का एक बड़ा जरिया है. महीने में दो दिन हर ग्रामीण श्रमदान करता है. बारिश के मौसम में पहाड़ से बहते वर्षाजल को रोकने के लिए जगह-जगह एलबीएस यानी लूज बोल्डर स्ट्रक्चर बने हुए हैं. पहाड़ पर एलबीएस में जमे पानी को पाइप के जरिए खेतों तक पहुंचाया जाता है.

ara keram village in jharkhand
पशुपालन से भी जुड़े हैं लोग

चार साल में लोगों की आमदनी में हुआ 5 गुना इजाफा
पिछले चार वर्षों में इस गांव की आमदनी पांच गुना बढ़ गई है. यहां 45 बाइक, दो ट्रेक्टर, दो ऑटो, एक ट्रेकर, एक बोलेरो और एक मारूति डिजायर खरीदी जा चुकी है. मनरेगा के तहत बंजर जमीन पर 180 गड्ढे खोदे जा चुके हैं. यहां बिरसा हरित योजना के तहत फलदार पेड़ लगाए जाएंगे. अब सवाल है कि ग्रामीणों को किसने प्रेरित किया. इसकी पड़ाताल करने पर एक नाम सामने आया. नाम है सिद्धार्थ त्रिपाठी. मनरेगा आयुक्त हैं. इन्होंने इस गांव को गोद लिया था और वक्त निकालकर ग्रामीणों को मोटिवेट करते रहे. नतीजा आपके सामने है.

Use of water flowing from the mountain
पहाड़ से बहते पानी का भी करते हैं इस्तेमाल
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